वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2022 ने भारत को 121 देशों में से पिछले साल के 101 रैंक से और नीचे गिराकर 107वें स्थान पर धकेल दिया है। भारत इस तरह पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे खिसकते हुए दिखाया है। हालाँकि केंद्र्र सरकार ने इस रिपोर्ट को ग़लत बताते हुए कहा है कि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में भारत की छवि को ख़राब करने के लिए लगातार प्रयास फिर से दिखायी दे रहे हैं और यह बताने की कोशिश हो रही है जैसे कि भारत अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है।
संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों पर भारत का प्रदर्शन, जो 2030 तक भूख रहित देश के लक्ष्य को अनिवार्य करता है; यह दर्शाता है कि इस लक्ष्य में पिछड़ गया है। सतत् विकास लक्ष्य-2021 की रिपोर्ट के अनुसार भूख, अपव्यय, एनीमिया, पीने के पानी और लैंगिक समानता पर भारत के प्रदर्शन के बाद से भारत की सूचकांक (रैंकिंग) 193 देशों में 117 से और गिरकर 120 हो गयी है। हालाँकि आज़ादी के बाद से देश में कृषि उत्पादन छ: गुना बढ़ गया है। इसी 13 अक्टूबर को जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक-2022 दर्शाता है कि दुनिया में भारत की रैंकिंग पिछले साल से छ: अंक और फिसल गयी है। इस महत्त्वपूर्ण मामले में यह भूख और कुपोषण की स्थिति का सूचक है। अफ़ग़ानिस्तान, जो एक युद्धग्रस्त देश है, अपने ग्लोबल हंगर इंडेक्स रैंक के मामले में भारत से नीचे दक्षिण एशिया का एकमात्र देश है। वैश्विक सन्दर्भ में अकेले भारत में लगभग एक-तिहाई लोग भूख से पीडि़त हैं और एक-चौथाई लोग खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम और सरकार के पास पिछली जनगणना, दोनों के अनुसार कम-से-कम 75 फ़ीसदी ग्रामीण आबादी और 50 फ़ीसदी शहरी आबादी को रियायती खाद्यान्न उपलब्ध कराने का संवैधानिक अधिकार है। क्या खाद्य क़ीमतों में उच्च मुद्रास्फीति के साथ बढ़ती बेरोज़गारी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है?
हालाँकि महिला और बाल विकास मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि ग़लत सूचना सालाना जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक की पहचान है। सूचकांक भूख का एक ग़लत माप है और गम्भीर कार्यप्रणाली मुद्दों से ग्रस्त है। सूचकांक की गणना के लिए उपयोग किये जाने वाले चार संकेतकों में से तीन बच्चों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित हैं और पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं। कुपोषित (पीओयू) आबादी के अनुपात का चौथा और सबसे महत्त्वपूर्ण संकेतक अनुमान 3,000 के बहुत छोटे नमूने के आकार पर किये गये एक जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है।
सरकार के दावे के मुताबिक, रिपोर्ट न केवल ज़मीनी हक़ीक़त से अलग है, बल्कि विशेष रूप से कोरोना महामारी के दौरान आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किये गये प्रयासों को जानबूझकर नज़रअंदाज़ करने का भी संकेत देती है। एक आयामी दृष्टिकोण लेते हुए रिपोर्ट भारत के लिए कुपोषित जनसंख्या के अनुपात (पीओयू) के अनुमान के आधार पर 16.3 फ़ीसदी पर भारत की रैंक को कम करती है। एफएओ का अनुमान गैलप वल्र्ड पोल के माध्यम से आयोजित खाद्य असुरक्षा अनुभव स्केल (एफआईईएस) सर्वेक्षण मॉड्यूल पर आधारित है, जो 3,000 उत्तरदाताओं के नमूने के आकार के साथ आठ प्रश्नों पर आधारित एक जनमत सर्वेक्षण है।
एफआईईएस के माध्यम से भारत के आकार के देश के लिए एक छोटे-से नमूने से एकत्र किये गये डाटा का उपयोग भारत के लिए पीओयू मूल्य की गणना करने के लिए किया गया है, जो न केवल ग़लत और अनैतिक है, बल्कि यह पूर्वाग्रह का भी स्पष्ट संकेत देता है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक की रिपोर्ट जारी करने वाली कंसर्न वल्र्डवाइड और वेल्ट हंगर हिल्फ की प्रकाशन एजेंसियों ने स्पष्ट रूप से उचित परिश्रम नहीं किया है। सरकार ने एफएओ के साथ जुलाई, 2022 में एफआईईएस सर्वेक्षण मॉड्यूल डाटा के आधार पर इस तरह के अनुमानों का उपयोग नहीं करने का निर्णय किया था, क्योंकि इसका सांख्यिकीय आउटपुट योग्यता पर आधारित नहीं होगा। हालाँकि सरकार का कहना है कि इस बात का आश्वासन दिया जा रहा था कि इस मुद्दे पर आगे और जुड़ाव होगा, इस तरह के तथ्यात्मक विचारों के बावजूद वैश्विक भुखमरी सूचकांक रिपोर्ट का प्रकाशन खेदजनक है।
सर्वे में पूछे गये कुछ प्रश्न- पिछले 12 महीने के दौरान क्या कोई समय था, जब पैसे या अन्य संसाधनों की कमी के कारण आप चिन्तित थे कि आपके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं होगा? क्या आपने जितना सोचा था, उससे कम खाया? यह स्पष्ट है कि इस तरह के प्रश्न सरकार द्वारा पोषण सम्बन्धी सहायता प्रदान करने और खाद्य सुरक्षा के आश्वासन के बारे में प्रासंगिक जानकारी के आधार पर तथ्यों की खोज नहीं करते हैं। भारत में प्रति व्यक्ति आहार ऊर्जा आपूर्ति जैसा कि खाद्य बैलेंस शीट से एफएओ द्वारा अनुमान लगाया गया है, देश में प्रमुख कृषि वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि के कारण साल-दर-साल बढ़ रहा है और इसका कोई कारण नहीं है कि देश का कुपोषण का स्तर बढऩा चाहिए।
मोदी सरकार का काम
इस अवधि के दौरान सरकार ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किये गये थे। सरकार विश्व का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चला रही है। देश में कोरोना वायरस के अभूतपूर्व संकटकाल के कारण हुए आर्थिक व्यवधानों के मद्देनज़र सरकार ने मार्च, 2020 में लगभग 80 करोड़ राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाभार्थियों को उनके राशन कार्ड पर पाँच किलोग्राम प्रति व्यक्ति नियमित मासिक अतिरिक्त मु$फ्त खाद्यान्न (चावल / गेहूँ) के वितरण की घोषणा की थी। यह योजना प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना (पीएम-जीकेएवाई) के तहत आती है।
अब तक पीएम-जीकेएवाई योजना के तहत सरकार ने राज्यों / केंद्र्र शासित प्रदेशों को लगभग 1,121 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न आवंटित किया है, जो लगभग 3.91 लाख करोड़ रुपये का है। अब खाद्य सब्सिडी में योजना को दिसंबर, 2022 तक बढ़ा दिया गया है। इसका वितरण राज्य सरकारों के माध्यम से किया गया है, जिन्होंने लाभार्थियों को दाल, खाद्य तेल और मसाले आदि प्रदान करके केंद्र्र सरकार के प्रयासों को आगे बढ़ाया है।
इसके अलावा आँगनबाड़ी सेवाओं के तहत कोरोना महामारी के बाद से छ: वर्ष तक के क़रीब 7.71 करोड़ बच्चों और 1.78 करोड़ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पूरक पोषण प्रदान किया गया। क़रीब 5.3 मिलियन मीट्रिक टन खाद्यान्न (जिसमें 2.5 मिलियन मीट्रिक टन गेहूँ, 1.1 मिलियन मीट्रिक टन चावल, 1.6 मिलियन मीट्रिक टन चावल और 12,037 मीट्रिक टन ज्वार और बाजरा शामिल हैं) की आपूर्ति की गयी।
भारत में 14 लाख आँगनबाडिय़ों में आँगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं द्वारा पूरक पोषाहार का वितरण किया गया है। लाभार्थियों को टेक होम राशन हर पखवाड़े उनके घरों पर पहुँचाया गया। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत 1.5 करोड़ से अधिक पंजीकृत महिलाओं को उनके पहले बच्चे के जन्म पर गर्भावस्था और प्रसव के बाद की अवधि के दौरान मज़दूरी समर्थन और पौष्टिक भोजन के लिए 5,000 रुपये प्रदान किये गये।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक में शामिल पीओयू के अलावा तीन अन्य संकेतक मुख्य रूप से बच्चों से सम्बन्धित हैं। ये संकेतक भूख के अलावा पीने के पानी, स्वच्छता, आनुवंशिकी, पर्यावरण और भोजन के सेवन के उपयोग जैसे विभिन्न अन्य कारकों की जटिल बातचीत के परिणाम हैं, जिसे जीएचआई में स्टंटिंग और वेस्टिंग के लिए कारक / परिणाम कारक के रूप में लिया जाता है। मुख्य रूप से बच्चों के स्वास्थ्य संकेतकों से सम्बन्धित संकेतकों के आधार पर भूख की गणना करना न तो वैज्ञानिक है और न ही तर्कसंगत। वास्तव में विचार के लिए पर्याप्त भोजन है।