मजदूरों को लॉकडाउन खुलने का इंतजार, गांव जाने को है तैयार

न बचा पैसा, न खाने की चीजें, जैसे-तेसे गिन-गिनकर काट रहे हैं दिन

दिल्ली में दिन ब दिन बढ़ते कोरोना वायरस के मामले इस कदर लोगों में भय फैला रहे हैं कि अब लोगों को लगने लगा है कि ये महामारी आसानी से जाने वाली नहीं है। इस महामारी को काबू करने में स्वास्थ्य महकमे और सरकार को काफी समय लगेगा। ऐसे हालात में देश भर में लॉकडाउन के कारण लोगों का आना और जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। मौजूदा वक्त में खासकर उन लोगों को काफी दिक्कत हो रही है। जिनकी माली हालत कमजोर है। ऐसी ही हालत मध्य प्रदेश जिले के टीकमगढ़ जिले के मजदूरों की है।

दिल्ली के नरेला इलाके में टीकमगढ़ जिले के वैसा गांव से कमलेश के साथ 18 मजदूर अपने परिवार के साथ 16 मार्च को मजदूरी करने को आये थे। तब उनको काम और दाम भी मिलने लगा था। फिर अचानक कोरोना वायरस का कहर ऐसा सितम बनकर आया कि उनका काम 22 मार्च से पूरी तरह से बंद हो गया। कमलेश का कहना है कि उनको इस बात का अंदाजा बिलकुल भी नहीं था कि पूरा देश एक दिन बंद हो जाएगा। कमलेश के साथ आये मजदूरों का कहना है कि 16 मार्च से 21 मार्च तक जो काम किया उसका दाम मिला था। अब वो पैसा पूरी तरह से खर्च हो गया है। उन्होंने घरों से भी पैसा किसी परिचित के एकाउन्ट में मंगवाये थे। अब वो भी खर्च हो गये। गांव में भी घर वालों की स्थिति व माली हालत खराब है। ऐसे में पैसे के अभाव में उनको खाना -खाने की दिक्कत हो रही है।

तहलका संवाददाता को कमलेश और उनके साथियों ने बताया कि दिल्ली सरकार की ओर से जो स्कूलों में खाना दिया जा रहा है। वो उनके घरों से 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में आने-जाने के लिए वाहन चल नहीं रहे हैं। और कोरोना वायरस का संक्रमण होने का भय सता रहा है। उन्होंने बताया कि मजदूरों के लिए जो भी हेल्प लाइन सेंवाएं सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं, वो पूरी तरह से खानापूर्ति कर रही हैं। कमलेश ने बताया कि हेल्पलाइन नम्बर पर जब भी फोन लगाकर अपनी दिक्कत बताते हैं, तो वो पूछताछ करते हैं और पता, आधार कार्ड का नम्बर मांगते और खाते की पूरी डिटेल भी। जो पूछा जाता है, हम बताते हैं फिर भी राहत राशि के नाम पर अभी तक एक पैसा भी नहीं आया। हेल्पलाइन में दोबारा फोन लगाकर राहत राशि के लिए गुहार लगाते हैं तो जबाव के तौर पर बस एक ही जबाव आता है कि जल्दी पैसा आ जाएगा।

कमलेश के साथी रतन का कहना है कि सरकार कुछ दे या न दें, बस इतना कर दें कि गांव पहुचा दें, ताकि वे अपने घरों में जाकर रोटी तो आराम से खा सकें। क्योकि अब उनके कोरोना के अलावा ये भी डर सताने लगा है। कि कहीं कोरोना वायरस से कोई दिक्कत हो या ना हो पर इतना जरूर है कि पैसा और खाना के अभाव में कहीं कोई और शारीरिक और मानसिक परेशानी को मुशीबत में न डाल दें। ऐसे हालात है कि अस्पतालों में इलाज भी सही तरीके से न हो सकें।

यहीं हाल उत्तर -प्रदेश के बांदा जिले के अनूप का है। वह 20 मार्च को दिल्ली आये थे। अनूप मूलरूप से बांदा जिले के महुआ के रहने वाले हैं। वे काम की तलाश में अपने दोस्त सूरज के पास बबाना में रुके थे। सूरज प्रोपर्टी डीलर के यहां काम करता था। अब काम बंद होने के कारण वे सिर्फ इसी इंतजार में कब लॉक डाउन खुले और अपने घर गांव जाए। अनूप और सूरज ने बताया कि सरकार जो दावा कर रही है कि खाना ओर रहने की व्यवस्था की जा रही है। वो सब यूं ही दिखावा है। न तो खाने की गुणवत्ता सही है और न ही रहने की व्यवस्था सही है।