कोयला ब्लॉक आवंटन पर आई कैग की रिपोर्ट इस समय कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के गले की फांस बन गई है. लेकिन उत्तर प्रदेश में कैग का ही राज्यस्तरीय संस्करण निधि लेखा परीक्षा विभाग इस मामले में उतना भाग्यशाली नहीं है. इसकी जांच रिपोर्टें न तो उस तरह का हंगामा खड़ा कर पाती हैं न ही सरकारें इसे गंभीरता से लेती हैं. नतीजतन निधि लेखा परीक्षा विभाग (निलेप) की अनगिनत ऑडिट रिपोर्टें धूल फांकती सरकारी फाइलों का हिस्सा बनकर रह जाती हैं. तहलका के पास निलेप की कुछ जांच रिपोर्टें हैं जिनमें पिछली बसपा सरकार के दौरान नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी में हुई आर्थिक अनियमितताओं के कई सनसनीखेज मामले हैं. निलेप ने सरकार को अपनी जांच रिपोर्ट में इनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुतियां भी की हैं लेकिन न तो तब की बसपा सरकार ने इस पर कोई कार्रवाई की न ही मौजूदा सपा सरकार इसे तवज्जो देने के लिए तैयार है. ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार के मामलों को दबाने की राज्य की सत्ताधारी और मुख्य विपक्षी पार्टी के बीच मौन सहमति है. इसका एक नमूना हमें पिछले विधानसभा सत्र के दौरान भी देखने को मिला. मुख्यमंत्री ने बसपा शासनकाल में औने-पौने दामों में बेची गई चीनों मिलों और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के सैकड़ों करोड़ रुपये के आशियाने की कोई जांच करवाने से इनकार कर दिया. जिस निलेप ने फार्म हाउस के घोटालों की जांच की थी, उसी ने कई अन्य घपलों की ओर भी सरकार का ध्यान खींचा था. फॉर्म हाउस घोटाले की जांच अब लोकायुक्त के पास लंबित है, जबकि बाकी सभी मामले ठंडे बस्ते में ही पड़े हैं. उन घपलों को अंजाम देने वाले आज भी चैन की बंसी बजा रहे हैं. सरकार के रवैये से लगता नहीं कि वह इन घोटालों के प्रति गंभीर है. आगे कुछ ऐसे ही मामलों का जिक्र है जिनमें निलेप ने गड़बड़ियां पाई थीं.
1 नोएडा स्थापना दिवस पर प्राधिकरण के अधिकारियों व कर्मचारियों में लाखों के उपहार बंटे. नोएडा के 33 वें स्थापना दिवस पर 17 अप्रैल, 2008 को नियमित अधिकारियों व कर्मचारियों को उपहार के रूप में एक पैडस्टल फैन तथा एक सीएफएल 18 वाट दिया गया. उपहार का लाभ प्राधिकरण के करीब 1,789 अधिकारियों व कर्मचारियों को मिला. निलेप अपनी रिपोर्ट में लिखता है, ‘नोएडा स्थापना दिवस पर प्राधिकरण ने अपने अधिकारियों और कर्मचारियों पर 34,97,280 रुपये का गैरजरूरी व्यय किया.’ प्राधिकरण की यह गड़बड़ी 16 जून, 1999 के उस शासनादेश का खुला उल्लंघन है जिसके मुताबिक इस प्रकार के किसी अनावश्यक उपहार वितरण पर रोक लगाई गई है. प्रदेश सरकार का यह शासनादेश प्रदेश के सभी विकास प्राधिकरणों पर लागू है. निलेप ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उक्त धनराशि का व्यय किया जाना प्राधिकरण निधि पर अनावश्यक भार था इसलिए सरकार को उत्तरदायी अधिकारियों पर कार्रवाई करते हुए उनसे वसूली की व्यवस्था करनी चाहिए. इसके बावजूद सरकार ने न तो किसी पर कार्रवाई की न ही किसी अधिकारी या कर्मचारी से वसूली ही हो पाई है.
2 वाहन भत्तों का अनियमित दर से भुगतान. प्राधिकरण के सक्षम अधिकारियों ने सारे नियम -कानून अपने तरीके से बनाए. कर्मचारियों को वाहन भत्ता देने में भी तय सरकारी मानकों का पालन नहीं किया गया. अधिकारियों ने अपने ही बनाए नियम चलाए जिससे सरकारी खजाने को साल 2008-09 में 1,31,65,800 रुपये का नुकसान हुआ. ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि प्रतिमाह कार के भत्ते के रूप में 1,650 रुपये, मोटर साइकिल व स्कूटर के लिए 1,220 रुपये, मोपेड के लिए 780 रुपये तथा साइकिल भत्ते के रूप में 610 रुपये की दर से भुगतान किया गया. जबकि वित्त विभाग के अनुभाग चार में 10 मार्च, 2000 को जो सरकारी आदेश पारित हुआ है उसके अनुसार अधिकारियों एवं कर्मचारियों को कार के लिए प्रतिमाह 800 रुपये, मोटर साइकिल के लिए 350 मोपेड के लिए 150 रुपये एवं साइकिल के लिए 50 रुपये का भत्ता ही दिया जा सकता है. इस तरह प्राधिकरण के अधिकारियों ने सरकारी आदेशों की अवहेलना करते हुए मनमाना पैसा भत्ते के रूप में भुगतान कर कर्मचारियों और अधिकारियों को अनुचित लाभ पहुंचाया. इस मामले में भी न तब की सरकार ने कोई कार्रवाई की न अब की सरकार की कोई मंशा दिखती है.
3 चिकित्सा भत्तों का अनियमित भुगतान. सरकारी आदेशों को दरकिनार करते हुए अथॉरिटी के अधिकारियों ने चिकित्सा भत्ते में भी मनमाना रुख अख्तियार किया. जांच के दौरान पाया गया कि चिकित्सा भत्ते के रूप में प्रतिमाह अधिकारियों एवं कर्मचारियों को 850 रुपये की दर से भुगतान किया गया. जबकि शासनादेश के अनुसार कार्मिक उद्यान विभाग की ओर से 30 रुपये प्रतिमाह चिकित्सा भत्ता स्वीकृत किया गया था. अधिक दर से भुगतान करने के लिए शासन की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करने के बजाय सार्वजनिक उद्यम के प्रमुख सचिव से अनुमति प्राप्त की गई थी. ऑडिट टीम ने जांच में लिखा है कि सार्वजनिक उद्यम के प्रमुख सचिव की ओर से प्राप्त अनुमति पर्याप्त नहीं है. प्राधिकरण द्वारा शासन से पूर्व अनुमति प्राप्त किए बिना ही 850 रुपये प्रतिमाह की दर से चिकित्सा भत्ते का भुगतान करने के कारण हर कर्मचारी को 820 रुपये का अधिक भुगतान किया गया. इससे सरकारी खजाने को कुल 1,67,47,680 रुपये का अधिक एवं अनियमित भुगतान एक साल में किया गया.
4 दीपावली पर बंटे लाखों के उपहार प्राधिकरण ने अपने कर्मचारियों को साल 2008-09 में दीपावली पर दिल खोलकर उपहार बांटे. इस दिलखोल बंटाई में सरकारी खजाने को 45,46,047 रुपये की चपत लगी. शासन के मितव्ययिता संबंधी शासनादेश – 1999 के मुताबिक इस प्रकार के उपहार पर रोक लगी हुई थी. यह आदेश नोएडा पर ही नहीं बल्कि सभी प्राधिकरणों पर लागू था. इससे स्पष्ट है कि शासनादेश का उल्लंघन करके प्राधिकरण द्वारा दीपावली के उपहार पर लाखों का वारा-न्यारा किया गया. मजेदार बात यह है कि प्राधिकरण की ओर से दीपावली का उपहार अपने अधिकारियों व कर्मचारियों को चेक द्वारा दिया गया था. इस पर भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
5 अपात्र अधिकारियों व कर्मचारियों को वाहन भत्ता प्राधिकरण की ओर से सेवा में कार्यरत लेखाकार, लेखाधिकारी, सहायक लेखाकार, सहायक महाप्रबंधक, लाइब्रेरियन, लैब सहायक, निजी सचिव, प्रबंधक, डाटा एंट्रीे ऑपरेटर, उपमहाप्रबंधक, कार्यालय अधीक्षक, व्यक्तिगत सहायक आदि ऐसे कर्मचारियों को वाहन भत्तों का भुगतान किया गया था जिनका कार्य सिर्फ कार्यालयों तक सीमित है. जबकि नियमानुसार वाहन भत्ते सिर्फ फील्ड ड्यूटी वाले कर्मचारियों को दिए जाने का प्रावधान है. ऑडिट रिपोर्ट कहती है कि अपात्र कर्मियों को वाहन भत्ते का भुगतान किया जाना गलत है. प्राधिकरण की दरियादिली यहीं तक सीमित नहीं थी. अधिकारियों ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों जैसे चौकीदार, पंप ऑपरेटर मशीन ऑपरेटर आदि को भी वाहन व साइकिल भत्ते का भुगतान कर दिया था. जबकि उनका भी कार्य भ्रमण करने का न होकर कार्यालय तक सीमित था. इस अनियमित भुगतान से प्राधिकरण को 47,14, 800 रुपये का नुकसान हुआ.
6 सुरक्षा व्यवस्था पर अनियमित व्यय. ऑडिट रिपोर्ट में निलेप ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि तीन-चार साल के दौरान प्राधिकरण अपनी सुरक्षा के लिए निजी सुरक्षा एजेंसियों का सहारा ले रहा था. इस कार्य पर उन्होंने अकेले साल 2008-09 में 1,89,53,340 रुपये बर्बाद किए. निलेप अपनी रिपोर्ट में कहती है कि शासन द्वारा राजकीय पुलिस व्यवस्था उपलब्ध करवाए जाने के बावजूद निजी सुरक्षा एजेंसियों से सुरक्षा सेवाएं लेना सिर्फ राजकोष की बर्बादी थी. सरकार ने इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं की. और तो और, आज भी सुरक्षा के लिए बाहरी एजेंसियों का ही सहारा लिया जा रहा है.
7 बिल्डरों पर प्राधिकरण की मेहरबानी. ऑडिट अधिकारियों ने ग्रुप हाउसिंग के भूखंडों की निविदा प्रक्रिया के विभिन्न सालों के ब्रोशरों का तुलनात्मक अध्ययन किया. उन्हें पता चला कि साल 2006-07 की योजना में भूखंडों कीे कीमत की 40 प्रतिशत धनराशि जमा किए जाने के बाद ही भूखंडों का पजेशन दिया जाता था. जबकि 2008 की स्कीम में निविदा के आधार पर भूखंड की कीमत की सिर्फ 20 प्रतिशत धनराशि लेकर उन्हें भूमि का पजेशन दे दिया गया था. इतना ही नहीं, साल 2009 में इसमें और भी छूट देते हुए निविदा दर के आधार पर भूखंड की कीमत की मात्र दस फीसदी लेकर ही बिल्डरों को भूमि का पजेशन दे दिया गया. योजनाओं में आवंटन धनराशि लगातार कम करके बिल्डरों को भूखंड का पजेशन दिया गया. निलेप के मुताबिक आवंटन धनराशि साल दर साल कम करके प्राधिकरण ने प्रत्यक्ष रूप से बिल्डरों को लाभ पहुंचाया. इसके फलस्वरूप प्राधिकरण को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ.
8 प्राधिकरण द्वारा ग्राम विकास पर खर्च. निलेप की जांच रिपोर्ट बताती है कि कहीं-कहीं तो प्राधिकरण के अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करते रहे और सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाते रहे. प्राधिकरण के सिविल निर्माण खंड, विद्युत यांत्रिकी खंड, जन स्वास्थ्य तथा अनुरक्षण विभाग आदि ने अनेक गांवों में विकास एवं रखरखाव जैसे कार्य किए, मसलन विद्यालय, सड़क एवं अन्य सामुदायिक निर्माण आदि. कानूनी रूप से इस तरह के कार्य करवाने का दायित्व जिला पंचायत और ग्राम पंचायतों के हाथ में होता है. ऑडिट रिपोर्ट सवाल उठाती है कि किस अधिकार से प्राधिकरण ने गांवों में व्यय किया, इसका औचित्य स्पष्ट नहीं है. सामान्यतः इन कार्यों के लिए शासन से अनुदान प्राप्त करके जिला पंचायत, मुख्य विकास अधिकारी, बेसिक शिक्षा विभाग अथवा ग्राम प्रधानों द्वारा इस तरह के कार्य करवाए जाते हैं. ऑडिट रिपोर्ट कहती है कि अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य करवाए जाने से इस बात की संभावना प्रबल हो जाती है कि इन कार्यों के लिए दोहरा भुगतान हुआ होगा. इस मद में प्राधिकरण ने 21,38,99,949 रुपये का व्यय किया.