राष्ट्रपति चुनाव की चुनौती

विपक्ष की संख्या से आगे जाने की कोशिश में भाजपा

पाँच में से चार राज्यों में विधानसभा के चुनाव जीतने के बाद भाजपा ने अब राष्ट्रपति चुनाव पर नज़र गड़ा दी है। उसके पास आज की तारीख़ में 9,194 वोट-वैल्यू (मत-मूल्य) की कमी है, जिसे वह दूसरे दलों से जुटाने की कोशिश कर रही है; जबकि विपक्ष उसे कड़ी चुनौती देने के लिए मैदान में उतरना चाहता है। हालाँकि एकजुटता की कमी से ऐसा करना विपक्ष के लिए आसान काम नहीं होगा।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को ख़त्म हो रहा है और भाजपा में अभी से पार्टी उम्मीदवार को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है। भाजपा के लिए राष्ट्रपति का चुनाव निश्चित ही इज़्ज़त का सवाल है।

चर्चा है कि भाजपा देश में विधानसभा के सबसे ज़्यादा वोट-वैल्यू वाले राज्य उत्तर प्रदेश में विपक्ष के एक घटक दल के अलावा वाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल से भी सहयोग की कोशिश कर रही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास 273 विधायक हैं। इसका महत्त्व इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में आबादी के सापेक्ष प्रति विधायक वोट-वैल्यू 208 है, जो देश की किसी के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा है। हाल में जो चुनाव हुए हैं, उनमें उत्तर प्रदेश विधानसभा के वोटों की कुल वैल्यू 83,824, पंजाब की 13,572, उत्तराखण्ड की 4,480, गोवा की 800 और मणिपुर की 1,080 है। इनमें से चार (उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर) राज्य भाजपा ने जीते हैं। हालाँकि पिछली बार के मुक़ाबले उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में उसकी सीटें घटी हैं। इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा को 57 सीटों का नुक़सान हुआ है, तो उत्तराखण्ड में भी नौ सीटें कम हुई हैं।

विपक्ष की तरफ़ से हाल में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा को चुनौती दी थी कि विपक्ष उसे कड़ी टक्कर देगा। उन्होंने यह भी कहा था कि विपक्ष के पास भाजपा गठबंधन के मुक़ाबले ज़्यादा वोट हैं। हालाँकि विपक्ष में जैसा बिखराव है, उससे भाजपा की राह आसान लगती है। लेकिन यदि विपक्ष ठान लेता है कि भाजपा को मात देनी है, तो भाजपा के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है; क्योंकि बीजू जनता दल (बीजद) जैसे दलों ने हाल के महीनों में भाजपा से कुछ दूरी बनायी है।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए लोकसभा, राज्यसभा और राज्यों की विधानसभाओं के मिलाकर कुल 10,92,639 वोट हैं, जिसमें जीत के लिए 5,46,000 वोट चाहिए। एनडीए के पास वर्तमान में 5,36,467 वोट हैं। इस तरह उसके पास 10,000 से कुछ वोट कम हैं। हालाँकि मार्च के आख़िर में भी राज्यसभा के चुनाव होने हैं, जिसके बाद संख्या ऊपर-नीचे होगी। आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब में बनने के बाद उसके राज्यसभा सदस्यों की संख्या बढ़ जाएगी। कुछ और सीटों के लिए भी चुनाव हैं, जिनमें भाजपा की संख्या भी बढ़ेगी। हालाँकि उसे फिर भी वोटों की ज़रूरत रहेगी।

भाजपा का प्रबंधन मज़बूत

हाल के वर्षों का रिकॉर्ड देखें, तो भाजपा का प्रबंधन विपक्ष से कहीं बेहतर दिखा है। चाहे राज्यसभा के चुनाव का मसला हो या राज्यसभा में बहुमत के अभाव में बिलों को पास कराने की बात, भाजपा ने कभी मात नहीं खायी है। सिर्फ़ एक बार ऐसा हुआ था, जब गुजरात के राज्यसभा चुनाव में उसे दिवंगत अहमद पटेल की रणनीति के आगे हार माननी पड़ी थी। ऐसे में भाजपा को बहुमत के लिए और वोटों की ज़रूरत होते हुए भी विपक्ष उसे राष्ट्रपति चुनाव में मात देने के प्रति सन्देह में है। इसका कारण भाजपा का मज़बूत प्रबंधन है। उसने अभी से एनडीए से बाहर कुछ दलों को अभी से साधना शुरू कर दिया है। जबकि विपक्ष में अभी राष्ट्रपति चुनाव के लिए यही पता नहीं है कि क्या उसका कोई साझा उम्मीदवार होगा? होगा भी, तो कौन? ममता को छोडक़र किसी अन्य विपक्षी नेता ने राष्ट्रपति चुनाव की बात नहीं की है।

भाजपा शासित उत्तर प्रदेश की आबादी सबसे अधिक होने के चलते इसके एक विधायक की सर्वाधिक वोट-वैल्यू 208 है। इस तरह से 403 विधायकों की कुल वोट वैल्यू 83,824 है। वहीं 80 लोकसभा सदस्य और 30 राज्यसभा सदस्य हैं। एक सांसद की वोट-वैल्यू 708 है। इस तरह से सांसदों की कुल वोट-वैल्यू 77, 880 है। ज़ाहिर है भाजपा का पलड़ा यहाँ भारी है।

उत्तर प्रदेश में विपक्षी सपा गठबंधन की बात करें, तो समाजवादी पार्टी के पास 111 विधायक हैं। सपा के कुल विधायकों की वोट-वैल्यू 23,088 है।

इसी गठबंधन के एक अन्य दल रालोद के पास आठ विधायक हैं, तो उनकी वैल्यू 1,664 हो जाती है। यह चर्चा रही है कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए भाजपा रालोद पर डोरे डाल सकती है। इस गठबंधन के सुभासपा के पास छ: विधायक हैं, जिनकी वोट-वैल्यू 1,248 होती है। राज्य में बसपा के 10 सांसद हैं, जिनकी वोट-वैल्यू 7,080 है। इसके अलावा सपा के पाँच सांसदों की वोट-वैल्यू 3,540 है। इसके अलावा बसपा के पास राज्य में मात्र एक विधायक है, तो उसके विधायक की वोट-वैल्यू 208 है। वहीं कांग्रेस के दो विधायकों की वोट-वैल्यू 416 और राजा भैया के जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी के दो विधायकों की वोट-वैल्यू भी 416 है। उसका एक सांसद भी है, जिसकी वोट-वैल्यू 708 है।

बता दें कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए सांसदों और विधायकों के लिए वोट-वैल्यू 1971 की जनगणना के आधार तय किया गया है। हर राज्य के विधायक का वोट-वैल्यू वहाँ की जनसंख्या के चलते अलग-अलग होता है। जबकि प्रत्येक लोकसभा और राज्यसभा सदस्यों का वोट-वैल्यू 708 निर्धारित है।

चुनाव की प्रक्रिया

देश का कोई भी नागरिक, जिसकी उम्र 35 साल या इससे अधिक है, राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकता है। उम्मीदवार को राज्य या केंद्र सरकार के तहत किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए। राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रक्रिया के तहत होता है। चुनाव करने के लिए एक निर्वाचक मंडल होता है। संविधान के अनुच्छेद-54 में इसके बारे में बताया गया है। राष्ट्रपति चुनाव में जनता सीधे तौर पर चुनाव में शामिल नहीं होती।

जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों (सांसद और विधायक) राष्ट्रपति चुनने के लिए वोट डालते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में सभी राज्यों के विधायक, लोकसभा सदस्य और राज्यसभा सदस्य वोट डालते हैं। राष्ट्रपति द्वारा संसद में नामित (मनोनीत) सदस्य वोट नहीं डाल सकते। विधान परिषद् के सदस्य भी राष्ट्रपति चुनाव में वोट नहीं डाल सकते, क्योंकि वे जनता द्वारा चुने हुए नहीं होते। चुनाव के लिए ख़ास तरीक़े से वोटिंग होती है, जिसे एकल संक्रमणीय मत व्यवस्था (सिंगल ट्रांसफेरेबल वोट सिस्टम) कहते हैं।

इस प्रक्रिया में वोट देने के साथ ही वोटर अपनी प्राथमिकता भी तय कर देते हैं। मतलब वोट देने वाले सदस्य वोट देते वक़्त बैलेट पेपर पर अपनी पसन्द क्रमानुसार लिख देते हैं। यदि उनकी पहली पसन्द वाले वोटों से विजेता का फ़ैसला नहीं हो पाता है, तो उनकी दूसरी पसन्द वाले उम्मीदवार को एकल मत (सिंगल वोट) की तरह मान लिया जाता है।

 

कौन हो सकता है उम्मीदवार?

चर्चा है कि क्या एनडीए रामनाथ कोविंद को फिर से राष्ट्रपति के पद के लिए उम्मीदवार बनाएगा? भाजपा इसे लेकर अपने सहयोगी दलों के साथ विचार करके आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी। कोविंद के अलावा पार्टी उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का नाम भी चर्चा में है। भाजपा के हलक़ों में यह भी चर्चा है कि किसी महिला को उम्मीदवार बनाया जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी की टीम की पसन्द देखें, तो उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल और केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के नाम सामने आ सकते हैं। हाँ, पटेल के नाम पर यह दिक़क़त हो सकती है कि वह भी प्रधानमंत्री और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात से हैं। लेकिन महिला के नाम पर विपक्ष में भी सर्वसम्मति बन सकती है। कांग्रेस अपना उम्मीदवार देने के लिए जोर डाल सकती है। जहाँ तक विपक्ष की बात है, उसके ख़ेमे से शरद पवार, नीतीश कुमार जैसे नेता का नाम उभर सकता है। विपक्षी दलों में टीएमसी, डीएमके, शिवसेना, टीआरएस उम्मीदवार खड़ा करने में अहम रोल निभा सकते हैं।