राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र

देश के सियासी गलियारों में अगले साल होने वाले 15वें राष्ट्रपति चुनाव की चर्चा ज़ोरों पर है। ग़ौरतलब है कि अगले साल 2022 में पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रपति चुनाव होने हैं; क्योंकि 24 जुलाई, 2022 को रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा हो रहा है। ऐसे में देश में एक नये राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की तलाश के मद्देनज़र सियासी सरगर्मियाँ बढ़ गयी हैं। हालाँकि देश के इस सर्वोच्च पद के लिए अभी तक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुखशरद पवार का नाम ज़्यादा लिया जा रहा है।
कुछ जानकार यह भी कह रहे हैं कि उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू को भी राष्ट्रपति बनाया जा सकता है; क्योंकि अगला राष्ट्रपति एनडीए से ही होगा। कुछ समय पहले मायावती का नाम भी राष्ट्रपति पद को लेकर चर्चा में रहा। राजनीतिक जानकारों ने कहा कि मायावती एक दलित चेहरा हैं और उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरी दुनिया में उनकी अपनी एक अलग पहचान है; साथ ही इन दिनों उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी बसपा भाजपा की बी टीम बनी हुई है। लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में अब फिर नया मोड़ आ गया है। यह मोड़ हाल ही में नई दिल्ली में राकांपा प्रमुख शरद पवार और प्रधानमंत्री मोदी की मुलाक़ात के बाद आया।
इस मुलाक़ात को भले ही राकांपा सामान्य सामान्य शिष्टाचार बता रही हो; लेकिन राजनीतिक जानकारों ने इस मुलाक़ात के अपने-अपने हिसाब से मायने निकालकर कयास लगाने शुरू कर दिये हैं। वहीं विपक्ष के कुछ नेताओं ने इस मुलाक़ात पर सवाल भी उठाये हैं। क्योंकि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का शरद पवार से उनके घर जाकर मिलना। उसी दिन पवार का केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिलना और उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना, सियासी हलचल पैदा करने वाला है।
दरअसल भाजपा जानती है कि विपक्ष की एक मज़बूत कड़ी शरद पवार हैं। अगर उन्हें तोड़ लिया जाए, तो विपक्ष और कमज़ोर होगा। पिछले दिनों लगातार हुई इन मुलाक़ातों का मतलब महाराष्ट्र की शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस की अघाड़ी सरकार से भी जोड़कर निकाला जा रहा है। हालाँकि पवार ने इन अटकलों का खण्डन करते हुए कहा है कि सत्तारूढ़ भाजपा के पास सांसदों की बड़ी संख्या है और नतीजा वह जानते हैं। इसी बीच शरद पवार से प्रशांत किशोर की लगातार मुलाक़ातों के दौर से कयास लगाये जा रहे हैं कि तमाम विपक्षी दल सत्तारूढ़ भाजपा के ख़िलाफ़ नये सियासी समीकरण के मद्देनज़र तीसरे मोर्चे की तैयारी में हैं।
दरअसल मोदी से लेकर ममता तक के चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर की मुलाक़ात पिछले दिनों राहुल और सोनिया गाँधी से हुई थी। इस मुलाक़ात के बाद से इस प्रकार की अटकलें आम हो गयी थीं कि प्रशांत किशोर तमाम विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर भाजपा के ख़िलाफ़ एक सियासी मोर्चे की शुरुआत कर रहे हैं, जो विपक्ष के बीच जमी बर्फ़ को पिघलाने वाली कड़ी का हिस्सा है। प्रशांत किशोर के शरद पवार, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, जगन रेड्डी, एम.के. स्टालिन, उद्धव ठाकरे समेत देश के कई बड़े नेताओं के साथ अच्छे हैं। यूँ तो उनके कांग्रेस (सोनिया-राहुल) से भी बेहतर रिश्ते हैं; लेकिन वह तीसरे मोर्चे को कांग्रेस नेतृत्व के बिना अधूरा समझते हैं।
कुछ जानकार मानते हैं कि प्रशांत किशोर कांग्रेस के बगैर तीसरे या चौथे मोर्चे को भाजपा के ख़िलाफ़ उसे हराने की स्थिति में खड़ा नहीं कर सकते। क्योंकि प्रशांत किशोर कांग्रेस नेतृत्व के बग़ैर भाजपा, ख़ासतौर पर मोदी को चुनौती दे सकेंगे, इस बात का भरोसा उन्हें भी नहीं है।
हालाँकि प्रशांत किशोर इस बात को बख़ूबी समझते हैं कि इन सबको किस प्रकार से एक मंच पर लाने का प्रयास किया जा सकता है। यही वजह है कि प्रशांत किशोर की सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के साथ पाँच साल बाद हुई इस मुलाक़ात को आगामी राष्ट्रपति चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सबसे अहम बात यह सामने आयी है कि विपक्षी दलों की पसन्द के रूप में उसके पास राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर शरद पवार का नाम है।
सम्भवत: उनकी कोशिश है कि राकांपा प्रमुख शरद पवार को अगले राष्ट्रपति के प्रत्याशी के तौर पर विपक्ष का उम्मीदवार बनाया जाए। कुछ सियासी जानकार यह आशंका भी जता रहे हैं कि कहीं महाराष्ट्र में नये राजनीतिक समीकरण के तहत भाजपा-राकांपा साथ तो नहीं आ रहे हैं? क्योंकि भाजपा लगातार प्रयासरत है कि वह किसी प्रकार महाराष्ट्र में शिवसेना या राकांपा से मिलकर अपनी सरकार बनाये। जगज़ाहिर है शुरू से ही भाजपा-शिवसेना का मज़बूत गठबन्धन रहा; लेकिन किन्हीं मतभेदों के कारण शिवसेना ने भाजपा से अपनी राहें जुदा कर लीं। जबकि काफ़ी समय तक भाजपा तथा शिवसेना ने मिलकर सरकार चलायी है और दोनों को एक मज़बूत तथा पारम्परिक रिश्ते के तौर पर देखा जाता है। लेकिन सियासी खटास के मद्देनज़र जिस प्रकार से शिवसेना ने अपनी धुर-विरोधी कांग्रेस और राकांपा के साथ मिलकर सरकार बनायी है, उसमें वह कहीं-न-कहीं असहज महसूस कर रही है। सम्भवत: शिवसेना भी भाजपा से उतनी दूर नहीं हुई है, जितनी कि दिख रही है।
ज़ाहिर है महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबन्धन वाली महाविकास अघाड़ी सरकार में पिछले कुछ दिनों से सब कुछ सामान्य नहीं चल रहा है, तीनों दलों के बीच किसी-न-किसी मुद्दे पर उठापटक चलती रहती है। लेकिन इस त्रिकोणीय सरकार की कडिय़ाँ शरद पवार जोड़कर रखे हुए हैं।
वैसे तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी दोबारा राष्ट्रपति बनने का मौक़ा मोदी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार दे सकती थी; लेकिन उसके ऐसा करने के कोई संकेत फ़िलहाल तो दिखायी नहीं दे रहे हैं। संविधान में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि कोई भी व्यक्ति दो बार राष्ट्रपति नहीं बन सकता। लेकिन भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बाद से पहले ही कार्यकाल के बाद हर राष्ट्रपति की सेवानिवृत्ति एक परम्परा-सी बन गयी है। बहरहाल राकांपा ने महाराष्ट्र से दिल्ली तक सभी तरह के कयासों पर लगाम लगाने की कोशिश तो की है; लेकिन क्या वाक़ई जैसा एनसीपी कह रही है, सब कुछ वैसा ही है? या फिर कुछ अलग राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं? यह समझने के लिए उच्च स्तरीय राजनीतिक गतिविधियों को बारीक़ी से देखना पड़ेगा या कुछ दिन इंतज़ार करना पड़ेगा।
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक है)

 


“कोई सवाल ही नहीं उठता। इस तरह की सारी बातें बेबुनियादी हैं कि प्रशांत किशोर ने मुझसे राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने को लेकर मुलाक़ात की है। मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि प्रशांत किशोर ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए किस प्रकार की रणनीति बनायी है। उनकी (प्रशांत की) मुझसे मुलाक़ात ग़ैर-राजनीतिक थी। उनके-मेरे बीच हुई बैठक के दौरान 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर भी किसी प्रकार की बातचीत नहीं हुई है।”
शरद पवार
राकांपा प्रमुख एवं वरिष्ठ नेता