राजनीतिक विरासत फिल्मी ख्वाब

अपने समय के प्रभावशाली नेता की राजनीतिक यात्रा का केंद्र रहा उनका घर और दफ्तर कैसे एक नवोदित अभिनेता के फिल्मी सपने का आशियाना लगने लगता है, यह जानने के लिए आपको इन दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान के दिल्ली स्थित घर 12 जनपथ जरूर जाना चाहिए. लोक जनशक्ति पार्टी का दफ्तर और रामविलास पासवान का यह घर वादे करते राजनीतिक पोस्टरों की जगह चिराग पासवान की पहली फिल्म ‘मिले न मिले हम’ के आदमकद रंगीन पोस्टरों से पटा पड़ा मिलेगा. घर के अंदर पिता राम विलास पासवान और बेटा चिराग पासवान फिल्म को प्रमोट करने के लिए लोगों से मिल रहे हैं, नेताओं को फिल्म दिखा रहे हैं और मीडिया को इंटरव्यू देने में व्यस्त हैं.

28 वर्षीय चिराग पासवान राजनीतिक परिवार से फिल्मों का रुख करने वाले स्टारों में नया नाम है. यह वक्त पर छोड़ते हैं कि रितेश देशमुख और अरुणोदय सिंह जैसे राजनीतिक परिवारों से आए अभिनेताओं की लीग का यह नया चेहरा देश का बड़ा स्टार बनेगा या बाकी अभिनेताओं की तरह मल्टी-स्टारर फिल्मों का हिस्सा बन कर रह जाएगा. लेकिन पहली फिल्म होने के बावजूद चिराग मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींचने में कामयाब तो हो ही गए हैं. मुंबई के जेमिनी थियेटर में फिल्म के टिकट बेचने से लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को फिल्म की सीडी भेंट करने तक को मीडिया ने अच्छी-खासी कवरेज दी. उनकी कत्थई आंखों को लेकर भी मीडिया काफी कुछ लिख चुका है. उनके पिता रामविलास पासवान जो प्रोमोशन के दौरान चिराग के साथ साये की तरह रहे, बताते हैं, ‘मुझसे एक लड़की ने कहा कि हमारी दादी हमें बताती थी कि जब देव आनंद जवान थे तो बिहार में कहा जाता था कि उनके काले कपड़े पहनने पर बैन लगा देना चाहिए क्योंकि लड़कियां सिर्फ उनकी एक झलक पाने भर से मर सकती हैं! मुझे लगता है उसी तरह कुछ दिनों बाद चिराग की आंखों पर भी बैन लगा दिया जाएगा!’

मैं चाहता हूं मुझे एक वर्सेटाइल ऐक्टर के तौर पर जाना जाए न कि एक ही तरह की भूमिका करने वाले स्टार के तौर पर

हो सकता है यह तारीफ आपको अतिशयोक्ति लगे क्योंकि बीते चार नवंबर को रिलीज हुई चिराग पासवान की इस फिल्म को ज्यादातर समीक्षकों ने नकार दिया है, काफी कम लोगों ने देखा है और ट्रेड एनालिस्टों ने कारोबार नहीं करने की वजह से फ्लॉप घोषित किया है. मगर पहली फिल्म को लेकर पिता-पुत्र का उत्साह देखते ही बनता है. फिल्म के रिलीज होने के बाद आ रही प्रतिक्रियाओं पर चिराग का कहना था, ‘मैं तो बहुत खुश और संतुष्ट हूं. हमारे टारगेटिड एरिया जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान से काफी अच्छा रिस्पांस आ रहा है. मैं शुरू से ही स्पष्ट था कि यही हमारे मुख्य टारगेटिड एरिया रहेंगे. इसके अलावा, दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों से मिलने वाली प्रतिक्रियाएं मेरे लिए बोनस हैं.’ फिल्म की रिलीज के पहले चिराग द्वारा किए गए सिटी टूर में भी इन्हीं शहरों को ज्यादा अहमियत दी गई थी. चिराग की इस फिल्म में उनसे ज्यादा भागदौड़ करने वाले रामविलास पासवान मुस्कुरा कर कहते हैं, ‘रिलीज के बाद हम काफी रिलैक्स हैं. हमारे लोगों तक को टिकट नहीं मिल रहा है. सबसे बड़ी बात है कि फिल्म में चिराग की एेक्टिंग बहुत पावरफुल है बाकी लोगों की भी अच्छी है, लेकिन हीरो के तौर पर चिराग ने बहुत अच्छा काम किया है.’ नेता का बेटा अभिनेता बने और राजनीति न हो तो कुछ कमी-सी लगती है. कमी पूरा करते हुए पासवान शिकायत करते हैं, ‘लेकिन बिहार में इन लोगों ने थोड़ी बदमाशी की. वहां का जो डिस्ट्रिब्यूटर है वह नीतीश कुमार की पार्टी का है. उसने पहले तो प्रोडक्शन वालों को भरोसा दिलाया था कि वह सारे थियेटरों में फिल्म रिलीज करेगा. मगर रिलीज के वक्त उसने दूसरी फिल्मों को इन थियेटरों में लगवा दिया. यह बात जब प्रोडक्शन हाउस वालों को पता चली तब जाकर बचे हुए 12-13 थियेटरों में फिल्म रिलीज करवाई गई.’

पासवान परिवार के पारिवारिक मित्र रहे छोटे पर्दे के अभिनेता अनुज सक्सेना ने चिराग पासवान की इस लांचिंग फिल्म को प्रोड्यूस किया है. चिराग के अनुसार वे हमेशा से फिल्मों में आना चाहते थे और अनुज यह बात जानते थे. चिराग बताते हैं, ’इससे पहले कि मैं मुंबई शिफ्ट होकर अपना स्ट्रगल शुरू करता, प्रोडक्शन हाउस के चक्कर लगाता, उससे पहले ही अनुज ने मुझे 2007 में ‘मिले न मिले हम’ का आॅफर दे दिया.’ दिल्ली के एयरफोर्स स्कूल से पढ़े और दिल्ली से ही कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग करने के बाद चिराग ने बिजनेस में हाथ आजमाया. जयपुर में वेनम (venom) नाम का लाउंज चला रहे चिराग साथ ही राजस्थान में कंस्ट्रक्शन बिजनेस में भी उतर रहे हैं. फिल्म के लिए की गई अपनी तैयारी के बारे में वे बताते हैं, ‘टेनिस प्लेयर की मेरी भूमिका के लिए मैंने आठ महीने तक ट्रेनिंग ली थी. दिन में छह-आठ घंटे तक प्रैक्टिस की. साथ ही फिल्म का किरदार एक ऐसे परिवार से आया है जहां माता-पिता अलग हो चुके हैं और परिवार बिखरा हुआ है, जबकि मैं एक ऐसे परिवार से आता हूं जहां हम सब एक-दूसरे के काफी करीब हैं और साथ रहते हैं. इसलिए इस किरदार को जानने के लिए मैं ऐसे दोस्तों और लोगों से मिला जो टूटे परिवार से आते हैं.’ अभिनय की अपनी महत्वाकांक्षा के बारे में सपना बुनते हुए वे कहते हैं, ‘मुझे हर तरह का सिनेमा पसंद है. भले ही वह मधुर भंडारकर का हो, अनुराग कश्यप का हो, या फिर यशराज और धर्मा का. मैं यही चाहता हूं कि मुझे एक वर्सेटाइल एेक्टर के तौर पर जाना जाए न कि एक ही तरह की भूमिका करने वाले स्टार के तौर पर.’

वहीं दूसरी ओर फिल्म विवादों के साथ भी रही. मीडिया गपशप के अनुसार कंगना रानाउत को फिल्म करने के लिए पांच करोड़ जैसी बड़ी राशि दी गई थी. यह सवाल करने पर चिराग राजनीतिक गियर डालते हुए कहते हैं, ‘एमाउंट वाली बात तो प्रोडक्शन हाउस ही बता सकते हंै, लेकिन मैं और कंगना काफी अच्छे दोस्त हैं और पूरी फिल्म में उन्होंने मुझे सपोर्ट किया है.’

फिल्मी सपने बुनने वाले चिराग पासवान को एक तबका ‘पहला दलित स्टार’ भी मान रहा है. लोगों का मानना है कि फिल्म इंडस्ट्री में दलित अभिनेता तो फिर भी हुए हैं लेकिन चिराग पहले दलित स्टार हंै. लेकिन रामविलास पासवान और चिराग इस तमगे को लेकर खासे सावधान हंै. चिराग इसे लोगों की सोच कहकर खारिज करते हुए कहते हैं, ’मैं जात-पात और इन जैसी चीजों पर ज्यादा विश्वास नहीं करता. न मैं इस टाइटल के भरोसे यहां आया हूं और न ही मैं ऐसा सोचता हूं. आखिर में हर चीज आपके टैलेंट पर निर्भर करती है. अगर आपमें कािबलियत है तो आप आगे जाओगे भले ही आप दलित वर्ग से हो या किसी दूसरे वर्ग से.’ ज्यादा कुरेदने पर कहते हैं, ‘अगर दलित मुझे एक रोल मॉडल की तरह मान रहे हैं और अगर उन्हें लगता है कि मुझसे प्रेरित होकर वे भी इस इंडस्ट्री में नाम कमा सकते हैं तो यह मेरे लिए गर्व की बात है.’ वही रामविलास पासवान चिराग के पहले दलित स्टार होने के सवाल पर कहते हैं, ‘हां, एक तबका है जो चिराग को पहले दलित स्टार की तरह देखता है लेकिन हमने तो इस तरफ कभी गौर नहीं किया था. लेकिन यह बात भी सही है कि अभी तक दलित वर्ग से कोई स्टार नहीं हुआ है. शायद इसलिए कि यह नया फील्ड है, कोई रिजर्वेशन नहीं है और आपको खुद बहुत संघर्ष करना पड़ता है. यहां जाति काम नहीं आती, प्रतिभा काम आती है.’ फिल्मों में दलित पात्र के नाम पर राम विलास पासवान को विमल राय की सुजाता याद है और चाची 420 जिसमें हीरो का नाम पासवान था. वे इस बात पर जोर देते हैं कि मुख्यधारा की फिल्मों में दलित हीरो देखने को नहीं मिलता. लेकिन सवाल करने पर कि क्या वे चाहेंगे कि चिराग मौका मिलने पर दलित हीरो का किरदार निभाए, वे सवाल टाल जाते हैं और सोशल जस्टिस का कोई पाठ सुनाने लगते हैं! आप आश्चर्य कर सकते हैं कि अपनी पूरी राजनीति दलित-केंद्रित करने वाला यह शख्स क्यों चिराग के दलित स्टार की छवि को हिचक के साथ स्वीकार करता है. शायद अपने बेटे को लेकर कोई राजनीति नहीं करना चाहेगा.

फिल्मों के अलावा चिराग पिता की राजनीतिक रैलियों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और पार्टी के मसलों में भी दखल रखते हैं. सक्रिय राजनीति में आने की अटकलों पर वे कहते हैं, ’मैं सक्रिय राजनीति में जरूर आऊंगा लेकिन 10-15 साल बाद क्योंकि राजनीति मेरी रगों में दौड़ती है. तब मैं राजनीति और फिल्में दोनों करूंगा. लेकिन अभी मैं सिर्फ फिल्मों पर ध्यान देना चाहता हूं और पिता जी की रैलियों में उनकी मदद करना चाहूंगा.’  वहीं रामविलास पासवान को इस बात की चिंता नहीं है कि आज की ज्यादातर पार्टियां जहां अपनी अगली पीढ़ी को सक्रिय राजनीति में उतार चुकी हैं वहीं चिराग फिल्मों को ही अपना करियर बनाना चाहते हैं. वे कहते हैं, ‘देखिए, हम बेसिकली कोई पालिटिकल आदमी नहीं हैं. राजनीति धंधा नहीं है हमारा, कमिटमेंट है. वैसे भी 10-15 साल बाद चिराग राजनीति में आएगा ही, तब फिल्मों में बनी अच्छी छवि उसके काम ही आएगी.’
हिंदुस्तान में शायद ही कोई ऐसा अभिनेता हो जो नेता भी अच्छा हो, और नेता तो एक भी नहीं है जो परदे पर अच्छा अभिनेता हो. इस ऐतिहासिक तथ्य के साथ, देखते हैं चिराग पासवान कितनी दूरी तक का सफर तय कर पाते हैं.