कश्मीर में विधानसभा भंग कर राज्यपाल ने केंद्र की असहमति मोल ली

जम्मू-कश्मीर पिछले 70 साल में इतनी चर्चा में रहा है जितना दुनिया में कोई भी और प्रांत नहीं रहा। नए राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कुछ सुधार के प्रयास किए लेकिन वे भी फंस से गए। अभी पिछले दिनों वहां विभिन्न दलों का महागठबंधन बना और चि_ियां भेजी गईं तो विधानसभा भंग हो गई । राज्यपाल का कहना है कि तिहरा मुकाबला विधानसभा चुनाव में होगा और तीन-तीन शक्ति केंद्र हैं। उन्होंने विधानसभा को भंग किया जिससे राज्य में अशांति न रहे। अब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव संभवत: देश में आम चुनाव के साथ हों।

कश्मीर घाटी में 21 नवंबर काफी राजनीतिक दांवपेच का दिन रहा जब पीडीपी, एनसी और कंाग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में अपनी गठबंधन सरकार बनाने की सहमति बनाई। पिछले दिन पीडीपी के कद्दावर नेता मुजफ्फर हुसैन बेग ने संवाददाता सम्मेलन किया था जिसमें उन्होंने सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व में तीसरे मोर्च को समर्थन देने की घोषणा की। बेग की घोषणा पर अमल होता इसके पहले ही कुछ पीडीपी विधायक दलबदल करते उसके पहले ही पीडीपी, एनसी और कांग्रेस ने महागठबंधन बना लिया। दोपहर बाद पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक के पास एक पत्र भेजा जिसमें राज्य में सरकार बनाने का दावा किया गया था। लेकिन राज्यपाल निवास में फैक्स मशीन खराब थी। पत्र नहीं पहुंचा। महबूबा ने अपने ट्विटर एकाउंट पर वह पत्र जारी कर दिया साथ ही अपील की कि, वे पत्र पर अगली कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि उन्होंने राज्यपाल से फोन पर बातचीत करनी चाही लेकिन फोन भी नहीं मिला। इस बीच सज्जाद गनी लोन ने एक पत्र भेजकर भाजपा समर्थन से सरकार बनाने का पत्र राज्यपाल को भेजा। लेकिन मशीन की खराबी के चलते वह पत्र भी राज्यपाल तक नहीं पहुंचा। राज्यपाल ने एक आदेश जारी कर विधानसभा भंग कर दी। उन्होंने बाद में विवादास्पद बयान दिया कि यह फैसला उन्हें इसलिए लेना पड़ा क्योंकि राज्य में स्थाई सरकार होना असंभव लग रहा था। तीनों पार्टियों की अलग-अलग विचारधाराएं हैं। राज्यपाल ने राज्य में कमज़ोर सुरक्षा व्यवस्था की ओर इशारा किया और कहा कि दलों के गठबंधन से राज्य नहीं चलाया जा सकता।

ऐसी हालत में चुनाव ही राज्य में सही विकल्प हैं। इससे राज्य में स्थायित्व और सुरक्षा का माहौल रहेगा। उन्होंने सरकार बनाने के दावों पर गंभीर संदेह जताया।

उन्होंने इस बात से इंकार किया कि उन्हें महबूबा और सज्जाद के पत्र मिले थे। उन्होंने बताया कि उनका कार्यालय ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के मौके पर बंद था। राजभवन में उनका रसोइया भी नहीं था।

हालांकि उनके तर्कों को राष्ट्रीय स्तर पर शायद ही मंजूर किया जाए। इसी समय 21 नवंबर को हुई घटनाओं में दोनों पक्ष अलग-अलग तौर पर एक दूसरे के दावे को खारिज कर रहे थे।

लोग पिछले पांच महीने से पीडीपी को तोड़ कर भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने की तिकड़म में लगे थे। अब भी वे यही कहते रहे हैं कि विधानसभा में बहुमत जताने भर का उनका दमखम है। महबूबा को एनसी और कांग्रेस का भी समर्थन मिला था।

गठबंधन के पीछे मकसद था कि लोन किसी पार्टी को सरकारी सहयोग से तोड़ न ले। यह तभी संभव है यदि गठबंधन की सरकार बन जाए या फिर विधानसभा भंग हो जाए जो आखिरकार हो ही गई। वहीं महबूबा ने भी इशारा दिया कि मैं शुक्रगुज़ार हूं उमर अब्दुल्ला और अंबिका सोनी की। जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया।

विधानसभा भंग हो जाने के बाद राज्य में चुनाव की संभावना बन गई है। इसके पहले म्युनिसिपिल चुनाव हुए थे। पंचायत चुनावों में लोगों की अच्छी भागीदारी रही। अब यह संभावना है कि राज्य में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होंगे।

भाजपा के राज्य अध्यक्ष रवींद्र रैना ने विधानसभा भंग होने के बाद यह जानकारी दी। अब ऐसी स्थिति में लोन अकेले पड़ गए और दूसरी पार्टियां भी। पीडीपी भी सरकार को अदालत में चुनौती नहीं देने को है। एनसी ने साफ कर दिया है कि यह पीडीपी के साथ न तो विधानसभा और न लोकसभा चुनाव ही लडेगी। कांग्रेस का मानना है यह पीडीपी का साथ दे सकती है अगर यह अदालत में जाए। पार्टी फिलहाल तालमेल की पहल पर खामोश है।

ऐसा लगता है कि जम्मू कश्मीर की सभी पार्टियां अपने-अपने दम पर अलग-अलग चुनाव लड़ेंगी। ऐसी संभावना है कि लोन को भाजपा समर्थन दे लेकिन यह तालमेल घाटी के जनता के लिए जबरन थोपा हुआ ही होगा। अब जनता इस इंतजार में है कि विधानसभा चुनाव में कौन जीतता है।

अभी हाल एक सर्वे के मुताबिक एनसी को विधानसभा में 31 सीटें मिल सकती हैं। हालांकि इंडिया टीवी-सीएनएम्स सर्वे के अनुसार चुनावों में एनसी कहीं आगे होगी। भाजपा को 23 सीट मिल सकती हंै और महबूबा की पीडीपी को 16 सीटें हासिल हो सकती है। कांगे्रस को सात सीटें ही फिलहाल मिलती दिख रही हैं। इनके अलावा 10 सीटें दूसरों को मिलेंगी।

घाटी में विधानसभा के इस सर्वे को फिलहाल सही माना जा रहा है। लेकिन अब देखना यह है कि कितने लोग इस चुनाव में भागीदारी करते हैं। यदि इस चुनाव का ‘बायकॉटÓ आने वाले दिनों में होता है तो चुनावी नतीजों में कोई भी पार्टी राज चलाने के लिए ताज पा सकती है।