नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री केजेल मैग्ने बोंडेविक 23 नवंबर को श्रीनगर पहुंचे। वे सीधे हैदरपुर गए जहां सैयद अलीशह गिलानी का आवास है। वहीं उनसे हुर्रियत एम अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारुख की भी मुलाकात हुई। यह बैठक तकरीबन आधा घंटा चली। इसके बाद कश्मीर बार एसोसिएशन के साथ उनकी छोटी-छोटी बैठकें हुईं। एक व्यपारिक संगठन और कुछ सरकार समर्थक कार्यकर्ताओं से भी वे मिले।
किसी बड़े विदेशी नेता का पिछले छह साल में अलगाववादी नेताओं से मिलना सभी को चैंका गया। शायद इसलिए भी क्योंकि यह व्यक्ति खुद पूर्व प्रधानमंत्री था। बोंडेविक नार्वे में 1997 से 2000 और 2001से 2005 तक प्रधानमंत्री था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वे देश की लेबर पार्टी के ऐसे बड़े नेता रहे जो प्रधानमंत्री भी बने। इस समय वे ‘ओस्लो सेंटर फार पीस एंड हयूमन राइटसÓ के अध्यक्ष हैं। श्रीनगर में वे तकरीबन तीन घंटे रहे और हुर्रियत एवं दूसरे संगठनों के लोगों से मिले।
नार्वे सारी दुनिया में विवादित क्षेत्रों में शांति की एक अहम भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है। हमने बोंडेविक से अपील की कि वे यहां हो रही दैनिक हत्याओं को खत्म कराने में सहयोग करें। साथ ही कश्मीर विवाद को खत्म कराएं, मीरवाइज ने बताया। हमने उन्हें यह भी बताया कि पिछले 70 साल में दिल्ली में बनती रही तमाम सरकारों ने कश्मीर के मुद्दे को लटकाए रखा। मीरवाइज ने कहा,’हमने बोंडेविक से कहा कि नई दिल्ली ने कश्मीर के मुद्दे को पिछले सात दशकों से झमेले में रखा है। इसका ही नतीजा है कि आज भी रोज़ नागरिकों की हत्याएं हो रही है। साथ ही मानवाधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है।
मीरवाइज ने कहा कि बोंडेविक के आने पर वे भी चकित हुए। हमें एक ही दिन पहले यह पता लगा कि बोंडेविक आए हुए है और वे हमसे मिलना चाहते हैं। मीरवाइज ने कहा कि बोंडेविक ऐसे पहले राजनयिक है जिन्होंने बरसों बाद भी हमसे मुलाकात की। हमें खुशी है कि बैठक हुई और अब इसके अच्छे नतीजे निकलेंगे।
हुर्रियत नेता ने कहा कि उन्हें बोंडेविक ने बताया कि वे नई दिल्ली में भी मुलाकात करेंगे और फिर इस्लामाबाद जाएंगे और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जाकर नेताओं से मुलाकात करेंगे। हम चाहते हैं कि हालात बेहतर हों और कश्मीर की बेहतरी के लिए संवाद जारी रहे। बोंडेविक ने हमें भरोसा दिया है कि वे इस मसले के समाधान में जुटे रहेंगे और हम उनकी इस बात का स्वागत करते हैं।
कश्मीर के संदर्भ में इस विकास क्रम को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि एक ओर करतारपुर साहिब के लिए गलियारा(कॉरिडोर) खुल रहा है और जनता में इस बात को लेकर खासा उत्साह है और राजनीतिज्ञ भी इस पहल को पसंद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो इसकी तुलना बर्लिन की दीवार तक से कर डाली। लेकिन अंदेशा सही है। संभावना है कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान और कश्मीर में कुछ खास बदलाव हों।
बोंडेविक की कश्मीर यात्रा और उनकी अलगाववादियों से बातचीत का खासा असर पड़ा है। बोंडेविक खुद ओस्लो सेंटर फॉर पीस एंड हयूूमन राइटस के निदेशक हैं। इससे यह लगता है कि नई दिल्ली किसी तीसरी पार्टी को कश्मीर के मुद्दे पर बात करने का मौका देने पर राजी है। हालांकि अभी इस बारे में कुछ भी कहना उचित नहीं है। हमें इंतजार करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि इस मुलाकात का नतीजा क्या होता है।
दिलचस्प तो यह है कि बोंडेविक और अलगाववादियों के बीच बातचीत श्री श्री रवि शंकर के ‘आर्ट ऑफ लिविंगÓ केंद्र की ओर से कराई जा रही है। श्री श्री के बारे में कहा जाता है कि कश्मीर के मुद्द पर वे काफी सक्रिय रहे हैं। कश्मीर में शांति के लिए वे काफी प्रयास भी करते रहे हैं। वर्ष 2016 में हुई अशांति के दौरान उन्होंने मारे गए आतंकवादी बुरहान वानी के पिता से बातचीत भी की थी।
बोंडेविक ने एलटीटीई विद्रोहियों और श्रीलंका सरकार के बीच शांति का प्रयास भी किया था। इसी तरह 1993 के ओस्लो समझौते के तहत फिलिस्तीन और इसराइल के बीच सुलह हुई। हालांकि ओस्लो समझौते पर दस्तखत व्हाइट हाउस में हुए। जबकि सारी बातचीत नार्वे की राजधानी ओस्लो में गोपनीय तौर पर हुई। अब देखना है कि कश्मीर मामले में भी क्या ऐसी कोई संभावना है।