उत्तर प्रदेश में भूमि की धोखाधड़ी रोकने की मुहिम स्वामित्व योजना में तीव्रता लायी जा रही है। इससे भूमाफ़िया एवं अतिक्रमणकारियों की पहचान हो सकेगी तथा उनके द्वारा हथियायी गयी भूमि को वापस लिया जा सकेगा। इस धोखाधड़ी एवं अतिक्रमण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार केंद्र सरकार की स्वामित्व योजना के तहत भूखंडों का 16 अंकों का एक यूनिक आईडी नंबर जारी कर रही है।
माना जा रहा है कि इससे भूमि की क्रम संख्या तय होगी एवं भूमि किसकी है? यह भी आसानी से पता चल सकेगा। भूमि के स्वामी का पता चलते ही भूमि पर अवैध रूप से अपने क़ब्ज़े में करने वालों के हाथ से उसे निकालने में आसानी होगी।
गाटा संख्या की जगह यूनिक कोड
उत्तर प्रदेश में अब तक भूमि की पहचान गाटा संख्या से होती थी। अब योगी आदित्यनाथ सरकार के भूराजस्व विभाग द्वारा भूमि के 16 अंकों के यूनिक कोड बनाने से गाटा संख्या से होने वाली पहचान को एक नये प्रकार से मोबाइल पर भी देखा जा सकेगा, जिससे भूमि क्रेताओं को धोखाधड़ी से बचने में मदद मिल सकेगी।
इस यूनिक कोड को देने से पहले पूरे उत्तर प्रदेश में भूमि के हर गाटे की पहचान हो सकेगी एवं उस भूमि के असली स्वामी के बारे में जानकारी मिल सकेगी। इसके अतिरिक्त भूमि के सरकारी या निजी होने की भी पहचान आसानी से हो सकेगी।
आसानी से मिलेगी जानकारी
इस 16 अंकों के यूनिक कोड का लाभ ये होगा कि प्रदेश के लोग घर बैठे मोबाइल पर केवल भूमि की एवं उसके मालिक की सही सही जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। इसके लिए भूराजस्व विभाग की वेबसाइट पर जाकर 16 अंकों का यूनिक कोड दर्ज करना होगा।
भूमि के गाटे का यूनिक कोड के एक से लेकर छ: अंक गाँव की जनगणना के आधार पर होंगे। 7 से 10 तक भूखंड की गाटा संख्या के होंगे। 11 से 14 अंक भूमि के विभाजन के लिए होंगे। 15 से 16 अंक भूमि की श्रेणी के लिए निर्धारित होंगे। इससे किसी भूखंड की पहचान आसानी से हो सकेगी एवं वो आवासीय, कृषि, एवं व्यवसायिक भूमि के रूप में चिह्नित हो सकेगा।
क्या रुक सकेगी धोखाधड़ी?
योगी आदित्यनाथ सरकार का दावा है कि इन 16 अंकों के यूनिक कोड के माध्यम से विवादित भूमि के फ़र्ज़ी बैनामे नहीं हो सकेंगे। किसी की भूमि कोई दूसरा व्यक्ति नहीं हथिया सकेगा। सभी राजस्व गाँवों में अवस्थित भूखंडों को व्यवस्थित किया जा सकेगा।
इसके अतिरिक्त अवैध फ़िब्ज़ें को भी चिह्नित किया जा सकेगा, ताकि उन्हें मुक्त कराया जा सके। मगर प्रश्न ये उठता है कि जो भूमि भूमाफ़िया एवं दबंगों ने पहले ही अतिक्रमण करके उस पर अपना आधिपत्य कर रखा है अथवा उसे बेच दिया है। अगर जाँच की जाए, तो ऐसे लाखों लोग प्रदेश में निकलेंगे, जो अवैध फ़िब्ज़ें करके सरकारी या कमज़ोर लोगों की भूमि अपने नाम करा चुके हैं।
सरकार का कहना है कि इस भूमि के यूनिक कोड योजना के तहत भूमि के नये एवं पुराने स्वामी का भी नाम दर्ज होगा। मगर प्रश्न यह उठता है कि अगर भूमि धोखाधड़ी करके कई-कई बार बिक चुकी है, तो फिर उसकी पहचान से क्या लाभ होगा? क्या भूराजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से बेची गयी अथवा किसी को चंद पैसों के लालच में सौंपी गयी सरकारी भूमि योगी आदित्यनाथ सरकार वापस ले सकेगी? क्या भूमि की नाप-कूत में की गयी गड़बड़ी में सुधार हो सकेगा?
भौजीपुरा के कमुआँ गाँव के बुजुर्ग रामप्रसाद बताते हैं कि अब तो गाँवों में सरकारी भूमि बची ही नहीं है। अब से कोई 20-30 वर्ष पहले हर गाँव में सरकारी भूमि के पौबारह थे। इस भूमि को ग्राम समाज की भूमि कहा जाता था। उस भूमि में से कुछ भूमि तो भूमिहीनों को और निम्न वर्ग के लोगों को बाँट दिया गया कुछ भूमि पर सरकारी भवन, पंचायत घर एवं स्कूल आदि बन गये, मगर का$फी भूमि दलालों, भ्रष्ट लेखपालों एवं भ्रष्ट क़ानूनगो के माध्यम से पैसे वाले लोगों ने भी हथिया लिया। अब गाँवों में सरकारी भूमि बची ही नहीं है।
पहले से ही चल रहा काम
केंद्र सरकार की पहल के बाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सन् 2021 में ही स्वामित्व योजना पर प्रदेश् स्वामित्व योजना में कार्य शुरू कर दिया था। मगर तब इस योजना के तहत कार्य पूरा नहीं हो सका, क्योंकि चुनावों के निकट आ जाने के चलते इस पर होने वाला कार्य रुक गया। अब उत्तर प्रदेश में इसकी दोबारा चर्चा है। मगर अब गाटा संख्या के आधार पर इसकी जगह भूमि के किसी टुकड़े का एक यूनिक कोड दिया जा रहा है। स्वामित्व योजना पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के निर्देशों पर अन्य राज्यों में कार्य होना है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आँकड़ों की मानें, तो 2021 तक देश के 3,04,707 सम्पत्तियों के कार्ड जारी किये जा चुके थे। इनमें देश के 35,049 गाँवों का सर्वे ड्रोन द्वारा किया जा चुका था। इन गाँवों के सभी भूखंडों का यूनिक कोड तैयार किया जा रहा है, ताकि भूखंडों एवं लोगों की सम्पत्ति का वर्गीकरण हो सके।
विदित हो कि पूरे देश में 6,55,959 गाँव हैं, जिसमें से 2021 तक 5,91,421 गाँवों के रेवेन्यू रिकॉर्ड का डिजिटाइजेशन हो चुका था एलं 53 प्रतिशत नक्शा भी डिजिटल हो चुका था। इसके अतिरिक्त देश के 13,105 गाँवों में भूलेखों का डिजिटाइजेशन इंटरनेट पर उपलब्ध हो चुका था। सन् 2021 में 51,433 गाँव बचे थे, जिनमें से उत्तर प्रदेश में बचे गाँवों पर दोबारा काम चलने लगा है। मगर सन् 2021 में भूमि रिकॉर्ड डेटाबेस का कंप्यूटरीकरण के लिए 64,538 गाँवों का भूखंड रिकॉर्ड डिजिटल होना शेष था।
स्वामित्व योजना एवं उसके लाभ
स्वामित्व योजना का आरम्भ 24 अप्रैल, 2020 को केंद्रीय पंचायती राज मंत्रालय द्वारा किया गया था। 11 अक्टूबर, 2020 को इस योजना के तहत पहली बार भूमि कार्ड वितरित किये गये थे। इस योजना के पीछे की मंशा गाँवों में रहने वालों को उनके घरों की सम्पत्ति के कार्ड जारी करना है। केंद्रीय सूत्रों की मानें, तो को 2024 तक इस योजना को पूरा करने का प्रयास केंद्र सरकार कर रही है। उत्तर प्रदेश राजस्व विभाग ने योगी आदित्यनाथ सरकार के निर्देशों के अनुरूप इस योजना पर दोबारा कार्य आरम्भ कर दिया है।
ग्रामीणों को मिलेगा घरों का स्वामित्व
अभी तक गाँवों में बसे लोगों के पास उनके घरों की रजिस्ट्री अथवा कोई अन्य कोई काग़ज़ नहीं होता। इसका मुख्य कारण गाँवों में सदियों से चली आ रही बसावट है, जिसके चलते घरों की रजिस्ट्री अथवा अन्य कोई काग़ज़ उन लोगों के पास नहीं होते, जो पुश्तैनी तौर पर उन घरों में रहते आये हैं।
अब इस योजना से राजस्व विभाग गाँवों में बने घरों की सम्पत्ति को स्वामित्व प्रदान करने में लगा है। इससे भूमि के विवाद सुलझाने में आसानी होगी। मगर इससे विवाद भी बढ़ सकता है। विवाद तब हो सकता है, जब उसी सम्पत्ति अथवा घर के एक से अधिक दावेदार सामने आते हैं। उत्तर प्रदेश राज्य रेवेन्यू बोर्ड इस भूमि रिकॉर्ड, खसरा डॉक्यूमेंट्स और खतौनी नंबरों की खोज करके एक ऑनलाइन पोर्टल पर डाल रहा है। प्रक्रिया को और अधिक बेहतर बनाने के लिए पोर्टल अब 13 कॉलम के बजाय 19 कॉलम में खतौनी का विवरण देगा। जब सभी भूखंडों का यूनिक कोड जारी हो जाएगा, तब हर भूखंड की जानकारी आसानी से प्राप्त की जा सकेगी। लेखपाल राजेश ने बताया कि अगर ये प्रक्रिया ठीक से लागू हो गयी, तो इसके कई लाभ होंगे एवं सम्पत्तियों के स्वामियों को उनकी भूमि छिनने एवं उस पर अतिक्रमण होने का डर नहीं रहेगा। मगर इस प्रक्रिया में अभी कई अड़चनें भी हैं, जिन्हें सुलझाने में देरी लगेगी। लेखपाल राजेश ने बताया कि इस योजना के फलीभूत होने पर भूमि की धोखाधड़ी रुक जाएगी।
प्रश्न यह उठता है कि भूमि विवाद को लेकर जो मुफ़िदमे वर्तमान में चल रहे हैं, उनका विवाद सुलझे बिना यूनिक कोड कैसे दिया जा सकेगा? क्योंकि दो दावेदारों में यूनिक कोड तो एक ही दावेदार के नाम की भूमि दिखाएगा। साथ ही जिन लोगों ने अपनी भूमि किसी के द्वारा हथियाने की रिपोर्ट दर्ज करा रखी है, उनका क्या होगा? ऐसे ही और भी प्रश्न हैं, जिनके उत्तर ढूँढे जाने चाहिए।