विश्व की आबादी 8 अरब है। आबादी के संदर्भ में भारत 1.4 अरब से अधिक आँकड़ों के साथ विश्व में पहले नंबर पर पहुँच चुका है। उसके बाद चीन और फिर अमेरिका का नंबर आबादी के मामले में आता है। दुनिया भर में लोग अब पहले की तुलना में अधिक जी रहे हैं। आज अधिकांश लोग 60 या इससे अधिक जीने की अपेक्षा कर सकते हैं। दुनिया में प्रत्येक देश अपने-अपने यहाँ आबादी में बुजुर्ग लोगों की संख्या में बढ़ोतरी का अनुभव कर रहा है।
दुनिया में 2030 तक हर छठा व्यक्ति 60 साल या इससे अधिक आयु का होगा। 2050 तक ऐसे लोगों की संख्या 2.1 अरब होगी। और 80 साल या इससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 2020 से 2050 के दरमियान 426 मिलियन तक होने की उम्मीद है। कहने का तात्पर्य है कि विश्व में जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है। जीवन प्रत्याशा एक व्यक्ति के औसत जीवन-काल का अनुमान है। जीवन प्रत्याशा भौगोलिक क्षेत्र और युग के अनुसार भिन्न होती है। किसी विशेष व्यक्ति या जनसंख्या समूह के लिए जीवन प्रत्याशा उनकी जीवन शैली, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच, आहार, आर्थिक स्थिति और प्राकृतिक मृत्यु-दर जैसे कई कारकों पर निर्भर करती है।
ग़ौरतलब है कि बूढ़ी होती जनसंख्या विश्व के देशों के लिए एक चुनौती भी है। ऐसी आबादी के स्वास्थ्य सम्बन्धित समस्याओं को लेकर सभी देश चिन्तित हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट इस बाबत जारी की गयी है। मैकेंजी हेल्थ इंस्टीट्यूट ने भारत समेत 21 देशों में 55 साल से ऊपर के 21,000 लोगों पर दिसंबर, 2022 से फरवरी, 2023 के बीच एक सर्वे कराया। इस सर्वे में इस आयु वर्ग के लोगों की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आध्यात्मिक सेहत पर अधिक फोकस किया गया। इस सर्वे के नतीजों के अनुसार, भारत बेशक एक विकासशील देश है; लेकिन यहाँ के बुजुर्ग अमीर देशों के मुक़ाबले सबसे अधिक सेहतमंद हैं। इस संदर्भ में भारत के बुजुर्ग अमेरिका, चीन, जर्मनी और जापान से बेहतर हैं। भारत में 55 साल से ऊपर के 57 प्रतिशत लोग शारीरिक स्तर पर, 66 प्रतिशत लोग मानसिक स्तर पर, 63 प्रतिशत लोग सामाजिक स्तर पर और 69 प्रतिशत लोग आध्यात्मिक रूप से ख़ुद को स्वस्थ मानते हैं।
आँकड़े बताते हैं कि भारत में 55 साल से ऊपर के लोग शारीरिक से अधिक मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक सेहत को तरजीह देते हैं। अमेरिका में 40-52 प्रतिशत और चीन में 44-51 प्रतिशत बुजुर्गों ने ही माना ही कि वे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हैं। यह सर्वे इस बात को भी सामने रखता है कि उम्र बढऩे के साथ-साथ स्वास्थ्य के सभी पैमानों पर ध्यान देना कम होता जाता है। उदाहरण के तौर पर 38 प्रतिशत लोग शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति अधिक लापरवाह हो जाते हैं। 55 से 64 की उम्र वाले मानसिक स्वास्थ्य और 65 से ऊपर की आयु वाले आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अधिक ध्यान रखते हैं।
इस सर्वे के अनुसार, भारत जैसे देशों में बच्चों के साथ रहने वाले बुजुर्गों की सेहत 19 प्रतिशत तक बेहतर रहती है। वहीं चीन और अमेरिका में ऐसे बुजुर्गों के स्वास्थ्य में 2-5 प्रतिशत तक की वृद्धि दिखी। इस सर्वे में शामिल 80 प्रतिशत बुजुर्ग बढ़ती उम्र के साथ ही अपने घरों में रहना चाहते हैं। लेकिन इसके साथ ही उन्हें यह भी लगता है कि इससे उनकी आज़ादी छिन जाएगी। उच्च आय वाले देशों में 80 से ऊपर की आयु वाले 88 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी ज़िन्दगी में कोई दख़लंदाज़ी नहीं चाहते। उच्च-मध्यम आय वाले देशों में यह संख्या 73 प्रतिशत तो निम्न-मध्यम आय वाले देशों में इनकी संख्या 63 प्रतिशत तक है। सर्वे में शामिल सभी देशों में बुजुर्गों की नौकरी करने की चाह को लेकर लगभग एक जैसी स्थिति ही सामने आती है। 55 से 64 साल के दो-तिहाई लोग काम करना चाहते हैं। विश्व में बूढ़ी होती आबादी को लेकर नीति-निर्माता भी फ़िक्रमंद हैं। मानव ज़िन्दगी में यह गंभीर जनसांख्यिकीय बदलाव है। एक तरफ़ इंसान को ख़ुश होना चाहिए कि उसकी जीवन-प्रत्याशा सन् 1960 से बढ़ रही है; लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी अहम है कि उसकी ज़िन्दगी की गुणवत्ता कैसी होगी।
राष्ट्र सरकारों, समाज के समक्ष इस संदर्भ में कई चुनौतियाँ खड़ी हैं। अगर कोई भी राष्ट्र, समाज व परिवार चाहता है कि उसके यहाँ के बुजुर्ग स्वस्थ रहें, अर्थव्यवस्था पर बोझ नहीं बनें, समाज बीमार लोगों का समाज नहीं बने, तो कई पहलुओं पर एक साथ काम करने की ज़रूरत है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बुजुर्ग आबादी के लिए विशेष निवेश करना होगा। लोग स्वस्थ तरी$के से बूढ़े होने की प्रक्रिया में प्रवेश करें, इस बाबत जागरूकता अभियान चलाना। जिस तरह से बूढ़े लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है, उस अनुपात में उनकी देखभाल की ज़रूरतों के लिए सरकारी व सामाजिक ढाँचे को विकसित करना होगा। सन् 1950 में 65 साल से अधिक उम्र के प्रति इंसान पर कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या 11.7 थी। आज यह संख्या सिकुडक़र 8 हो गयी है और 2040 तक 4.4 रह जाएगी।
इटली, जापान व दक्षिण कोरिया ऐसे देश हैं, जहाँ तेज़ी से जनसंख्या बूढ़ी हो रही है। कामकाजी उम्र के लोगों की कम होती तादाद के मद्देनज़र जापान में बुजुर्ग लोगों को फिर से श्रमबल का हिस्सा बनाने के लिए ख़ास योजनाएँ शुरू की गयी हैं। 65 साल से अधिक आयु के स्वस्थ व किसी-न-किसी तरह से जुड़ी पीढ़ी में दुनिया भर में व्यापक स्तर पर योगदान देने की क्षमता है, चाहे वह पेशे से सम्बन्धित क्षेत्र हो या निजी या सामुदायिक स्तर पर कोई काम हो। उदाहरण के लिए अमेरिका में 50 साल से अधिक आयु वर्ग के लोग 2030 तक देश की अर्थव्यवस्था में क़रीब 12.6 ख़रब डॉलर का योगदान करेंगे। ऐसा अनुमान है कि ब्रिटेन में अगर कामकाजी ज़िन्दगी में एक साल और जोड़ दिया जाए, तो जीडीपी में क़रीब एक प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है। एक पहलू यह भी है कि बुजुर्गों को आर्थिक व सामाजिक गतिविधियों में सम्मिलित करने से बाज़ार में उनकी ज़रूरतों और आराम व मनोरंजन के लिए नये उपकरण तैयार होंगे। ऐसे उपकरणों के समांतर ही विश्व में बुजुर्ग सम्बन्धित बीमारियों पर क़ाबू पाना भी एक बड़ी चुनौती है। न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों का समस्या बढ़ सकती है।
ऐसा अनुमान है कि 2050 तक विश्व में 15 करोड़ लोग डिमेंशिया से पीडि़त होंगे। डिमेंशिया यानी मनोभ्रंश रोग दिमाग़ की क्षमता का निरंतर कम होना है। यह दिमाग़ की बनावट में शारीरिक बदलावों के कारण होता है। ये बदलाव सोच, स्मृति, आचरण तथा मनोभाव को प्रभावित करते हैं। अल्जाइमर रोग डिमेंशिया की सबसे सामान्य क़िस्म है। माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स के पिता बिल गेट्स सीनियर की 94 साल की उम्र में कुछ साल पहले मृत्यु हो गयी थी। वे अल्जाइमर से पीडि़त थे। उनकी मौत पर बिल गेट्स ने कहा था कि अल्जाइमर अधिकतर वृद्धावस्था सम्बन्धित रोग है। उन्होंने बहुत क़रीब से अपने पिता को इस कष्ट से गुज़रते देखा है। बिल गेट्स ने कहा कि वह इस रोग के बेहतर इलाज व ऐसे रोगियों की ज़िन्दगी को बेहतर बनाने के लिए की जाने वाली शोध में फंड देंगे।
दुनिया की सबसे अधिक आबादी भारत में है और यहाँ 60 व इससे अधिक आयु के 13.8 करोड़ लोग हैं। आठ साल बाद 2031 में यह संख्या 19.4 करोड़ हो जाएगी। एक दशक में 41 प्रतिशत की वृद्धि होगी। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की एल्डरी इन इंडिया 2021 की रिपोर्ट में यह ख़ुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2031 में 9.3 करोड़ बुजुर्ग पुरुष और 10.1 करोड़ बुजुर्ग महिलाएँ होंगी। 2021 में यह संख्या क्रमवार 6.7 करोड़ पुरुष व 7.1 करोड़ महिलाएँ थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में सबसे अधिक बुजुर्ग आबादी केरल में है, यहाँ यह कुल आबादी की 16.5 प्रतिशत है। उसके बाद तमिलनाडु (13.6 प्रतिशत) और हिमाचल प्रदेश (13.1 प्रतिशत) का नंबर आता है। एक दशक बाद यानी 2031 में भी इन तीनों राज्यों में ही बुजुर्गों की संख्या सबसे अधिक रहेगी। 2021 के सरकारी आँकड़ों के अनुसार, देश में 13.8 करोड़ लोग 60 व इससे अधिक आयु के हैं और 2031 में यह संख्या 19.4 करोड़ हो जाएगी। अब सवाल यह है कि विश्व में पाँचवीं अर्थव्यवस्था वाला देश भारत क्या अपने वरिष्ठ नागरिकों की कुशलता के लिए ज़मीनी स्तर पर बदलाव करता नज़र आता है। उनके कल्याण के लिए कई सरकारी योजनाएँ हैं। मसलन राष्ट्रीय वयोश्री योजना, अटल वयो अभ्युदय योजना, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना आदि।
भारत सरकार का कहना है कि वह बुजुर्ग लोगों की समस्याओं से परिचित हैं। उनकी वित्तीय समस्याओं को हल करने के लिए मदद करती है। प्रधानमंत्री मौक़ा मिलते ही दावा करते हैं कि डबल इंजन की सरकार होने से राज्य के लोगों को फ़ायदा होता है। हरियाणा में बीते नौ वर्षों से डबल इंजन यानी भाजपा की सरकार सत्ता में है और वहाँ ज़रूरतमंद जिन वरिष्ठ नागरिकों को सरकारी पेंशन हरियाणा सरकार देती है, वह पेंशन महीने के आख़िरी दिनों में उनके बैंक खाते में आती है।