मध्य प्रदेश में चढ़ा सियासी पारा

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव 2023 के जैसे-जैसे नज़दीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे यहाँ की सियासत गरमा रही है। इसी साल दिसंबर में वर्तमान सरकार का कार्यकाल पूरा हो रहा है। इससे पहले ही मध्य प्रदेश में चुनाव होने सम्भव हैं। इन चुनावों को लेकर कयास लग रहे हैं कि कांग्रेस से सत्ता छीनने वाली भाजपा की मध्य प्रदेश में इस बार भी बुरी तरह हार होगी। इस कयास को भाजपा के कुछ नेताओं के कांग्रेस में जाने से और हवा मिली है। विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र मुख्य दलों भाजपा और कांग्रेस की ओर से ज़ोर-शोर से तैयारियाँ चल रही हैं। दोनों ही दल एक-दूसरे को घेरने में लगे हैं तथा दोनों ही दलों की नज़र आदिवासी, दलित और पिछड़े वोटरों पर है।

वहीं, दूसरी तरफ़ कई क्षेत्रीय छोटे दल और दूसरे राज्यों के प्रमुख दल भी इस चुनाव में समीकरण बिगाडऩे के लिए मैदान में हैं। मध्य प्रदेश में जहाँ आम आदमी पार्टी पूरी ताक़त से ज़्यादातर सीटों पर मैदान में उतरने का मन बना रही है। वहीं अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस), स्थानीय दलों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) आदि भी इस बार के चुनावों में दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस के वोटरों में सेंध लगाएँगे। राजनीतिक लोग मान रहे हैं कि इस बार के विधानसभा चुनावों में प्रदेश की सरकार बनाने में छोटे-छोटे दलों की बड़ी भूमिका हो सकती है। हालाँकि ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस ने जिस तरह की चुनावी तैयारी की है, उससे उसे बड़ी जीत मिलने की उम्मीद है। दोनों दलों के कुछ समर्थक दल हैं ही, जो पहले भी समर्थन में रहे हैं, उनको छोड़ दें, तो बाक़ी दलों की मदद कांग्रेस को शायद ही पड़े। पर यह तय है कि भाजपा मौक़ा मिलने पर हर तरह के गठबंधन से लेकर दूसरे दलों के विधायकों को अपने साथ लाकर सरकार बनाने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ेगी।

भाजपा नेताओं ने भी मध्य प्रदेश में आवाजाही शुरू कर दी है। गृहमंत्री अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक प्रदेश का दौरा करने लगे हैं। प्रधानमंत्री 27 जून भोपाल पहुँचे। वहाँ उन्होंने दो वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंड़ी दिखायी। उनका यह दौरा पूरी तरह चुनावी रहा। अब वह 01 जुलाई को शहडोल पहुँचेंगे। वहीं देश के गृहमंत्री अमित शाह भी प्रदेश में बालाघाट के जयस्तंभ चौक से डॉ. आंबेडकर चौक होते हुए मुख्यमंत्री राइज स्कूल तक रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के बहाने क़रीब डेढ़ किलोमीटर का रोड शो करके चुनावी आ$गाज़ कर चुके हैं। गृह मंत्री के इस रोड शो में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा व राष्ट्रीय सचिव पंकजा मुंडे जैसे बड़े नेता मौज़ूद रहे। माना जा रहा है कि भाजपा को इस बार दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के अलावा सवर्णों की नाराज़गी का भी सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस के लिए यह एक मौक़ा है कि वह अच्छा प्रदर्शन करे और कर्नाटक व हिमाचल प्रदेश की तरह भाजपा के खिसकते वोटरों को अपने पाले में लाने की कोशिश करे। फ़िलहाल मध्य प्रदेश की चुनावी मौसम समझने के लिए कुछ बातों को समझना होगा।

जातीय समीकरण व मुद्दों की लड़ाई

मध्य प्रदेश में जीतने के लिए जातीय समीकरण साधने की कोशिश में सभी दल लगे हैं। भाजपा इसे लेकर अपना पुराना हिन्दुत्व कार्ड खेलेगी, जिसके लिए वह मध्य प्रदेश के बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री उर्फ़ बागेश्वर बाबा का इस्तेमाल कर सकती है। इस बार के चुनाव में यही एक पैंतरा है, जिसके दम पर भाजपा को लग रहा है कि वह हिन्दुओं के ज़्यादातर वोटरों को बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री के माध्यम से साध लेगी। वहीं कांग्रेस इससे हटकर लोगों का ध्यान बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी और शिवराज सरकार के घोटालों जैसी समस्याओं को उठा रही है।

कांग्रेस ने खोला मोर्चा

कांग्रेस ने मध्य प्रदेश चुनाव 2023 की तैयारी भाजपा के ख़िलाफ़ उसके घोटालों को लेकर मोर्चा खोलकर की है। पिछले चुनावों से ज़्यादा सक्रिय दिख रही कांग्रेस के कई बड़े नेता मैदान में उतर गये हैं। कुछ दिन पहले ही कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने पार्टी प्रचार के लिए जबलपुर में एक रैली की। यह कांग्रेस की पहली बड़ी शुरुआत रही। प्रियंका गाँधी ने इस रैली में शिवराज सिंह सरकार पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने और नौकरियाँ न दे पाने के आरोप लगाये। प्रियंका गाधी ने कहा कि राज्य में शिवराज सिंह सरकार के इस कार्यकाल के 220 महीनों के शासन में ही 225 घोटाले हुए हैं। इसके अलावा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैलेंज करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत है; लेकिन हम भी ज़ोर-शोर से मैदान में हैं।

बता दें कि कांग्रेस ने शिवराज सरकार के क़रीब 400 कथित घोटालों की लिस्ट तैयार की है, जिन्हें छपवाकर कांग्रेस नेता लोगों में बाँटेंगे। इसी बीच एक और घोटाले का आरोप शिवराज सिंह सरकार पर लगा है। कहा जा रहा है कि शिवराज सिंह सरकार में अब दिव्यांग भर्ती घोटाला हुआ है। आरोप है कि 77 लोगों ने फ़र्ज़ी विकलांगता प्रमाण-पत्र लगाकर नौकरी हासिल की है। यह केवल आरोप नहीं है, इसके प्रमाण भी दिये जा रहे हैं और ख़बरें भी छप चुकी हैं। मामला मुरैना का है। इसे लेकर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कई ट्वीट किये हैं। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा है कि ‘शिवराज उर्फ़ मामू के राज में एक और भर्ती घोटाला। दिव्यांगों का हक़ भी छीन लिया! सबसे अधिक भर्ती घोटाले के प्रकरण मुरैना में क्यों होते हैं? क्योंकि भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष मुरैना के हैं? हो सकता है। क्योंकि मोदी है, तो मुमकिन है!’ एक यूजर ने इस ट्वीट पर री-ट्यूट करते हुए लिखा है कि ‘जिन्होंने फ़र्ज़ी सर्टिफिकेट लिया उन पर तो तत्काल एफआईआर, पर जिसने फ़र्ज़ी सर्टिफिकेट दिये उस पर एफआईआर क्यों नहीं? उसको सस्पेंड क्यों नहीं किया? कलेक्टर और एसपी क्या कर रहे थे? उनका इंटेलिजेंस विभाग क्या कर रहा था? उन पर कार्यवाही क्यों नहीं?

शिवराज सिंह सरकार का विरोध

हिन्दुत्व का एजेंडा लेकर चलने वाली भाजपा की शिवराज सिंह सरकार ने महाकालेश्वर कॉरिडोर में लगायी मूर्तियों से ही साबित कर दिया कि वह कितनी हिन्दू हितैषी है। बागेश्वर धाम के ज़रिये हिन्दुओं को साधने के प्रयास में लगी शिवराज सरकार महाकालेश्वर कॉरिडोर मामले में बैकफुट पर आ गयी है। इसके अलावा शिवराज सरकार और कई मुद्दों पर लोगों का विरोध झेल रही है। केवल शिवराज सरकार के इस कार्यकाल में ही उसका $खूब विरोध हुआ है।

आदिवासियों ने अपनी जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई को तेज़ किया है, क्योंकि प्रदेश में आदिवासियों से इन प्राकृतिक संसाधनों को छीनने के लिए शिवराज सरकार ने कई पैंतरें चले हैं। इसी साल जनवरी में करणी सेना भी शिवराज सरकार का विरोध कर चुकी है। करणी सेना के इस विरोध प्रदर्शन में 2,00,000 से अधिक सवर्णों ने भाग लिया।

इसी साल फरवरी में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भीम आर्मी शक्ति प्रदर्शन करके शिवराज सिंह सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा निकाल चुकी है। 14 अप्रैल को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर उनके जन्म स्थान महू (इंदौर) में एक बड़ा आयोजन हुआ, जिसमें दलितों, आदिवासियों व पिछड़ी जातियों ने भागीदारी की। इस आयोजन में शिवराज सरकार में दलितों, आदिवासियों हो रहे अत्याचारों को लेकर विरोध दर्ज हुआ।

नेताओं की अमर्यादित भाषा

मध्य प्रदेश के नेता अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने पर आमादा हैं। भाषा की मर्यादा ताक पर रखकर नेता पागल, धोखेबाज़, कुंठित, सडक़छाप, बिकाऊ, विष जैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। अभद्र शब्दों का प्रयोग करने में छोटे नेता ही नहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जैसे बड़े नेता भी पीछे नहीं हैं। पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने कमलनाथ को पागल कहा, तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने उन्हें कुंठित व्यक्ति कह दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अपने अपमान कि फ़िक्र नहीं है, मुझे दु:ख इस बात का है कि मध्य प्रदेश जैसे महान् राज्य के मुख्यमंत्री पद पर ऐसे कुंठित विचारों वाला व्यक्ति बैठा है।

पिछले समीकरण

मध्य प्रदेश में दो ही दल कांग्रेस और भाजपा ही मुख्य रूप से जीतते रहे हैं। यहाँ 2013 में जहाँ भाजपा ने सरकार बनायी थी, तो 2018 में कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल करके भाजपा के 15 साल के शासन को ध्वस्त करके सरकार बनायी। पर 109 सीटें जीतने वाली भाजपा ने 15 महीने के भीतर ही कांग्रेस की कमज़ोर कड़ी ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को तोडक़र क़रीब डेढ़ साल बाद ही अपनी सरकार बना ली। अब एक बार फिर 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का पलड़ा भारी दिख रहा है और यह माना जा रहा है कि कांग्रेस इस बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल हो सकती है।