किसी भी समझदार व्यक़्तिके मन में अब यह शंका नहीं कि मणिपुर में एन. बीरेन सिंह सरकार विफल रही है। पुलिसकर्मियों की मौज़ूदगी में जब वहाँ की दो महिलाओं को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र करके घुमाया गया, उनका बलात्कार किया गया और इसकी एक वीडियो क्लिप भी वायरल हुई, तब भी राज्य सरकार कार्रवाई करने में विफल रही। बीरेन प्रशासन दूसरी बार तब विफल रहा, जब पुलिस-शस्त्रागार से गोला-बारूद सहित लगभग 4,000 हथियार जबरन छीन लिए गये। पुलिसकर्मी भी इसमें विफल रहे, क्योंकि उन्होंने इसका बिलकुल भी विरोध नहीं किया। आज जब मणिपुर क़रीब तीन महीने से उबल रहा है, आरोप है कि अपराधियों के हथियार लूटने की घटना को अंजाम देने में पुलिसकर्मियों की भी मिलीभगत थी। राज्य प्रशासन अपने नागरिकों की रक्षा करने में भी विफल रहा, जिससे वहाँ 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जबकि हज़ारों को विस्थापित होना पड़ा है।
अपराध की बर्बरता पर भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया कि अगर कोई वीडियो नहीं होता, तो क्या होता? मुख्य न्यायधीश ने साफ़ कहा कि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की ज़िम्मेदारी है; तब और, जब वह जानती है कि उत्तर-पूर्व दशकों से उग्रवाद का केंद्र रहा है। ऐसे में अन्य राज्यों में हिंसा के मामलों को मणिपुर की घटना के साथ उद्धृत करना महिलाओं का अपमान है। मणिपुर एक अनुपस्थित सरकार और एक निष्प्रभावी पुलिस का उदाहरण है। मणिपुर की घटनाएँ राज्य सरकार और उसके पुलिस बल की छवि पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
‘तहलका’ की विशेष जाँच टीम ने इसे समझने के लिए मणिपुर के कुछ लोगों से बातचीत की, जिसमें पाया कि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। जाँच के दौरान ‘तहलका एसआईटी’ ने एक दिलचस्प रहस्योद्घाटन किया कि कैसे संघर्षग्रस्त राज्य में युद्धरत मैतेई और कुकी समुदायों के बीच मुसलमान एक अद्वितीय पुल के रूप में उभरे हैं।
वर्तमान अंक में ‘मणिपुर में मुस्लिम होना, मतलब सुरक्षित’ शीर्षक से हमारी कवर स्टोरी से पता चलता है कि मणिपुर में मुसलमान अब कुकी और मैतेई दोनों के मित्र हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि मणिपुर के मध्य में स्थित इंफाल घाटी के चारों ओर एक सीमा रेखा खिंच गयी है। एक ओर जहाँ मैतेई पहाड़ों पर नहीं जा सकते, वहीं कुकी नीचे घाटी में नहीं जा सकते। इस अलिखित नियम का उल्लंघन करने वालों के मारे जाने का ख़तरा रहता है। मैतेई और कुकी समुदायों के बीच की इस भौतिक खाई को केवल वही लोग पार कर सकते हैं, जो न तो दोनों समुदायों के मित्र हैं और न ही विरोधी। इसी के चलते मुस्लिम समुदाय के सदस्य एक अद्वितीय बफर के रूप में उभरे हैं और इन दिनों मणिपुर में मुस्लिम होने का मतलब सुरक्षित होना है। शायद इसीलिए मौज़ूदा परिस्थितियों में इस हिंसा-ग्रस्त राज्य में जाने वाले लोग अपनी सुरक्षा के लिए किसी परिचित मुस्लिम या मुस्लिम ड्राइवर को साथ रखते हैं।
मणिपुर में क़रीब तीन महीने से चल रही नस्ली हिंसा के बाद दोनों समुदायों के बीच विभाजन और गहरा गया है। दोनों समुदायों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास,ग़ुस्सा और यहाँ तक कि नफ़रत भी बढ़ गयी है। नफ़रत और अविश्वास के इस माहौल में ‘तहलका’ ने विशेष रूप से एक ऐसे मुद्दे को छुआ, जिसे अब तक किसी अन्य मीडिया संगठन ने नहीं उठाया है। मौज़ूदा परिस्थियों में मणिपुर में यह आम धारणा है कि यहाँ ‘मुस्लिम होना, मतलब आप सुरक्षित हैं!’