वाड्रा-डीएलएफ भूमि सौदा

खोदा पहाड़, निकली चुहिया

राबर्ट वाड्रा-डीएलएफ भूमि सौदा कोई घोटाला था या भाजपा की चुनावी रणनीति का कोई हिस्सा? यह सवाल इसलिए, क्योंकि हरियाणा सरकार ने इसी वर्ष मार्च में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में शपथ-पत्र दाख़िल कर बताया कि ज़मीन सौदे में न नियमों की अनदेखी हुई, न ही सरकारी राजस्व का नुक़सान हुआ। यह रिपोर्ट तो रजिस्ट्री करने वाले तहसीलदार ने वाड्रा पर प्राथमिकी होने और उनसे जवाब माँगने के कुछ समय बाद ही दे दी थी। अब क़रीब-क़रीब 10 साल बाद उसी जवाब को हरियाणा सरकार उच्च न्यायालय में शपथ-पत्र के तौर पर दाख़िल कर रही है।

हरियाणा सरकार ने अपने नौ साल से ज़्यादा के कार्यकाल के दौरान इस मुद्दे को किसी-न-किसी तौर पर बनाये रखा है। अब तक इस मामले की तीन तरह से जाँच हो चुकी है। पहली जाँच तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों कृष्ण मोहन, के.के. जालान और राजन गुप्ता पर आधारित समिति ने की।

जाँच में भूमि सौदे में किसी तरह की अनियमितता और सरकारी राजस्व के नुक़सान न होने की बात कही गयी। बावजूद इसके इस मामले में कुछ और बिन्दू भी थे। मसलन जो ज़मीन साढ़े सात करोड़ रुपये में वाड्रा ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टी से ख़रीदी, उसकी रजिस्ट्री तुरत-फुरत होना, तीन माह बाद कामर्शियल लाइसेंस मिलना, आसपास की ज़मीनों के रेट राकेट गति से बढऩा और ख़रीदी भूमि को कुछ माह बाद सात गुना से ज़्यादा दामों पर बेचना आदि थे। क्या इसके पीछे राज्य सरकार की कोई भूमिका था? वाड्रा ने क्या भूमि सौदे में साढ़े सात करोड़ रुपये वाक़ई अदा किये या फिर सरकारी मंज़ूरी दिलाकर दलाली के तौर पर क़रीब 44 करोड़ रुपये कमाये? जाँच में इन बिन्दुओं पर कोई नतीजा सामने नहीं आया है।

भूमि सौदे को ग़लत बताते हुए तत्कालीन चकबंदी निदेशक आईएएस अशोक खेमका ने इसे रद्द कर दिया था; लेकिन तत्कालीन सरकार ने उनका तुरन्त प्रभाव से तबादला कर दिया। लिहाज़ा सौदा क़ायम रहा। इसके बाद सन् 2014 के लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनाव में वाड्रा-डीएलएफ सौदा प्रमुख मुद्दा बना और भाजपा को इससे राजनीतिक लाभ मिला। जीत के कारण कुछ और भी हो सकते हैं; लेकिन कांग्रेस और हुड्डा के ख़िलाफ़ यह भूमि सौदा भाजपा के लिए मारक हथियार रहा।

राज्य में भाजपा सरकार बनने के बाद वर्ष 2015 में सेवानिवृत जस्टिस एस.एन. धींगड़ा को जाँच सौंपी गयी। क़रीब चार साल की जाँच के बाद 1,000 से ज़्यादा पन्नों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी गयी। तब लगा था कि बहुत बड़ा घोटाला सामने आएगा; लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस रिपोर्ट में क्या कुछ था, इसका कभी ख़ुलासा नहीं हो सका।

अगर रिपोर्ट में बहुत कुछ ठोस होता, तो इसे जारी किया जाता। उसके बाद से लगने लगा था कि यह भूमि सौदा घोटाला न होकर व्यक्ति विशेष की छवि धूमिल कर राजनीतिक लाभ उठाने की मंशा वाला है। राज्य सरकार ने स्टेटस रिपोर्ट में गड़बड़ी न होने का शपथ-पत्र ज़रूर दाख़िल किया है; लेकिन मामले की जाँच भी जारी रखी हुई है। मामले में तीसरी बार जाँच समिति गठित हुई है। इसमें एक डीसीपी, दो एसीपी, एक इंस्पेक्टर और एक एएसआई हैं। इस एसआईटी ने कामकाज शुरू कर रखा है। एसआईटी टीम में सहयोग के लिए वरिष्ठ आईएएस मुकुल कुमार और सेवानिवृत चीफ टाउन प्लानर दिलबाग़ सिंह भी हैं।

भूमि सौदे में वित्तीय अनियमितताओं की आशंका को देखते हुए टीम ने यूनियन बैंक आफ इंडिया से सम्पर्क किया, जहाँ राबर्ट वाड्रा की कम्पनी स्काइलाइट हॉस्पिटैलिटी का खाता था। सौदे इसी कम्पनी ने किया था और वाड्रा उस समय कम्पनी के निदेशक थे। जाँच टीम ने बैंक से वाड्रा की कम्पनी के लेन-देन का पूरा रिकॉर्ड देने को कहा, तो जवाब मिला कि वर्ष 2008 से 2012 का बैंक रिकॉर्ड बारिश का पानी भूतल में घुसने से बर्बाद हो गया है। इन्हीं वर्षों के दौरान के रिकॉर्ड की एसआईटी को ज़रूरत थी। बैंक को अब यह जवाब देना होगा कि क्या पानी से वाड्रा की कम्पनी का रिकॉर्ड ही ख़राब हुआ है या फिर उस दौरान सारा रिकॉर्ड। जब तक एसआईटी को वित्तीय लेन-देन का रिकॉर्ड नहीं मिल जाता, अनियमितताओं का पता नहीं चल सकेगा।

इस मामले में मुख्य आरोपी के तौर पर सोनिया गाँधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के अलावा तत्कालीन हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, डीएलएफ और ओंकारेश्वर प्रॉपर्टी थे। सुरेंद्र शर्मा नामक व्यक्ति की शिकायत पर खेडक़ी दौला (गुडग़ाँव) थाने में धोखाधड़ी, जालसाज़ी,नियमों की अवहेलना और भ्रष्टाचार की विभिन्न धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज हुई थी। हरियाणा में उस समय कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे।

भाजपा ने इस मुद्दे को बड़ी शिद्दत से उठाया; क्योंकि इसमें राबर्ट वाड्रा का नाम जुड़ा था। उस दौरान हरियाणा में कांग्रेस सरकार और ख़ुद हुड्डा पर नियमों की आड़ में क़रीबी और राजनीतिक प्रभाव वाले लोगों को फ़ायदा पहुँचाने के आरोप लग रहे थे। कांग्रेस इसे क्लीन चिट के तौर पर देख रही है। वहीं सरकार इसे किसी भी तरह की क्लीन चिट नहीं, बल्कि जाँच जारी रहने की बात कह रही है। साढ़े सात करोड़ रुपये का यह भूमि सौदा चुनावी मुद्दा क्यों बन गया? जबकि गुडग़ाँव में इससे कहीं ज़्यादा के भूमि सौदे उसी दौरान (वर्ष 2008) में हुए थे।

वर्ष 2024 में राज्य में विधानसभा चुनाव होना है। यह भूमि सौदा तब तक मुद्दा बना रहेगा; लेकिन अब यह कांग्रेस के लिए सकारात्मक रह सकता है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुताबिक, ‘चूँकि मामला अभी लंबित है। लिहाज़ा मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता। लेकिन सच देर-सबेर सामने आ जाएगा।’

वह शुरू से कहते रहे हैं कि यह भूमि घोटाला नहीं, बल्कि गाँधी परिवार और उनकी छवि को धूमिल करने की एक चाल थी। हरियाणा सरकार के उच्च न्यायालय में दाख़िल शपथ-पत्र को कांग्रेस क्लीन चिट मानकर प्रचारित कर रही है। भाजपा में मायूसी ज़रूर है; लेकिन वह सरकार के शपथ-पत्र को मामले में क्लीन चिट नहीं, बल्कि बहुत कुछ सामने आने की बात कह रही है। एडवोकेट जनरल और गृहमंत्री स्पष्ट करने में लगे हैं कि कांग्रेसी इसे क्लीन चिट कैसे मान रहे हैं? जबकि एसीपी की अध्यक्षता में एसआईटी सुबूत जुटाने में लगी है।

नवगठित एसआईटी की जाँच पहले हुई दो जाँचों से अलग बिन्दुओं पर होगी। इसमें वित्तीय अनियमितताएँ प्रमुख तौर पर हैं। तहसीलदार की रिपोर्ट पर अब एसआईटी सवालिया निशान शायद ही लगाये, क्योंकि सरकार शपथ-पत्र दाख़िल कर चुकी है। कह सकते हैं कि अब यह मामला उतना गम्भीर नहीं रहा, जितना इसे उठाया गया था। जाँच में कुछ ऐसा मिल जाए, जिससे कहा जा सके कि यह राजनीतिक या चुनावी मुद्दा नही था, बल्कि सरकारी संरक्षण में गाँधी परिवार को करोड़ों रुपये का फ़ायदा पहुँचाया गया।

क्या था भूमि सौदा?

राबर्ट वाड्रा ने वर्ष 2017 में मात्र एक लाख रुपये की पूँजी से स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी कम्पनी बनायी। एक साल भी नहीं हुआ कम्पनी ने हरियाणा के शिकोहपुर (गुडग़ाँव) में 3.5 एकड़ भूमि का ओंकारेश्वर प्रापर्टी से फरवरी, 2008 साढ़े सात करोड़ में सौदा कर लिया। भूमि की रजिस्ट्री और इंतकाल बहुत जल्दी हुआ। सामान्य तौर पर जिस काम में तीन माह से ज़्यादा का लगता है, वह कुछ ही दिनों में हो गया। सौदे में सरकारी राजस्व और अन्य ख़र्चे नियमानुसार किये गये। यह अभी तक तहसीलदार की रिपोर्ट में स्पष्ट है। स्काईलाइट ने 3.5 एकड़ में कॉलोनी बसाने के लिए कॉमर्शियल लाइसेंस के लिए आवेदन किया, जो बिना दिक़्क़त के उसे मिल गया। इसके बाद आसपास की प्रॉपर्टी के दाम रातोंरात आसमान छूने लगे। कुछ माह में यह दाम 700 प्रतिशत बढ़ गये। स्काईलाइट ने कॉलोनी नहीं बसायी, बल्कि ख़रीदी गयी ज़मीन डीएलएफ को 58 करोड़ में बेच दी। सब ख़र्च निकाल दिये जाएँ, तो कम्पनी को लगभग 44 करोड़ का लाभ हुआ। यहीं से विशेषकर गुडग़ाँव में प्रॉपर्टी में वह तेज़ी आयी, जिसका फ़ायदा बहुत-से लोगों ने उठाया।

“राबर्ट वाड्रा-डीएलएफ भूमि सौदे में हरियाणा सरकार ने स्टेट्स रिपोर्ट के तहत शपथ-पत्र दाख़िल कर दिया है। मामले की जाँच बदस्तूर चल रही है। न्यायालय ही इस मामले में क्लीन चिट दे सकता है। मामला न्यायालय में लंबित है। लिहाज़ा बहुत कुछ ज़्यादा टिप्पणी ठीक नहीं है।’’

मनोहर लाल खट्टर

मुख्यमंत्री, हरियाणा

“हरियाणा सरकार ने उच्च न्यायालय में शपथ-पत्र दाख़िल किया है। कांग्रेस नेता इसे राजनीति से प्रेरित मामला बताते हुए इसे क्लीतन चिट मान रहे हैं। नवगठित एसआईटी जाँच कर रही है। मामला न्यायालय में चल रहा है, तो फिर क्लीन चिट कैसे हुई?’’

अनिल विज

गृहमंत्री, हरियाणा

“हरियाणा सरकार के उच्च न्यायालय में दाख़िल शपथ-पत्र बहुत कुछ बताता है। भूमि सौदे में तत्कालीन सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। नियमों की पालना हुई और सरकारी ख़ज़ाने को कोई नुक़सान नहीं हुआ। यह शुरू से ही राजनीतिक से प्रेरित मामला है। न्यायपालिका पर हमें पूरा भरोसा है।’’

भूपेंद्र सिंह हुड्डा

पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा