2017 के विधानसभा चुनावों में अभी कुछ वक्त है लेकिन उत्तर प्रदेश में सिर उठा रही नई राजनीतिक स्थितियों के मद्देनजर समाजवादी पार्टी ने अपने संगठन के भीतर आमूल परिवर्तन की शुरुआत की है. पार्टी आम जनता के बीच सरकार की सकारात्मक छवि बनाने और सबकी भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है.
पार्टी के भीतर मौजूद ऐसे तत्वों से छुटकारा पाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पूरी तरह से तैयार और सतर्क दिखते हैं, जो लोकसभा चुनाव में पार्टी के भीतर रहकर उसकी दुर्गति का कारण बने थे. पार्टी सूत्र बताते हैं कि इन योजनाओं के अलावा 2017 में प्रस्तावित उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के लिए समय रहते योग्य उम्मीदवारों का चयन करना भी पार्टी के एजेंडे में सर्वोपरि है.
‘उत्तर प्रदेश में लंबे समय से एक राजनीतिक ठहराव की स्थिति बन गई थी. अब समय आ गया है कि इसे खत्म कर एक नई शुरुआत की जाय.’ एक वरिष्ठ सपा नेता कहते हैं. वे तहलका को बताते हैं कि पहले चरण में उनकी योजना पूर्वी उत्तर प्रदेश के 26 जिलों में पर्यवेक्षकों को भेजने की है. उन्हें साफ शब्दों में हिदायत है कि वे हर क्षेत्र में साफ और ईमानदार छवि वाले संभावित उम्मीदवारों का चयन करें.
अक्टूबर महीने में पार्टी की तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान पार्टी के सबसे ताकतवर महासचिव रामगोपाल यादव ने खुले शब्दों में पार्टी के साथ लोकसभा चुनावों में दगाबाजी करने वाले नेताओं की पहचान करके उन्हें पार्टी से निकाल बाहर करने की बात कही थी. उनके इस बयान से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की स्थिति भी काफी मजबूत हुई है. रामगोपाल यादव के साथ उनके रिश्ते बहुत गहरे माने जाते हैं. इस घोषणा का समर्थन करके अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव और दूसरे चाचाओं की छाया से बाहर निकलने में एक हद तक कामयाब हुए हैं. उन्हें स्वतंत्र रूप से पार्टी हित में कठोर फैसले करने की छूट मिल गई है.
हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भी सपा की चिंता को चार गुना किया है. दोनों राज्यों की जनता ने परिवारवादी, सामंती राजनीति को अंगूठा दिखा दिया है. लंबे समय से लोगों में भय और जात-पात की राजनीति कर रहे क्षेत्रीय दलों को मुंह की खानी पड़ी है. सपा की अपनी राजनीति भी काफी हद तक इन्हीं फार्मूलों से संचालित होती आई है. सपा खुद यादव परिवार कि निजी संस्था की तरह काम करती आई है.
सपा के रुख में आए बदलाव से लगता है कि उसने दोनों राज्यों (हरियाणा, महाराष्ट्र) के नतीजों से बड़ा सबक सीखा है. पार्टी की मंशा है कि वह दागी और अपराधी किस्म के नेताओं से समय रहते मुक्त हो जाय. ‘इसी वजह से पार्टी विधानसभा चुनावों से काफी पहले ही जनता से जुड़ने का अभियान शुरू कर चुकी है,’ सीपीआई के पूर्व राज्य सचिव अशोक मिश्रा कहते हैं.
‘पार्टी की यह कोशिश दरअसल हालिया लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद पार्टी के भीतर हुए घोर मंथन का नतीजा है. उन हालात की गहराई से समीक्षा की गई है कि आखिर क्यों अपनी तमाम अच्छी कोशिशों के बाद भी सपा सरकार आम जनता के भीतर कोई विश्वास पैदा नहीं कर सकी. शुरुआत में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव सरकार की योजनाओं को लागू कर पाने में असफलता और हीला हवाली का ठीकरा नौकरशाही के सिर फोड़ते रहे. इस दौरान 1500 से ज्यादा आईएएस और दूसरे अधिकारियों का तबादला सरकार ने किया. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. गहराई से पड़ताल करने पर पता चला कि आम आदमी के सपा से दुराव की वजह कार्यकर्ताओं द्वारा फैलाया गया आतंक था,’ एक मंत्री नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं. उनके शब्दों में, ‘पार्टी नेतृत्व आगामी विधानसभा चुनावों से पहले इस समस्या का समाधान ढूंढ़ लेना चाहता है.’
2014 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद समाजवादी पार्टी को हाल ही में संपन्न हुए 11 विधानसभाओं के उपचुनाव से बेहद जरूरी ऊर्जा मिली है. सपा को नौ विधानसभा सीटें जीतने में सफलता हासिल हुई. हालांकि सपा की यह खुशी क्षणिक सिद्ध हुई क्योंकि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजों में भाजपा को मिली कामयाबी ने सपा का फील गुड खत्म कर दिया.
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना सारा ध्यान पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को सुधारने पर केंद्रित कर रखा है. यह सुधार लंबे समय से लंबित थे. इसकी शुरुआत उन्होंने हाल ही में 92 नेताओं को पार्टी से बर्खास्त करके की है. उनका मानना है सपा की आम जनता के बीच बिगड़ी हुई छवि के लिए यही लोग जिम्मेदार हैं.
अपनी सरकार के कामकाज को सुधारने और उसमें तेजी लाने की भी कई कोशिशें इस बीच अखिलेश यादव ने शुरू की हैं. मुख्यमंत्री ने स्वयं ही अपनी सरकार की तमाम विकास योजनाओं की निगरानी और उनके क्रियान्वयन का जिम्मा अपने हाथों में ले लिया है. उनका विशेष ध्यान गरीबों के लिए शुरू की गई योजनाओं को अमलीजामा पहनाने पर है. जानकारों के मुताबिक यह नरेंद्र मोदी की कार्यशैली का प्रभाव है. अखिलेश यादव कहीं से भी यह संदेश नहीं देना चाहते हैं कि वे और उनकी सरकार किसी मामले में पीछे है. अपने कैबनेट सहयोगियों और नौकरशाहों को भी उन्होंने नई योजनाओं के साथ जनता के बीच जाने की हिदायत दी है.
‘आधा कार्यकाल पूरा करने के बाद आज सपा सरकार के पास जनता को दिखाने या बताने के लिए कोई भी बड़ी सफलता नहीं है. इसके बावजूद पार्टी पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरी हुई है और आगे की लड़ाई के लिए तैयार है. इस आत्मविश्वास की एक वजह उपचुनावों में पार्टी को 11 में से नौ सीटों पर मिली सफलता की भी भूमिका है. यह आत्मविश्वास बेवजह नहीं है. सपा के राजनीतिक विरोधी इस हालत में नहीं है कि कोई बड़ा आंदोलन इनके खिलाफ छेड़ सकें. कांग्रेस का आधार सिमट चुका है. बसपा ने रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है. भाजपा ने लोकसभा चुनावों में मिली बढ़त को विधानसभा के उपचुनावों में गंवा दिया है,’ यह कहना है लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर आशुतोष मिश्रा का.
हालांकि समाजवादी पार्टी के नेता संगठन और सरकार के कामकाज में आई इस तेजी के पीछे हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों की भूमिका से इनकार करते हैं. उनके मुताबिक इस तेजी का सीधा संबंध 2017 में होने वाले राज्य के विधानसभा चुनावों से पहले खुद को चुस्त-दुरुस्त करने से है.
‘आनेवाले दिनों में कुछ और लोगों के ऊपर कार्रवाई होगी. 200 से ज्यादा भीतरघाती पार्टी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा. इसके अलावा दो दर्जन के करीब पार्टी के वे वर्तमान विधायक भी हैं जिन्हें अगले चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा,’ ये कहना है पूर्व राज्यसभा सांसद वीरपाल सिंह यादव का जिन्हें मुलायम सिंह यादव का करीबी माना जाता है. ‘हमारे लिए 2017 के चुनावों की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, हमारे पास किसी और काम के लिए फिलहाल फुरसत नहीं है अब.’