कल वीर सावरकर की पुण्य तिथि के अवसर पर महाराष्ट्र बजट सेशन में बीजेपी ने सावरकर के मामले में महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार को घेरने की पुरजोर कोशिश की, विधानसभा में सावरकर गौरव प्रस्ताव की मांग को लेकर। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष नाना पटोले ने सावरकर के गौरव प्रस्ताव की मांग को नामंजूर कर दिया।
दूसरी तरफ एनसीपी नेता और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने बीजेपी पर पलटवार करते हुए पूछा कि पिछले 5 साल तक जब राज्य में बीजेपी की सरकार थी और केंद्र में तो अभी भी है तभी विधानसभा के सेशन के दौरान सावरकर की पुण्यतिथि आई तब इस तरह के प्रस्ताव क्यों नहीं लाए गए? इस प्रस्ताव को लाने के पीछे कोई राजनीतिक स्वार्थ है ।अजित पवार ने यह भी पूछा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो बार पत्र लिखकर सावरकर को भारत रत्न देने की मांग की थी फिर भी केंद्र सरकार ने सावरकर को भारत रत्न क्यों नहीं दिया ?
भले ही इन तर्कों के साथ शिवसेना, बीजेपी को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है। लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की वीर सावरकर की कट्टर समर्थक रही शिवसेना महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने के बाद इस मुद्दे पर बैकफुट पर आती दिख रही है।
इस बार सावरकर की पुण्यतिथि पर शिवसेना के मुखपत्र सामना में वीर सावरकर को लेकर न कोई लेख छपा और न ही संपादकीय में उनका उल्लेख किया गया। सामना के संपादक संजय राऊत की एक्टिविटी भी ट्विटर पर खानापूर्ति करने वाली रही।
खैर आज शिवसेना ने सामना के अपने संपादकीय में सावरकर के मुद्दे पर ही बीजेपी पर पलटवार करते हुए कहा है कि वीर सावरकर का स्मरण करने वाले खुद वीर सावरकर को अच्छी तरह से नहीं समझ पाए हैं यह उनका ढोंग है।
आर एस एस को अपना निशाना बनाते हुए सामना लिखता है,वीर सावरकर का स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ा योगदान था। लेकिन स्वतंत्रता आंदोलन में भाजपा या उस समय का ‘संघ’ परिवार कहां था? वर्ष 1947 स्वतंत्रता दिन को भी संघ ने नहीं माना और राष्ट्रध्वज तिरंगा संघ मुख्यालय पर नहीं लहराया। कुछ जगहों पर तिरंगे का घोर अपमान करने का प्रयास हुआ, ये सब इतिहास में दर्ज है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर सरदार पटेल ने दो बार प्रतिबंध लगाया। दोनों ही बार ‘प्रतिबंध’ हटाते हुए सरदार ने एक शर्त कायम रखी। वो मतलब, ‘तिरंगा राष्ट्रध्वज है और इसे मानना ही होगा।’ ये शर्त गोलवलकर गुरु जी ने मान ली लेकिन 2002 तक संघ ने ये वचन नहीं निभाया, ऐसा ‘रिकॉर्ड’ बताता है। राष्ट्रध्वज का अपमान करनेवाले देशद्रोही ठहराए जाते हैं। खुद को राष्ट्रवादी कहनेवाले संगठन 2002 तक ‘राष्ट्रध्वज’ लहराने को तैयार नहीं थे। भगवा ध्वज शिवसेना का भी प्रतीक है लेकिन भगवा के साथ-साथ ‘तिरंगा’ भी फहराया जाता है। ये हमारा राष्ट्रवाद है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर को ‘ढाल’ बनाकर भाजपा नई राष्ट्रवाद की राजनीति खेल रही है।