जब देश में कोरोना महामारी को लेकर मार्च के आखिरी सप्ताह में लाँकडाउन लगा था, तब रोजी-रोटी कमाने आये मजदूरों को नौकरी जाने के कारण, अपने गांवों में जाने को मजबूर होना पड़ा था। वो भी तब संसाधन व वाहन नहीं थी , पैदल मजदूर अपने घरों में गये थे। अब अनलाँक होने से मजदूर फिर से शहरों में रोजी–रोटी और रोजगार के लिये आने लगे है।
मौजूदा समय में देश में खासकर शहरों में फिर से कोरोना की रफ्तार बढ़ने से अब इन मजदूरों को लोग शक की नजर से देखने लगे और आते –जाते लोग तंज कस रहे है कि कोरोना के मामलों के बढ़ने की जड़ दिल्ली फिर से आ रही है। मजदूरों का कहना है कि वे दिल्ली के पिछडे इलाकों में गरीब वस्तियों में रहते है। गरीबी के मारे है । लेकिन उनको कोरोना जैसी बीमारी नहीं है । फिर अब अफवाहें फैलाई जा रही है कि दिल्ली में बिहार , मध्य-प्रदेश और उत्तर –प्रदेश से जो मजदूर आ रहे है, उससे दिल्ली में कोरोना बढ रहा है। जबकि ये सच्चाई नहीं है।
उत्तर–प्रदेश, मध्य –प्रदेश और बिहार के मजदूरों ने तहलका संवाददाता को बताया कि दिल्ली में कोरोना की जांच चल रही है । जो बीमार हो रहे है। वे गांवों में भी हो रहे है । लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि जो दिल्ली में रोजी-रोटी के लिये वो ही कोरोना महामारी लेकर आ रहा है। मजदूर भोले सिंह ने बताया कि उनके भाई रमेश को बैक पैन की शिकायत पर दिल्ली सरकार के डीडीयू अस्पताल ले जा रहे थे, तभी कुछ लोगों ने कहा कि बीमारी फैलाने आ गये हो । गरीबी का मारा भोले सिंह सुनता रहा लेकिन उसके भाई रमेश की कहा सुनी हो गयी । मामला इतना बिगड गया बिना इलाज के ही भोला सिंह और रमेश को अपने घर आना पडा।
इसी तरह दिल्ली एनसीआर में तामाम तरह के मामले सामने आ रहे है। मजदूर नेता पीयूष कुमार ने बताया कि ये सरकार की लचर और दोहरी नीतियों का नतीजा है जो आज ऐसे मामले सामने आ रहे है। क्योंकि एक ओर तो सरकार का कहना है कि काम मे तेजी लाओं और वही कुछ लोग इस तरह का वाताबरण पैदा कर रहे है कि कोरोना के बढते मामलों को लेकर मजदूरों को दोषी ठहराकर अपनी गलतियों को छिपाने का प्रयास किया जा रहा है । फिलहाल जो भी हो पर मजदूरों के आने से कोरोना की संख्या नही बढ रही है । लेकिन ये बात बडी जोर- शोर उठाई जा रही है बाहरी लोगों के आने से कोरोना की गति ने जोर पकडा है। ये सब कोरोना से ध्यान भटकाने का खेल है ।