वैक्सीन पर बवाल

भारत में ड्राई रन के बीच मोदी सरकार की मंज़ूरी के बाद 16 जनवरी से कोरोना वैक्सीन का टीका लगने की शुरुआत हो गयी है। हालाँकि उम्मीदों के बीच इस वैक्सीन को लेकर ढेरों आशंकाएँ भी सामने आयी हैं। दुनिया के कई विशेषज्ञों ने सावधानी बरतने पर ज़ोर दिया है। भारत में कई जानकार मानते हैं कि वैक्सीन को पैसा कमाने का ज़रिया बनाने के बजाय लोगों की ज़िन्दगी की चिन्ता की जानी चाहिए। यह भी ज़ोर दिया जा रहा है कि केंद्र सरकार देश भर में मुफ्त में वैक्सीन लगाने का ऐलान करे। तमाम पहलुओं को रेखांकित करती विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

सुरक्षा के लिहाज़ से जो वैक्सीन (टीका) तैयार होने में कुछ साल लेती है, लेकिन कोरोना वैक्सीन महीनों में तैयार हो गयी। लाखों की जान लेने वाली कोविड-19 महामारी की वैक्सीन शायद बहुत-से सवालों में इसलिए भी घिरी है, क्योंकि इस जल्दी को लेकर दुनिया भर के विशेषज्ञों ने वैक्सीन के साइड इफैक्ट्स का खतरा ज़ाहिर किया है। और इस खतरे को वैक्सीन की पहली खुराक लेने वाले दर्ज़नों लोगों के बीमार पडऩे या कुछ मामलों में मौत हो जाने के बाद बल मिला है। भारत के भोपाल के पीपुल्स मेडिकल कॉलेज में 12 दिसंबर को कोवैक्सीन का ट्रायल टीका लगवाने वाले 47 वर्षीय वॉलंटियर दीपक मरावी की 21 दिसंबर को मौत हो गयी। दीपक के परिजनों ने कोविड वैक्सीन को लेकर सवाल उठाये हैं। उधर अमेरिका के फ्लोरिडा में फाइज़र-बायोएनटेक की वैक्‍सीन की पहली खुराक लेने के दो हफ्ते बाद ही 56 साल की गायनेकोलॉजिस्‍ट डॉ. ग्रेगोरी माइकल की दुर्लभ िकस्म के ब्‍लड डिस्‍ऑर्डर से मौत की खबर मीडिया में आयी। इन घटनाओं को देखते हुए वैक्सीन के जल्दी तैयार किये जाने को लेकर आशंकाओं को बढ़ावा मिला है; भले ही कई विशेषज्ञ इसे 100 फीसदी सुरक्षित बता रहे हैं। इधर आशंकाओं और उम्मीदों के बीच भारत सरकार 16 जनवरी से कोविड टीकाकरण शुरू हो गया है।

यह भी बहुत दिलचस्प है कि भारत में कोरोना वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन तैयार करने वाली जो दो कम्पनियाँ पहले एक-दूसरे के खिलाफ ज़हर उगल रही थीं, देश में टीके को लेकर बढ़ रही आशंका भरी आवाज़ों के बीच दोनों अचानक एक-दूसरे के साथ आ खड़ी हुईं। भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने 5 जनवरी को एक साझा बयान जारी कर कहा कि वो यह बात समझते हैं कि इस समय दुनिया के लोगों और देशों के लिए वैक्सीन की अहमियत क्या है? ऐसे में हम इस बात का प्रण लेते हैं कि कोविड-19 वैक्सीन की उपलब्धता वैश्विक स्तर पर हो सके। इससे पहले तब विवाद हो गया था, जब एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा था कि सिरम की वैक्सीन कोविशील्ड को टीकाकरण के लिए स्वीकृति मिली है, जबकि भारत बायोटेक की वैक्सीन के सम्बन्ध में डाटा पूरा न होने के कारण उसे बैकअप के तौर पर सिर्फ इमरजेंसी में इस्तेमाल किये जाने की स्वीकृति है। इस पर भारत बायोटेक के प्रमुख डॉ. कृष्ण एला खूब गुस्सा हुए थे और उन्होंने कहा था कि ऐसा कुछ नहीं होता। उनके मुताबिक, वैक्सीन वैक्सीन होती है, बैकअप नहीं। लोग हम पर कीचड़ उछालते हैं और हमें अपना कोट साफ करते रहना होता है। वैक्सीनेशन को लेकर एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने हाल में कहा था कि बच्चों का भी वैक्सीनेशन ज़रूरी होगा। हालाँकि उनमें संक्रमण थोड़ा कम होता है। लेकिन इससे पहले बच्चों से जुड़े डाटा का अध्ययन नहीं किया गया है। गुलेरिया के मुताबिक, अभी हमारे पास 5 से 10 साल के बच्चों पर वैक्सीन कितना प्रभावी है? यह डाटा नहीं है। इसलिए अभी हम उन्हें वैक्सीन नहीं दे पाएँगे। गुलेरिया के मुताबिक, वैसे बच्चों में संक्रमण कम होता है; लेकिन जैसे-जैसे स्कूल खुलेंगे, तो बच्चे स्कूल से घरों में संक्रमण लेकर आ सकते हैं और इसका शिकार बुजुर्ग भी हो सकते हैं। इसलिए बाद में बच्चों का भी वैक्सीनेशन ज़रूरी होगा।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

अगर राजनीतिक विरोध को दरकिनार कर दें, तब भी काफी विशेषज्ञ वैक्सीन को लेकर सवाल उठा चुके हैं। ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका और भारत बायोटेक की वैक्सीनों को भारत में मंज़ूरी मिलने के बाद विश्वसनीयता को लेकर कई सवाल उठे हैं। विशेषज्ञों ने वैक्सीन की स्वीकृति प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगाये हैं। ज़ाहिर है इससे देश में इस पर बहस शुरू हो गयी है। सबसे पहली प्रतिक्रिया वेल्लूर मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और महामारियों के खिलाफ वैक्सीनों से जुड़े ग्लोबल संगठन सीईपीआई की उपाध्यक्ष डॉ. गगनदीप कंग के एक इंटरव्यू में सामने आयी, जब उन्होंने कहा कि ट्रायलों में वैक्सीन के असर के बारे में कोई स्टडी या डाटा प्रकाशित या प्रस्तुत नहीं किया जाना हैरान करने की बात है। ऐसा कभी नहीं देखा गया।

देश के बड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञों में गिनी जाने वाली कंग ने कहा कि विशेषज्ञों ने दोनों वैक्सीन के स्वीकृत किये जाने की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किये हैं, मगर भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को लेकर ज़्यादा ऐतराज़ जताया गया है। कंग ने कहा कि असल समस्या कोवैक्सीन के डाटा को लेकर है। कोविशील्ड के बारे में जो भी जानकारियाँ हैं, उनसे कम-से-कम यहाँ तक तो पहुँचा जा सकता है कि वैक्सीन 50 फीसदी से ज़्यादा तो असरदार पायी ही गयी, लेकिन भारत बायोटेक की वैक्सीन सम्बन्धी कोई स्टडी कहाँ है? हालाँकि आईसीएमआर के पूर्व प्रमुख डॉ. आर गंगाखेड़कर वैक्सीन को लेकर सामने आ रही बातों को अफवाह बताते हैं। वह कहते हैं कि लोग अफवाहों पर ध्यान न दें। इस वैक्सीन में पोर्क का कोई अंश नहीं है। वैक्सीन से नपुंसकता जैसी बातें भी बकवास हैं। उन्होंने जनता से कहा कि सोशल मीडिया में कोरोना को लेकर जो मैसेज आते हैं, उसकी सत्यता जाने बिना उसे फॉरवर्ड न करें। लेकिन वैक्सीन की मंज़ूरी के बाद अखिल भारतीय ड्रग एक्शन नेटवर्क ने कहा कि वैक्सीन के प्रभाव को लेकर डाटा नहीं दिया गया। पारदर्शिता नहीं बरती गयी है। इससे बहुत-से सवाल खड़े होते हैं। उनकी प्रतिक्रिया तब आयी थी, जब भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल वीजी सोमानी ने मंज़ूर की गयी वैक्सीन के 110 फीसदी सुरक्षित होने का दावा किया था। वैसे उन्होंने डाटा को लेकर कोई सफाई नहीं दी। एआईडीएएन ने भी कोवैक्सीन की मंज़ूरी को लेकर बयान में सवाल उठाया कि किन प्रावधानों के तहत एसईसी ने इस वैक्सीन की मंज़ूरी के लिए सिफारिश की? यह साफ नहीं है।

ज़ाहिर है विषेशज्ञों की तरफ से ही जब सवाल उठे हैं, तो लोगों में भी अविश्वास पैदा होगा ही। विशेषज्ञों के ज़्यादा सवाल पारदर्शिता और डाटा के अभाव को लेकर हैं।

सवाल यह है आखिर भारतीय नियामक संस्थाएँ लोगों को आश्वस्त क्यों नहीं कर रहीं? वो जवाबदेही से नहीं बच सकतीं। यह महज़ एक टीके की बात नहीं है, बल्कि देश के वृहद् फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री की साख का सवाल है।

वैक्सीन के बाद मौत

वैक्सीन की विश्वसनीयता को लेकर उठ रहे सवालों के बीच तब लोगों की आशंका गहरा गयी, जब मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कोवैक्सीन का ट्रायल टीका लगवाने वाले 46 साल के वॉलंटियर दीपक मरावी की 21 दिसंबर को मौत हो गयी। दीपक मरावी मज़दूरी करते थे और टीला जमालपुरा की सूबेदार कॉलोनी में किराये के इसी एक कमरे में तीन बच्चों के साथ रहते थे। दीपक ने कोरोना वैक्सीन ट्रायल में हिस्सा लिया था। पहली खुराक के बाद ही तबीयत खराब हो गयी और अस्पताल पहुँचने से पहले दीपक की मौत हो गयी। उनके शव का 22 दिसंबर को पोस्टमार्टम हुआ, जिसकी प्रारम्भिक रिपोर्ट में ज़हर मिलने की पुष्टि हुई। फिलहाल इस मामले में पोस्टमार्टम की फाइनल रिपोर्ट का इंतज़ार है।

उनके पुत्र आकाश के मुताबिक, पिता को 19 दिसंबर को अचानक घबराहट, बेचैनी और जी मिचलाने के साथ उल्टियाँ होने लगीं। उन्होंने इसे सामान्य बीमारी समझकर उसका कहीं इलाज नहीं कराया। आकाश के मुताबिक, खुराक लगवाने के बाद से उसके पिता ने मज़दूरी पर जाना बन्द कर दिया था। उसके पिता कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कर रहे थे। दीपक की सेहत 19 दिसंबर को बिगड़ी और 21 दिसंबर को जब उनका निधन हुआ, तब वह घर में अकेले थे। परिजनों ने दीपक की मौत की सूचना उसी दिन पीपुल्स कॉलेज को दे दी थी। आकाश के मुताबिक, खुराक लगवाने के बाद सेहत का हाल जानने अस्पताल से फोन आते रहे थे और 21 दिसंबर को तो पीपुल्स प्रबन्धन से तीन बार फोन आये; लेकिन संस्थान से कोई भी मिलने नहीं आया। पीपुल्स मेडिकल कॉलेज की थर्ड फेज क्लीनिकल ट्रायल टीम ने 21 दिसंबर की दोपहर दीपक के मोबाइल फोन पर वैक्सीन की दूसरी खुराक के लिए फोन किया। यह कॉल आकाश ने रिसीव की। उन्होंने टीम को पिता के निधन की फिर से सूचना दी। इसके बाद एजीक्यूटिव ने कॉल काट दी। उधर कोरोना वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक ने कहा कि भोपाल में एक वैक्सीन वालंटियर की मौत का उनके चिकित्सकीय परीक्षण से कोई सम्बन्ध नहीं है। हैदराबाद स्थित कम्पनी ने कहा कि भोपाल के गाँधी मेडिकल कॉलेज की तरफ से जारी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सम्भावित कारण हृदयाघात बताया गया है। मामला पुलिस ने दर्ज किया है और जाँच कर रही है। इससे पहले भी भारत में बेंगलूरु के एक वॉलंटियर ने कोरोना खुराक के बाद अपनी तबीयत बिगडऩे का आरोप लगाया था।

उधर एक घटना अमेरिका की है, जहाँ फाइज़र-बायोएनटेक का वैक्‍सीन स्वीकृत होने वाली पहली वैक्‍सीन है। अमेरिका मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, फ्लोरिडा में इसकी पहली खुराक लेने के 16 दिन बाद गायनेकोलॉजिस्‍ट डॉ. ग्रेगोरी माइकल की मौत हो गयी। उनकी मौत के बाद सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी), फ्लोरिडा के स्वास्थ्य विभाग और मियामी-डेड मेडिकल ए‍जामिनर्स ऑफिस ने मामले की जाँच शुरू कर दी है। माइकल की मौत को एक दुर्लभ कंडीशन से जोड़ा गया है, जो शरीर में रक्त के थक्के बनने की क्षमता को प्रभावित करती है। इस घटना के बाद फाइज़र ने भी इस मामले में अलग से अपनी जाँच शुरू कर दी है। कम्पनी ने स्वीकार किया है कि डॉक्टर की मौत गम्भीर थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के अत्यधिक असामान्य क्‍लीनिकल केस के कारण हुई थी। हालाँकि को खुराक लेने से 41 वर्षीय सोनिया एसेवेडो कोई साइड इफेक्‍ट नहीं हुआ था।

कैसे होगा टीकाकरण

डीसीजीआई ने भारत बायोटेक की स्वदेशी तौर पर विकसित कोवैक्सीन को 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों पर क्लीनिकल ट्रायल करने की अनुमति दे दी है। सरकार की मंज़ूरी के मुताबिक, सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशिल्ड को 18 साल से अधिक उम्र वाले लोगों को दिया जाएगा। वैक्सीनेशन के बाद भी लोगों को कोविड 19 गाइडलाइन का पालन करने को कहा गया है। उन्हें मास्क पहनने और सैनिटाइजेशन करने को कहा गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीनेशन के बाद लोगों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी, जिससे कि वो इस वायरस का सामना कर सकें। कहा जा रहा है कि वैक्सीनेशन के बाद लोगों में वायरस से लडऩे की क्षमता विकसित होगी। लेकिन दोबारा कोरोना नहीं होगा, इसका दावा किसी ने नहीं किया है।

सरकार ने को-विन मोबाइल एप्लीकेशन बनायी है, जो वैक्सीनेशन शुरू होने पर मौज़ूद होगी। इसके अलावा जिस व्यक्ति को वैक्सीन का खुराक दी जाएगी, उसे पहले ही फोन पर सन्देश आ जाएगा। यानी जिसे वैक्सीन का खुराक मिलना है, तो उसे फोन पर तारीख, वक्त और जगह की जानकारी खुद ही आयेगी। वैसे वैक्सीन लगवानी है या नहीं, ये किसी भी व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर है। यानी कोई इसके लिए मना भी कर सकता है। जिन लोगों को शुरुआती चरणों में वैक्सीन मिल रही है, उनकी लिस्ट जारी की जाएगी; जिसके आधार पर सभी को अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। इसके लिए पहले फोन पर सन्देश आयेगा। रजिस्ट्रेशन के लिए ड्राइविंग लाइसेंस / वोटर आईडी कार्ड / पैन कार्ड / आधार कार्ड / पासपोर्ट, बैंक खाते की पासबुक, मनरेगा कार्ड, स्वास्थ्य मंत्रालय का हेल्थ आईडी कार्ड में से किसी भी डॉक्यूमेंट की ज़रूरत रहेगी।

भारत में वैक्सीन मुफ्त मिलेगी या फिर नहीं? यह तस्वीर अभी साफ नहीं है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि उनके प्रदेश में जनता को मुफ्त में टीका लगेगा। देश के स्वास्थ्य मंत्री का कहना है कि स्वास्थ्यकर्मियों को यह मुफ्त दी जाएगी। भारत में वैक्सीन की कुल दो खुराक दी जानी हैं। पहली और दूसरी खुराक के बीच कुल 28 दिन का अन्तर होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि सभी को वैक्सीन की पूरी खुराक लेनी चाहिए। एंटीबॉडी बनने के बाद ही कोरोना से लड़ाई मज़बूत होती है। सरकार ने शुरुआती चरण में स्वास्थ्यकर्मी, कोविड वॉरियर्स और कुछ अन्य को वैक्सीन देने की लिस्ट बनायी है। हालाँकि उनके परिजनों को अभी यह वैक्सीन नहीं दी जाएगी। अन्य लोगों का नंबर तभी आयेगा, जब सरकार आगे की रणनीति पर काम करेगी। चूँकि वैक्सीन के आपात इस्तेमाल की ही मंज़ूरी मिली है, अत: यह अभी बाज़ार में खुले में उपलब्ध नहीं होगी।

कोरोना के खिलाफ लड़ाई में भारत ने ऐतिहासिक कदम बढ़ाया है और 16 जनवरी से देश में टीकाकरण अभियान शुरू कर रहे हैं। प्राथमिकता हमारे डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, फ्रंटलाइन वर्कर्स, जिसमें सफाई कर्मचारी भी शामिल हैं; और उन्हें वैक्सीन दी जाएगी।’’

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

भारत में टीकाकरण कार्यक्रम

इसमें कोई दो-राय नहीं की लोगों पर महामारी ने जिस तरह हमला किया, जिस तरह भारत में करोड़ों श्रमिकों को अनियोजित लॉकडाउन के कारण सड़कों पर पैदल सैंकड़ों किलीमीटर दूर घर जाने को मजबूर होना पड़ा, अपना रोज़गार खोना पड़ा, उससे वे अभी भी नहीं उबर पाये हैं। भारत में कोरोना से अब तक करीब 1.52 लाख लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 10.45 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं। ऐसे में लोगों को वैक्सीन का बेसब्री से इंतज़ार है, इसमें कोई शक नहीं। अब देश में कोरोना का टीकाकरण कार्यक्रम 16 जनवरी से शुरू हो गया। सबसे पहले 3 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन योद्धाओं को कोरोना टीका लगाया जाएगा। इसके बाद 50 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों को और बाद में दूसरे लोगों को। देश में कोरोना की स्थिति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समीक्षा बैठक बुलायी, जिसमें टीकाकरण अभियान को शुरू करने का फैसला किया गया। निर्णय के मुताबिक, सबसे पहले स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाया जाएगा, जिनकी अनुमानित संख्या लगभग 3 करोड़ है। इसके बाद 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और इससे कम उम्र के उन लोगों को टीके लगेंगे, जो पहले से ही किसी गम्भीर बीमारी से पीडि़त हैं। ऐसे लोगों की संख्या करीब 27 करोड़ है। बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने देश भर में कोरोना टीकाकरण की तैयारियों के बारे में जानकारी ली। इस दौरान मोदी ने को-विन वैक्सीन डिलीवरी मैनेजमेंट सिस्टम के बारे में भी जानकारी ली। को-विन से कोरोना टीकाकरण की रीयल टाइम निगरानी, वैक्सीन के स्टॉक्स से जुड़ीं सूचनाएँ, उन्हें स्टोर करने के तापमान और जिन लोगों को वैक्सीन लगनी है, उन्हें ट्रैक करने जैसे काम होंगे। अब तक करीब एक करोड़ से ज़्यादा लाभार्थियों ने को-विन पर पंजीकरण कराया है। इसके आलावा देश भर में तीन चरणों में ड्राई रन भी आयोजित किया गया है। पहले चरण का ड्राई रन 28-29 दिसंबर चार राज्यों में करने के बाद 2 जनवरी को सभी राज्यों में चलाया गया। इसके बाद 8 जनवरी को 33 राज्यों (हरियाणा, हिमाचल और अरुणाचल को छोड़कर) और केंद्र शासित प्रदेशों में वैक्सीन का ड्राई रन हुआ। भारत सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशिल्ड और भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंज़ूरी दी है। वैक्सीन को मंज़ूरी मिलने के बाद से लोग टीकाकरण अभियान की शुरुआत का इंतज़ार कर रहे हैं। टीकाकरण कार्यक्रम के मुताबिक, एक बूथ पर हर सत्र में 100 से 200 लोगों को टीका लगाया जाएगा। उन पर 30 मिनट तक नज़र रखी जाएगी, ताकि प्रतिक्रिया जाँची जा सके। टीकाकरण केंद्र पर एक बार में एक ही व्यक्ति को टीका लगाया जाएगा। कोविन ऐप में पहले से रजिस्टर लोगों को ही टीका लगाया जाएगा। ऑन द स्पॉट रजिस्ट्रेशन नहीं होगा। देश के दूर-दराज़ इलाकों में कोरोना वैक्सीन पहुँचाने के लिए भारतीय वायुसेना मदद करेगी।

वैक्सीन को लेकर विवाद ठीक नहीं है, देश के लोगों को नियामक संस्थाओं पर भरोसा करना चाहिए। डाटा के व्यापक अध्ययन के बाद ही वैक्सीन के इस्तेमाल की इजाज़त दी गयी है। इसलिए देश के लोगों को नियामक संस्थाओं, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं पर भरोसा करना चाहिए। दोनों वैक्सीन सुरक्षित और प्रभावी हैं। विशेषज्ञ समिति ने इसके बारे में अध्ययन किया है, तभी इसकी स्वीकृति दी है। अगर हमारी नियामक संस्थाओं ने हरी झंडी दी है, तो हमें उन पर यकीन करना चाहिए और आगे बढऩा चाहिए। वैक्सीन के साइड इफेक्ट में हल्का बुखार, एलर्जी हो सकती है; लेकिन ये साधारण-सी बात है। टीकाकरण हमें इस बीमारी से बाहर निकाल पायेगा। यूरोप में हालात अच्छे नहीं हैं, वहाँ एक बार फिर से लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है। अगर हम विवाद में पड़कर वैक्सीन लगवाने में देरी करते हैं और अगर इस बीच ब्रिटेन का म्यूटेंट वायरस हमारे यहाँ आता है, तो कोरोना के खिलाफ जंग में अब तक की हमारी कामयाबी बेकार हो सकती है।

डॉ. रणदीप गुलेरिया, निदेशक, एम्स

कोवैक्सीन को इस्तेमाल की मंज़ूरी देना खतरनाक हो सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन कोरोना वैक्सीन पर कृपया स्पष्टीकरण दें। कोवैक्सीन का अभी तक चरण तीसरे चरण का परीक्षण नहीं हुआ है। समय से पहले मंज़ूरी देना खतरनाक हो सकता है। डॉ. हर्षवर्धन आपको इसे स्पष्ट करना चाहिए। परीक्षण पूरा होने तक इसके उपयोग से बचा जाना चाहिए। भारत में इस बीच एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा सकता है।

 शशि थरूर, कांग्रेस नेता

देश में वैक्सीन बने यह खुशी और गर्व की बात है। लेकिन यहाँ सवाल वैक्सीन के ट्रायल के असर को लेकर कोई स्टडी नहीं आने को लेकर है। यह वास्तव में हैरानी की बात है। समस्या कोवैक्सीन के डाटा पर है; क्योंकि कोविशील्ड के विपरीत उसके बारे में जानकारियाँ या स्टडी हमारे सामने नहीं है।

डॉ. गगनदीप कंग, उपाध्यक्ष, सीईपीआई