मोदी सरकार ने ऐतिहासिक अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति में कर दिया विलीन
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक इंडिया गेट पर पिछले क़रीब पाँच दशकों से जल रही अमर जवान ज्योति से छेड़छाड़ करना, जगह बदलना या उसको बुझा देना कितना उचित है? यह ख़बर आज देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। सन् 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध और बांग्लादेश की आज़ादी के लिए शहीद हुए 3,000 भारतीय सैनिकों की याद में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 26 जनवरी, 1972 में इस अखण्ड ज्योति को प्रज्ज्वलित किया था। इस अमर जवान ज्योति की शाश्वत लौ (ज्योति) को प्रज्ज्वलित की थी।
हालाँकि पिछले क़रीब पाँच दशक से जल रही यह अमर जवान ज्योति देश की आज़ादी के बाद सन् 1947 से लेकर अब तक शहीद हुए क़रीब 25,000 वीर जवानों के सम्मान में जल रही थी। लेकिन इस जीत के 50 साल बाद मोदी सरकार ने उस लौ को वहाँ से हटाकर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जल रही लौ में विलीन कर दिया है। कुछ लोग प्रधानमंत्री मोदी के इस निर्णय को ग़ैर-वाजिब कहकर इसका विरोध कर रहे हैं।
ग़ौरतलब है कि अमर जवान ज्योति की जगह बदलने का निर्णय इसका फ़ैसला प्रधानमंत्री मोदी ने सन् 2019 में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के उद्घाटन के वक़्त लिया था। प्रधानमंत्री मोदी अपने कई अनोखे और सख़्त निर्णय के लिए जाने जाते हैं। हालाँकि कई लोगों का मानना यह भी है कि उनका इतिहास को बदलना देश के लिए उचित नहीं है। इसके अलावा बहुत-से लोग सम्मान के साथ उन्हें अपना अगुवा मानते हुए इस काम को भी सम्पूर्ण देशवासियों के लिए काम करने की बात कह रहे हैं। वहीं विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि मौज़ूदा कुछ वर्षों में मोदी सरकार द्वारा ऐसे कई काम हुए हैं, जिससे जनता में असुरक्षा, आपसी मतभेद और सरकार के प्रति अविश्वास की भावना पैदा हुई है। इन कामों में ऐतिहासिक से छेड़छाड़ करना, नोटबन्दी करना, जीएसटी लगाना, तीन कृषि क़ानून लेकर आना, बड़े पैमाने पर दर्ज़नों अमीरों द्वारा बैंकों का पैसा लेकर भागना, देश में महँगाई व बेरोज़गारी का बढऩा, महामारी आने पर तालाबन्दी करना देशवासियों के बेहद कड़ुवे अनुभव रहे हैं, जिससे देश की अर्थ-व्यवस्था बेहद ख़राब हुई है। विपक्षियों का मानना है कि इस सबके बावजूद सरकार ने सेंट्रल विस्टा (केंद्रीय योजना) जैसी महँगी योजना की शुरुआत अत्यधिक आवश्यक काम बताकर तब की है, जब इसकी हाल-फ़िलहाल कोई ख़ास ज़रूरत ही नहीं थी। अब इसी सरकार ने लगभग 50 साल से लगातार शहीदों के सम्मान में जल रही अमर जवान ज्योति को इंडिया गेट से हटाकर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक ले जाकर उसे इस स्मारक की ज्योति में विलीन कर दिया। सरकार में मंत्रियों समेत कुछ लोगों ने इसका समर्थन किया है, तो कुछ ने विरोध किया है। वहीं अधिकतर लोग इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।
बहरहाल यह इन दिनों चर्चा का एक बड़ा और गरम मुद्दा है। दरअसल अमर जवान ज्योति और इंडिया गेट से न केवल लोगों की भावनाएँ जुड़ी हैं, बल्कि वे यहाँ और कुछ न होने के बावजूद हर दिन सैकड़ों की संख्या में जुटते रहे हैं, जहाँ कि अब उनका प्रवेश बिल्कुल बन्द कर दिया गया है। अब अमर जवान ज्योति इंडिया गेट की जगह उसके पास स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में जल रही ज्योति के साथ मिलकर जल रही है। इसे बुझाने जितना अपराध मानकर इस पर बहस छिड़ गयी है कि मौज़ूदा मोदी सरकार आज़ादी से लेकर 2014 तक का पूरा-का-पूरा इतिहास मिटाकर 2014 में सत्ता में आने के बाद से नया इतिहास लिखने की कोशिश कर रही है। हालाँकि एक बात यह भी है कि प्रधानमत्री मोदी के इस फ़ैसले का लोग स्वागत भी कर रहे हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती पर इंडिया गेट पर उनकी प्रतिमा लगेगी। इससे पहले सरकार ने यह भी फ़ैसला किया था कि अब गणतंत्र दिवस समारोह नेताजी के जन्मदिन 23 जनवरी से शुरू होकर 30 जनवरी महात्मा गाँधी की हत्या वाले दिन तक मनाया जाएगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा को भारत के सबसे बड़े प्रतीकों में से एक इंडिया गेट पर लगाने के निहितार्थ कुछ भी हों और उन पर शायद तीखी बहस ज़रूर होगी; लेकिन लोग इसका विरोध नहीं करेंगे। वरिष्ठ पत्रकार और इतिहास के जानकार विवेक शुक्ला बताते हैं कि राजधानी में उनकी पहली प्रतिमा लुटियंस दिल्ली की बजाय लाल क़िले के पास 23 जनवरी, 1975 को एडवर्ड पार्क में ही लग गयी थी। वहाँ पर नेताजी की मूर्ति लगने के बाद एडवर्ड पार्क का नाम सुभाष पार्क कर दिया गया था। ग़ौरतलब है कि सुभाष पार्क में लगी मूर्ति में नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने इंडियन नेशनल आर्मी के साथियों के साथ हैं। उसका अनावरण तब के उप राष्ट्रपति बी.डी. जत्ती ने किया था। इस मूर्ति को यहाँ पर स्थापित करने में कम-से-कम 10 दिन लगे थे। मूर्ति लगने के कई दिनों के बाद तक दिल्ली में रहने वाले कई लोगों को इसके सामने हाथ जोडक़र खड़े रहते देखा जा सकता था। दरअसल जबसे सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई है, मौज़ूदा मोदी सरकार ने लोगों के ज़ेहन में बसे इंडिया गेट पर निर्माण की धुन में ख़ुदार्इ शुरू करा रखी है, जिसके चलते यहाँ हर तरफ़ धूल-ही-धूल दिखायी देती है। इससे इंडिया गेट की तस्वीर कितनी बदलेगी? बिगड़ेगी या सँभलेगी? यह तो हम नहीं कह सकते। लेकिन यह तो निश्चित है कि आने वाले समय में इंडिया गेट वाली ज़मीन पर आम लोगों के क़दम शायद ही पड़ें। क्योंकि यह जगह प्रधानमंत्री आवास और उप राष्ट्रपति आवास के अधीन जा सकती है।
अगर अमर जवान ज्योति की बात करें, तो यह बात समझने की ज़रूरत ज़्यादा है कि विपक्ष का यह आरोप कितना सही है कि मौज़ूदा सरकार वास्तव में शहीदों का अपमान कर रही है? क्या मोदी सरकार ने यह क़दम भी दूसरे कई ग़ैर-ज़रूरी क़दमों की तरह ही अन्यथा ही आगे की ओर बढ़ाया है? इसे जानने-समझने के लिए इन कामों के पीछे मोदी सरकार की नीयत को समझना होगा। इन दिनों सोशल मीडिया पर अमर जवान ज्योति को लेकर चल रही बहस और रस्साकसी की ओर भी ध्यान देने पर पता जलता है कि एक बड़ा तबक़ा इसे न केवल सैनिकों का अपमान बता रहा है, बल्कि इसे मोदी सरकार का एक और ग़ैर-ज़रूरी क़दम बताने में लगा है। इस तबक़े का कहना है कि इससे बेहतर होता कि मोदी सरकार अमर जवान ज्योति के आसपास की इंडिया गेट की ज़मीन पर हरियाली बढ़ाती; वहाँ बने सरोवर का पुनुरुद्धार करती और लोगों के लिए आकर्षक बनाती। विपक्षी दल के नेताओं ने मोदी सरकार के इस क़दम का पुरज़ोर विरोध किया है। वहीं सत्ताधारी भाजपा और उसके समर्थकों का आरोप है कि राहुल गाँधी समेत विरोध करने वाले तमाम नेता अमर जवान ज्योति की स्थानांतरण को लेकर झूठा प्रचार कर रहे हैं।
सरकार का कहना है कि उसे इस बात का बहुत सन्तोष है कि इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति की शाश्वत् ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में मिला दिया गया। अमर जवान ज्योति की लौ को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियाँ फैल रही हैं, जबकि अमर जवान ज्योति की लौ बुझ नहीं रही है, बल्कि इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ज्योति में विलीन किया गया है। सरकार का कहना है कि यह देखना अजीब था कि अमर जवान ज्योति की लौ ने सन् 1971 और अन्य युद्धों के शहीदों को श्रद्धांजलि दी; लेकिन उनका कोई नाम वहाँ मौज़ूद नहीं है। इंडिया गेट पर अंकित नाम केवल कुछ शहीदों के हैं, जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और एंग्लो-अफ़ग़ान युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ाई लड़ी थी और इस प्रकार यह हमारे औपनिवेशिक अतीत का प्रतीक है। सन् 1971 और उसके पहले और बाद के युद्धों सहित सभी युद्धों के सभी भारतीय शहीदों के नाम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में रखे गये हैं। इसलिए वहाँ शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करना एक सच्ची श्रद्धांजलि है। सरकार ने पिछली सरकारों पर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक न बनाने के लिए भी ताना कसा।
बता दें कि इंडिया गेट स्मारक ब्रिटिश सरकार के समय सन् 1921 में बना था। ब्रिटिश हुकूमत ने इस इंडिया गेट का निर्माण सन् 1914 से सन् 1921 के बीच ब्रिटिश भारतीय सैनिकों के शहीद होने पर उनकी याद में बनाया था, जहाँ क़रीब 13,000 से अधिक ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम अंकित हैं। इंडिया गेट की अधाराशिला ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी। वही इंडिया गेट का डिजाइन इडविन लुटियन ने बनाया था। इंडिया गेट पर पूरे साल चौबीसों घंटे जलने वाली इस अमर जवान ज्योति पर लगा थलसेना, वायुसेना और नौसेना के जवान तैनात रहते हैं। सन् 1972 में इसके उद्घाटन के बाद से ही हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड से पहले प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और तीनों भारतीय सेनाओं के प्रमुख अमर जवान ज्योति पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे हैं।
मौज़ूदा सरकार ने सन् 2019 में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का निर्माण कराया, जो अच्छी बात है। लेकिन सन् 2020 से ही गणतंत्र दिवस के अवसर पर अमर जवान ज्योति की जगह राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर श्रद्धांजलि देने की प्रथा शुरू हुई, जिसका विरोध भी हुआ था। अब अमर जवान ज्योति को यहाँ की ज्योति में विलीन कर दिया गया। इसके अलावा इस बार बीटिंग रिट्रीट में महात्मा गाँधी की मनपसन्द धुन ‘अबाइड विद् मी’ नहीं बजायी जाएगी। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक जलियांवाला बाग़ का पुनरुद्धार कर दिया; जिसकी देश-विदेश में ख़ूब निंदा हुई। इस महत्त्वपूर्ण शहीद स्थल को पर्यटन स्थल बनाने की सरकार की कोशिश को लेकर सरकार की काफ़ी आलोचना होने के बावजूद उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ। मेरा मानना है कि ऐतिहासिक चीज़ें का अपना एक अलग महत्त्व होता है। इंडिया गेट एक ऐसी राष्ट्रीय धरोहर है, जहाँ हर साल लाखों की तादाद में आने वाले विदेशी पर्यटक और देश के लोग आते-जाते रहे हैं। अमर जवान ज्योति की वजह से लोग यहाँ नतमस्तक हो जाते थे। हालाँकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आगे भी पूरा देश नतमस्तक है, और रहेगा। उनकी प्रतिमा लगना भी अच्छी बात है। लेकिन यह काम दूसरे तरीक़े से भी किया जा सकता था। केवल ऐतिहासिक चीज़ें से छेड़छाड़ करके अगर सरकार यह सोचती है कि इससे देश का सिर गर्व से ऊँचा होगा, तो यह एक बड़ी भूल ही मानी जाएगी। मेरा मानना है कि बड़ा उत्तरदायित्व सँभालने वाले किसी व्यक्तिको सनक से निर्णय लेने के बजाय जनहित और देशहित के पहलू को देखते हुए निर्णय लेने चाहिए।
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं।)