कार्यकारी अध्यक्ष के सहारे चल रही कांग्रेस में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हारने के बाद इन राज्यों के अध्यक्षों के इस्तीफे हो गए हैं। सोनिया गांधी ने ही मंगलवार को को उन्हें इस्तीफे देने के लिए कहा था। जाहिर है इसके बाद वहां तदर्थ आधार पर अध्यक्ष मनोनीत किये जाएंगे क्योंकि सितंबर में संगठन चुनाव में राष्ट्रीय से लेकर राज्यों तक में अध्यक्ष चुने जाने हैं। उत्तर प्रदेश में राज्य अध्यक्ष अजय लल्लू ने भी हार की जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है, लिहाजा देखना है कि राज्य की प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी अब किस रोल में दिखती हैं।
संगठन में इन इस्तीफों से शायद ही कोई सक्रियता आये क्योंकि ज्यादातर राज्यों में पार्टी नेताओं में इस कदर लड़ाई है कि वे एक दूसरे से नतीजे आने के बाद भी लड़ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने चुनाव से पहले राज्यों के नेताओं को आपसी कलह से बचने की सलाह दी थी जिसे कमोवेश किसी ने नहीं माना और नतीजों से जाहिर हो गया कि चुनाव में नेताओं ने एकजुटता से काम नहीं किया।
उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, उत्तराखंड के अध्यक्ष गणेश गोंडियाल, मणिपुर के अध्यक्ष नामेराकपन लोकेन सिंह, पंजाब के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और गोवा के अध्यक्ष गिरीश चोडणकर से सोनिया गांधी ने इस्तीफा माँगा था। इन सभी के इस्तीफों के बाद पार्टी में अब नए अध्यक्ष मनोनीत किये जाएंगे।
उत्तर प्रदेश पर सबकी निगाह है क्योंकि बतौर प्रभारी महासचिव प्रियंका गांधी ने हार के बाद अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में डटे रहने की तैयारी कर ली है और उनके भविष्य के लिए कार्यक्रमों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
प्रियंका यूपी में इसी महीने से सक्रिय हो जाएंगी। यूपी के कुछ नेता चाहते हैं कि राज्य कांग्रेस के कमान प्रियंका गांधी को सौंप दी जाये क्योंकि इससे पार्टी संगठन में गति आएगी। हालांकि, जिस तरह प्रियंका गांधी का बतौर महासचिव राष्ट्रीय मुद्दों और संगठन में हस्तक्षेप रहता है, उसे देखते हुए शायद वे अध्यक्ष की जिम्मेदारी न संभालें। अहमद पटेल और मोती लाल बोरा जैसे नेताओं के मृत्यु के बाद प्रियंका गांधी को कांग्रेस के बीच ‘संकटमोचक’ की भूमिका में देखा जाता है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष बन जाने की स्थिति में वो एक ही राज्य में बंध जाएंगी।
इस बारे में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को अभी पार्टी के फैसले का इन्तजार है। प्रियंका गांधी का लक्ष्य 2024 के लोकसभा चुनाव हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार से मायूस हैं लेकिन कहा जाता है वे विचलित नहीं हैं। लिहाजा पार्टी उनका क्या रोल तय करती है, इसपर सभी की निगाह है। वैसे बतौर अध्यक्ष अजय लल्लू का कार्यकाल बुरा नहीं था क्योंकि वे योगी सरकार के खिलाफ लगातार धरने-प्रदर्शन करते रहे थे। यही नहीं किसी भी विपक्षी नेता के मुकाबले वे सबसे ज्यादा जेल गए। दो बार विधायक बनने वाले लल्लू इस बार चुनाव हार गए।
उत्तराखंड में हरीश रावत जैसे नेताओं का राजनीतिक करियर अब समाप्ति की तरफ है और पार्टी किसी युवा को कमान दे सकती है। पंजाब में दोनों सीटों से चुनाव हारने वाले चरणजीत सिंह चन्नी के लिए भी दिक्कतें हैं, राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। पार्टी किसी वरिष्ठ नेता को जिम्मा सौंप सकती है। मणिपुर और गोवा में भी युवाओं को आगे लाये जाने की कवायद है।