एक रुपये में सेनिटरी पैड! जी हाँ। यह सेनिटरी पैड बनाने वाली किसी कम्पनी के विज्ञापन की टैग लाइन नहीं है, बल्कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 74वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम सम्बोधन में इस वाक्य का ज़िक्र किया था। प्रधानमंत्री ने अवाम को बताया कि गरीब बहनों-बेटियों के बेहतर स्वास्थ्य की चिन्ता हमेशा सरकार को बनी रहती है।
बीते कुछ महीनों में देश के 6000 जन-औषधि केंद्रों से एक रुपये में 5 करोड़ सेनिटरी पैड पहुँचाने का बड़ा काम किया है। हाल ही में भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम सम्बोधन में सेनिटरी नेपकिन के उल्लेख से चौखट के अन्दर व बाहर जो हिचक थी, वह समाप्त हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री ने किशोरियों और महिलाओं को सेनिटरी नेपकिन की आवश्यकता की पूर्ति को राज्य की कल्याणकारी योजनाओं में प्राथमिकता के रूप में रेखांकित किया। इसी से प्रेरणा लेकर वह अपने द्वारा विकास के लिए चुने गये दो गाँवों कोंगथोंग (मेघालय) तथा बरेपुरा (बेगूसराय, बिहार), जहाँ सामाजिक व आर्थिक रूप से उपेक्षित लोगों की बड़ी तादाद है; वहाँ छ: हज़ार सेनिटरी नेपकिन भेज रहे हैं। प्रधानमंत्री के 15 अगस्त के सम्बोधन में सेनिटरी पैड का ज़िक्र होने से क्या वास्तव में समाज व कार्य स्थलों पर किशोरियों-महिलाओं के मासिक धर्म (माहवारी / पीरियड) के बाबत जो पूर्वाग्रह / अवधारणा बनी हुई है, क्या वह कम होगी? या उसमें क्रान्तिकारी बदलाव आने की सम्भावना तलाशी जा सकती है?
दरअसल ऐसे ही कुछ सवाल हमेशा उठते हैं, जब ऐसी कोई खबर सामने आती है। अगस्त महीने में ही ऑनलाइन फूड डिलीवरी कम्पनी जोमैटो ने ऐलान किया कि कम्पनी में अब महिलाओं और ट्रांसजेंडर कर्मचारियों को एक साल में 10 दिन की पीरियड लीव (मासिक धर्म की छुट्टी) मिलेगी। जोमैटो कम्पनी ने इस नियम को पीरियड पॉलिसी का नाम दिया है। जोमैटो कम्पनी के सीईओ दीपिंदर गोयल ने अपने कर्मचारियों को भेजे ईमेल में कहा कि आप पीरियड अवधि वाली लीव को किसी भी शर्म या कलंक के साथ जोडक़र न देखें और इस दौरान कर्मचारी अवकाश लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं। सीईओ ने यह भी बताया कि जोमैटो में हम विश्वास, सच्चाई और स्वीकृति की संस्कृति को बढ़ावा देना चाहते हैं। गोयल ने कहा कि जोमैटो समझती है कि महिला और पुरुष अलग-अलग बायोलॉजिकल रियलिटी के साथ पैदा होते हैं। यह जीवन का एक हिस्सा है। यह सुनिश्चित करना हमारा काम है कि हम अपनी ज़रूरतों के लिए जगह बनाएँ। इतना ही नहीं सीईओ ने अपने पुरुष कर्मचारियों के लिए लिखा कि उन्हें कतई शर्मिंदा नहीं होना चाहिए, जब एक महिला सहकर्मी कहती है कि वह पीरियड लीव पर है।
जोमैटो की पीरियड पॉलिसी ने एक बार फिर से पीरियड लीव वाले मुद्दे को बहस का विषय बना दिया है। इस चर्चा में पीरियड लीव दिये जाने के पक्ष व विपक्ष में दलीलें सामने आ रही हैं। दरअसल महिलाओं के बदन को परम्पराओं, धार्मिक मान्यताओं के नाम पर शुचिता के बोझ से इतनी बुरी तरह से दाब दिया गया है कि 21वीं सदी के दूसरे दशक के खत्म होने में महज़ तीन महीने ही बचे हैं और महिलाएँ इनसे मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत हैं।
किशारियों / महिलाओं को रजोधर्म के दौरान किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, इसकी सूची बहुत लम्बी है। इन मुश्किल दिनों में कइयों के पेट में ऐंठन से दर्द होता है; व्यग्रता होती है; जी मिचलाता है; मूड स्विंग आदि होता है।
भारत के कई इलाकों में रजोधर्म के दौरान लड़कियाँ / महिलाएँ रसोई में काम नहीं कर सकतीं, पूजा स्थल पर नहीं जा सकतीं। इसे स्त्री के बदन की शुचिता-अशुचिता से जोडक़र देखने की परम्परा आज भी लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर हावी है। समय की माँग है कि रजोधर्म से जुड़ी ऐसी सामाजिक-धार्मिक रूढ़ परम्पराओं के खिलाफ जागरूकता फैले; परिवार, समाज और सरकारी स्तर पर अधिक-से-अधिक चर्चा हो और हम इसके समाधान की ओर अग्रसर हों।
जोमैटो ने पीरियड लीव का ऐलान किया, तो ऐसे अवकाश को लेकर कहा गया कि क्या वास्तव में यह प्रगतिशील, महिला हितेषी कदम है? या प्रतीकात्मक या प्रतिगामी कदम है। वैसे यहाँइस बात का ज़िक्र करना प्रासंगिक है कि जोमैटो से पहले 2018 में मुम्बई की डिजिटल मीडिया कम्पनी कल्चर मशीन ने भी अपनी महिला कर्मचारियों के लिए रजोधर्म के पहले दिन अवकाश देने की नीति की घोषणा की थी। स्पोट्र्स कम्पनी नाइक भी महिला कर्मचारियों को पीरियड लीव वाली सुविधा प्रदान करती है। बिहार राज्य सरकार भी अपनी महिला कर्मचारियों को महीने में दो दिन का ऐसा अवकाश प्रदान करती है। जापान में तो 1947 से ही महिला कर्मचारियों के लिए ऐसे अवकाश वाला प्रावधान है। दक्षिण कोरिया में 2001 से अवकाश दिया जा रहा है।
इंग्लैंड के ब्रिस्टल शहर में महिलाओं को रजोधर्म के दौरान ऑफिस से छुट्टी दी जाती है। वैसे इन दिनों महिलाओं को कार्य स्थलों पर नहीं आने अवकाश देने वाले बिन्दु को लेकर एक वर्ग का तर्क है कि ऐसा करना महिलाओं को अतिरिक्त सुविधा मुहैया कराना है। जब महिलाएँ कहती हैं कि वे पुरुषों से कन्धे-से-कन्धा मिलाकर चल सकती हैं; उनके बराबर हैं; पुरुषों से कमतर नहीं हैं; तो पीरियड लीव की माँग क्यों करती हैं? उनके पास सिक लीव लेने वाला प्रावधान है, उन्हें उसका इस्तेमाल करना चाहिए।
एक दलील यह भी दी जाती है कि अगर ऐसी लीव को कानून बनाकर अनिवार्य कर दिया जाता है, तो नियोक्ता महिलाओं को नौकरी देने में हिचकेंगे। वे महिलाओं की भर्ती करते समय अपने आर्थिक नुकसान का आकलन भी करेंगे। वैसे महिला कर्मचारियों के लिए पहले से ही सवैतनिक प्रसूति अवकाश देने वाला कानून है। भारत में महिला कर्मचारियों की दर 21 फीसदी है और बीते वर्षों में इसमें वृद्धि होने की बजाय गिरावट ही दर्ज की गयी है। पीरियड लीव का विरोध करने वालों का माननी है कि अगर इस बाबत कोई कानून बन जाता है या कम्पनियों में पीरियड लीव देने का रुझान बढ़ता है, तो हो सकता है कि महिला कर्मचारियों की संख्या में और गिरावट देखने को मिले। महिलाएँ जब विमान उड़ाने में सक्षम हैं; सेना में उन्हें फ्रंट लाइन पर तैनात वाला मुद्दा विचाराधीन है; तो क्या वे रजोधर्म में ऑफिस नहीं आ सकतीं? पीरियड लीव के पक्ष वाले वर्ग का कहना है कि विरोध करने वाले पुरानी मानसिकता के तहत सोचते हैं। महिलाएँ अगर इन खास दिनों में एक या दो छुट्टी ले लेती हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि वे पुरुषों से कमतर हैं। बल्कि उनकी शारीरिक संरचना पुरुषों से भिन्न है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं निकालना चाहिए कि वे पुरुषों वाले पदों पर तैनात नहीं हो सकतीं। ऐसा सोचना / करना उनकी कार्य क्षमता के साथ नाइंसाफी करना होगा, लैंगिक अन्याय होगा।
उन्हें पीरियड अवकाश देना उनकी ज़रूरत के लिए जगह बनाने जैसा है। और यह सुनिश्चित करने का काम सरकार और कम्पनी का है। उन्हें ऐसी नीतियाँ भी बनानी चाहिए। ज़रूरत वाले अहम बिन्दुओं पर फोकस करते समय यह विकल्प भी सामने आता है कि कामकाजी महिलाओं को पूरा अथवा आंशिक अवकाश लेने, सुविधाानुसार काम करने के घंटे या वर्क फ्रॉम होम वाले विकल्प भी मुहैया कराये जा सकते हैं। एक बात यह भी ध्यान देने की है कि भारत में 90 फीसदी से अधिक महिला श्रमबल असंगठित क्षेत्र में काम करता है, जहाँ एक दिन की छुट्टी लेने पर वेतन काट लिया जाता है; उन महिलाओं को कौन पीरियड लीव देगा? वैसे जोमैटो ने जो पीरियड लीव देने का ऐलान किया, उसकी इस पहल की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा हुई है। जोमैटो कम्पनी कई देशों में अपनी सेवाएँ दे रही है और इसके कुल कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 35 फीसदी है।
कम्पनी के सीईओ ने कर्मचारियों को इस सूचना हेतु भेजे ईमेल में यह भी कहा कि महिलाएँ / ट्रांसजेंडर जब पीरियड लीव लें, तो उन्हें एचआर विभाग को बताना होगा कि वे वास्तव में काम पर नहीं आ सकतीं। साथ ही आगाह भी किया कि वे इन छुट्टियों का गलत इस्तेमाल नहीं करें। इनका इस्तेमाल अपने पेंडिंग काम करने के लिए नहीं करें, और इन छुट्टियों को बैसाखी के तौर पर उपयोग में न लाएँ। यही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि महिलाएँ / ट्रांसजेंडर पौष्टिक आहार लें और फिटनेस पर फोकस करें, ताकि वे शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहें। कामकाजी महिलाएँ व पीरियड लीव वाला मुद्दा तो अहम है ही, पर इसके साथ यह भी जानना ज़रूरी है कि लोगों में रजोधर्म को लेकर कितनी जानकारी है। एक सर्वे बताता है कि करीब 71 फीसदी किशोरियों को रजोधर्म के बारे में तब पता चला, जब पहली बार वे खुद इससे गुज़रीं।
यूनिसेफ का सन् 2014 का एक सर्वे बताता है कि किशोरियों / महिलाओं को मैनस्टुरूल हाईजीन के बारे में जानकारी बहुत ही कम है। तमिलनाडु में 79 फीसदी महिलाएँ पीरियड के दौरान स्वच्छता के बारे में नहीं जानती थीं। यानी इस दौरान खुद को कैसे साफ रखें, उन्हें यह नहीं पता था। यह संख्या उत्तर प्रदेश में 66 फीसदी, तो राजस्थान में 56 फीसदी थी।
एक सर्वे यह भी बताता है कि देश में करीब दो करोड़ 30 लाख लड़कियाँ इसी पीरियड के कारण स्कूल से बाहर हो जाती हैं। कई हज़ार लड़कियाँ पीरियड के दिनों में स्कूल नहीं जातीं। इसकी कई वजहें हैं, मसलन- उन दिनों तबीयत ठीक न रहना, स्कूल में पैड-कपड़ा बदलने की समुचित सुविधा का नहीं होना, आदि। कई मामलों में अभिभावक भी लड़कियों को इन दिनों स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करने की बजाय घर पर ही रहने तथा आराम करने के लिए दबाव बनाते हैं। देश में स्कूलों में मैनस्टुरूल हाईजीन मैनेजमेंट (एमएचएम) पर काम हो रहा है, ताकि लड़कियाँ रजोधर्म वाली अवधि में स्कूल जा सकें और उनकी पढ़ाई का नुकसान न हो।
इसके साथ ही वे स्वस्थ भी रहें। इन दिनों साफ-सफाई का खास ध्यान रखना होता है। ऐसा नहीं करने से लड़कियों / महिलाओं में प्रजनन प्रणाली संक्रमण, मूत्र मार्ग संक्रमण, हैेपेटाइटिस-बी, सर्वाइकल कैंसर आदि होने का खतरा बना रहता है। ‘स्वच्छ भारत : स्वच्छ विद्यालय’ अभियान के तहत उन्हें इन दिनों ज़रूरी सपोर्ट सिस्टम मुहैया कराने पर ज़ोर रहता है।
इसके साथ ही एमएचएम के तहत लड़कियों / महिलाओं के बीच रजोधर्म को लेकर जागरूकता के स्तर को बढ़ाना भी मकसद है। बेशक एमएचएम आधी दुनिया से सीधे तौर पर जुड़ता है, पर इस पर सभी को ध्यान देना चाहिए; क्योंकि इस आधी दुनिया के स्वस्थ रहने से सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तिकरण को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है। हो सकता है कि कम्पनियाँ महिलाओं को पीरियड लीव इसलिए भी दे रही हों, ताकि अगले दिन जब वे काम पर लौटें, तो अपनी पूरी कार्य क्षमता, ऊर्जा के साथ अपना योगदान दे सकें। कुल मिलाकर आज निजी कार्य क्षेत्र के प्रबन्धन और सरकार को आपस में मिलकर पीरियड लीव वाले मुद्दे पर काम करने की ज़रूरत है, ताकि पूरे देश में एक जैसी व्यवस्था लागू हो सके। चाहे वह स्वैच्छिक अवकाश हो, आशिंक अवकाश हो या फिर वर्क फ्रॉम होम वाला विकल्प ही क्यों न हो।