1977 में जब मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तो इस पद के लिए उनका तकरीबन दो दशक लंबा इंतजार खत्म हुआ था. मोरारजी पहले कांग्रेस में थे. प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम तब से चलता था जब से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद इस पद के लिए नामों की चर्चा होती थी. जब 27 मई, 1964 को नेहरू नहीं रहे तो देश के सामने सबसे बड़ा संकट था कि उनकी जगह पर किसे प्रधानमंत्री बनाया जाए. मुश्किल यह भी थी कि बतौर प्रधानमंत्री या यों कहें कि बतौर राजनेता नेहरू का जो कद था, उससे नए प्रधानमंत्री की तुलना चाहे-अनचाहे होनी ही थी. उस वक्त भी बेहद मजबूती से मोरारजी का नाम चला. लेकिन बाजी मारी लाल बहादुर शास्त्री ने.
शास्त्री प्रधानमंत्री तो बने लेकिन खराब सेहत ने उनका बहुत दिनों तक साथ नहीं दिया. प्रधानमंत्री बनने के दो साल के भीतर ही 11 जनवरी, 1966 का ताशकंद में उनकी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई. इसके बाद एक बार फिर से मोरारजी देसाई के सामने प्रधानमंत्री बनने का अवसर पैदा हुआ. लेकिन इस बार भी उन्हें निराश होना पड़ा और कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री चुन लिया. हालांकि, इस दफा मोरारजी ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. इसके बाद वे 1969 में कांग्रेस से अलग हो गए. 1975 में आपातकाल के खिलाफ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जो आंदोलन चला उसमें मोरारजी भी शामिल थे और इस आंदोलन से निकली जनता पार्टी जब 1977 के चुनावों में जीतकर आई तो अंततः मोरारजी देसाई का प्रधानमंत्री पद के लिए लंबा इंतजार समाप्त हुआ.