लोक जीवन में रचने-बसने वाली गाथाएं सिर्फ इसलिए जिंदा नहीं रहतीं कि वे एक आश्चर्य लोक का निर्माण करती हैं. वे लोगों के दिलों में इसलिए भी धड़कती हैं कि उनमें प्रेरणा देने वाले अनिवार्य तत्व के तौर पर प्रेम रहता है. छत्तीसगढ़ की सर्वाधिक चर्चित लोकगाथा लोरिक चंदा भी ऐसी ही है. इसकी नायिका चंदा राजा महर की लड़की है. राजा ने उसकी शादी एक ऐसे व्यक्ति से कर दी है जो अक्सर बीमार रहता है. चंदा जब अपने पति के घर जा रही होती है तभी एक व्यक्ति बठुआ उसकी इज्जत लूटने की कोशिश करता है. इसी समय लोरिक वहां पहुंच जाता है और चंदा को बचाता है. चंदा इस शादीशुदा व्यक्ति की वीरता पर मुग्ध हो जाती है. चंदा की सुंदरता को देखकर लोरिक भी अपनी सुध-बुध खो बैठता है. दोनों की मेल-मुलाकात परवान चढ़ती है. एक दिन दोनों घर से भागने का फैसला कर लेते हैं. विवाहित प्रेमियों के इस फैसले से क्षुब्ध चंदा का पति वीरबावन उन्हें मारने की कोशिश करता है लेकिन नहीं मार पाता. मार्ग में लोरिक को सांप काट लेता है, लेकिन वह महादेव और पार्वती की कृपा से ठीक हो जाता है. आगे चलकर लोरिक करिंघा के राजा से भी युद्ध करते हुए जीत हासिल करता है. चंदा के साथ सुखपूर्वक जीवनयापन के दौरान एक रोज लोरिक को यह खबर मिलती है कि उसकी पहली पत्नी मंजरी भीख मांगने के कगार पर आ खड़ी हुई है और गायें भी कहीं चली गई हैं. लोरिक पत्नी को बचाने और गायों की खोज के लिए चंदा के साथ वापस अपने गांव आता है. सौतिया डाह की वजह से मंजरी और चंदा के बीच मारपीट होती है. इस मारपीट में मंजरी जीत जाती है. लोरिक यह देखकर दुखी होता है और फिर सब कुछ छोड़कर हमेशा के लिए कहीं चला जाता है. वस्तुतः लोरिक चंदा की गाथा असमानता के बीच समानता पैदा करने की एक जादुई कड़ी के रूप में भी देखी-समझी जाती है क्योंकि नायक यदुवंशी है और गाय चराता है जबकि नायिका राजा की बेटी है. प्रसिद्ध लोक मर्मज्ञ रामहृदय तिवारी इस गाथा को दो मानवीय प्राणों के प्यार की तलाश की अतृप्त आकांक्षा मानते हैं. लोकगाथाओं पर विशद अध्ययन करने वाले कथाकार रमाकांत श्रीवास्तव कहते हैं कि समाज विवाहित स्त्री और पुरुष के प्रेम प्रसंग को अच्छे नजरिये से नहीं देखता लेकिन लोरिक-चंदा की गाथा में रूढ़ियां टूटती हुई दिखती हैं. इसमें हम विवाहितों के परिपक्व प्रेम से परिचित होते हैं.