मुस्लिम के संस्कृत पढ़ाने पर बवाल क्यों?

जयपुर के करीबी कस्बे बगरू के डॉ. िफरोज़ खान की बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत के सहायक आचार्य पद पर तैनाती उनके लिए मुसीबत बन गयी है। विश्वविद्यालय के संस्कृत विज्ञान संकाय में फिरोज़ की नियुक्त पर उनके धर्म को लेकर मुद्दा बनाया जा रहा है। एक मुस्लिम का संस्कृत प्राध्यापक होना गौरव की बात होनी चाहिए थी। लेकिन इससे उलट यह मुद्दा एक ज़बरदस्त विवाद में और घिर गया है। संस्कृत को सिर्फ हिन्दुओं की विरासत समझने वाले छात्र इस तैनाती से बुरी तरह बौखलाये हुए हैं और प्रदर्शन पर उतारू हैं। प्रदर्शनकारियों की अगुआई करने वाले छात्र नेता चक्रपाणि का कहना है कि धर्म-विज्ञान की बात दूसरे धर्म का व्यक्ति नहीं कर सकता। हम शिक्षक का नहीं, उसकी नियुक्त का विरोध कर रहे हैं।’ विरोध इस कदर बढ़ गया है कि परेशान होकर फिरोज़ खान अपना मोबाइल बन्द कर बैठ गये हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राकेश भटनागर भले ही कहते रहे कि ‘विश्वविद्यालय, धर्म, जाति, सम्प्रदाय, लिंग आदि के भेदभाव से उठकर सबको अध्ययन अध्यापन के समान अवसर देता है।’ लेकिन प्रदर्शनकारियों के शोर में कुलपति की आवाज़ कहीं सुनाई नहीं देती। विरोध की लपटें इस कदर भडक़ उठी हैं कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। डॉ. फिरोज़ खान के पिता संगीतज्ञ रमजान खान अपने बेटे के विरोध पर स्तब्ध है। उनका परिवार फिरोज़ की सुरक्षा को लेकर बुरी तरह आशंकित है; जबकि रमजान की धर्म-निरपेक्ष दिनचर्या चौंकाने वाली है। मुन्ना मास्टर के नाम से लोकप्रिय रमजान खान श्याम प्रभु और गोरक्षा संकीर्तन से अपने दिन की शुरुआत करते हैं। उनके रात्रिकालीन भजनों में उमड़ती भीड़ तो काफी कुछ कह देती है। उनके बेटे फिरोज़ के विरोध की खबर को लेकर पूरे कस्बे में बेचैनी है। रमजान खान की पारिवारिक पृष्ठभूमि तो कट्टर हिन्दूवादियों को भी आत्मचिंतन के लिए प्रेरित कर सकती है। रमजान के परिवार में धर्म, शिक्षा और जीवन शैली का अद्भुत समन्वय है। रमजान के चार पुत्रों, क्रमश: – वकील, शकील, फिरोज़ और वारिस ने संस्कृत विद्यालय में ही शिक्षा ग्रहण की है। उनकी बड़ी बेटी का नाम अनिता है। छोटी बेटी का जन्म दीपावली पर होने के कारण उसका नाम लक्ष्मी रखा गया है। रमजान के पिता मास्टर गफूर संगीत विशारद थे। गौ भक्ति इतनी अटूट कि गो ग्रास के बाद ही भोजन करते थे। रमजान का घर भगवान कृष्ण की तस्वीरों से अटा हुआ है। उन्हें सुंदरकांड और हनुमान चालीसा तो कंठस्थ हैं। उन्होंने श्याम सुरभि वंदना शीर्षक से भजन पुस्तिका भी लिखी है। रमज़ान संस्कृत में शास्त्री की उपाधि से अलंकृत है।

सहायक आचार्य डॉ. फिरोज़ का कहना है कि ‘मैं कुरान को उतना नहीं जानता, जितना संस्कृत साहित्य को जानता हूँ। अपने पिता से प्रेरित होकर मैंने संस्कृत का अघ्ययन किया। लेकिन अध्यापन पर आंदोलन को लेकर बेहद हताश हूँ।’ उनका कहना था कि क्षेत्र के प्रमुख हिन्दू विद्वानों ने मुस्लिम होने के बावजूद मेरे संस्कृत ज्ञान केा लेकर सराहना की है। पिछले 7 नवंबर से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में भडक़ रही आन्दोलन की आग थमती नज़र नहीं आ रही है। कुलपति भटनागर के आवास के बाहर छात्रों के धरने के दौरान ‘मिर्ची हवन’ और ‘बुद्धि-शुद्धि के यज्ञ से लेकर रुद्राभिषेक तक किया जा चुका है। रुद्राभिषेक के बाद हनुमान चालीसा का एक सौ आठ बार पाठ भी किया जा चुका है। विश्वविद्यालय में पठन-पाठन पूरी तरह ठप है। विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच विवाद को लेकर कई दौर की बातचीत हो चुकी है; लेकिन बेनतीजा रही है। कुलपति तो छात्रों के पथराव में घायल होने से बाल-बाल बचे हैं। उधर इस मामले में अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के छात्रों के दखल के बाद मामला तूल पकड़ता नज़र आ रहा है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय प्रशासन को लिखे गये एक पत्र में अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सलमान इम्तियाज़ का कहना है कि ‘हम इस घटना से अपमानित महसूस कर रहे हैं। अगर डॉ. फिरोज़ के साथ कुछ गलत हुआ, तो हम खामोश नहीं रहेंगे।’ सलमान का कहना था कि उनके जीवन, उनकी आज़ादी और सुरक्षा के बारे में सबसे पहले सोचा जाना चाहिए। बहरहाल हालात में में कोई तब्दीली आयी हो ऐसा नहीं लगता। उधर राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान जयपुर के प्राचार्य अर्कनाथ चौधरी ने फिरोज़ को होनहार विद्यार्थी बताते हुए कहा- ‘बीएचयू में जो भी हो रहा है, उसके पीछे राजनीति के रंग साफ नज़र आते हैं।’ वहीं हिन्दू समाज का अन्य बुद्धिजीवी वर्ग भी डॉ. फिरोज़ खान के पक्ष में खड़ा नज़र आ रहा है। बुद्धिजीवियों का कहना है कि अगर डॉ. फिरोज़ भारतीय संस्कृति और संस्कृत से इतना लगाव रखते हैं, तो यह तो हिन्दुओं के लिए गर्व की बात है। एक मुस्लिम विद्वान के संस्कृत पढ़ाने पर आिखर इतना बवाल क्यों किया जा रहा है? सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए और विरोध में उतरे छात्रों को समझाकर शांत करना चाहिए।