ईडी देश में लगातार छापेमारी और गिरफ़्तारी के लिए इतनी चर्चा में है कि उसने सीबीआई को भी इस मामले में पीछे छोड़ दिया है। विपक्षी नेताओं के लिए ईडी का मतलब शनि की साढ़ेसाती है। सभी में इसका डर भी है। ईडी केवल विपक्षी नेताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री और सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले हर व्यक्ति की ज़ुबान बंद करने के लिए केंद्र सरकार का हथियार है। लेकिन मोदी सरकार को समझना होगा कि इससे उसकी और ईडी की बदनामी और आलोचना हो रही है।
पिछले कुछ वर्षों से आम आदमी पार्टी के नेताओं पर ईडी शिकंजा कस रही है। आम आदमी पार्टी के किसी नेता पर एक भी कथित आरोप अगर कोई लगा दे, ईडी उस मामले को भी किसी आपराधिक मामले की तरह देखती है। सत्येंद्र जैन के बाद मनीष सिसोदिया, संजय जैन की गिरफ़्तारी के बाद आप संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी का नोटिस अंतरराष्ट्रीय चर्चा का विषय बन चुका है। कहा तो यह जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल को गिरफ़्तार करने का जाल बिछाना भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बहुत महँगा साबित होने वाला है।
कथित तौर पर यह भी चर्चा है कि 2024 में कुछ भी करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी भी हाल में सत्ता में वापसी चाहते हैं, जिससे विपक्षी दलों को पूरी तरह ख़त्म कर सकें। उनका मक़सद भारत पर एकछत्र शासन करने का है, जिसे पूरा करने के लिए ही वह जाँच एजेंसियों और पुलिस तक का सहारा ले रहे हैं। कथित आरोप है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने ख़िलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को कुचल देते हैं और ऐसे मामलों को ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह देखते हैं। गुजरात में भी यह जोड़ी राज्य की सत्ता में रहने तक ऐसे ही आरोपों से घिरी रही। अब ईडी, सीबीआई और पुलिस के दुरुपयोग के आरोप मोदी सरकार पर लग रहे हैं।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब हर जगह अपनी गिरफ़्तारी की चर्चा करते घूम रहे हैं। 02 नवंबर के ईडी के नोटिस को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री केजरीवाल विधानसभा चुनावों के प्रचार के लिए निकल गये थे। उनके इस क़दम पर भाजपा नेताओं ने धरना-प्रदर्शन शुरू कर ड्रामा शुरू कर दिया और यह शोर मचाया कि केजरीवाल सही में भ्रष्टाचारी हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मोदी सरकार दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ़्तार करके आम आदमी पार्टी को ख़त्म करना चाहती है। इसके जवाब में आप विधायक एकमत हो चुके हैं कि अगर अरविंद केजरीवाल को गिरफ़्तार भी कर लिया जाता है, तो भी वह मुख्यमंत्री बने रहेंगे और सरकार जेल से ही चलेगी। इससे पहले 01 नवंबर को दिल्ली की शिक्षा मंत्री आतिशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर कहा था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 02 नवंबर को गिरफ़्तार कर लिया जाएगा। उन्होंने दावा किया था कि 2024 के चुनाव से पहले अकेले मुख्यमंत्री केजरीवाल ही गिरफ़्तार नहीं होंगे, बल्कि उनके बाद झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के अलावा कई राज्यों के बड़े नेता गिरफ़्तार किये जाएँगे।
दिल्ली के मुख्यमंत्री को ईडी के नोटिस को लेकर 06 नवंबर को आम आदमी पार्टी के विधायक दल की दिल्ली विधानसभा में बैठक हुई। बैठक के बाद दिल्ली के कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है कि अगर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी होती है, तो वह जेल से ही दिल्ली सरकार चलाएँगे, क्योंकि दिल्ली की जनता ने उनको ही जनादेश दिया है। संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि मुख्यमंत्री को ट्रायल के बहाने जेल में रखा जाए, तो उनको इस्तीफ़ा देना पड़ेगा।
सवाल यह है कि सौरभ भारद्वाज को ऐसा क्यों कहना पड़ा? क्योंकि भाजपा नेता इंतज़ार कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री केजरीवाल को गिरफ़्तार किया जाए और आम आदमी पार्टी की दिल्ली की सत्ता तहस-नहस हो। लेकिन यह इतना आसान नहीं है और अगर ऐसा होता है, तो इसका उलटा असर भाजपा पर भी पड़ेगा। क्योंकि अरविंद केजरीवाल सिर्फ़ मुख्यमंत्री ही नहीं हैं, बल्कि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संयोजक भी हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी अब एक राष्ट्रीय पार्टी है और उसके समर्थकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। ऐसे में अगर ईडी मुख्यमंत्री केजरीवाल को गिरफ़्तार करती है और पाँच राज्यों में आम आदमी पार्टी को बढ़त मिलती है, तो यह मोदी सरकार के लिए और सिरदर्दी वाली बात होगी।
हालाँकि ईडी की ताबड़तोड़ कार्रवाइयों पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप लग रहे हैं कि ईडी एक स्वतंत्र जाँच एजेंसी होते हए भी मोदी सरकार के इशारों पर काम कर रही है। लेकिन हाल ही में एक ऐसी चर्चा सामने आयी है, जिसमें कहा जा रहा है कि ईडी सिर्फ़ विपक्षियों और विरोधियों को ही नहीं डरा रही है, बल्कि रूठे हुए भाजपा के नेताओं की ज़ुबान बंद करने का काम भी कर रही है।
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बारे में भी कुछ ऐसा ही कहा जा रहा है। कहा जा रहा है कि उन्होंने राजनीति से रिटायर होने का जो बयान दिया था, वो भी ईडी के डर से वापस ले लिया। जब वह अपने रिटायरमेंट के बयान से 24 घंटे के अंदर पलटीं, तो कहा जाने लगा कि यह ईडी के डर से ही उन्होंने किया। हालाँकि कहने वाले कुछ भी कहते हैं और राजनीति में कयास, आरोप-प्रत्यारोप लगते रहना कोई नयी बात नहीं है। राजनीति में अफ़वाहों और आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला चलता रहता है। क्योंकि राजनीति में अंदर$खाने चली जाने वाली चालों के बारे में हर कोई नहीं जान पाता, जिसके चलते अफ़वाहें उडऩा आम बात है।
हालाँकि वसुंधरा राजे का भाजपा के शीर्ष नेताओं से टकराव किसी से छुपा नहीं है। टकराव इस हद तक बढ़ चुका है कि राजस्थान की राजनीति से भाजपा के ज़रिये उनके सत्ता तक पहुँचने के रास्ते बन्द कर दिये गये हैं। उनके कई क़रीबियों तक को विधानसभा का टिकट नहीं दिया गया है। इसी से नाराज़ वसुंधरा राजे ने झालावाड़ की सभा में कहा कि मुझे लग रहा है अब मैं रिटायर हो सकती हूँ। उनके इस बयान से राजस्थान की राजनीति गरमा गयी। लेकिन 24 घंटे बीतने से पहले ही उन्हें अपने रिटायरमेंट के बयान को वापस लेना पड़ा और कहना पड़ा कि मैं कहीं नहीं जा रही हूँ।
राजनीति के जानकार कह रहे हैं कि वसुंधरा के इस बयान से उनके समर्थकों को भाजपा से कटना तय था, जिससे राजस्थान में पार्टी को बड़ा नुक़सान होता। इसलिए उन पर दिल्ली से दबाव पड़ा कि वह अपना बयान वापस लें। वहीं कुछ जानकार यह कह रहे हैं कि वसुंधरा के बेटे, बेटी और दामाद के कुछ मामले ईडी के पास हैं और ऐसे में अगर वसुंधरा दाएँ-बाएँ हुईं, तो उनकी फाइल कभी भी खुल जाएगी। इस तरह से भाजपा की केंद्रीय लॉबी उन्हें राजस्थान की सत्ता से दूर रखकर भी उनके समर्थक मतदाताओं को नहीं खोना चाहती।
राजनीति के जानकार यह बात पहले से ही कह रहे हैं कि राजस्थान में भाजपा मतलब वसुंधरा राजे और कांग्रेस मतलब अशोक गहलोत ही हो चुके हैं। हालाँकि यह कोई अंतिम सत्य नहीं है। क्योंकि राजनीति में जिसका सूरज चढ़ा होता है, उसी की जय-जयकार होती है। लेकिन जैसे ही किसी को कुर्सी से दूर किया जाता है या उसकी सत्ता छिनती है, तो उसे भुलाने में लोगों को समय नहीं लगता। ऐसे कई उदाहरण राजनीति में भरे पड़े हैं। लेकिन ईडी की अगर बात की जाए, तो यह पहली बार है कि ईडी से डराने के आरोप मोदी सरकार पर लग रहे हैं। लेकिन वसुंधरा के मामले में यह बात सच है कि भाजपा उनके समर्थन के बिना नहीं जीत सकती। यह बात भाजपा की दिल्ली की जोड़ी को भी साफ़ नज़र आ रही है। इसका एक मज़बूत उदाहरण वसुंधरा राजे की पोस्टरों, बैनरों में वापसी है।
दरअसल पिछले कई महीनों से वसुंधरा राजे की तस्वीर पोस्टरों और बैनरों से $गायब थी; लेकिन अब अचानक उनकी तस्वीर एक बार फिर भाजपा के पोस्टरों और बैनरों में दिखने लगी है। जानकार कह रहे हैं कि इसके पीछे केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति है। लेकिन सवाल वही है कि ईडी का उपयोग किस तरह से किसके लिए कहाँ किया जाना है? क्या यह भाजपा का दिल्ली नेतृत्व तय कर रहा है?