डॉ. राम प्रताप सिंह
द्वितीय विश्व युद्ध में हुए भयंकर त्रासदी को देखते हुए वैश्विक शान्ति की स्थापना के उद्देश्य से कई महत्त्वपूर्ण देशों ने एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की स्थापना का विचार रखा। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र तैयार किया गया, जिस पर कई देशों ने हस्ताक्षर किये और इस प्रकार संयुक्त राष्ट्र आधिकारिक तौर पर 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आया। प्रत्येक वर्ष 24 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह अंतरराष्ट्रीय संस्था अपनी 78वीं वर्षगाँठ मना रहा है। वर्तमान में दुनिया के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से 193 देश इसके सदस्य हैं।
तय करनी होगी भूमिका
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय से ही लगातार इसकी भूमिका पर प्रश्न उठते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के महत्त्वपूर्ण कार्यों में शान्ति एवं सुरक्षा को बनाए रखना, सतत विकास को बढ़ावा देना तथा संकटग्रस्त क्षेत्रों में मानवीय सहायता पहुँचाना है। इस लिहाज़ से अगर हम देखें तो पाते हैं कि राष्ट्रों के निजी स्वार्थों के बावजूद पिछले कुछ दशकों में दुनिया के अलग-अलग संकटग्रस्त क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र संघ ने शान्ति स्थापित करने में महती भूमिका निभायी है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनिया के कई देशों में शान्ति सेना भेजकर शान्ति बहाली में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, खाद्य और कृषि संगठन, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, इत्यादि ने मानव जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की है। भुखमरी को समाप्त करने, ग़रीबी को कम करने तथा पर्यावरण को बेहतर बनाने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियाँ लगातार कार्य कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की कई एजेंसियों को बेहतर कार्य करने के लिए शान्ति के नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
इसमें कोई दो-राय नहीं है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने नाभिकीय हथियारों के प्रसार को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है तथा इसने कुछ विशेष भौगोलिक क्षेत्रों में नरसंहार तथा मानवाधिकार हनन को रोका है। संयुक्त राष्ट्र संघ कई देशों में स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराने में सम्बन्धित देशों के लोगों की मदद करता है और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देता है। लेकिन हमें यह भी सच स्वीकार करना होगा कि दुनिया के कई हिस्सों में विभिन्न राष्ट्रों तथा संगठनों के बीच चल रहे युद्ध, तथा ख़ूनी संघर्ष को संयुक्त राष्ट्र संघ रोकने में नाकामयाब रहा। वर्तमान समय में इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष तथा रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है; लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ इसे रोकने के लिए कुछ ख़ास नहीं कर पा रहा है।
भारत-पाकिस्तान और भारत-चीन के आपसी मतभेद कभी-कभी बेहद तनावपूर्ण हो जाते हैं, जिससे क्षेत्र विशेष में युद्ध की आशंका बनी रहती है। कई बार यह पूर्व में देखा गया है कि बेहद तनावपूर्ण क्षणों में संयुक्त राष्ट्र संघ सिर्फ़ बयानबाज़ी करता है; शान्ति स्थापित करने के लिए ठोस प्रयास नहीं करता। कई देशों तथा संगठनों का ऐसा आरोप है कि संयुक्त राष्ट्र संघ तथा इसकी एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना महामारी के दौरान अपनी भूमिका का निर्वहन सही तरीक़े से नहीं किया।
बदलाव की माँग
संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना में बदलाव वर्तमान समय की माँग है। सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र संघ का एक बेहद महत्त्वपूर्ण अंग है। पूरे विश्व में शान्ति व्यवस्था बनाए रखने में इस परिषद् की बड़ी भूमिका है। चीन, इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका और रूस इसके स्थायी सदस्य हैं, जबकि 10 देश अस्थायी सदस्य होते हैं। सुरक्षा परिषद् को लोकतांत्रिक बनाते हुए हमें स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
एशिया से भारत और जापान, यूरोप से जर्मनी, अफ्रीका से दक्षिण अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका से ब्राजील को शामिल करना न्यायसंगत होगा। सुरक्षा परिषद् में यूँ तो भारत कई बार अस्थायी सदस्य देश के तौर पर शामिल रहा है।
बदलते वैश्विक परिदृश्य में समय की माँग यह है कि सुरक्षा परिषद् में भारत समेत कुछ नये स्थायी सदस्यों को जोड़ा जाए, ताकि यह परिषद् ज़्यादा लोकतांत्रिक हो सके तथा दुनिया में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने का उत्तरदायित्व केवल पाँच देशों के भरोसे न रहे।
(लेखक मणिपाल यूनिवर्सिटी, जयपुर में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)