क्या है मुलताई गोलीकांड?
1997 में मध्य प्रदेश के कई जिलों में अतिवृष्टि और गेरुआ रोग के कारण फसलों को भारी नुकसान हुआ था. इसकी भरपाई के लिए प्रदेश के किसानों द्वारा मुआवजे की मांग की गई और प्रशासन को कई बार ज्ञापन सौंपे गए. इन्हीं मांगों को लेकर जनवरी, 1998 में लगभग 75 हजार किसानों ने बैतूल जिले में शांतिपूर्ण रैली निकाली जिसके बाद प्रशासन द्वारा 400 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा देने की बात कही गई. इतना कम मुआवजा लेने से इनकार करते हुए किसानों ने डॉ.सुनीलम के नेतृत्व में 12 जनवरी, 1998 को मुलताई तहसील का घेराव किया जहां भीड़ के अनियंत्रित हो जाने पर पुलिस द्वारा गोलियां चलाई गईं. इस गोलीबारी में 24 किसानों समेत फायर ब्रिगेड चालक धीर सिंह की मृत्यु हो गई.
इस मामले में अदालत ने क्या फैसला दिया है?
मुलताई कांड के बाद लगभग 250 किसानों को आरोपित बनाकर 66 मुकदमे दर्ज किए गए और डॉ.सुनीलम को इस कांड में मुख्य आरोपी बनाया गया. दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री कार्यकाल में हुए इस हादसे की भाजपा ने कड़ी निंदा की और इस घटना को जलियांवाला बाग हत्याकांड जैसा बताया. उमा भारती ने मुख्यमंत्री बनने पर सभी मुकदमे वापस लेने की बात भी कही थी लेकिन उन्होंने वादा नहीं निभाया. इस साल 18 अक्टूबर को बैतूल जिले के प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश एससी उपाध्याय द्वारा मुलताई के पूर्व विधायक डॉ.सुनीलम समेत तीन लोगों को फायर ब्रिगेड चालक धीर सिंह की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है.
अदालत के इस फैसले की क्या प्रतिक्रिया है?
किसान नेता एवं पूर्व विधायक डा. सुनीलम की उम्रकैद का कई सामजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों ने विरोध किया है. इन सामाजिक संगठनों का तर्क है कि सजा डॉ.सुनीलम को नहीं बल्कि उन पुलिस अधिकारियों को होनी चाहिए जो 24 बेकसूर किसानों की हत्या के जिम्मेदार हैं. अन्ना हजारे की टीम में शामिल रहे डॉ.सुनीलम की रिहाई के लिए सामाजिक संगठनों ने अपील भी जारी की है. अपील करने वाले संगठनों में पीयूसीएल, सोशलिस्ट फ्रंट, इंसाफ, वाटर राइट कैंपेन और डीएनए मुंबई मुख्य हैं.
-राहुल कोटियाल