लोंगेवाला की जंग में पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देने वाले बहादुर सिपाही ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी नहीं रहे। 78 साल की आयु में वे कैंसर से जंग करते हुए इस संसार को अलविदा कह गए। विशेषज्ञों का मानना है कि 1971 में यदि लोंगेवाला में चांदपुरी नहीं होते तो शायद आज देश का नक्शा और ही होता। इन्हें इस बहादुरी के लिए देश का दूसरा सबसे बड़ा बहादुरी सम्मान महावीर चक्र दिया गया है। इनकी इस वीरता को देखते हुए देश की फिल्मी दुनिया ने ‘बार्डरÓ फिल्म के ज़रिए इस वीर सिपाही के प्रति अपनी कृतज्ञता दिखाई। जेपी दत्ता निर्देशित इस फिल्म में कुलदीप सिंह चांदपुरी की भूमिका धमेंद्र के बेटे सन्नी देयोल ने निभाई थी।
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का जन्म 22 नवंबर 1940 को मुंटगुमरी नामक स्थान पर हुआ। यह गांव अब पाकिस्तान वाले पंजाब में है। इसके बाद उनका परिवार बलाचैर के पास चांदपुर रूड़की गांव में आ बसा। कुलदीप सिंह चांदपुरी ने होशियारपुर के सरकारी कॉलेज से 1962 में स्नातक की डिग्री ली। इसी साल वे थल सेना में भर्ती हो गए। एक साल बाद यानी 1963 में ट्रेनिंग खत्म करने के बाद उन्हें पंजाब रेजिमेंट की 23वीं बटालियन में कमीशन किया गया। उन्होंने 1965 के यु़द्ध में भी हिस्सा लिया। वे एक साल तक गाज़ा (मिस्र) में संयुक्त राष्ट्र मिशन पर भी रहे। जब लोंगोवाल का युद्ध हुआ उस समय वे मेजर के पद पर थे।
बात चार दिसंबर 1971 की है। उस दिन मेजर चांदपुरी को सूचना मिली कि पाकिस्तान की भारी फौज टेंक लेकर उनकी पोस्ट की ओर बढ़ रही है। पाकिस्तान की उस फौज में 2000 से भी ज़्यादा सैनिक और अफसर थे। चांदपुरी के पास गश्ती दस्तों समेत कुल 120 जवान थे। जिनमें से 30 कप्तान धर्मवीर की कमान में गश्त पर थे। इस तरह पोस्ट पर केवल 90 जवान थे। इतने कम जवानों के साथ पाकिस्तान की उस भारी फौज का मुकाबला करना बहुत कठिन था। पर चांदपुरी के नेतृत्व में इस असंभव काम को संभव कर दिखाया । वे चाहते तो आराम से रामगढ़ को निकल सकते थे। पर चांदपुरी ने वहीं रुक कर पाकिस्तानी सेना के साथ निपटने का फैसला कर लिया। इतनी देर में अंधेरा होने लगा था। उस ओर से आ रहे टैंकों ने गोलों की बरसात शुरू कर दी। भारतीय सेना के लिए अतिरिक्त मदद की कोई गुंजाइश नहीं थी। जो करना था उन 120 रणबांकुरों ने ही करना था। यही सोच कर भारतीय सेना ने भी जीप पर लगी आरसीएल रायफल और मोर्टार से ताबड़ तोड़ जवाबी फायरिंग शुरू कर दी। भारतीय फायरिंग इतनी जोरदार थी कि पाकिस्तानी सेना को रुकना पड़ गया। थोड़ी देर में ही पाकिस्तान के 12 टैंक तबाह हो गए। असल में पाकिस्तान की योजना लोंगेवाला पर कब्जा कर रामगढ़ होते हुए जैसलमेर तक पहुंचने की थी, पर उसकी सारी योजना धरी की धरी रह गई।
देश के इन बहादुर 120 जवानों ने रात भर शत्रुओं को रोक रखा और उन्हें पीछे हटने पर मज़बूर किया। पांच दिसंबर को सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही वायुसेना के विमान पैदल सेना की मदद को आ पहुंचे। उन्होंने पाकिस्तानी टैंकों पर कहर बरपा दिया। पाकिस्तानी सेना उल्टे पांव भागने पर मज़बूर हो गई। छह दिसंबर को फिर वायुसेना के हंटर विमानों ने ज़ोरदार गोले बरसाए। इससे पाकिस्तान की एक पूरी ब्रिगेड और दो रेजिमेंटस का सफाया हो गया।
पाकिस्तान की यह बहुत बड़ी हार थी। उसके 60 टैंक तबाह हो गए थे और 200 जवान मारे गए थे। 500 जवानों को गहरी चोटें लगी थी।
कुछ समय पूर्व एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में ब्रिगेडियर चांदपुरी ने खुद बताया था कि उन्हें जब सूचना मिली कि पाकिस्तानी बहुत बड़ी तादाद में उनकी पोस्ट की ओर बढ़ रही है तो वे सोचने लगे कि इनका मकसद क्या है? तब उन्होंने अनुमान लगाया कि पाकिस्तान लोंगेवाला पोस्ट पर कब्जा करके वहां से जैसलमेर की तरफ कूच करने की योजना बना कर आया हे। ब्रिगेडियर चांदपुरी के अनुसार पाकिस्तानी सेना के पास बख्तरबंद गडिय़ां, टैंक और भरपूर हथियार थे। ब्रिगेडियर चांदपुरी ने बताया कि पाकिस्तानी सेना ने चार दिसंबर 1971 की रात को 11-12 बजे के बीच उनकी पोस्ट को घेर लिया। वे सीमा पर लगे पिल्लर नंबर 635 और 638 को पार करते हुए आए थे।
वायुसेना की भूमिका
ब्रिगेडियर चांदपुरी ने युद्ध की इस जीत का पूरा श्रेय अपने बहादुर जवानों और वायुसेना को दिया। उन्होंने बताया कि पांच दिसंबर को सवेरे तड़के वायुसेना के हंटर विमान आ पहुंचे और उन्होंने काफी नीची उड़ान भरते हुए अपने लक्ष्यों पर सटीक निशाने लगाए। उन्होंने बताया कि वायुसेना के हमलों ने दुश्मन का भारी नुकसान किया । इससे पाकिस्तानी सेना के पांव पूरी तरह उखड़ गए।
पदक विजेताओं का परिवार
लोंगेवाल की इस जंग में जहां ब्रिगेडियर चांदपुरी को महावीर चक्र प्रदान किया गया वहीं इनकी कंपनी को छह और वीरता पुरस्कार भी मिले। सेना में भर्ती होने वाले चांदपुरी अपने परिवार के पहले आदमी नहीं थे। उनके दादा सरदार बहादुर सरदार संत सिंह भी फौज में थे। इसके अलावा उनके दो चाचा वायुसेना में फाईटर पायलट थे। 1971 के युद्ध में उन दोनों को वीर चक्र मिले। ब्रिगेडियर चांदपुरी के ससुर एक पुलिस अफसर थे। उन्हें भी बहादुरी का सम्मान मिला।
इस प्रकार ब्रिगेडियर चांदपुरी का पूरा परिवार ही बहादुरों और वीरता पदक जीतने वालों का है। देश को चांदपुरी पर हमेशा मान रहेगा।
जंग में भी जिंदा रही मानवता
इतनी भयानक जंग के दौरान भी भारतीय सेना मानवता को नहीं भूली। ब्रिगेडियर चांदपुरी के सैनिकों ने यु़़द्ध के दौरान दो ऐसे पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ा जो बहुत बुरी तरह से घायल हो गए थे। भारतीय सेना के जवानों ने उन्हें बचाने के लिए जी-जान एक कर दी। वे उन घायलों के मुंह में पानी डालते रहे और उन्हें वह सारी डाक्टरी सहायता भी देते रहे जो उनके पास उपलब्ध थी। ब्रिगेडियर चांदपुरी ने एक साक्षात्कार के दौरान बताया था कि उनकी पूरी कोशिश थी कि वे लोग बच जाएं क्योंकि उनके भी परिवार होंगे, छोटे-छोटे बच्चे होंगे जो घर पर उसी तरह अपने पिता का इंतजार कर रहे होंगे,जिस तरह से भारतीय सेना के जवानों की प्रतीक्षा उनके परिजन करते हंै। पर उन दोनों में से कोई नहीं बच सका। ब्रिगेडियर चांदपुरी को इसका हमेशा अफसोस रहा।