विकास जीता, नफरत हारी

दिल्ली विधानसभा चुनाव में 62 सीटों के साथ सत्ता में 'आप’ की वापसी भाजपा के एजेंडे की बहुत बड़ी हार है। अगर पार्टी अब भी इसकी गम्भीरता नहीं समझती, तो वह राज्यों में और सिकुड़ जाएगी। राकेश रॉकी का विश्लेषण

आखिर भाजपा के लिए यह चुनाव आ बैल, मुझे मार साबित हो गया। दिल्ली में जैसा नफरत वाला माहौल भाजपा ने बनाने की कोशिश की, वो वोटों में तो तब्दील नहीं हुआ, पार्टी की एक खराब छवि देश में ज़रूर बना गया। राजधानी में अपनी झोली में सिर्फ आठ सीटें पाकर भाजपा खुद से ही शर्म महसूस कर रही होगी। आम आदमी पार्टी एक बार फिर पूरी ताकत से सत्ता में आ गयी। आप ने 62 सीटें जीत लीं और भाजपा 8 पर सिमट गयी।

नागरिकता संशोधन कानून और सम्भावित एनआरसी के िखलाफ आंदोलन के दौरान भाजपा का रुख जनता को पसंद नहीं आया। आम आंदोलनकारियों को देशविरोधी बता देने की उसकी कोशिश जनता के गले नहीं उत्तरी। जनता ने यह भी देखा कि शाहीन बाग में एक आन्दोलनकारी की चार साल की बच्ची की मौत को तो मुद्दा बना दिया गया, जेएनयू में जिन लोगों ने उपद्रव मचाया उन्हें लेकर सरकार ने कुछ नहीं किया। इसका भी भाजपा को ही नुकसान हुआ।

भारतीय जनता पार्टी का घृणा अभियान उसके लिए ही घातक साबित हुआ। हिन्दू-मुस्लिम, शाहीन बाग, जामिया मिल्लिया, पाकिस्तान और गोली मारो…. जैसे अभियान से भाजपा जिस सफलता की उम्मीद कर रही थी, वह रंग नहीं लाया। इसी शाहीन बाग में आप के अमानतुल्ला 72,000 जैसे बड़े अंतर से जीते। भाजपा के लिए यह चुनाव नतीजे बड़ा सबक हैं और उसे तय करना होगा कि क्या वह अभी भी इन्हीं मुद्दों पर चलती रहेगी या जनता के असली मुद्दों को सामने रखकर कांग्रेस और आप जैसे राजनीतिक विरोधियों का सामना करेगी।

गैर-विकासात्मक मुद्दों पर आधारित भाजपा का हाई वोल्टेज अभियान फुस्स साबित हुआ है। यह भाजपा के उन रणनीतिकारों के लिए भी चोट है, जिन्होंने इस तरह के अभियान को चुना। तहलका की जानकारी के मुताबिक, दरअसल भाजपा ने इस अभियान को इसलिए नहीं चुना कि वो जीतने के लिए कोशिश कर रही थी, बल्कि इसलिए चुना कि 20 जनवरी के आसपास पार्टी को मिले इनपुट्स बहुत निराशाजनक थे। जानकारी के मुताबिक, भाजपा को उस समय 2-3 सीटों पर सिमटने जैसे इनपुट्स मिले थे। लिहाज़ा उसे हिन्दु-मुस्लिम की लाइन पकडऩी पड़ी, लेकिन यह भी उसे राहत नहीं दिला पायी।

पिछले कुछ राज्यों के चुनाव, जिनमें अब दिल्ली का चुनाव परिणाम भी शामिल है; यह दर्शाता है कि यदि आप स्थानीय भावनाओं को अनदेखा करते हैं, तो क्षेत्रीय क्षत्रप भी भाजपा के नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे राष्ट्रीय नेताओं पर भारी साबित हो सकते हैं। आम आदमी पार्टी (आप) की बड़ी जीत पार्टी के विकास पर ध्यान केंद्रित करने और सीएम अरविंद केजरीवाल के चेहरे का परिणाम है। चुनाव में न तो भाजपा और न ही कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के रूप में कोई चेहरा घोषित किया, जिसका भी इन दोनों को बहुत नुकसान हुआ, खासकर भाजपा को।

इस चुनाव में चुनाव आयोग जैसी संस्थाएँ, जिनसे चुनावों के दौरान ही नहीं हमेशा तटस्थ रहने की उम्मीद की जाती है; भी विवाद में घिर गयीं। चुनाव आयोग ने मतदान के 24 घंटे बाद प्रतिशत सहित चुनाव डाटा की घोषणा की, जिससे देश में कई लोगों को आश्चर्य ही नहीं हुआ, बल्कि आयोग कीे निष्पक्षता पर भी सवाल उठाने का मौका दिया। यह भी आरोप है कि मतदान केंद्रों के 200 मीटर के दायरे में जय श्री राम (भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा) और जय बजरंगबली (आप कार्यकर्ताओं द्वारा) जैसे नारे लगाये गये। चुनाव आयोग इन सभी उल्लंघनों पर कार्रवाई करने में विफल रहा।

दिल्ली ऐसी जगह है, जहाँ देश के हरेक कोने के लोग रहते हैं। यहाँ भाजपा का हिन्दू-मुस्लिम वाला एजेंडा फेल होना उसके लिए बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान है। आने वाले चुनावों में भाजपा को इसकी गर्मी झेलनी पड़ सकती है। भाजपा ने दिल्ली में क्षेत्रवाद को भी उभारने की कोशिश की, जिसमें उसे बिल्कुल सफलता नहीं मिली। केजरीवाल के विकास के नारे के आगे उसका हर दाँव फेल हो गया। कहने को भाजपा ने केजरीवाल पर मुफ्तखोरी की आदत डालने का आरोप लगाया। खुद भाजपा ने मुफ्त में स्कूटी व साइकिल बाँटने और सस्ता आटा जैसे नारे दिये। लिहाज़ा उसका आप पर यह आरोप हास्यास्पद ही लगता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों से संकेत मिलता है कि नफरत वाले अभियान चुनाव जीतने की कोई गारंटी नहीं है, बल्कि यह बहुत बड़ा नुकसान दे सकता है। कुल मिलाकर दिल्ली के चुनाव परिणाम इस बात के संकेत हैं कि भाजपा मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने में बुरी तरह विफल रही और मतदाताओं ने चुनाव में विकासात्मक मुद्दों को प्राथमिकता दी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भाजपा नेताओं के अभियान में भी बड़ा अंतर था। जहाँ केजरीवाल ने व्यक्तिगत स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी को बिल्कुल भी निशाना नहीं बनाया, वहीं भाजपा के नेताओं ने केजरीवाल को आतंकवादी तक कहा।

एक और दिलचस्प बात जो यह देखी गयी कि चुनाव में केजरीवाल के ट्वीट रणनीतिकार प्रशांत किशोर के आम आदमी पार्टी के अभियान में शामिल होने के बाद अचानक बहुत बेहतर और संतुलित हो गये। सूत्रों ने तहलका को बताया कि यह प्रशांत किशोर ही थे, जिन्होंने आप और कांग्रेस के बीच अघोषित समझ बनाने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को सहमत करवाया, जिससे कांग्रेस ने चुनाव अभियान में न के बराबर हिस्सा लिया; ताकि भाजपा ही हार सुनिश्चित करवायी जा सके।

इस नतीजे ने दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी के भविष्य पर भी तलवार लटका दी है, जो भाजपा संगठन को खड़ा करने में बुरी तरह विफल रहे। उन्हें 2016 में  राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, जिसके बाद भाजपा ने दिल्ली नगर निगम चुनावों में जीत दर्ज की थी। हालाँकि मई, 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दिल्ली की सभी 10 सीटें जीतीं। यह तिवारी के कारण नहीं बल्कि भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उच्च वोल्टेज वाले उग्र राष्ट्रवाद अभियान का नतीजा था। नतीजे भाजपा के युवा तुर्क प्रवेश वर्मा के लिए भी बुरे साबित हुए, जिन्होंने प्रचार के दौरान कई अवांछित टिप्पणियां कीं और लोगों ने इस तरह की भाषा को खारिज कर दिया। वर्मा इस तरह के अभियान के साथ खुद को प्रोजेक्ट करने की कोशिश कर रहे थे; लेकिन इसने उलटा उनका नुकसान किया है।

भाजपा ने चुनाव में कोई चेहरा घोषित नहीं किया, जिसने उसे नुकसान पहुँचाया। यह चुनाव सीएम केजरीवाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सीधी प्रतिस्पर्धा बन गया। आम आदमी पार्टी ने यह चुनाव विकास और गोली मारो…के नारे के बीच बदल दिया और जनता ने उन्हें चुना। राज्य चुनावों में भी भाजपा के लिए यह एक और हार है। दिल्ली से पहले भाजपा ने झारखंड को खो दिया। इससे पहले वे महाराष्ट्र में भी सरकार खो चुके हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्य पहले ही भाजपा के हाथों से चले गये हैं। ये सभी चुनाव परिणाम उस पार्टी के लिए गम्भीर संकेत हैं; जो दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक संगठन होने का दावा करती है।

इन परिणामों से संकेत मिलता है कि कोई भी पार्टी, जो स्थानीय भावना (स्थानीय मुद्दों) की अनदेखी करती है, राज्य विधानसभा चुनावों में जीत के बारे में नहीं सोच सकती। इस नतीजे ने पीएम नरेंद्र मोदी और चाणक्य अमित शाह जैसे भाजपा नेताओं की करिश्माई छवि को भी चोट पहुँचाने वाले हैं; जिनसे विकास, अर्थ-व्यवस्था, बेरोज़गारी आदि मुद्दों पर बात की उम्मीद थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

यह सही समय है कि भाजपा देश के प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना शुरू करे। अगर वह इसी तरह राज्यों को खोटी रही, तो इससे पार्टी कैडर का मनोबल गिरना शुरू हो जाएगा। पार्टी को बिहार जैसे राज्य में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव झेलने हैं। लगातार हार से जनता में भाजपा को लेकर निश्चित ही गलत सन्देश जा रहा है।

नए भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के लिए भी यह एक मुश्किल समय है। पार्टी उनके नेतृत्व में पहला ही चुनाव हार गई है। नड्डा को एक गहन रणनीतिकार माना जाता है और उनके मार्गदर्शन में भाजपा ने उत्तर प्रदेश का चुनाव जीता था। लेकिन भाजपा अब राष्ट्रीय राजधानी में अपनी सर्वोच्चता स्थापित करने में विफल रही है, जो भाजपा के लिए एक बड़ी क्षति है।

यह चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए भी एक सबक है, जो फिर से एक भी सीट हासिल करने में असफल रही। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस आप को तीसरे स्थान पर धकेलते हुए दूसरे स्थान पर रही थी। ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर करने की रणनीति के तहत अपना वोट आप को हस्तांतरित करवाया, लेकिन इससे खुद उसे क्या फायदा मिला? इस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 4 फीसदी के आसपास सिमट गया।

केजरीवाल को फिर से दिल्ली की कमान

अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री हो गये और शीला दीक्षित के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली। वैसे शीला दीक्षित पूरे 15 साल सत्ता में रहीं; क्योंकि केजरीवाल के मुकाबले उनकी पहली पारी भी पाँच साल की थी, जबकि केजरीवाल पहली बार दो साल ही सत्ता में रहे। आम आदमी पार्टी ने लगातार तीसरी बार सरकार बना ली और अरविन्द केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बन गये। उन्होंने चुनाव प्रचार में खुद को जनता के बेटे के रूप में प्रोजेक्ट किया और जब भाजपा के एक नेता ने उन्हें आतंकवादी कहा तो उन्होंने इसे बहुत तरीके से भुनाया। यहाँ तक कि भाजपा नेता ने जब उन पर आरोप लगाया कि हनुमान जी के दर्शन करने से पहले उन्होंने जब जूते उतरे तो उसकी बाद हाथ नहीं धोये। केजरीवाल ने इसे यह कहकर अपने पक्ष में कर लिया कि वे उन्हें हनुमान जी के मंदिर में जाने से रोक रहे हैं। जीत के बाद केजरीवाल ने कहा कि यह पूरे देश की जीत है। यह विकास की जीत है। उन्होंने कहा कि आज हनुमान जी ने कृपा बरसायी है। हमें हनुमान जी शक्ति दें कि हम अगले पाँच साल भी जनता की सेवा करते रहे। अरविंद  केजरीवाल का जान 16 अगस्त, 1968 को सिवानी (हरियाणा) में हुआ। उनकी माता गीता देवी और पिता गोबिंद राम केजरीवाल हैं। उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल और बच्चों पुलकित और हर्षिता ने भी उनके लिए जमकर चुनाव प्रचार किया। आयकर अधिकारी केजरीवाल अब तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गये हैं।

किसको कितनी सीटें और मत फीसद

आप      62 (53.57)

भाजपा  08 (38.51)

कांग्रेस   00 (4.26)

अन्य      00 (3.66)