हमारे यहाँ लम्बे समय से एक आदिवासी महिला काम करती थी। एक दिन उसने कहा कि कल (यानी रविवार को) चर्च जाना है। देर से आऊँगी। मैंने पूछा वहाँ कोई काम मिल गया है। बोली- नहीं, विशेष प्रार्थना सभा है। मैं अचरज में पड़ गया। पूछा- क्या धर्म बदल लिया है? कामवाली का जवाब था- हाँ। मैंने पूछा- क्यों? तो वह बोली- आस्था के कारण। यह जवाब मुझे कुछ रटा-रटाया सा लगा। कुछ और सवाल किये, तो कामवाली ने चुप्पी साध ली। इस बात का ज़िक्र यहाँ मैं इसलिए कर रहा, क्योंकि यह घटना झारखण्ड की राजधानी रांची की है। सोचने वाली बात है कि जब राजधानी के वह भी शहरी क्षेत्र में धर्म परिवर्तन का मामला सामने आ रहा है, तो गाँव-देहात और दूर-दराज़ के इलाक़े में इस तरह की घटना बड़े पैमाने पर होने को नकारा नहीं जा सकता है।
यह सही है कि संविधान ने हमें किसी भी धर्म को मानने का अधिकार दिया है। यह भी सही है कि स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन को क़ानूनन ग़लत नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन देखना यह होगा कि क्या वाक़ई धर्म परिवर्तन स्वेच्छा से हो रहा है? क्या किसी लोभ के कारण इस तरह की घटनाएँ नहीं हो रहीं? क्योंकि लोभ, भय, ब्लैकमेल आदि के कारण कराया जाने वाला धर्म परिवर्तन अपराध की श्रेणी में है। यह एक गंभीर मामला है। इस पर राजनीति से हटकर सख़्त क़दम उठाने की ज़रूरत है।
किन धर्मों में धर्मांतरण
दुनिया में तीन ऐसे बड़े धर्म हैं, जिनके कारण दुनिया में धर्मांतरण जैसा शब्द अस्तित्व में आया। ये हैं, बौद्ध, ईसाई और इस्लाम। तीनों ही धर्मों ने दुनिया के पुराने धर्मों के लोगों को अपने धर्म में कुछ को स्वेच्छा से दीक्षित किया, तो कुछ को उनकी इच्छा के विरुद्ध धर्मांतरित करवाया। उस काल में इन तीनों धर्मों के सामने हिन्दू और यहूदी धर्म के अलावा दुनिया के कई तमाम छोटे और बड़े धर्म थे। भारत में भी धर्मांतरण कोई नयी बात नहीं है। कहा जाता है कि प्राचीनकाल में जैन और बौद्ध धर्मों में हिन्दुओं का धर्मांतरण हुआ। मध्यकाल में इस्लाम और सिख धर्म में गये। आधुनिक काल में हिन्दुओं का ईसाई, बौद्ध और इस्लाम में धर्मांतरण जारी है।
अनगिनत घटनाएँ
धर्मांतरण की घटनाएँ तभी सामने आती हैं, जब कुछ बड़ा होता है। अभी 19 जून, 2023 को भोपाल की एक घटना चर्चा में रही। एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक युवक को गले में पट्टा बाँधकर कुत्ते की तरह भौंकने को कहा गया। उसे धर्म परिवर्तन के लिए कहा जा रहा है। यह घटना राष्ट्रीय स्तर पर वायरल हुई। मीडिया में भी सुर्ख़ियों में रही। इससे इतर छोटी-छोटी कई घटनाएँ हैं, जिसकी भनक तक नहीं लगती। इस साल जनवरी में झारखण्ड के कोडरमा ज़िले के एक टोला (गाँव का छोटा हिस्सा) के 100 लोगों ने धर्म बदल लिया। थोड़ी बहुत राजनीतिक सियासत और बयानबाज़ी के बाद मामला रफ़ा-दफ़ा हो गया। किसी को सम्भवत: घटना याद भी न हो। इसी तरह फरवरी, 2023 में गिरिडीह के बगोदर इलाक़े में 10-12 महिलाओं ने धर्म परिवर्तन किया था। बाद में समाज के लोगों ने उनकी वापसी अपने धर्म में करवायी। इस तरह की कई छोटी-छोटी घटनाएँ झारखण्ड के अलग-अलग हिस्सों से अक्सर देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। ये घटनाएँ मीडिया में एक तो आती नहीं और अगर आती भी हैं, तो दबी-कुचली आकर सहसा दम तोडक़र रह जाती हैं। इन पर न ही सरकार का ध्यान है, न ही पुलिस-प्रशासन का और न ही समाज का।
धर्मांतरण की वजह
धर्म परिवर्तन करने वाले ज़्यादातर लोग कहते हैं- ‘आस्था के कारण धर्म बदला है।’ हालाँकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह अलग मुद्दा है। किसी की आस्था पर सवाल खड़ा करना भी उचित नहीं है। लेकिन अचानक में किसी ख़ास धर्म के प्रति आस्था का इतना जग जाना अपने आप में ही सवालिया निशान खड़ा करता है। जानकारों की मानें, तो धर्मांतरण के ज़्यादातर मामले लोभ और भय के कारण होते हैं। इसके पीछे ग़रीबी, अशिक्षा, क्षेत्र में विकास की कमी, अपने ही धर्म में तिरस्कार और दुत्कार आदि कई कारण हैं।
धर्म के तथाकथित ठेकेदार अपने धर्म को सर्वोच्च बताते हैं। पैसे, भोजन, स्वस्थ्य, बच्चों के भरण-पोषण आदि का लालच देते हैं। कुछ जगहों पर डायन-बिसाही, भूत-प्रेत, घर में अनहोनी, स्वस्थ्य की ख़राबी आदि के भय और अगर इस तरह की किसी परेशानी में हैं, तो उससे निकालने का आश्वासन देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है। जानकार कहते हैं कि धर्म परिवर्तन कराने वाले लोग हमेशा उस तबक़े को पकड़ते हैं, जो अशिक्षित और ग़रीब है। अमूमन उन इला$कों को पकड़ते हैं, जहाँ सडक़, स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी, बिजली आदि जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी हो।
ख़ास बात यह है कि यह महज़ एक दिन में नहीं हो जाता है। इसके लिए लम्बे समय तक धर्म के ठकेदारों (यानी प्रचारकों) द्वारा प्रयास किया जाता है। पहले लोगों का मानसिक रूप से धीरे-धीरे ख़ास धर्म के प्रति झुकाव बढ़ाया जाता है। उनकी तकलीफ़ों पर थोड़ा-थोड़ा मरहम लगाया जाता है। इसके बाद उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए तैयार किया जाता है। ज़रूरत पड़े, तो दबाव बनाया जाता है। अंतत: धर्म परिवर्तन कराया जाता है।
क़ानून की उड़ रहीं धज्जियाँ
ऐसा नहीं कि देश के विभिन्न राज्यों की सरकारें धर्म परिवर्तन की बात से वाक़िफ नहीं हैं। उन्होंने जबरन धर्मांतरण के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून बनाये हैं। इसे लेकर सबसे पहले ओडिशा ने क़ानून बनाया। ओडिशा में धर्मांतरण विरोधी क़ानून सन् 1967 में लागू किया गया था। इसके बाद सन् 1968 में मध्य प्रदेश क़ानून बनाने वाला दूसरा राज्य बना। अरुणाचल प्रदेश में सन् 1978 में क़ानून बना। वहीं, गुजरात में सन् 2003 में क़ानून बना। समय की माँग के अनुसार अप्रैल, 2021 में पूर्व के क़ानून में संशोधन भी किया गया।
इसके अलावा छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, कर्नाटक आदि राज्यों में क़ानून बने। झारखण्ड में सन् 2017 में धर्मांतरण पर क़ानून बना। सभी राज्यों के क़ानून में एक बात सामान्य है कि जबरन धर्म परिवर्तन के लिए ठोस कार्रवाई का प्रावधान किया गया। झारखण्ड, गुजरात, छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्य ऐसे हैं, जहाँ धर्म परिवर्तन करने की सूचना ज़िलाधिकारी को देना अनिवार्य किया गया है।
काफ़ी नहीं क़ानून
झारखण्ड के गढ़वा ज़िले में 14 जून को स्थानीय लोगों ने अपने मोहल्ले में धर्म परिवर्तन केंद्र का ख़ुलासा किया। पुलिस ने छापेमारी में 20-22 लोगों को हिरासत में लिया। धर्म प्रचार केंद्र से भारी मात्रा में ख़ास धर्म की पुस्तकें और अन्य प्रचार सामग्री मिली।
हिरासत में लिये गये कई लोग बिहार, तेलंगाना समेत अन्य राज्यों के थे। इसके एक-दो दिन बाद पुलिस ने सभी को छोड़ दिया। पुलिस का कहना था कि आरोपियों के ख़िलाफ़ जबरन धर्म परिवर्तन कराने का कोई सुबूत नहीं मिला। ये केवल अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे। संविधान में धर्म का प्रचार ग़लत नहीं है। राज्य में जो क़ानून बने हैं, वह जबरन धर्म परिवर्तन पर कार्रवाई के हैं। जबकि स्थानीय लोगों का दावा है कि पकड़े गये लोग एक मिशन के तहत इलाक़े में आये हुए हैं। बाक़ायदा केंद्र बनाकर धर्म का प्रचार कर रहे थे। वे लोगों को लालच देकर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाते हैं।
राजनीति से इतर देखने की ज़रूरत
राज्य के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि झारखण्ड में पूर्व सरकार ने धर्मांतरण पर क़ानून बनाया। सख़्ती अपनायी, तो पुलिस-प्रशासन भी मुस्तैद रहा।
मौज़ूदा सरकार क़ानून पर ध्यान नहीं दे रही, तो प्रशासन भी ग़ैर-ज़िम्मेदार है। जिसका नमूना गढ़वा या अन्य जगहों का मामला है। वहीं, जानकारों की मानें देश में लगातार ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें लोगों का धर्मांतरण कराया जा रहा है। हालाँकि स्वेच्छा से अपने धर्म को छोडक़र किसी दूसरे धर्म को अपनाना अपराध नहीं है। यदि कोई लालच देकर, जबरन या ब्लैकमेल करके धर्मांतरण कराता है, तो इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।
लिहाज़ा जबरन धर्म परिवर्तन को साबित करना आसान नहीं है। इसमें सरकार के सहयोग की बहुत ज़रूरत है। क्योंकि झारखण्ड में यह क़ानून तो है ही कि धर्म परिवर्तन की सूचना प्रशासन को देनी होगी। स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करने वाले या करवाने वाले इसकी सूचना तक नहीं देते। यह अपराध तो है ही। सरकार अगर सख़्त होगी, तो प्रशासनिक अधिकारी भी सख़्त हो जाएँगे।
दरअसल धर्मांतरण का मुद्दा वोट बैंक के कारण राजनीति में उलझकर रह जाता है। अभी हाल में कर्नाटक में सरकार बदली, तो क़ानून में परिवर्तन की बात आ रही है। अगर किसी भी राज्य को धर्मांतरण पर पूरी तरह क़ाबू पाना है, तो इसे राजनीति के चश्मे को उतारकर देखना और निपटना होगा। तभी जबरन धर्मांतरण पर रोक सम्भव है, नहीं तो ऐसे ही ग़रीब और अशिक्षित लोगों को ये बरगलाते रहेंगे। देश भर में यह सिलसिला जारी रहेगा; जो भविष्य में घातक साबित हो सकता है।