महाराष्ट्र सरकार का एक साल, थोड़ी खुशी, थोड़ा गम जैसा हाल

देखते ही देखते महाविकास आघाड़ी की सरकार के कार्यकाल का एक साल पूरा हो गया और उसने महाराष्ट्र में गठन की पहली सालगिरह मनायी। शरद पवार के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री उद्धव बालासाहेब ठाकरे सिर्फ 5 वर्ष नहीं, बल्कि पूरे 25 वर्ष सरकार चलाने का दावा कर रहे हैं। गत एक वर्ष में बतौर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने लबालब आत्मविश्वास का प्रदर्शन किया वही अन्य मंत्री एक सीमित दायरे तक ही सिमट गये। एक तरह से महाराष्ट्र सरकार का हाल थोड़ी खुशी, थोड़ा गम की तरह है।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना का ज़ोर था, वहीं विपक्ष में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस पार्टी और अन्य जमकर लड़े थे। अपेक्षानुसार भाजपा और शिवसेना को अच्छी-खासी सफलता मिली और सरकार बनना तय माना जा रहा था। इस अभियान में मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद हुआ और इसे समय पर रोकने में भाजपा नेतृत्व कम पड़ा। इसका लाभ उठाकर शरद पवार ने पहले शिवसेना को विश्वास में लिया और बाद में कांग्रेस को भी मनाकर महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी का गठन किया। उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया गया। आज एक वर्ष पूर्ण होने के पश्चात् सरकार गिरने वाली है, जैसी खबरें चलाने वाले के मुँह पर कड़ा तमाचा है। भाजपा भी सरकार गिरने का इंतज़ार में थी। पर उसका भी मोहभंग हो चुका है। एक वर्ष का कार्यकाल की समीक्षा करना आसान नहीं है। वैसे आघाड़ी में मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे की प्रतिभा पूरे देश में लोकप्रियता के शिखर पर है और उनकी हर तार्किक बात से जनता भी गम्भीरता से लेती है। लेकिन टीम का कप्तान ठीकठाक हो, तो इतने मात्र से मैच जीतना आसान नहीं होता, जब तक अन्य सदस्य अपना उचित और लाभदायक योगदान न दें। दो-चार मंत्रियों को छोड़ा जाए, तो उनका हर मंत्री, पार्टी का एजेंडा हो या सरकारी निर्णय; इनमें पिछड़ गया है। लॉकडाउन में स्वास्थ्य मंत्री की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। राजेश टोपे राष्ट्रवादी से आते हैं। इन्होंने पहले कुछ दिन उत्साह दिखाया। लॉकडाउन में गृह विभाग भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। गृह मंत्री अनिल देशमुख फोन पर भी बात करने से कतराते थे। इसी तरह अजित पवार, अशोक चव्हाण, बालासाहेब थोरात, वर्षा गायकवाड़, दादा भिसे जैसे मंत्री भी कुछ खास नहीं कर पाये। ग्रामविकास मंत्री जयंत पाटील, सामाजिक मंत्री धनंजय मुंडे, पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे, वैद्यकीय शिक्षा मंत्री अमित देशमुख, अल्पसंख्यक मंत्री नवाब मलिक, वस्त्रोद्योग मंत्री असलम शेख इनका विभाग सक्रिय दिखायी दिया। कुछ मंत्री सोशल मीडिया पर ही सक्रिय दिखे, जिसका लाभ आम लोगों को नहीं मिल पाया।

वैसे मंत्री और विधायक आम बातचीत में स्वीकार करते हैं कि उनसे कुछ नहीं हो पाया और दूसरे ही पल कोरोना को ज़िम्मेदार मानकर खुद की असफलता को छिपाते हैं। कोरोना के चलते विकास का काम ठप हुआ। जिन्होंने काम भी किया, उनका बिल अटका हुआ है। कोरोना पर कुल कितनी रकम खर्च की गयी है? इसके आँकड़े सार्वजनिक नहीं किये जा रहे हैं। पारदर्शिता और जबाबदेही से सरकार भाग रही है; जबकि विभाग स्तर पर उसे आँकड़े सार्वजनिक करने चाहिए।

महाविकास आघाड़ी सरकार का रिमोट शरद पवार के हाथ में है, यह चर्चा मुख्यमंत्री ठाकरे और सरकार को प्रभावित करती है। एक बार निर्णय लेने के बाद जब उसे बदला जाता है, तब सरकार की किरकिरी होना स्वाभाविक है। इससे यह भी संकेत मिलते हैं कि तीनों पार्टियों में तालमेल नहीं है। पहली सालगिरह के मौके पर जारी विज्ञापन यथार्थ से दूर थे और सिर्फ प्रचार तक सीमित रहे।