हाल ही में मध्य प्रदेश के गृह मंत्री उमा शंकर गुप्ता ने विधानसभा में जानकारी दी थी कि पिछले तीन साल के दौरान राज्य में कुल 9926 बलात्कार की घटनाएं दर्ज की गईं. 2009 में 3,071, 2010 में 3,220 और 2011 में बलात्कार के 3381 मामले. ये सरकारी आंकड़े हैं और सच छिपाने की अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के बावजूद बेहद भयावह. एक सामान्य गुणा भाग के बाद ही आप समझ सकते हैं कि प्रदेश महिलाओं के रहने के लिए किस हद तक खतरनाक जगह बन चुका है. इन आंकड़ों के हिसाब से आज राज्य में हर दिन तकरीबन 10 महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं.
सरकारी आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि पिछले तीन साल में यौन उत्पीड़न की शिकार 1,961 महिलाओं की हत्या भी की गई. इस चलन का ताजा उदाहरण 24 मार्च को देखने को मिला जब बैतूल की एक 50 वर्षीय, महिला की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि उसने अपनी नाबालिग बेटी के साथ हुए बलात्कार की शिकायत दर्ज करवाई थी. यह मामला राष्ट्रीय स्तर के मीडिया में काफी समय से सुर्खियों में है. इसके अलावा भी महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़ी ऐसी कई घटनाएं बीते दिनों में हुईं जिनकी वजह से प्रदेश लगातार चर्चा में रहा है. इसी साल 18 फरवरी को इंदौर के पास एक कस्बे बेतमा में 16 लोगों द्वारा दो युवतियों के साथ सामूहिक बलात्कार की बात सामने आई थी. आरोपितों में भाजपा व कांग्रेस पार्षदों के बेटे और स्थानीय दुकानदारों से लेकर खेतों में काम करने वाले अधेड़ किसानों तक सभी शामिल थे.
राज्य सरकार इस घटना पर सफाई देने की पूरी स्थिति में आ भी नहीं पाई थी कि देपालपुर क्षेत्र में एक 36 वर्षीय मूक-बधिर महिला के साथ चाकू की नोक पर किए गए सामूहिक बलात्कार का मामला सामने आ गया. राज्य में महिलाओं के यौन उत्पीड़न और उनके प्रति अपराध की एक अनवरत श्रंखला चल रही है. और इनको रोक पाने में सरकार की यह असफलता ही है जिसके चलते महिलाओं के खिलाफ अपराधों की सूची में मध्य प्रदेश पिछले तीन साल से पहले स्थान पर बना हुआ है. इस साल के आंकड़ों पर ही गौर करें तो पता चलता है कि जनवरी से लेकर अभी तक राज्य में बलात्कार के तकरीबन 797 मामले सामने आए हैं. इनमें से 76 मामलों में महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. इस पूरी तस्वीर का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि इनमें से 414 नाबालिग लड़कियां थीं.
कमोबेश एक शांत राज्य की छवि वाले मध्य प्रदेश में ऐसी घटनाएं कई सवाल खड़े कर रही हैं. पहला तो यही कि मध्य प्रदेश बलात्कार या महिला के खिलाफ हिंसा के सबसे दुर्दांत अपराध में अव्वल क्यों है? क्यों राज्य के लगभग हर जिले से इस तरह की घटनाओं की खबरें आ रही हैं? यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि राज्य सरकार की महिला कल्याण के लिए चलने वाली बेहद प्रचारित-प्रसारित योजनाओं के बावजूद इन घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है.
‘बुंदेलखंड और चंबल में बलात्कार के आरोपित इसलिए छूट जाते हैं कि उनमें से ज्यादातर को राजनीतिक प्रश्रय मिला हुआ होता है’
जब हमने इन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश की तो हमें कमजोर पुलिस-प्रशासन, अपराधियों को मिल रहे राजनीतिक प्रश्रय और आपराधिक मानसिकता को संबल प्रदान करने वाले ‘लो कन्विक्शन रेट (आरोपितों के दोषी साबित होने की दर) ‘ जैसे कई कारणों का पता चला. ये सारी वजहें राज्य को एक मध्य युगीन कबीलाई समाज में तब्दील कर रही हैं. इस मसले पर खुल कर आवाज उठाने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक दिनेश जुगरान इन हालात के लिए राज्य में बढ़ रही अराजकता को जिम्मेदार मानते हैं. वे कहते हैं, ‘ पिछले 2 -3 साल के दौरान पूरे राज्य में एक अजीब तरह की अराजकता फैल गई है. ऐसा लगता है जैसे कानून का कोई भय ही नहीं बचा. और ऐसे सामंती मानसिकता के अपराधी जब अपराध करने के बाद भी छूट जाते हैं तो नए अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं. जाहिर है महिलाएं समाज का सबसे कमजोर तबका हैं और इसलिए इस बढ़ती अराजकता का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव भी उन्हीं पर पड़ रहा है.’
मध्य प्रदेश में महिला अधिकारों के लिए लंबे समय से काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ता सारिका सिन्हा का मानना है कि वर्तमान भाजपा सरकार महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को गंभीरता से नहीं लेती. प्रदेश में सक्रिय इस राजनीतिक-आपराधिक कॉकटेल की ओर इशारा करते हुए वे कहती हैं, ‘जब भी बलात्कारों के बढ़ते आंकड़ों पर सवाल उठाओ, सरकार रटा-रटाया जवाब दे देती है कि हमारे यहां मामले दर्ज ज्यादा होते हैं इसलिए नजर भी ज्यादा आते हैं. पर हमारी ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर फर्क बस इतना आया है कि पहले 100 में से चार मामले दर्ज होते थे और अब लगभग 10 दर्ज हो जाते हैं. वर्तमान भाजपा सरकार महिलाओं के मामले में काफी फासीवादी रही है. बुंदेलखंड और चंबल जैसे क्षेत्रों में सरकारी संरक्षण की वजह से ही अपराधी लगातार छूट रहे हैं.’
मध्य प्रदेश में अपराधों के इस चलन के लिए जानकार कई भौगोलिक और सामाजिक कारणों को भी दोषी ठहराते हैं. गौर करने वाली बात है कि मध्य प्रदेश में भारत के कुछ सबसे पिछड़े इलाके आते हैं. लगभग 22 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या वाले इस राज्य में बुंदेलखंड और चंबल जैसे सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े क्षेत्र भी शामिल हैं. जातिगत द्वेष और पुरातन परंपराओं में जकड़े समाज को महिलाओं के साथ हो रही हिंसा की प्रमुख वजह बताते हुए अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की प्रदेश अध्यक्ष संध्या शैली कहती हैं, ‘ज्यादातर मामलों में एक जाति या समाज को नीचा दिखाने या फिर बदला लेने के लिए महिलाओं का इस्तेमाल किया जाता रहा है. इन लोगों का मानना है कि किसी भी जाति को शर्मसार करना हो तो उनकी औरतों का बलात्कार कर दो.’
राज्य महिला आयोग ने हाल की घटनाओं को देखते हुए कुल 11 सिफारिशों का एक ड्राफ्ट प्रदेश सरकार को सौंपा है. आयोग की अध्यक्ष उपमा राय तहलका से बातचीत में कड़ी पुलिसिंग और सख्त जांच प्रक्रिया की पैरोकारी करते हुए कहती हैं, ‘ ज्यादातर मामलों में अपराधी सबूतों की कमी की वजह से छूट रहे हैं. गवाहों और पीड़ित महिला को भी डरा-धमका कर पक्षद्रोही बना दिया जाता है. वजह यह भी है कि पुलिस सामने दिखने वाले सबूतों को भी नजरंदाज कर देती है. कड़ी जांच और सघन तहकीकात से दोषियों को सजा दिलवाई जा सकती है. और यही किसी भी बलात्कार पीड़ित महिला के लिए सबसे बड़ी सांत्वना है.’