सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान के एक बार फिर से मुलायम सिंह से नाराज होने की अटकलें लगाई जा रही हैं. अखिलेश यादव के साथ कुछ मुद्दों पर उनकी असहमति जगजाहिर हो चुकी है. साथ ही पार्टी में दागी और ईमानदार नेता के दायरे को लेकर भी एक कशमकश चल रही है. इन तमाम मुद्दों पर हिमांशु बाजपेयी की आजम खान से बातचीत
समाजवादी पार्टी के घोषणापत्र जारी होने के कार्यक्रम से आपके गैर-हाज़िर रहने को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हो रही हैं, कार्यक्रम में न आने की क्या वजह थी ?
घोषणापत्र तैयार करने में मेरी पूरी-पूरी हिस्सेदारी थी. इसके जारी होने के कार्यक्रम में भी मुझे रहना था. लेकिन उस दिन सुबह कोहरा बहुत ज्यादा था, इसलिए जहाज बहुत देर से आया जिस कारण मैं उस कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर सका.
यही वजह है या फिर आप किसी कारण से नाराज हैं?
अगर नाराजगी वजह होती तो मैं उसके बाद के किसी कार्यक्रम में दिखाई नहीं देता. मैं लगातार सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि दूसरे सूबों में भी जाकर वोट मांग रहा हूं. पार्टी को जहां मेरी जरूरत होती है वहां मैं जाता हूं. इस वक्त सपा को जितवाना मेरे लिए सबसे ऊपर है. इसलिए नाराजगी की चर्चाओं को मै संजीदगी से नहीं ले रहा.
कहा जा रहा है कि मुलायम सिंह जिस तरह अपने परिवार के लोगों खासकर अखिलेश यादव को आगे बढ़ा रहे हैं उससे पार्टी के वरिष्ठ नेता नाराज हैं और आपको भी यह बात अखर रही है.
दूसरों का तो मुझे नहीं पता लेकिन मुझे तो ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती. पार्टी में जिसकी जैसी सलाहियत होती है उसे वैसा मौका मिलता है. पार्टी में वापसी के बाद से ही मैं सबसे आगे-आगे रहा हूं. इसलिए मुझे ऐसा नहीं महसूस होता कि नेता जी के परिवार की वजह से मुझे मौका नहीं मिल रहा.
डीपी यादव की पार्टी में आमद को लेकर आपकी बात अखिलेश यादव ने काट दी और एक दूसरे वरिष्ठ नेता मोहन सिंह को उनसे इतर राय रखने की वजह से प्रवक्ता पद से हाथ धोना पड़ा. इसके बाद भी आप यह बात कह रहे हैं ?
पार्टी में आना या न आना, यह फैसला पार्टी नेतृत्व का होता है, इसलिए अपने स्तर पर मैं उस बारे में ज्यादा नहीं कह सकता लेकिन जहां तक मोहन सिंह जी की बात है वे हमारे सबसे वरिष्ठ नेताओं में हैं और मेरे हिसाब से उनके साथ जो हुआ वह गलत था, दुखद था. मैंने उस दिन भी यही महसूस किया और कहा था.
इस तरह क्या पुत्रमोह-परिवारवाद के हावी होने की वजह से समाजवादी पार्टी में नेतृत्व की लड़ाई में वरिष्ठ नेता हाशिये पर जाते नहीं दिख रहे ?
देखिए, कुछ चीजें आज की सियासत की सच्चाई हैं. इस दौर में हर राजनीतिक पार्टी के चलन में हैं. आजादी के बाद से ही राजनीति का यही तौर रहा है, इसलिए मुझे अकेले इस मामले में क्रांतिकारी बनने की कोई दिलचस्पी नहीं है. मुझे अपने स्तर पर पार्टी में जितना सम्मान और अहमियत हासिल है वह ठीक-ठाक राजनीति करने के लिए बहुत है.
2007 के चुनाव में समाजवादी पार्टी अपराध-व्यवस्था के मुद्दे पर ही चुनाव हार गई थी. इस बार फिर सपा की टिकट सूची में कई दागी शामिल हैं. क्या यह ठीक तरह की राजनीति है ?
टिकट सूची तैयार करते हुए समाजवादी पार्टी ने पूरी-पूरी कोशिश की है कि दागियों से बचा जाए. कुछेक जगह जिन लोगों को टिकट मिला भी है तो वे लोग पहले ही लोगों के द्वारा चुने जाते रहे हैं, वे टीम अन्ना की तरह स्वयंभू जनता के नुमाइंदे नहीं बन गए. लोकतंत्र में जनता की आवाज को खुदा का नगाड़ा माना जाता है. फिर भी समाजवादी पार्टी ऐसे लोगों से काफी बची है.
चर्चा यह भी है कि बागियों की वजह से रामपुर की अपनी सीट पर ही आपको मुश्किल पेश आ रही है. इसलिए आप दूसरी जगहों पर प्रचार से बच रहे हैं?
मै तो लगातार दूसरी सीटों ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी प्रचार के लिए जा रहा हूं. लेकिन अपनी सीट पर भी पूरा ध्यान है जिस पर दल्ले महाराज (अमर सिंह) मुझे हराने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं. कुछ रोज पहले रामपुर में एक सभा में कह भी गए कि मै तन-मन-धन से मुखालफत करूंगा, अपना धन-बल वे दिखा भी रहे हैं पर इलेक्शन कमीशन इसका संज्ञान नहीं ले रहा. इसके बावजूद मेरी सीट निकलेगी और पहले से अच्छी निकलेगी.
मुसलिम आरक्षण को लेकर कांग्रेस को आप पानी पी-पीकर कोस रहे हैं ? चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए उन्हीं से हाथ मिलाते तो नहीं दिखेंगे ?
कांग्रेस ने आरक्षण के नाम पर मुसलमानों के साथ जो धोखा किया है उसकी जितनी निंदा की जाए कम है. रही बात हाथ मिलाने की तो उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी. हम अकेले ही सरकार बनाएंगे.