भंवरी देवी सेक्स कांड के चलते राजस्थान की राजनीति में एक तरफ खलबली है तो दूसरी ओर सन्नाटा. इस कांड ने जहां सत्तारूढ़ कांग्रेस में सिरे तक पसरी अंदरूनी राजनीति को खुलकर मैदान में ला दिया है वहीं भाजपा को चुपचाप नए सिरे से जातीय समीकरण बनाने का मौका भी दे दिया है. अलग-अलग गुट और पार्टियां अपने-अपने समीकरणों के हिसाब से इस प्रकरण से या तो पल्ला झाड़ने में लगी हैं या अपने हित साधने में, लेकिन राजनीति के इस भंवर में भंवरी की खोज-खबर लेने वाला कहीं कोई नहीं.
सभी मंत्रियों के इस्तीफे के बाद राजस्थान कैबिनेट का पुनर्गठन हो चुका है, लेकिन लगता नहीं कि इस कवायद से मौजूदा सियासी तूफान की भयंकरता पर कोई खास फर्क पड़ने वाला है. राजस्थान हाई कोर्ट सीबीआई को फटकारते हुए कह चुका है कि जांच एजेंसी इस मामले का हाल आरुषि मर्डर केस जैसा न करे. अदालत ने सीबीआई से यह भी कहा है कि 24 नवंबर को वह फिर से खाली हाथ नहीं बल्कि कुछ नतीजे लेकर आए.
सीबीआई की पूछताछ में मदेरणा के भंवरी से नजदीकी रिश्तों की बात मान लेने के बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ चंद्रभान ने उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित करने में थोड़ी भी देर नहीं की. इस निलंबन के साथ ही मदेरणा परिवार का करीब पांच दशक पुराना साम्राज्य हिल गया. महीपाल मदेरणा दिग्गज जाट नेता परसराम मदेरणा के पुत्र हैं. उन्होंने लंबे समय से अपनी पिता की राजनीतिक विरासत संभाल रखी थी. साठ के दशक से मारवाड़ की राजनीति में सक्रिय परसराम मदेरणा का जाट समाज पर बड़ा दबदबा माना जाता है. माना यह भी जाता है कि राज्य की राजनीति को प्रभावित करने वाले जाट समाज का एक बड़ा तबका मदेरणा परिवार के चलते कांग्रेस से संबंध रखता है. यह संबंध अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए चुनौती बन सकता है.
इन दिनों गहलोत अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े संकट से जूझते हुए दिख रहे हैं. गोपालगढ़ की घटना से नाखुश हाईकमान भंवरी प्रकरण को सही तरीके से नहीं निपटा पाने के चलते गहलोत के सामने ही उनका विकल्प तलाशने की मंशा जाहिर कर चुका है. गहलोत की दूसरी मुश्किल यह है कि भंवरी प्रकरण में उजागर सभी नेताओं के संबंध कांग्रेस से है. सीबीआई ने अब तक की जांच में पूर्व मंत्री महीपाल मदेरणा के अलावा कांग्रेस के दो बड़े नेताओं–लूणी से विधायक मलखान सिंह बिश्नोई और पाली से सांसद बद्रीप्रसाद जाखड़-के अलावा मलखान की बहन इंद्रा बिश्नोई को भी शामिल किया है. इन नेताओं के एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप से भी सरकार की छवि खराब हो रही है.
हालांकि पार्टी के भीतर का एक तबका गहलोत पर आए इस संकट को उनके लिए एक और राजनीतिक संभावना बता रहा है. गहलोत के करीबियों की माने तो गहलोत के पास बड़े से बड़े संकट को अपने लिए एक अच्छे अवसर में बदलने का हुनर है. इसी हुनर के चलते उन्होंने कांग्रेस के भीतर एक के बाद एक दर्जनों जाट नेताओं की छुट्टी कर दी है. 1998 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष परसराम मदेरणा को मुख्यमंत्री का प्रबल दावेदार माना जा रहा था. मगर वाया 10 जनपथ अशोक गहलोत यहां पहले पहुंच गए. उस समय पार्टी के भीतर परसराम मदेरणा अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने मुख्यमंत्री के लिए गहलोत की ताजपोशी का सरेआम विरोध किया था. 2008 में जब पार्टी ने गहलोत को एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनाना तय किया तो कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह की मौजूदगी में महीपाल मदेरणा ने दरवाजे पर लात मारी और सभा से बाहर निकल गए. आज मदेरणा कांग्रेस से भी बाहर हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक गहलोत मदेरणा की बलि का बोझ अपने कंधों पर उठाकर नहीं घूमना चाहते थे. इसलिए जाटों की नाराजगी से बचने के लिए उन्होंने सबसे पहले मीडिया के दबाव को महसूस किया, हाई कोर्ट की फटकार को सिर-माथे पर लिया और अंततः हाईकमान के निर्देशों का बाकायदा पालन करते हुए मदेरणा को ठिकाने लगा दिया.
मगर मदेरणा की बलि से जाटों को नाराज होना ही था. बीते दिनों पुष्कर के जाट सम्मेलन में गहलोत को जाट विरोधी बताया गया. इस मौके पर अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष राधेश्याम ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री ने मदेरणा पर जाट नेता होने के चलते कार्रवाई की है. जाहिर है कांग्रेस पर दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में जाटों की नाराजगी झेलने का खतरा बढ़ चुका है. तकरीबन 11 से 14 प्रतिशत वोट बैंक का दावा करने वाले जाट विधानसभा की 200 सीटों में 30 पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
भाजपा की कमान संभाले वसुंधरा को यह हिसाब सीधा समझ आता है. बताया जाता है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी को और करीब खींचने के लिए उन्होंने जाटों को अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया है. यही वजह है कि भंवरी प्रकरण को लेकर वह मदेरणा के खिलाफ ऐसा कोई बयान नहीं देना चाहतीं जिससे जाट राजनीति उनके विरुद्ध हो जाए. उनके सिपहसालार दिगंबर सिंह ने तो मदेरणा का बचाव करते हुए यहां तक कह दिया, ‘किसान का बेटा आगे बढ़ रहा है तो कांग्रेस में कुछ लोगों को जलन होती है. इसीलिए यह सब हो रहा है.’
वसुंधरा के बारे में कहा जाता है कि वे कांग्रेस में गहलोत विरोधी गुटों से संपर्क बनाने में देर नहीं लगातीं. इसी कड़ी में इन दिनों मदेरणा परिवार भी वसुंधरा के संपर्क में है. पांच अक्टूबर को परसराम मदेरणा के जन्मदिन के मौके पर दिगंबर सिंह ने महीपाल मदेरणा से मुलाकात की थी. माना जा रहा है कि वसुंधरा के सिपहसालार और गहलोत के पूर्व मंत्री की यह मुलाकात आने वाले समय में राजस्थान की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकती है.
दूसरी तरफ भंवरी कांड के बहाने एक-दूसरे को ठिकाने लगाने की राजनीतिक उठापटक में भंवरी के अपहरण से जुड़ा सवाल पीछे छूटता जा रहा है. भंवरी के चरित्र का जिस ढंग से सार्वजनिक चित्रण हुआ है उसके बाद से भंवरी एक खलनायिका की तरह सामने आई है. अभी तक सामने आई आॅडियो क्लिपिंग से पता चलता है कि भंवरी अपने रिश्तों की सीडी के बदले मदेरणा से पैसा चाहती थी. भंवरी के बारे में कहा जा रहा है कि वह ब्लैकमेलिंग कर रही थी. राजस्थान विश्वविद्यालय के प्रो. राजीव गुप्ता कहते हैं, ‘किसी महिला के जरिए जब आप अपने अवसरों का फायदा उठाते हैं तो यह क्यों सोचते हैं कि ऐसा फायदा केवल एकतरफा रह जाएगा. आप सामने वाले की महत्वाकांक्षाओं को भी तो आगे बढ़ाते हैं. एक स्तर पर सामने वाला पक्ष भी आपके जरिए फायदा उठाना चाहेगा. धीरे-धीरे ऐसे रिश्ते विनिमयमूलक हो जाते हैं. आप ऐसे रिश्ते को दोतरफा नहीं बनाना चाहते मगर सामने वाला पक्ष इसके लिए तैयार नहीं तब आप उसे ब्लैकमेलिंग का नाम देते हैं.’ कम्युनिस्ट नेता श्रीलता स्वामीनाथन के मुताबिक जिन महिलाओं के साथ बहुत ज्यादा यौन शोषण किया जाता है उनमें से कुछ महिलाएं ऐसा भी सोचने लगती हैं कि क्यों न हम भी दूसरे का इस्तेमाल करें.
भंवरी कांड का एक अहम पहलू पंचायती राज से जुड़ी महिलाओं पर राजनीतिक दबाव डालकर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मजबूर बनाने से भी जुड़ा है. अखिल भारतीय अनुसूचित जाति-जनजाति परिसंघ के महासचिव विसराम मीणा बताते हैं, ‘अक्सर कुछ महिलाओं को जान-बूझकर दूर-दराज के इलाके में स्थानांतरित करने के बाद जन प्रतिनिधियों द्वारा उन्हें समझौते को मजबूर किया जाता है. एक बार चक्रव्यूह में फंसी ऐसी महिला के लिए उससे निकलना आसान नहीं होता.’
राज्य में शासकीय कर्मचारियों को अपने स्थानांतरण के लिए विधायक से लेटरपैड पर टीप लिखवाना जरूरी है. यह टीप लिखना विधायक की इच्छा पर निर्भर करता है. जोधपुर में अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारियों के नेता मूलाराम के मुताबिक पंचायती राज से जुड़ी महिलाओं के यौन शोषण की शुरुआत भी विधायक की इसी इच्छा से जुड़ी होती है. भंवरी मदेरणा की पहली मुलाकात भी भंवरी के जैसलमेर से बोरूंदा स्थानांतरण के सिलसिले में हुई थी. यहीं से भंवरी बड़े राजनेताओं के भंवर में पड़ गई और उसके बाद नेताओं ने ही उसे विधायक और जिला परिषद सदस्य के टिकट जैसे प्रलोभन देकर उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को बढ़ा दिया था.
भंवरी के बारे में प्रचारित किया जा रहा है कि वह नट जाति से है, जिसका नाचना, तमाशा दिखाना और मनोरजंन करना पेशा रहा है. समाज का एक बड़ा तबका मानता है कि नट जाति का इतिहास ही यही रहा है. महीपाल मदेरणा की पत्नी तथा राजस्थान राज्य सहकारी बैंक की अध्यक्ष लीला मदेरणा की भी यही दलील है, ‘यह सब तो राजा-रजवाड़ों के जमाने से ही होता आया है. ‘जाति की राजनीति से जुड़े कई जानकारों की राय में भंवरी का पक्ष कमजोर बनाने के लिए उसकी जाति पर निशाना साधा जा रहा है. अगर भंवरी नट जाति से भी है तो राजनेताओं ने तो उसकी जाति का ही फायदा उठाया और अपनी निजी जरूरतों को पूरा करने के लिए उसका इस्तेमाल किया. मूलाराम कहते हैं, ‘संविधान में किसी भी नागरिक की जातीय आधार पर पहचान नहीं की जा सकती. मगर राजस्थान के भीतर नट जाति के सरकारी कर्मचारियों की संख्या ही 15 से 20 है, लिहाजा सरकारी गलियारों में भंवरी की आवाज दबकर रह गई है.’
भंवरी के बारे में यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि गरीब पृष्ठभूमि की होने के बावजूद वह करोड़ों की कमाई करके शान की जिंदगी जी रही थी. इस पर भंवरी के परिवार से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता चकराराम कहते हैं, ‘भंवरी की करोड़ों की संपत्ति को टीवी पर देख- देखकर तो हम सब भी हैरान हैं. इस तरह की खबरें आम आदमी के मन में कौतूहल तो पैदा करती हैं लेकिन सही स्थिति सामने नहीं लातीं.’ चकराराम के मुताबिक भंवरी की संपत्ति बढ़ा-चढ़ाकर बताई जा रही है. उनके मुताबिक भंवरी के बोरूंदा स्थित जिस आलीशान मकान की चर्चा दूर-दूर तक फैली है उसकी वास्तविक कीमत पांच से सात लाख रु आंकी गई है. भंवरी की एक बेटी अश्विनी के बारे में भी यह चर्चा है कि वह जयपुर के सबसे महंगे स्कूलों में से एक में पढ़ती है. पर हकीकत यह है कि वह एक सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय में 10वीं की छात्रा है.