फिर निकला पेगासस जासूसी का भूत

इजरायल की एक निजी कम्पनी एनएसओ के ‘स्पाइवेयर पेगासस’ का भूत फिर बाहर निकल आया है। यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर काम कर रहे 10 देशों के 17 मीडिया हाउस के 80 से अधिक खोजी पत्रकारों और कई हस्तियों की ‘जासूसी’ किये जाने को लेकर हंगामा बरपा है। भारत में भी विपक्ष के कई राजनेताओं, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, अधिकारियों और एक न्यायाधीश के फोन को स्पाइवेयर के माध्यम से हैक किये जाने की बात सामने आयी है।
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह सॉफ्टवेयर आईफोन और एंड्रॉयड आधारित स्मार्टफोन में आसानी से प्रवेश कर सकता है। महज़ एक मिस कॉल से किसी भी फोन पर स्पाइवेयर को उसमें इंस्टॉल किया जा सकता है। स्पाइवेयर के एक बार इंस्टॉल हो जाने पर सॉफ्टवेयर फोन पर उपलब्ध हर जानकारी प्रदान करता है। जानकारियों में एन्क्रिप्टेड चैट, मैसेज, कॉल, उपयोगकर्ता का स्थान, वीडियो कैमरा और माइक्रोफोन वार्तालाप आदि शामिल हैं।
जून, 2019 में कई पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के फोन हैक करने के लिए एक ही स्पाइवेयर का इस्तेमाल होने के दो साल बाद स्नूपिंग रिपोर्ट जुलाई, 2021 में आयी है। एनएसओ ग्रुप नामक एक इजरायली निजी कम्पनी द्वारा तैयार पेगासस एक आधुनिक निगरानी सॉफ्टवेयर है। यह पहली बार तब प्रमुख ख़बर बना था, जब 2016 में यह आरोप लगाया गया कि इसका इस्तेमाल एक अरब नागरिक मानवाधिकार कार्यकर्ता के फोन को हैक करने के लिए किया गया।
हंगामे और विवाद के बीच सर्वोच्च न्यायालय में तीन याचिकाएँ दायर की गयी हैं। इसमें एक में अदालत की निगरानी में जाँच की माँग की गयी है और यह भी कि जासूसी कराये जाने के लिए किसने भुगतान किया? हालाँकि अब तक सरकार किसी भी तरह की निगरानी से इन्कार करती आ रही है। सरकार की ओर से कहा गया कि इसका कोई आधार नहीं है। वहीं इजरायली कम्पनी का दावा है कि स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर पेगासस आतंकवाद और अपराध की जाँच के लिए केवल सरकारों को बेचा जाता है। सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि क्या पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं आदि की जासूसी की जा रही थी? सरकार को पेगासस के बारे में आरोपों की तह तक जाना चाहिए; क्योंकि दुनिया भर के मीडिया संस्थानों द्वारा इनकी जाँच की गयी है और स्मार्टफोन के तकनीकी विश्लेषण से स्पाइवेयर की मौज़ूदगी की पुष्टि हो चुकी है।
सरकार को इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि क्या उसने स्पाइवेयर ख़रीदा था? और उसका इस्तेमाल किया था या नहीं? सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री का बयान ज़्यादा विश्वास नहीं दिलाता; क्योंकि उनकी ओर से यह कहा जाना कि ‘यह कोई संयोग नहीं था’; कोई मामूली बात नहीं है। संसद सत्र शुरू होने से एक दिन पहले यह ख़बर सामने आयी। मंत्री ने चुटकी लेते हुए कहा कि ऐसी सेवाएँ किसी के लिए भी खुले तौर पर उपलब्ध हैं और यह सुझाव देने के लिए कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है कि विवरण (डाटा) का उपयोग किसी भी तरह निगरानी के लिए किया गया है। जनता में भरोसे की बहाली को आरोपों की सच्चाई जानने के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच कराना सरकार पर निर्भर है।
विडम्बना यह है कि सरकारी और निजी कम्पनियों द्वारा डाटा के उपयोग को विनियमित करने के लिए दिसंबर, 2019 में संसद में पेश किये गये व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक पर ध्यान नहीं दिया गया है। 30 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति को इसकी रिपोर्ट जमा करने के लिए लगातार पाँचवीं बार विस्तार दिया जा चुका है। चरणजीत आहुजा