कैग रिपोट्र्स में केंद्र सरकार की कई परियोजनाओं में पायी गयी गड़बड़ी
भ्रष्टाचार पर तब तक रोक नहीं लग सकती, जब तक सरकार भ्रष्ट अधिकारियों पर शिकंजा नहीं कसेगी। सरकार की अनदेखी के चलते भ्रष्टाचार नहीं रुक पाते। कैग की ऑडिट रिपोर्ट में कई केंद्रीय योजनाओं में ख़ामियाँ पायी गयी हैं। बता रहे हैं मुदित माथुर :-
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के कामकाज और प्रदर्शन में गम्भीर प्रक्रियात्मक और वित्तीय विसंगतियों को उजागर किया है। प्रमुख और कल्याणकारी योजनाओं-परियोजनाओं में वित्तीय विसंगतियों को लेकर विपक्षी दलों की ने सरकार की कड़ी आलोचना की है। विपक्षी दलों ने भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शी शासन और सार्वजनिक धन के उचित आवंटन और भारत के लोगों से प्रधानमंत्री मोदी के अतिशयोक्तिपूर्ण चुनावी वादों के पीछे की वास्तविकता पर भी सवाल उठाये हैं।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 12 ऑडिट रिपोट्र्स जारी की हैं, जिन्हें संसद के मानसून सत्र में संविधान के अनुच्छेद-151 के तहत संवैधानिक आवश्यकता के तहत संसद के रिकॉर्ड में पेश किया गया था। वित्तीय विसंगतियों पर प्रकाश डालने वाली ये रिपोट्र्स सार्वजनिक शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने का आह्वान करती हैं।
भारतीय संविधान ने सर्वोच्च सार्वजनिक निधि लेखा परीक्षक कैग को राजस्व प्राप्तियों और सार्वजनिक धन के ख़र्च पर कड़ी निगरानी रखने के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करने के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों की समेकित निधि से कोई दुरुपयोग या हेराफेरी होने पर संसद को रिपोर्ट करने के लिए बाध्य किया है।
विभिन्न प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के धन के उपयोग का ऑडिट करते हुए कैग ने ‘भारतमाला’, ‘आयुष्मान भारत’, ‘उड़ान’, ‘स्वदेश दर्शन योजना’, बीपीएल में आने वालों की पेंशन के लिए राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) निधि के उपयोग और मंत्रालय की अन्य योजनाओं का प्रचार करने में प्रमुख राजकोषीय ख़ामियों को उजागर किया। इसके अलावा 2021-22 वित्तीय वर्ष में रेलवे के प्रदर्शन के परिचालन अनुपात में गिरावट और अस्वीकृत व्यय करने की निरंतर प्रवृत्ति का कैग ने पहले ही उल्लेख किया था।
भारतमाला परियोजना
2017-18 से 2020-21 की अवधि के लिए आयोजित ‘भारतमाला परियोजना के चरण-1 के कार्यान्वयन’ (या बीपीपी-1) पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट में राजमार्ग परियोजना- भारतमाला परियोजना चरण-1 (बीपीपी-1) के कार्यान्वयन में गम्भीर विसंगतियों को उजागर किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है :-
‘कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा परियोजनाओं के आवंटन में अनियमितताओं के अलावा निविदा की निर्धारित प्रक्रियाओं में स्पष्ट उल्लंघन पाये गये। अर्थात् कहीं सफल बोलीदाता ने निविदा शर्तों को पूरा नहीं किया, या कहीं ग़लत दस्तावेज़ों के आधार पर बोलीदाता का चयन किया गया, या अनुमोदित विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के बिना या दोषपूर्ण विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के आधार पर उन्हें काम सौंपा गया।’
रिपोर्ट में द्वारका एक्सप्रेस-वे परियोजना के बजट में भारी वृद्धि का भी पता चला है, जिसे दिल्ली और गुरुग्राम के बीच एनएच-48 को 14-लेन राष्ट्रीय राजमार्ग के रूप में विकसित करके जाम कम करने के उद्देश्य से प्राथमिकता दी गयी थी। दरअसल परियोजना की प्राथमिकता देश भर में माल ढुलाई और लोगों की आवाजाही को अनुकूलित करने की थी। अक्टूबर, 2017 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने 74,942 किलोमीटर लम्बाई के राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास के लिए भारतमाला परियोजना नामक एक नये छत्र कार्यक्रम को मंज़ूरी दी थी। उपरोक्त लम्बाई में से राष्ट्रीय राजमार्गों की लम्बाई 34,800 किलोमीटर, जबकि शेष राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) की लम्बाई 10,000 किलोमीटर है। इस भारतमाला परियोजना (बीपीपी-1) के चरण-ढ्ढ के तहत सितंबर, 2022 तक विकास के लिए 5,35,000 करोड़ रुपये के निवेश परिव्यय को मंज़ूरी दी गयी थी। परियोजना के तहत सात घटक हैं। जैसे- आर्थिक कॉरिडोर्स (गलियारे), अंतर-गलियारे और फीडर सडक़ें, राष्ट्रीय गलियारे / राष्ट्रीय गलियारा दक्षता सुधार कार्यक्रम, सीमाएँ और अंतरराष्ट्रीय सम्पर्क सडक़ें, तटीय और बंदरगाह कनेक्टिविटी सडक़ें, ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेस-वे और शेष एनएचडीपी परियोजनाएँ। भारतमाला परियोजना का कार्यान्वयन सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (एमओआरटीएच) द्वारा अपनी कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से कराया जाता है। जैसे- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई), राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल), सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की सडक़ शाखा और राज्य लोक निर्माण विभाग इत्यादि।
द्वारका एक्सप्रेस-वे
रिपोर्ट में कहा गया है कि द्वारका एक्सप्रेस-वे की योजना शुरू में हरियाणा सरकार ने गुडग़ाँव-मानेसर शहरी निर्माण योजना-2031 के तहत बनायी थी। इस परियोजना के तहत हरियाणा ने 25 मीटर के मुख्य कैरिज-वे के निर्माण के लिए 150 मीटर रास्ते का अधिकार (सडक़ की चौड़ाई) का अधिग्रहण किया, जिसमें 7 मीटर चौड़ा मीडियन और ट्रंक सेवाओं के लिए एक समर्पित उपयोगी कॉरिडोर था। हालाँकि रिपोर्ट में कहा गया है कि हरियाणा सरकार द्वारा आगे कोई प्रगति नहीं होने के कारण इस परियोजना को बाद में सीसीईए द्वारा बीपीपी-1 में मंज़ूरी दे दी गयी थी।
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि इस उद्देश्य के लिए हरियाणा द्वारा 90 मीटर रास्ते का अधिकार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को मुफ़्त में सौंप दिया गया था। दरअसल 14 लेन के राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण के लिए 70-75 मीटर तक चौड़ाई (रास्ते) की आवश्यकता होती है। हालाँकि रिकॉर्ड पर किसी भी कारण के बिना 19 किलोमीटर लम्बी हरियाणा क्षेत्र की इस परियोजना को आठ-लेन एलिवेटेड मेन कैरिज-वे के साथ और ग्रेड रोड पर छ: लेन के साथ योजनाबद्ध किया गया था, जबकि एनएचएआई के पास पहले से ही 90 मीटर के रास्ते का अधिकार था और यह ग्रेड में 14 लेन के निर्माण के लिए पर्याप्त था। इस तरह की विशाल संरचनाओं के कारण 29.06 किलोमीटर की लम्बाई के लिए ईपीसी (इंजीनियरिंग, ख़रीद और निर्माण) प्रणाली पर निर्मित इस परियोजना में अनुमोदित 18.20 करोड़ रुपये की प्रति किलोमीटर निर्माण लागत के मुक़ाबले 250.77 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर यानी 7,287.29 करोड़ रुपये की निर्माण लागत को सीसीईए द्वारा मंज़ूरी दी गयी थी।
एमओआरटीएच ने द्वारका एक्सप्रेस-वे को चार परियोजनाओं में विभाजित करके (नवंबर, 2018 में) इसके निर्माण को प्राथमिकता दी। एनएचएआई ने 7,287.29 करोड़ रुपये की सिविल लागत के साथ इन चार परियोजनाओं के निर्माण को (जनवरी-मार्च 2018 में) मंज़ूरी दी। इन परियोजनाओं के नवंबर, 2020 से सितंबर, 2022 के बीच पूरा करना था। इन परियोजनाओं ने 31 मार्च, 2023 तक 60.50 प्रतिशत से 99.25 प्रतिशत के बीच वास्तविक प्रगति हासिल की थी। द्वारका एक्सप्रेस-वे को 250.77 करोड़ रुपये की प्रति किलोमीटर लागत पर राष्ट्रीय राजमार्ग-48 के समानांतर चलने वाले 14 लेन के राष्ट्रीय राजमार्ग में विकसित करके दिल्ली से गुरुग्राम के बीच एनएच-48 का भार कम करने के लिए इस परियोजना का निर्माण किया जा रहा था, जबकि आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने राष्ट्रीय कॉरिडोर / राष्ट्रीय गलियारा दक्षता सुधार कार्यक्रम के लिए महज़ 18.20 करोड़ रुपये की प्रति किलोमीटर लागत को मंज़ूरी दी थी।
परियोजना के व्यवहार्यता अध्ययन के अनुसार, दिल्ली से गुरुग्राम के बीच एनएच -48 पर चलने वाले औसतन 3,11,041 दैनिक यातायात में से 2,88,391 यानी 92.72 प्रतिशत यात्री-वाहन शामिल थे। इनमें से 2,32,959 यानी 80.78 प्रतिशत यात्री-वाहन केवल अंतर-शहर यातायात वाले थे।
राष्ट्रीय राजमार्ग-48 पर ( दिल्ली-गुरुग्राम यातायात, जो गुडग़ाँव सीमा पार नहीं करता था) खेडक़ी दौला टोल को पार नहीं कर रहा है। बीपीपी-ढ्ढ के तहत द्वारका एक्सप्रेस-वे की प्राथमिकता की समीक्षा करते समय कैग ने निम्नलिखित तथ्य पाये :-
कोई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट नहीं
द्वारका एक्सप्रेस-वे की अलग-अलग परियोजनाओं का मूल्यांकन (दिसंबर, 2017-फरवरी, 2018) परियोजना मूल्यांकन और तकनीकी जाँच समिति द्वारा किया गया था और एनएचएआई बोर्ड द्वारा परियोजना (जनवरी-मार्च, 2018) के लिए किसी भी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के बिना अनुमोदित किया गया था, जो आज तक तैयार नहीं किया गया है। यहाँ तक कि एनएचएआई द्वारा परियोजना के अनुमोदन के बाद परियोजना की अंतिम व्यवहार्यता रिपोर्ट (सितंबर, 2018) प्रस्तुत की गयी थी। कैग जाँच में पाया गया कि द्वारका एक्सप्रेस-वे की चार परियोजनाओं का मूल्यांकन किया गया था और बिना किसी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के एनएचएआई के सम्बन्धित तकनीकी प्रभाग द्वारा एक संक्षिप्त प्रस्तुति के आधार पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुमोदित किया गया था।
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार न करने के प्रभाव ये हुए कि द्वारका एक्सप्रेस-वे की सभी 14 लेन के निर्माण के लिए एनएचएआई के पास रिकॉर्ड पर पर्याप्त रास्ता उपलब्ध होने के बावजूद इसे बिना किसी कारण के आठ लेन एलिवेटेड रोड और ग्रेड रोड पर छ: लेन के साथ बनाया जा रहा था। इस परियोजना के लिए 250.77 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर की सिविल लागत बहुत अधिक थी। द्वारका एक्सप्रेस-वे की नियोजित टोल दरें और टोलिंग तंत्र परियोजना की पूँजीगत लागत की वसूली में बाधा डाल सकते हैं।
इससे दिल्ली-गुडग़ाँव (खेडक़ी दौला टोल प्लाजा तक) के बीच जाने वाले यात्रियों पर अनुचित वित्तीय बोझ भी पड़ सकता है। आरआरटीएस एसएनबी के विकास के रूप में द्वारका एक्सप्रेस-वे की लेनों के बीच की दूरी प्रतिस्पर्धी बुनियादी ढाँचे के विकास का विश्लेषण किये बिना निर्धारित की गयी थी। दिल्ली से गुरुग्राम तक भारी यातायात के बावजूद इस ग्रेड भाग का निर्माण 20 मिलियन स्टैंडर्ड एक्सेल ट्रैफिक के उप-सर्वोत्तम विनिर्देशों के साथ किया जा रहा था; जिसमें हरियाणा क्षेत्र में पडऩे वाली इस परियोजना के ग्रेड भाग में छ: लेन का उपयोग करने की उम्मीद थी। व्यवहार्यता अध्ययन में द्वारका एक्सप्रेस-वे की अनुमानित मिट्टी का कैलिफोर्निया अनुपात मूल्य ठेकेदार द्वारा विचार किये गये कैलिफोर्निया अनुपात मूल्य की तुलना में कम था, जिसके परिणामस्वरूप निर्माण की लागत में ठेकेदार को बचत हुई।
इस गड़बड़ी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा- ‘इस योजना में धोखाधड़ी का एक स्पष्ट उदाहरण द्वारका एक्सप्रेस-वे है। कैग ने इसका ख़ुलासा किया है कि इस परियोजना की लागत मूल रूप से 528.8 करोड़ रुपये आँकी गयी थी; लेकिन यह बाद में 1,278 प्रतिशत की भारी वृद्धि के साथ 7,287.2 करोड़ रुपये तक पहुँच गयी! द्वारका एक्सप्रेस-वे का मूल्यांकन किया गया और बिना किसी विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के इसे मंज़ूरी दी गयी। नियोजित टोल दरें परियोजना की पूँजीगत लागत की वसूली में बाधा डालेंगी और इसके परिणामस्वरूप यात्रियों पर अनुचित वित्तीय बोझ पड़ेगा। द्वारका एक्सप्रेस-वे के लेन-विन्यास को आस-पास के प्रतिस्पर्धी बुनियादी ढाँचे के विकास का विश्लेषण किये बिना निर्धारित किया गया था। खडग़े ने कहा कि प्रधानमंत्री जी! आपको अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का राग अलापने से पहले अपने भीतर झाँकने की ज़रूरत है; क्योंकि आप ख़ुद इसकी देख-रेख कर रहे हैं। इसके लिए 2024 में भारत आपकी सरकार को जवाबदेह बनाएगा।’
द्वारका एक्सप्रेस-वे के निर्माण की उच्च लागत को लेकर चिन्ता जताने वाली कैग-रिपोर्ट पर उठे राजनीतिक विवाद के जवाब में केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कैग की इस टिप्पणी को ख़ारिज कर दिया कि इसे बनाने में 250 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर ख़र्च किये गये। निर्माण की उच्च लागत के आरोपों को ख़ारिज करते हुए नितिन गडकरी ने कहा कि द्वारका एक्सप्रेस-वे 29 किलोमीटर लम्बा नहीं, बल्कि लगभग 230 किलोमीटर लम्बा है; क्योंकि इसमें सुरंगें भी शामिल हैं।
इस हिसाब से प्रति किलोमीटर 9.5 करोड़ रुपये ख़र्च किये जा रहे हैं। गडकरी ने दावा किया कि उन्होंने कैग अधिकारियों को भी यही बताया और वह स्पष्टीकरण से आश्वस्त थे। हालाँकि उन्होंने कहा कि फिर भी वह रिपोर्ट का पूरा अध्ययन करेंगे। एक उच्च स्तरीय समीक्षा बैठक में द्वारका एक्सप्रेस-वे के निर्माण की लागत के सम्बन्ध में कैग द्वारा उठाये गये सवालों के जवाब के लिए ज़िम्मेदार कुछ अधिकारियों द्वारा अपनाये गये एकतरफ़ा रवैये पर गडकरी ने अपनी नाराज़गी व्यक्त की है। उन्होंने अपने मंत्रालय के सम्बन्धित वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से इस चूक की ज़िम्मेदारी तय करने का भी निर्देश दिया।
टोल नियमों का उल्लंघन करके वसूले करोड़ों
दक्षिण भारत में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के केंद्रीय सडक़ परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की टोल संचालन पर कैग रिपोर्ट में पाया गया है कि पाँच टोल प्लाजा में टोल-नियमों का उल्लंघन करते हुए यात्रियों से कुल 132.05 करोड़ रुपये की राशि वसूल की गयी। यह ऑडिट पाँच दक्षिणी राज्यों- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में स्वतंत्र रूप से चुने गये 41 टोल प्लाजा पर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि मौज़ूदा चार लेन राजमार्गों के उन्नयन के सम्बन्ध में 16 दिसंबर, 2013 के एनएच शुल्क संशोधन नियम-2013 को लागू न करके एनएचएआई ने निर्माण की देरी के कारण इस अवधि के दौरान तीन टोल प्लाजा (नाथावालसा, चलागेरी, हेब्बलू) में उपयोगकर्ताओं शुल्क वसूलना जारी रखा।
हालाँकि संशोधित नियम में कहा गया है कि विलंबित अवधि के लिए कोई उपयोगकर्ता शुल्क नहीं लिया जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप मई, 2020 से मार्च, 2021 की अवधि के दौरान संशोधित टोल शुल्क नियमों का उल्लंघन करते हुए 124.18 करोड़ रुपये का उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र किया गया। रिपोर्ट में पाया गया कि परनूर टोल प्लाजा पर एनएचएआई ने शुल्क को लागू शुल्क से 75 प्रतिशत तक कम करने में देरी की। मडापम टोल प्लाजा पर संशोधित शुल्क नियमों के अनुसार उन्नयन के दौरान कोई संशोधन नहीं करने की शर्त के बावजूद एनएचएआई ने सालाना उपयोगकर्ता शुल्क में संशोधन किया। एनएचएआई ने अगस्त, 2018 से मार्च, 2021 तक दो टोल प्लाजा पर सडक़ उपयोगकर्ताओं से 7.87 करोड़ रुपये एकत्र किये।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रकार इन पाँच टोल प्लाजा में टोल संग्रह से सडक़ उपयोगकर्ताओं पर 132.05 करोड़ रुपये का अनुचित बोझ पड़ा। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि एनएचएआई ने 2017-2018 से 2020-2021 के दौरान सार्वजनिक वित्त पोषित परनूर टोल प्लाजा पर सडक़ उपयोगकर्ताओं से 22.10 करोड़ रुपये का अतिरिक्त टोल शुल्क वसूला।
सन् 1954 में एक पुल का निर्माण किया गया था और इसके लिए उपयोगकर्ता शुल्क एकत्र किया जा रहा था, फिर से एनएच शुल्क द्वितीय संशोधन नियम-2011 का उल्लंघन किया गया था। चूँकि नियमों के तहत पुल का निर्माण सन् 1956 से पहले किया गया था, इसलिए उपयोगकर्ता शुल्क नहीं लगाया जाना था। ऑडिट में यह भी पाया गया कि एनएच शुल्क नियम-2008 द्वारा निर्धारित समय सीमा के अनुसार सार्वजनिक वित्त पोषित परियोजनाओं के चार खंडों में टोल संग्रह में देरी से एनएचएआई को 64.60 करोड़ रुपये के राजस्व का नुक़सान हुआ।
स्वास्थ्य योजनाओं में गड़बड़ी
पीएम-जेएवाई को दुनिया की सबसे बड़ी पूरी तरह से सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजना माना जाता है, जिसे 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले सितंबर, 2018 में कल्याणकारी उपायों के एक प्रमुख बूस्टर मुद्दे के रूप में लॉन्च किया गया था। इस योजना का उद्देश्य 50 करोड़ से अधिक ग़रीब परिवारों को मुफ़्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना है।
इस योजना के तहत प्रति परिवार सालाना पाँच लाख रुपये तक का इलाज प्रदान किया जाता है। कैग ने भारत के संविधान के अनुच्छेद-151 के तहत भारत के राष्ट्रपति के माध्यम से संसद में पेश अपनी ऑडिट रिपोर्ट में ख़ुलासा किया है कि सरकार की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएमजेएवाई) में सब कुछ ठीक नहीं है। इसमें योजना के कार्यान्वयन में स्पष्ट ख़ामियाँ पायी गयी हैं, जिसमें धन का दुरुपयोग, फ़र्र्ज़ी खाते, उचित सुबूत के बिना धन जारी करने और यहाँ तक कि उन रोगियों के नाम पर भुगतान किये गये दावे भी शामिल हैं, जो पहले ही मर चुके हैं।
आयुष्मान भारत को लेकर किये गये ऑडिट में कैग ने कहा है कि योजना की लाभार्थी पहचान प्रणाली (बीआईएस) में कुल मिलाकर 7,49,820 लाभार्थियों को एक ही मोबाइल नंबर से जोड़ा गया है। इसी तरह सात आधार नंबरों पर 4,761 पंजीकरण किये गये। गुमशुदा अस्पतालों को सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत नामांकित किया गया है।
बीआईएस डेटाबेस के डेटा विश्लेषण से पता चला है कि एक ही या अमान्य मोबाइल नंबर से बड़ी संख्या में लाभार्थी पंजीकृत थे। कुल मिलाकर 1,119 से 7,49,820 लाभार्थियों को बीआईएस डेटाबेस में एक ही मोबाइल नंबर से जोड़ा गया। एबी-पीएमजेएवाई के तहत कुल 7,49,820 लाभार्थी एक ही अमान्य मोबाइल नंबर 9999999999 से जुड़े थे। इसके अलावा 1,39,300 लाभार्थी एक अमान्य मोबाइल नंबर 8888888888 पर पंजीकृत थे; जबकि 96,046 लाभार्थी दूसरे अमान्य मोबाइल नंबर 9000000000 से जुड़े थे। रिपोर्ट में ख़ुलासा किया गया है कि कम से कम 20 सेलफोन नंबर भी थे, जिनसे 10,001 से 50,000 लाभार्थी जुड़े हुए थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 7.87 करोड़ लाभार्थी परिवारों को पंजीकृत किया गया था, जो 10.74 करोड़ (नवंबर 2022) के लक्षित परिवारों का 73 फ़ीसदी था। बाद में सरकार ने लक्ष्य बढ़ाकर 12 करोड़ कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटाबेस में किसी भी लाभार्थी से सम्बन्धित रिकॉर्ड खोजने के लिए मोबाइल नंबर महत्त्वपूर्ण हैं, जिनसे आईडी के बिना पंजीकरण डेस्क से सम्पर्क किया जा सके। ई-कार्ड खो जाने की स्थिति में लाभार्थी की पहचान करना भी मुश्किल हो सकता है। इससे पात्र लाभार्थियों को योजना के लाभों से वंचित किया जा सकता है और साथ ही प्रवेश से पहले और बाद के संचार से इनकार किया जा सकता है, जिससे उन्हें असुविधा हो सकती है।
दिलचस्प बात यह है कि कैग की ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया कि केरल में ऐसे मामले अपेक्षाकृत अधिक हैं, जो नीति आयोग स्वास्थ्य सूचकांक और अन्य सामाजिक स्वास्थ्य मापदंडों में पहले स्थान पर हैं। इस योजना के तहत मरीज़ बिना आधार या आधार नामांकन पर्ची के केवल एक बार इलाज का लाभ उठा सकता है। उसे आगे एक हस्ताक्षरित घोषणा-पत्र प्रदान करना अनिवार्य है, जिसमें कहा गया है कि वह अपने अगले उपचार से पहले आधार प्रस्तुत करेगा।
हालाँकि कैग की रिपोर्ट में पाया गया कि 8.2 लाख मरीज़ों ने 1,678.68 करोड़ रुपये के संचयी दावे निपटान के लिए आधार या किसी अन्य बायोमेट्रिक प्रमाण के बिना दो या दो से अधिक बार इलाज का लाभ उठाया।
केरल के मामले
सूची में सबसे ऊपर केरल में सितंबर, 2018 और मार्च, 2021 के बीच बायोमेट्रिक सत्यापन के बिना दो या अधिक बार 2.02 लाख रोगियों ने उपचार का लाभ उठाया और उन्हें 472.64 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इसके बाद छत्तीसगढ़ का स्थान रहा, जहाँ ऐसे मरीज़ों को 234.86 करोड़ रुपये के दावे का भुगतान किया गया। रिपोर्ट में पाया गया कि पहले मृतकों को मरीज़ बनाकर उनके नामों से हज़ारों दावे किये गये। मृतकों का मरीज़ों के रूप में इलाज भी इस योजना के तहत किया गया।
केरल में 966 मृतकों का मरीज़ों के नाम पर इस तरह के दावे किये गये। मृत्यु दर के मामलों के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि योजना के तहत निर्दिष्ट उपचार के दौरान 88,760 रोगियों की मृत्यु हो गयी। इन रोगियों के सम्बन्ध में नये उपचार से सम्बन्धित कुल 2,14,923 दावों को सिस्टम में भुगतान के रूप में दिखाया गया है। ऐसे 3,903 मामलों में 3,446 मरीज़ों से सम्बन्धित 6.97 करोड़ रुपये के दावों का भुगतान अस्पतालों को किया गया। उन्हें 2.61 करोड़ रुपये की दावा राशि का भुगतान किया गया था।
मृत मरीज़ों के नाम पर 403 दावों के साथ मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर आता है। रिपोर्ट में दिये गये निष्कर्षों के आलोक में योजना के कार्यान्वयन में सुधार की आवश्यकता है। यह उम्मीद की जाती है कि इस रिपोर्ट में की गयी टिप्पणियों और सिफ़ारिशों के अनुपालन से योजना के कार्यान्वयन में सुधार करने में मदद मिलेगी।
उड़ान योजना में गड़बड़ी
कैग रिपोर्ट में राष्ट्रीय नागर विमानन नीति-2016 के प्रावधानों के अनुसरण में शुरू की गयी नागर विमानन मंत्रालय की क्षेत्रीय सम्पर्क योजना ‘उड़ान’ की अनुपालन लेखा परीक्षा के महत्त्वपूर्ण परिणाम शामिल हैं। रिपोर्ट में उल्लिखित उदाहरण अक्टूबर, 2016 से मार्च, 2021 के बीच ऑडिट के दौरान ध्यान में आये थे; जहाँ मार्च, 2023 तक की अवधि से सम्बन्धित आँकड़ों को रिपोर्ट करने तक किया गया। राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (एनसीएपी)-2016 में राजकोषीय सहायता और बुनियादी ढाँचे के विकास के माध्यम से क्षेत्रीय हवाई सम्पर्क बढ़ाने के लिए एक क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना (आरसीएस) की परिकल्पना की गयी है।
इसके अनुसार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय (एमओसीए) ने (अक्टूबर, 2016 में) क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) योजना शुरू की। इस योजना का उद्देश्य उपायों की एक शंृखला के माध्यम से क्षेत्रीय हवाई सम्पर्क की सामथ्र्य को बढ़ावा देना है। उड़ान-3 तक आवंटित मार्गों में से 52 प्रतिशत (774 मार्गों में से 403) परिचालन शुरू नहीं कर सके और 371 शुरू किये गये मार्गों में से केवल 112 मार्गों (30 प्रतिशत) ने तीन साल की पूर्ण रियायत अवधि पूरी की। इसके अलावा इन 112 मार्गों में से 17 आरसीएस हवाई अड्डों को जोडऩे वाले केवल 54 मार्ग (यानी आवंटित मार्गों का 7 प्रतिशत) मार्च, 2023 तक तीन साल की रियायत अवधि से परे परिचालन को बनाये रख सके। सन् 2016 में शुरू की गयी इस योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय हवाई सम्पर्क की सामथ्र्य को बढ़ावा देना और कम सेवा वाले हवाई अड्डों का नवीनीकरण करना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 371 शुरू किये गये मार्गों में से केवल 30 प्रतिशत (112 मार्गों) ने तीन साल की पूर्ण रियायत अवधि पूरी की।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 112 मार्गों में से 17 आरसीएस (क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना) हवाई अड्डों को जोडऩे वाले केवल 54 मार्ग (आवंटित मार्गों के 7 प्रतिशत) मार्च, 2023 तक तीन साल की रियायत अवधि से आगे परिचालन जारी रख सकते हैं। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि मार्च, 2017 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा स्वीकृत बजटीय समर्थन में से पहचान किये गये आरसीएस हवाई अड्डों के पुनरुद्धार या विकास में देरी हुई। क्षेत्रीय हवाई सम्पर्क निधि के लेन-देन के लेखांकन के लिए भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार मानक प्रचालन प्रक्रिया (एसओपी) पाँच वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी तैयार नहीं की गयी थी। इसके अलावा स्थापना के बाद से क्षेत्रीय हवाई सम्पर्क निधि न्यास के खातों की भी कैग को ऑडिट रिपोर्ट नहीं भेजी गयी थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 116 हवाई अड्डों / हेलीपोर्ट / पानी के हवाई अड्डों पर ख़र्चा किया गया था, जिनमें से केवल 71 (61 फ़ीसदी) हवाई अड्डों / हेलीपोर्ट / पानी के हवाई अड्डों पर परिचालन शुरू हुआ। 1,089 करोड़ रुपये के ख़र्च के बाद भी 83 हवाई अड्डों / हेलीपोर्ट / पानी के हवाई अड्डों पर परिचालन शुरू नहीं किया जा सका या बन्द कर दिया गया।
स्वदेश दर्शन योजना
स्वदेश दर्शन योजना (जनवरी, 2015) देश में पर्यटन के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए पर्यटन मंत्रालय द्वारा शुरू की गयी प्रमुख केंद्रीय योजना है। शुरुआत से अब तक इस योजना के तहत कुल 76 परियोजनाएँ स्वीकृत की गयी हैं। यह योजना थीम-आधारित पर्यटक परिपथों के एकीकृत विकास के लिए तैयार की गयी थी। मंत्रालय ने इस योजना के तहत विकास के लिए 15 पर्यटक परिपथों की पहचान की है, जिनमें हिमालयी परिपथ, पूर्वोत्तर परिपथ, कृष्णा परिपथ, बौद्ध परिपथ, तटीय परिपथ, मरुस्थल परिपथ, जनजातीय परिपथ, इको परिपथ, वन्यजीव परिपथ, ग्रामीण परिपथ, आध्यात्मिक परिपथ, रामायण परिपथ, विरासत परिपथ, तीर्थंकर परिपथ और सूफ़ी परिपथ आदि शामिल हैं। मंत्रालय ने योजना आयोग / वित्त मंत्रालय की आपत्ति के बावजूद योजना शुरू की और अतिव्यापी उद्देश्यों वाली योजनाओं का विलय करके एक अम्ब्रेला योजना तैयार करने के लिए स्थायी वित्त समिति की सिफ़ारिश पर कार्यवाही नहीं की। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके परिणामस्वरूप मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित विभिन्न योजनाओं में गुंजाइश का अतिव्यापीकरण हुआ। इनमें से अधिकांश योजनाएँ 2021-22 में भी चल रही थीं। इस प्रकार योजनाओं के प्रसार और युक्तिकरण को रोकने के लिए सरकार का उद्देश्य हासिल नहीं किया गया।
पर्यटन मंत्रालय ने मंत्रिमंडल के अनुमोदन के बिना स्वदेश दर्शन योजना के लिए धन स्वीकृत किया। जनवरी, 2015 में योजना की शुरुआत से मार्च, 2022 तक पर्यटन मंत्रालय द्वारा लागू स्वदेश दर्शन योजना की ऑडिट से पता चला है कि योजना को 500 करोड़ रुपये के प्रारम्भिक परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था। मंत्रालय ने परियोजनाओं को मंज़ूरी देना जारी रखा और 2016-17 तक स्वीकृत राशि 4,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय ने मंत्रिमंडल की मंज़ूरी के बिना धन की मंज़ूरी दी, जो 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली परियोजनाओं को मंज़ूरी देने के लिए ज़रूरी था। लेकिन योजना को किसी भी व्यवहार्यता अध्ययन के बिना लागू किया गया था। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार नहीं किये जाने के कारण स्थलों की पहचान ठीक से नहीं हो पायी और परियोजनाओं के क्रियान्वयन में कमियाँ रहीं; जैसे परियोजनाओं को पूरा करने में देरी और धन का उपयोग नहीं किया गया। 31 मार्च, 2022 तक ग्रामीण सर्किट के तहत किया गया कुल व्यय केवल 30.84 करोड़ रुपये था, जो योजना के तहत किये गये कुल ख़र्च का केवल 0.73 प्रतिशत था। ग्रामीण सर्किट को मंत्रालय से उपयुक्त ध्यान नहीं मिला, क्योंकि इसने परियोजनाओं के मूल्यांकन और अनुमोदन के लिए एक औपचारिक तंत्र विकसित नहीं किया। मंत्रालय की ओर से उचित योजना की कमी थी, क्योंकि इसने योजना शुरू करने से पहले राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय योजना की तैयारी सुनिश्चित नहीं की थी।
कहीं का पैसा कहीं लगाया
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम- केंद्र सरकार (सिविल), ग्रामीण विकास मंत्रालय के ऑडिट पर कैग की रिपोर्ट में पाया गया है कि योजना के प्रचार के लिए आवंटित धन को मंत्रालय द्वारा अन्य योजनाओं के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया था। ऑडिट में 2017-18 से 2020-21 के बीच की अवधि को शामिल किया गया है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) ग़रीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों को वृद्धावस्था, विकलांगों, विधवाओं और प्राथमिक कमाने वाले की मृत्यु के मामले में सामाजिक सहायता लाभ प्रदान करने के लिए है।
एनएसएपी में पाँच उप-योजनाएँ शामिल हैं, जिनमें से तीन पेंशन योजनाएँ हैं, जिनमें इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (आईजीएनओएपीएस), इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (आईजीएनडब्ल्यूपीएस) और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना (आईजीएनडीपीएस) शामिल हैं। अन्य दो उप-योजनाएँ राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (एनएफबीएस) हैं- कमाने वाले की मृत्यु की स्थिति में शोक संतप्त परिवार को एकमुश्त सहायता और अन्नपूर्णा योजना। इसमें पात्र वृद्ध व्यक्तियों को खाद्य सुरक्षा, जो आईजीएनओएपीएस के तहत संरक्षित नहीं किये गये हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एनएसएपी के तहत आईईसी (सूचना, शिक्षा और संचार) गतिविधियों के लिए निर्धारित 2.83 करोड़ रुपये का फंड अन्य योजनाओं के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसलिए आईईसी गतिविधियों के लिए धन निर्धारित किये जाने के बावजूद एनएसएपी के सम्भावित लाभार्थियों के बीच जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से आईईसी गतिविधियों को शुरू नहीं किया जा सका। ऑडिट में बताया गया है कि लाभार्थियों की सक्रिय पहचान के लिए निर्धारित प्रक्रिया के अभाव के साथ-साथ आईईसी गतिविधियों की कमी के परिणामस्वरूप एनएसएपी के दायरे से पात्र लाभार्थियों को शामिल करने में देरी / ग़ैर-कमी हुई है और लाभार्थियों की सार्वभौमिक कवरेज प्राप्त नहीं हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जनवरी, 2017 में मंत्रालय के सभी कार्यक्रमों / योजनाओं के उचित प्रचार के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में होर्डिंग्स के माध्यम से अभियान चलाने का $फैसला किया था। जून, 2017 में राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की प्रत्येक राजधानी में 10 होर्डिंग की सीमा के साथ होर्डिंग के माध्यम से प्रचार अभियान के लिए प्रशासनिक मंज़ूरी और 39.15 लाख रुपये की वित्तीय मंज़ूरी ली गयी थी। 19 राज्यों के लिए प्रत्येक ज़िले में पाँच होर्डिंग्स के माध्यम से ग्राम समृद्धि, स्वच्छ भारत पखावाड़ा और मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं की प्रचार सामग्री के लिए 2.44 करोड़ रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति और व्यय स्वीकृति (अगस्त, 2017) ली गयी थी। इसके बाद जून और सितंबर, 2017 में कार्य आदेश जारी किये गये और सितंबर, 2017 में प्रचार अभियान चलाया जाना था। उक्त अभियान के लिए धन राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना के तहत उपलब्ध बताया गया था और सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसी मद के तहत ख़र्च करने के लिए अनुमोदित किया गया था।
हालाँकि ऑडिट में पाया गया कि वास्तव में सामाजिक सुरक्षा कल्याण-एनएसएपी योजनाओं से धन ख़र्च किया गया था। हालाँकि वर्क ऑर्डर में केवल पीएमएवाई-जी (प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण) और डीडीयू-जीकेवाई (दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना) योजनाओं के विज्ञापन का उल्लेख किया गया था और एनएसएपी की किसी भी योजना को वर्क ऑर्डर में शामिल नहीं किया गया था। इसके अलावा विभाग को सूचना के तहत डीएवीपी (विज्ञापन और दृश्य प्रचार निदेशालय) द्वारा अभियान चलाया जाना था। हालाँकि डीएवीपी को भुगतान काम के निष्पादन की पुष्टि के बिना किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना सार्वभौमिक कवरेज को शामिल करने के लिए है। लेकिन रिपोर्ट में पाया गया कि इसे माँग-संचालित मोड में लागू किया जा रहा था, जहाँ लाभ केवल उन लाभार्थियों को प्रदान किये गये थे, जिन्होंने एनएसएपी के तहत पेंशन / लाभ के लिए आवेदन किया था। इसमें 18.78 करोड़ रुपये की धनराशि में गड़बड़ी हुई है। इसमें कहा गया है कि एनएसएपी के प्रमुख सिद्धांतों में से एक पेंशन का नियमित मासिक वितरण है, जबकि आठ राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में एनएसएपी के तहत प्राप्त धन या तो सम्बन्धित राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों या कार्यान्वयन एजेंसियों के पास बेकार पड़ा है। इसमें बिहार, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जम्मू और कश्मीर और त्रिपुरा शामिल थे।
रिपोर्ट में पाया गया कि आठ राज्यों में 18.78 करोड़ रुपये एक से पाँच साल की अवधि के लिए बेकार पड़े थे। इसमें कहा गया है कि वित्त वर्ष के अन्त में धन जारी किये जाने, प्रशासनिक विभाग से धन का पुन: सत्यापन न होने, दोहराव और लाभार्थियों की ग़ैर-स्वीकार्य आयु सीमा जैसे कारण हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से वित्तीय निगरानी की कमी को भी दर्शाता है, जो लाभार्थियों को पेंशन के अनियमित भुगतान में प्रकट होता है।
रेल मंत्रालय द्वारा अस्वीकृत व्यय
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारतीय रेलवे की वित्तीय स्थिति चिन्ताजनक क्षेत्र में पहुँच गयी है और राष्ट्रीय रेलवे ऑपरेटर ने 2021-22 के दौरान 100 रुपये कमाने के लिए 107 रुपये ख़र्च किये हैं; क्योंकि पेंशन के वित्तपोषण के लिए उच्च विनियोग है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में 31 मार्च, 2022 को समाप्त वर्ष के लिए भारतीय रेलवे के वित्त खातों की जाँच से उत्पन्न मामलों पर ऑडिट अवलोकन शामिल हैं। यह विभिन्न मापदंडों के आधार पर रेलवे की वित्तीय स्थिति पर ध्यान केंद्रित करता है और इसमें इसके खातों के विनियोजन पर लेखा परीक्षा निष्कर्ष शामिल हैं। हाल के वर्षों में रेलवे का पूँजीगत व्यय बढ़ रहा है। इसके वित्तीय प्रदर्शन ने 2016-17 से 2021-22 तक छ: वर्षों में व्यय से अधिक कमायी की अधिकता या अधिशेष में गिरावट दिखायी है। केंद्र सरकार के खातों के वित्तीय ऑडिट पर कैग की रिपोर्ट में पाया गया कि रेल मंत्रालय ने अस्वीकृत व्यय किया था। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान मंत्रालय ने 6082.77 करोड़ रुपये का अस्वीकृत व्यय किया था, जिसमें 1,937 मामले शामिल थे। 2020-21 के दौरान 97.45 प्रतिशत के परिचालन अनुपात की तुलना में 2021-22 में रेलवे का वित्त बजट अनुमानों में 96.15 प्रतिशत के लक्ष्य के मुक़ाबले कम रहा। 2021-22 में रेलवे का परिचालन अनुपात 107.39 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018-19 से 2020-21 के लिए पिछली-सी एंड एजी ऑडिट रिपोर्ट में इसी तरह की ऑडिट टिप्पणियाँ की गयी थीं। इस प्रकार स्पष्ट है कि पिछली कैग ऑडिट रिपोर्ट में बताये जाने के बावजूद मंत्रालय द्वारा अस्वीकृत व्यय के मामलों को कम करने के लिए कोई क़दम नहीं उठाया गया था।
कैग ऑडिट में पाया गया कि रेलवे द्वारा आंतरिक संसाधनों के अपर्याप्त सृजन के परिणामस्वरूप सकल बजटीय सहायता (जीबीएस) और अतिरिक्त बजटीय संसाधनों (ईबीआर) पर अधिक निर्भरता है। ईबीआर की राशि 71,065.86 करोड़ रुपये थी, जो 2020-21 की तुलना में 42.31 प्रतिशत कम थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि माल ढुलाई से होने वाले मुना$फे का इस्तेमाल करते हुए यात्री किराये पर क्रॉस-सब्सिडी दी जाती है। क्रॉस-सब्सिडी एक चिन्ता का विषय बनी हुई है; क्योंकि रेलवे स्लीपर क्लास में किराया बढ़ाने में सक्षम नहीं है।
कैग के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में रेलवे का नुक़सान पिछले वर्ष की तुलना में कम हो गया। लेकिन माल ढुलाई से 36,196 करोड़ रुपये के पूरे लाभ का उपयोग क्रॉस-सब्सिडी और यात्री और अन्य कोच सेवाओं के संचालन पर नुक़सान की भरपाई के लिए किया गया।
कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग के सम्बन्ध में वस्तु-मदवार व्यय के प्रवृत्ति विश्लेषण से पता चला है कि पिछले पाँच वर्षों के दौरान बजट अनुमान के 40 प्रतिशत से 96 प्रतिशत की लगातार बचत हुई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पिछले वर्षों के रुझानों को ध्यान में रखे बिना बजट अनुमान चरण में कम योजना को दर्शाता है। ये सभी रिपोट्र्स सामूहिक रूप से जवाबदेह शासन, वित्तीय दिशा-निर्देशों के पालन, सार्वजनिक धन की सुरक्षा के लिए मज़बूत निरीक्षण तंत्र के कार्यान्वयन और विभिन्न सरकारी पहलों के प्रभावी निष्पादन को सुनिश्चित करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर प्रकाश डालती हैं।
हमने द्वारका एक्सप्रेस-वे में निर्माण के ख़र्च को कम किया है। इस एक्सप्रेस-वे के निर्माण में 12 फ़ीसदी पैसा बचाया गया है। विपक्षी नेता अगर एक्सप्रेस-वे के निर्माण में घोटाला साबित कर दें, तो मैं हर सज़ा के लिए तैयार हूँ।’’
नितिन गडकरी
केंद्रीय सडक़ परिवहन मंत्री
भाजपा का भ्रष्टाचार और लूट देश को नरक के रास्ते पर ले जा रहे हैं। मोदी सरकार के ख़िलाफ़ सामने आयी एक जाँच रिपोर्ट में कैग ने बताया है कि भारतमाला परियोजना किसके साथ बनायी जा रही है? इसमें अनगिनत कमियाँ, परिणाम मापदंडों का अनुपालन न करना, निविदा बोली प्रक्रिया का स्पष्ट उल्लंघन और भारी धन कु-प्रबंधन है।’’
मल्लिकार्जुन खडग़े
कांग्रेस अध्यक्ष (एक ट्वीट में)