अब पर्यटकों को भी लुभाएगा शिक्षा का हब कोटा

स्थापत्य और शिल्प की दृष्टि से अतुलनीय चंबल रिवर फ्रंट ने देश की पुरातन सांस्कृतिक चेतना और परम्पराओं को साकार करते हुए असम्भव को सम्भव बना दिया है। शिल्प और लालित्य की दृष्टि से यह अद्भुत और विकास के पैमाने पर दिलकश अफ़साना बन गया है। राज्यपाल कलराज मिश्र ने अपने कोटा प्रवास में चौंधियाई आँखों से इसे नितांत प्रेरक दास्तान बताया। कोटा सिटी पार्क की तारीफ़ में भावुकता भरे शब्दों में मिश्र ने कहा कि इतना अद्भुत और अनुपम सिटी पार्क राजस्थान ही नहीं, देश में भी दूसरा नहीं होगा।

शाब्दिक अभिव्यंजना को धार देते हुए उन्होंने कहने में संकोच नहीं किया कि यहाँ अद्भुत शिल्प से मानव और प्रकृति के संतुलन को प्रदर्शित किया गया है। यह उद्यान केवल कोटा ही नहीं, अपितु राजस्थान की पहचान बनेगा। आज जब ज़माना बदल रहा है, विकास को दिलचस्प अंदाज़ में गढऩा होता है। तो करिश्माई कीमियागरों में धारीवाल काफ़ी आगे नज़र आते हैं। उन्होंने सौन्दर्य संवर्धन के अथक प्रयास में जिस तरह से ‘मोन्यूमेंटस’ को गढ़ा है, यह हमारी संस्कृति से जुड़ाव रखने और अपणायत को बचाये रखने में बेहतरीन सेतु का काम करेंगे।

धारीवाल स्पष्ट करते हैं कि अगर हम अपनी सांस्कृतिक विरासत और थाती को बचा नहीं पाये, तो पहचान खो बैठेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि जिस तरह से शहरों में विकास के नवाचार का उजाला फैल रहा है, वह 21वीं सदी में भारत की पहचान बनाएँगे। उन्होंने कहा कि शहरी विकास में शहरी नियोजन और शहरी शासन, दोनों की बड़ी भूमिका है।

इस भूमिका के निर्वाह में राजस्थान के नगरीय विकास मंत्री शान्ति धारीवाल किस क़दर मैदान मार चुके हैं? तो निश्चित है कि प्रधानमंत्री को इस विजन से अभिभूत होना पड़ेगा। प्रधानमंत्री जब विद्यार्थियों को तनाव मुक्त रहकर शिक्षार्जन का मशविरा देते हैं, तो कोचिंग स्टूडेंटस को राज्यपाल का यह संदेश इसकी पुष्टि करता है कि शिक्षा के लिए देश भर में छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध कोटा में कोचिंग के लिए हर साल लाखों बच्चे आते हैं, किन्तु शैक्षिक दबाव में तनावग्रस्त होकर आत्मघात करने की कोशिश भी कर बैठते हैं। सिटी पार्क उनके लिए सुकून की छाँव साबित होगा। यहाँ शैलेन्द्र का यह गीत बहुत कुछ कह देता है कि इठलाती हवा, नीलम सा गगन, कलियों में है $खामोशी की नमी, ऐसे में भी क्यों बेचैन है दिल? सिटी पार्क इसी कमी को पूरा करेगा।

शान्ति धारीवाल, मंत्री, राजस्थान सरकार

सूरत-ए-हाल को एक्स-रे रिपोर्ट की मानिंद बयाँ करें, तो ख़ुदकुशी के मंसूबों से निजात दिलाकर कोटा को बेपनाह मोहब्बत का शहर बनाने की धारीवाल की कोशिशों को जिस तरह राज्यपाल ने मुहरबंद किया है, उन्हें और ज़्यादा मक़बूलियत देता है। ऑक्सीजोन का एक एक दृश्य प्रकृति से जोडऩे का दायित्व निभाता लगता है। सिटी पार्क में मॉन्यूमेंट्स की मौज़ूदगी प्रकृति के साथ हमारे भावनात्मक रिश्ते को दर्ज करती नज़र आती है। पुरातत्वेत्ताओं का कहना है कि ताइवान के सबसे बड़े शहर न्यू ताइपे सिटी में स्थित येल्यू जिओपार्क समुद्रतट पर भूमि का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में निकलने से बना है। भू-विज्ञानियों का कहना है कि यहाँ पर प्राकृतिक रूप से बनी अनेक संरचनाएँ हैं, जो दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती है। लेकिन यह बात तब निरर्थक हो जाती है, जब यहाँ क़ुदरत के साथ भावनात्मक रिश्ता दूर दूर तक नज़र नहीं आता।

कोटा का सिटी पार्क देखने के बाद वैल्यू सिटी पार्क के लिए वाह की जगह आहा निकलती है। धारीवाल ने राज्यपाल के साथ हाऊसबोट में बैठकर हैरतअंगेज़ अंदाज़ में घुमा-घुमाकर रिवर फ्रंट को क़रीब से दिखाया राज्यपाल को बेसाख़्ता कहना पड़ा- ‘कोटा रिवर फ्रंट के मुक़ाबले में कोई और फ्रंट कहीं नहीं ठहरता। इस इलाक़े में राज्यपाल मिश्र बोटिंग का एक अनूठा अनुभव लेकर लौटे, यहाँ गोस्वामी तुलसीदास की यह पंक्ति याद आ जाती है, गिरा अनयन, नयन बिनु बनी।’ सघन हरियाली के बीच मोटर बोट में चलते हुए प्रकृति के सौंदर्य से राज्यपाल किस क़दर अभिभूत हुए कि उन्हें तुलसीदास का दोहा स्मरण हो गया।

बेशक कोटा रिवर फ्रंट धारीवाल के सोच को साकार करने वाली श्रेष्ठतम कृति है। इसका सौंदर्य मानो सौंदर्य का प्रतिमान है। फ़िलहाल इसका ज़िक्र यहीं तक। अलबत्ता इसका विस्तृत बखान आगे के पन्नों पर केंद्रीय आवासन और शहरी मंत्री हरदीप सिंह पुरी बेशक आज दुहाई देते हैं कि शहरीकरण को सतत विकास का उत्प्रेरक बनाना होगा। लेकिन कितने प्रदेश ऐसा कर पाये?

कलराज मिश्र, राज्यपाल, राजस्थान

जबकि पुरी यहाँ तक कह चुके हैं कि हम क़ानूनी तंत्र और शासन के ढाँचे पर पुनर्विचार करें, ताकि रणनीतिक लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। जबकि फ़िलहाल तो लक्ष्य संधान का काम सिर्फ़ राजस्थान के कोटा में ही हो सका है और जो हुआ है, उस पर एक शोर जायज़ है- ‘फ़रहत की खिली कलियाँ, पखेरुओं की सदा से भरी गलियाँ दिलबर से कहा हमने, छोडि़ए रंगबलियाँ।

प्रसंगवश श्रीकृष्ण का उद्धव ज्ञान समझें, तो चमत्कारों से भरे विराट संसार की रचना के लिए श्रद्धा और धैर्य दोनों आवश्यक है। कहने की ज़रूरत नहीं कि धारीवाल इस पर कितने खरे उतरे हैं। प्राचीन भारतीय अर्थशास्त्र के आख्याता देवदत्त पटनायक का कहना है कि कुरुक्षेत्र युद्ध को लेकर श्रीकृष्ण ने अपने साथी उद्धव को सहज भाव से सब कुछ बताया, तो उद्धव का प्रश्न था कि आप इतने शान्त कैसे रह सकते हैं? इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें जो गीता बतायी, उसे हंस गीता कहते हैं। श्रीकृष्ण ने उन्हें हंस जैसा बनने की सीख दी, जो पानी में तैरता है; किन्तु पानी को पंखों पर नहीं चिपकने देता है। धारीवाल ने हंस नीति का अनुगमन करते हुए श्रेष्ठतम् कृति की रचना किन्तु आक्षेपों को हावी नहीं होने दिया।

अतिथि देवो भव: हमारी सांस्कृतिक परम्परा रही है। किसी भी अतिथि की अगवानी करते हुए हम प्रसन्नता व्यक्त करते हैं कि अहोभाग्य कि आप हमारे घर आये। किन्तु बदलते कोटा को देखकर राज्यपाल मिश्र के मुँह से बेसाख्ता निकला- ‘मेरा अहोभाग्य कि मैं यहाँ आ गया।’ उनका बेलाग कथन था- ‘यहाँ जो सौन्दर्यकरण के कार्य हुए हैं, उनमें किसी तरह का बनावटीपन नहीं है। यही इसकी सुंदरता है। आबादी के विस्तार के साथ यहाँ पयार्वरण आवश्यकताओं की भी पूर्ति की गयी है। शिल्प और धरोहर के आलोक में यहाँ बहुत कुछ महत्त्वपूर्ण है।’

विश्वस्तरीय स्मारक एवं नौका में बैठकर चंबल रिवर फ्रंट पर बने विभिन्न घाटों को निकट से देखकर उन्होंने कहा कि इसके प्राचीन सौन्दर्य को बरकरार रखते हुए अत्याधुनिकता का समावेश किया गया है। राज्यपाल ने कहा कि नयी संस्कृति का शहर कोटा करवट बदल रहा है। कोचिंग के बाद अब यह शहर पर्यटन से पहचान बनाएगा। अपने अनुभवों को शाब्दिक अभिव्यक्ति देते हुए उन्होंने कहा जीर्ण-शीर्ण और विलुप्त होती हमारी प्राचीन धरोहर को लौटाने का यह अभिनव प्रयास है। उन्होंने चर्मण्यवती के एतिहासिक उद्भव का बखान करते हुए कहा कि महाकवि कालिदास ने मेघदूत में इस नदी का बहुत सुंदर वर्णन करते हुए कहा है कि वन संस्कृति में तीर्थ यात्रा से जुड़ी यह पुण्य सलिला है।

मिश्र ने कहा कि आज जब सबसे ज़्यादा प्रहार हमारी संस्कृति पर ही हुआ है। ऐसे में चंबल रिवर फ्रंट इसकी पुनस्र्थापना का सार्थक प्रयास माना जाएगा। लोकनृत्य करती बालाओं के नृत्य से सम्मोहित हुए मिश्र ने कहा कि लोकनृत्य का प्रदर्शन को समझें, तो यह हमारे विचारों को अभिव्यक्ति देने का एक सार्थक माध्यम है। ज़ाहिर है इससे लोक संस्कृति को संबल मिलेगा।