फिल्म अभिनेत्रियाँ बनीं राजनीति का मोहरा

सुशांत सिंह राजपूत मामले में अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को लेकर मीडिया की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं प्रतिभाशाली अभिनेता की मौत का असली मामला कहीं दब-सा गया है। उधर एक और अभिनेत्री कंगना रणौत भी राजनीतिक दंगल का मोहरा बन गयी हैं। पहले उन्हें केंद्र सरकार ने वाई प्लस सिक्योरिटी दी और अब बीएमसी ने उनके एक स्टूडियो में अवैध निर्माण बताकर उस पर बुलडोजर चला दिया। कुल मिलाकर यह मामला इस कदर राजनीति की भेट चढ़ गया कि चैनलों की भडक़ाऊ डिबेट में अनेक लोग रंग गये हैं। भाजपा खुले रूप से कंगना के साथ दिख रही है, और कंगना ठाकरे परिवार और महाराष्ट्र सरकार पर हमले-पर-हमले बोल रही हैं। इस मुद्दे ने देश की चरमरायी अर्थ-व्यवस्था और चीन से भारत के तनाव के मुद्दे से भटकाव का काम किया है, जो कि सत्ताधारी चाहते हैं। एक विश्लेषण :-

आजकल बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री बड़ी चर्चा में है। ऐसा नहीं कि हाल में इंडस्ट्री से कोई बड़ी लाजवाब फिल्में निकली हैं, बल्कि चर्चा दो अभिनेत्रियों- रिया चक्रवर्ती और कंगना रणौत के कारण ज़्यादा है। शुरुआत उदीयमान अभिनेता बिहार के रहने वाले सुशांत सिंह राजपूत की असमय और संदिग्ध हालत में मौत से हुई। कंगना रणौत ही थीं, जिन्होंने सुशांत की मौत को लेकर सवाल खड़े किये और फिर यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। दरअसल इसमें राजनीति घुस गयी, जिसके चलते यह मुद्दा और भी गरमा गया। सुशांत की मौत के कारण का पता लगाना असली मुद्दा था, जो अब भी अनसुलझा ही है। लेकिन ड्रग को आधार बनाकर रिया और उनके साथियों की गिरफ्तारी और कंगना पर खींचतान से मामला दूसरी तरफ ही मुड़-सा गया है। एक तरफ सुशांत की मौत पर सवाल उठाने वाली कंगना खुले रूप से महाराष्ट्र सरकार तथा से उद्धव ठाकरे भिड़ी हुई हैं, तो दूसरी तरफ भाजपा कंगना के सहारे महाराष्ट्र सरकार और कांग्रेस पर निशाना साध रही है।

इसमें कोई दो-राय नहीं कि बॉलीवुड में कलाकारों की संदिग्ध हालात में होने वाली मौतें एक बड़ा मुद्दा है। हाल के वर्षों में कई कलाकारों ने असमय और संदिग्ध हालात में मौत को गले लगाया है। सुशांत सिंह राजपूत की इन्हीं हालात में हुई मौत के बाद जब इस पर जाँच की देश भर में माँग उठी, तो लगा कि शायद अब कोई चौंकाने वाला सच सामने आयेगा। सीबीआई को इसकी जाँच सौंपी गयी, तो जनता का यह भरोसा पुख्ता हो गया कि अब तो सच सामने आयेगा ही। लेकिन अचानक सुशांत की मौत का मुद्दा कहीं भटक गया और इस पर राजनीति हावी हो गयी।

सुशांत सिंह बिहार के रहने वाले थे, जहाँ इसी साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। विपक्ष ने आरोप लगाया कि बिहार के चुनाव को देखते भाजपा इस गम्भीर मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है। महाराष्ट्र पुलिस से जाँच सीबीआई को देने के पीछे भी कारण राजनीति ही बताया गया; क्योंकि आरोप है कि भाजपा केंद्र की एजेंसियों का उपयोग कर महाराष्ट्र में शिव सेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबन्धन सरकार को गिराने का षड्यंत्र कर रही है। यह मसला तब पूरी तरह राजनीतिक रंग ले गया, जब हिमाचल प्रदेश से ताल्लुक रखने वाली अभिनेत्री कंगना रणौत खुले रूप से भाजपा के कन्धे पर सवार होकर महाराष्ट्र सरकार और वहाँ के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ खड़ी हो गयीं। इसी दौरान महाराष्ट्र की बॉम्बे नगर पालिका (बीएमसी) ने उनके दफ्तर में नियम तोडऩे का आरोप लगाते हुए तोड़-फोड़ की, जिससे यह मसला पूरी तरह राजनीतिक रंग ले गया है।

पहले बात कंगना की

यह कोई ढकी-छिपी बात नहीं है कि कंगना भाजपा की समर्थक हैं। महीनों से वह भाजपा के समर्थन वाले ट्वीट अपने अंदाज़ में करती रही हैं। अब यह भी चर्चा है, खासकर हिमाचल में; कि वह भाजपा में शामिल हो सकती हैं। एक भाजपा नेता उन्हें भाजपा में शामिल होने का निमंत्रण भी दे चुके हैं। इसलिए आरोप लग रहे हैं कि भाजपा उनकी लोकप्रियता और बात कहने से नहीं डरने वाले व्यक्तित्व को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है, ताकि महाराष्ट्र सरकार को परेशानी में डाला जा सके। जैसी भाषा कंगना इस्तेमाल कर रही हैं, उससे साफ ज़ाहिर है कि इस फिल्म का निर्देशक कोई और है।

जब कंगना के मुम्बई वाले दफ्तर को लेकर बीएमसी ने नोटिस जारी किया, वह हिमाचल के मनाली में थीं। दो साल पहले बीएमसी ने कंगना रणौत को एक नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि घर में गलत तरीके से बदलाव किया गया है। बीएमसी का आरोप था कि इसमें नियमों का उल्लंघन किया गया है। तब कंगना ने सीटी सिविल कोर्ट में जाकर स्टे ले लिया था। बीएमसी ने पिछले हफ्ते कैविएट फाइल किया, जिसमें उसने कहा कि स्टे ऑर्डर को रद्द किया जाए और उसे तोडऩे की इजाज़त दी जाए। हालाँकि कंगना का कहना है कि बीएमसी ने उन्हें कभी कोई नोटिस नहीं भेजा है, बल्कि उन्होंने अपने ऑफिस के सारे दस्तावेज़ खुद बीएमसी से पास करवाये थे। उन्होंने दो साल पहले के नोटिस की बात को झूठ बताया और कहा कि कम-से-कम सच बोलने की हिम्मत तो रखो। इतना झूठ किसलिए? कल को आपके साथ भी यही होगा।

बता दें खार इलाके में कंगना रणौत का घर डीबी ब्रिज नाम की बिल्डिंग में पाँचवीं मंज़िल पर है। इसमें आठ जगह पर बदलाव किये गये हैं। छज्जा और बालकनी में गलत तरीके से निर्माण का आरोप है। किचिन के एरिया में किये गये बदलाव को भी गलत बताया गया है। इससे पहले बीएमसी ने कंगना रणौत के मुम्बई स्थित मणिकर्णिका फिल्म्स के दफ्तर में कथित अवैध निर्माण गिरा दिया। हालाँकि बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट ने ऑफिस में अवैध निर्माण को गिराने में इतनी जल्दबाज़ी करने के लिए बीएमसी से जवाब माँगा।

कंगना के स्टूडियो पर जब कार्रवाई हुई, तब वह मुम्बई में नहीं थीं। मुम्बई लौटते ही कंगना ने खुले रूप से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर हमला बोल दिया। उन्होंने मूवी माफिया कहते हुए करण जौहर को खुली चुनौती दे दी। कंगना ने एक ट्वीट में लिखा- ‘आओ उद्धव ठाकरे और करण जौहर गैंग। तुमने मेरे काम की जगह तोड़ी है, अब मेरा घर तोड़ दो। मेरा मुँह तोड़ो, शरीर तोड़ो। मैं चाहती हूँ कि दुनिया साफ-साफ देखे कि तुम लोग पीठ पीछे क्या करते हो। मैं मर जाऊँ या ज़िन्दा रहूँ, तुम लोगों को फिर भी एक्सपोज़ करूँगी।’

कंगना मनाली से जब मुम्बई लौटीं, तो जिस तरह उनके समर्थन में एयरपोर्ट में लोगों और संगठनों का जमाबड़ा किया गया, उससे साफ ज़ाहिर है कि भाजपा उन्हें महाराष्ट्र सरकार खासकर ठाकरे परिवार के खिलाफ लामबंद कर रही है। हालाँकि उनकी मुम्बई की तुलना पीओके से करने से वहाँ लोगों में उनके प्रति गुस्सा भी है। जब कंगना ने सुशांत की मौत का मामला उठाया था, तब उन्हें भरपूर समर्थन मिला था। हालाँकि जबसे उनके विरोध में राजनीति की एंट्री हुई, इसका उनके समर्थक वर्ग पर भी असर पड़ा है। फिलहाल कंगना खुले रूप से राजनीति में कूद चुकी हैं। भाजपा भी एक तरह खुलकर उनका साथ दे रही है। पहले से ही यह चर्चा रही है कि भाजपा किसी भी तरह महाराष्ट्र की सरकार को गिराना चाहती है। अब वह कंगना रूपी मोहरे को ठाकरे परिवार और महाराष्ट्र की गठबंधन वाली सरकार के खिलाफ आगे किये हुए है, भले कंगना भाजपा की राजनीति का औज़ार बनने के आरोपों से मना कर रही हो। आने वाले समय में इस जंग में और दिलचस्प घटनाएँ देखने को मिलेंगी।

रिया और मीडिया का रोल

सुशांत सिंह राजपूत की असमय मौत ने भले देश के लाखों लोगों और उनके प्रशंसकों को गहरा सदमा दिया, पर उनकी मौत भी आखिर में एक बेशर्म राजनीतिक तमाशे में बदल दी गयी। विपक्ष का तो आरोप था ही कि भाजपा सुशांत की दु:खद मौत को राजनीति और बिहार चुनाव के लिए इस्तेमाल कर रही है, इसमें मामले में सबसे शर्मनाक पहलू कुछ टीवी चैनलों का रहा। जिस तरह उन्होंने कोर्ट के किसी फैसले और यहाँ तक कि किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ आरोप-पत्र दायर होने से पहले ही किसी को दोषी और कातिल ठहराने वाली पत्रकारिता की, उससे ढेरों मीडिया के रोल पर गम्भीर सवाल उठे हैं। मीडिया ट्रायल का यह शर्मनाक उदाहरण रहा। अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती की जुलाई में इस मामले में तब एंट्री हुई जब सुशांत के परिवार ने उन पर 15 करोड़ रुपये के कथित हेर-फेर का आरोप लगाया। अगस्त में मीडिया ने एक तरह अपना समान्तर ट्रायल करके रिया को ही सुशांत की हत्या और साज़िश आदि का ज़िम्मेदार या उसका हाथ होने का दोषी बना दिया। लेकिन दुर्भाग्य से एक होनहार युवा अभिनेता की संदिग्ध मौत का यह मामला सितंबर आते-आते ड्रग्स के मामले तक सीमित हो गया। इस मामले में कई लोगों से पूछताछ हुई और 8 सितंबर को रिया को एनसीबी ने गिरफ्तार कर लिया। अब फिलहाल ड्रग्स के मामले में कार्रवाई चल रही है। अब यहाँ यह बड़ा सवाल उभर रहा है कि क्या रिया की ड्रग्स मामले में गिरफ्तारी के बाद सुशांत की मौत का मामला ठण्डा पड़ गया है? टीवी चैनलों ने जिस तरह सुशांत की मौत के मामले और ड्रग्स के मामले का घालमेल किया, वह पत्रकारिता का निकृष्ट उदाहरण है। अब यह रिपोर्ट लिखे जाने तक अनुत्तरित हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत आत्महत्या ही थी या उनकी हत्या हुई है। आत्महत्या ही है; और क्या इसके पीछे भी उकसावा था? अगर था, तो किसका था? यह भी सवाल है कि सुशांत की मौत के महीने भर बाद जब 25 जुलाई को उनके परिवार ने बिहार की राजधानी पटना की पुलिस के सामने रिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी, तो उसमें रिया पर सुशांत के पैसे निकालने और उनके बेटे सुशांत को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था। अब ड्रग मामले में रिया की गिरफ्तारी भी हो चुकी; लेकिन इस एफआईआर के मसले अभी भी अनसुलझे हैं। सेशंस कोर्ट ने रिया चक्रवर्ती और उनके भाई शोविक समेत सैमुअल, दीपेश, बासित तथा जैद की जमानत याचिका खारिज कर दी है। इन आरोपों के आधार पर हुई सीबीआई की जाँच में वास्तव में क्या सामने आया है? इसका कोई खुलासा अब तक नहीं हुआ है। देखना है कि आने वाले समय में यह मामला क्या रंग लेता है?