अमिताभ बच्चन स्टाइल में अपने पिता से हक की जंग झटकने वाला रोहित शेखर आसानी से जिंदगी की जंग हार गया। उम्र महज 40 साल। और जब घर बसाने के बाद कुछ नया करने की जुगत में था उसी समय नियति ने रोहित को खामोश कर दिया।
होश संभालते ही दिग्गज तिवारी की अवैध संतान रोहित कोर्ट व कचहरी के चक्कर लगाने लगा। देश के ऐसे बड़े राजनेता जिनका किसी भी दल में कोई विरोधी नहीं था। सत्ता व विपक्ष के गलियारों में तिवारी की तूती बरसों बरस बोलती रही। ऐसे में एक अनजान लड़के रोहित ने तिवारी के खिलाफ मोर्चा ही नहीं खोला बल्कि लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद नारायण दत्त तिवारी से कहलवा ही दिया कि वो ही रोहित के बाप हैं। भारतीय राजनीति के इतिहास में यह पहली व इकलौती नजीर होगी कि जब 90 साल के बुजुर्ग नेता ने दुबारा दूल्हे का सेहरा पहन अपनी अवैध संतान का माथा चूमा। तिवारी ने रोहित की मां उज्ज्वला शर्मा की मांग में सिंदूर भरा। मानसिक संत्रास झेल रहे युवा रोहित की जिंदगी के इस अध्याय का सुखद अंत हुआ। कानूनन रोहित जैविक पुत्र कहलाये। इससे बेहतर फि़ल्म की मजबूत व कसी गयी पटकथा नहीं हो सकती थी। जिसमें राजनीति, प्रेम, कानून, दुख, पीड़ा के अलावा एक युवा का अपने अवैध बाप के प्रति निर्णायक व सफल जंग लड़ी गयी।
लेकिन पिक्चर अभी बाकी थी। पिता को भी अपना फर्ज निभाना था। तिवारी को अपना राजनीतिक वारिस जो मिल गया था। कभी कांग्रेस के मजबूत स्तम्भ रहे तिवारी ने बेटे रोहित की खातिर सोनिया गांधी से गुहार लगाई लेकिन अनसुना कर दिया गया। तिवारी के साथ रोहित के लिए यह किसी बड़े झटके से कम नहीं था। दरअसल रोहित को यह उम्मीद थी कि तिवारी को कांग्रेस हाईकमान इग्नोर नहीं करेगी। आंध्रप्रदेश की घटना के बाद कांग्रेस पार्टी ने भी तिवारी से दूरी बना ली थी। प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर के नेता तिवारी की छाया से भी बचने लगे थे।
रोहित शेखर के मन में पल रही छोटी सी आशा अब धूमिल होने लगी थी। महारथी तिवारी से जुड़े इस नए सच को स्वीकार करना रोहित के लिए किसी मानसिक आघात से कम नहीं था। तिवारी नाम की सीढ़ी से राजनीति की ऊंचाइयां नाप चुके नेता रोहित की पैरवी में आगे नहीं आये।
2017 में रोहित को राजनीति में स्थापित करने के लिए जिंदगी भर भाजपा के विरोध रहे तिवारी ने अमित शाह का दरवाजा भी खटखटाया। लेकिन बात नहीं बन पायी। एक समय तिवारी के नाम पर चुनाव जीतने वाले धीरे-धीरे किनारा कर गए। कुल मिलाकर रोहित की राजनीति में प्रवेश की हसरत अधूरी रह गयी। इस बीच, तिवारी बहुत बीमार पड़े। रोहित पिता के सिरहाने खड़ा रहा। पिता की सेवा की। मई 2018 में रोहित ने शादी के बंधन में बंधे। और 18 अक्टूबर 2018 को नारायण दत्त तिवारी ने भी अंतिम सांस ली।
यहां यह भी रोहित का दुर्भाग्य रहा कि तिवारी ने बरसों तक रोहित को अपनी संतान नहीं माना। लंबी कानूनी जंग जीतने के बाद ही रोहित को न्याय मिला। तब तक तिवारी का राजनीतिक सूरज ढल चुका था। अगर तिवारी शुरुआत में ही रोहित को स्वीकार कर लेते तो आज रोहित की जिंदगी अनजाने मोड़ पर आकर खत्म नहीं होती। न ही वो अवसाद से ग्रस्त होता और न ही जानलेवा बेमेल शादी के बंधन में फंसता।
राजनेता तिवारी पिता के तौर पर पहले ही मिल जाते तो रोहित उनके स्वाभाविक राजनीतिक वारिस भी कहलाता। और प्रदेश की राजनीति में एक मुकाम बना चुका होता। लेकिन नियति ने किंतु-परन्तु का यह खेल भी नहीं खेला। और जिंदगी भर पिता को पाने की जंग में जुटा रहा नारायण दत्त तिवारी की अवैध संतान रोहित अपनी सेहत और मानसिक मजबूती भी खो बैठा। बावजूद इसके रोहित उठने की प्रबल चाह में नया रास्ता भी तलाश रहा था। लेकिन अपूर्वा से शादी की खुशियां बहुत दिन तक कायम नहीं रही। और अप्रैल की एक काली रात पत्नी के साथ हुई हाथापाई में रोहित जिंदगी की जंग हार गया। एक छोटी सी आशा का समय से पहले अंत हो गया। बेशक एक अनजान रोहित का सफर समय से पहले ही खत्म हो गया। लेकिन 21वीं सदी में नामचीन राजनेता से पिता का हक पाने के लिए लड़ी गई रोहित की जंग इतिहास के पन्नों में एक बेहद रोचक व सनसनी बन कर जिंदा अवश्य रहेगी। रोहित तुम्हें सलाम।