भारत में एनजीओ की भरमार

 समाज सेवा के नाम पर करोड़ों रुपये की मदद लेकर लाखों एनजीओ खा रहे मेवा

 देश में 32 लाख एनजीओ होने का मतलब है, 438 लोगों पर एक एनजीओ

समाज सेवा और दबे-कुचले तबक़ों को न्याय दिलाने के नाम पर बने नॉन गवर्नमेंटल ऑर्गेनाइजेशन (एनजीओ) यानी ग़ैर-सरकारी संगठनों की आज दुनिया भर में भरमार है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में तक़रीबन 32 लाख से भी ज़्यादा एनजीओ और लाखों समाजसेवी संगठन हैं। इन एनजीओ की नींव सन् 1945 से पडऩी शुरू हुई। सन् 1945 में ही संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद-71 में एनजीओ को परिभाषित किया गया है। भारत में जितने एनजीओ हैं, उनमें 22,762 एनजीओ एफसीआरए से पंजीकृत हैं, जिनमें  31 दिसंबर 2021 से 31 दिसंबर 2022 तक के लिए सिर्फ़ 16,829 एनजीओ के लाइसेंसों को नवीनीकृत किया गया है।

हालाँकि एनसीओ की निश्चित और औपचारिक परिभाषा नहीं है और इन्हें सरकारी प्रभाव से स्वतंत्र ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के रूप में पारिभाषित किया जाता है; लेकिन फिर भी एनजीओ सरकारी धन प्राप्त कर रहे हैं। इतना ही नहीं, इन एनजीओ को दानदाताओं से भी जमकर मदद मिलती है। आज देश के जितने भी एनजीओ हैं, उनमें से अधिकतर सरकारी और ग़ैर-सरकारी वित्त पोषित हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इनमें से ज़्यादातर एनजीओ समाज सेवा और निचले तबक़ों की मदद के नाम पर सिर्फ़ ख़ानापूर्ति करके मोटी कमायी करने में लगे हैं। लेकिन इसके लिए सिर्फ़ एनजीओ ज़िम्मेदार नहीं है, बल्कि सरकार में बैठे मंत्री और एनजीओ को फंड जारी करने वाले सरकारी अधिकारी व कर्मचारी भी बराबर के दोषी हैं, जो रिश्वत, शराब और अय्याशी के लिए बिक जाते हैं।

सोचिए, आज की तारीख़ में देश में तक़रीबन हर 438 लोगों पर एक एनजीओ है, इसके बावाजूद न तो समाज में कोई सुधार हो रहा है और न ही सशक्तिकरण। इन एनजीओ की काम करने प्रकृति अलग-अलग होती है, जिसके तहत कोई ग़रीब बच्चों की शिक्षा के लिए चलाया जा रहा है, कोई दबे-कुचले लोगों को न्याय दिलाने के नाम पर चलाया जा रहा है, कोई एनजीओ महिलाओं को न्याय दिलाने और उनके सशक्तिकरण के लिए चलाया जा रहा है, कोई नशा मुक्ति के लिए चलाया जा रहा है, तो कोई एनजीओ समाज में एकता के लिए चलाया जा रहा है। लेकिन बहुत कम एनजीओ ही ऐसे हैं, जो अपने काम को ठीक से अंजाम दे रहे हैं। इसके बाद भी उनके काम के तरीक़े और एनजीओ मालिकों की ईमानदारी को देखे बग़ैर हर साल करोड़ों का सरकारी फंड इन एनजीओ को आँख मूँदकर जारी कर दिया जाता है। कई लाख एनजीओ सरकार और सरकारी ठेकेदारों से मिलकर करोड़ों रुपये डकार रहे हैं और आज भी समाज के उस तबक़े के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं, जिसके नाम पर यह मोटा फंड हड़प रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि इन एनजीओ की जाँच करने को कोई राज़ी नहीं है।

देश के उद्धार के नाम से लगातार बढ़ते इन एनजीओ को मानव कल्याण की जगह अगर मानव विनाश का कारण कहा जाए, तो ग़लत नहीं होगा। पिछले समय में सीबीआई ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत पंजीकृत एनजीओ के आँकड़े जमा करने को कहा था; लेकिन इस पर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों की लापरवाही साफ़ देखने को मिली। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को देश के अन्दर काम कर रहे एनजीओ की जाँच करते हुए उनकी संख्या बताने को कहा था।

सन् 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई से कहा था कि वह जाँच करे कि देश में चल रहे एनजीओ बैलेंस शीट फाइल कर रहे हैं या नहीं, उनकी आय कितनी है? उनका कामकाज कैसा है? और वे एनजीओ के लिए ज़रूरी सभी नियमों का पालन करते हैं या नहीं? इसके बाद सीबीआई द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में जमा हलफ़नामे में बताया था कि देश के 26 राज्यों में 31 लाख और सात केंद्र शासित प्रदेशों में 82,000 एनजीओ पंजीकृत हैं। जबकि तीन राज्यों- कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना सरकारों ने अपने राज्यों में पंजीकृत एनजीओ की कोई जानकारी नहीं दी थी। उस समय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले उत्तर प्रदेश में 5,48,000 एनजीओ हैं, जो देश के दूसरे प्रदेशों में सबसे ज़्यादा है। दूसरे सबसे ज़्यादा एनजीओ महाराष्ट्र में हैं, जिनकी संख्या 5,18,000 है। वहीं केरल में 3,70,000, पश्चिम बंगाल में 2,34,000, दिल्ली में 76,000 से ज़्यादा एनजीओ पंजीकृत हैं।

सीबीआई के दबाव के बावजूद देश के सभी एनजीओ में से सिर्फ़ 10 फ़ीसदी एनजीओ ने ही रजिस्ट्रार ऑफ सोसायटी में बैलेंस शीट जमा की और अपना रिकॉर्ड जमा कराया है। फिर क्यों न बाक़ी 90 फ़ीसदी एनजीओ की जाँच की जाए और उन्हें बन्द किया जाए? लेकिन यह काम इसलिए आसान नहीं है, क्योंकि ज़्यादातर एनजीओ नेताओं, मंत्रियों और उनके चहेतों के हैं। यही कारण है कि लेन-देन और काम के मामले में देश के ज़्यादातर एनजीओ पारदर्शिता नहीं रखते हैं।

लेकिन कुछ एनजीओ देश में इतना अच्छा काम कर रहे हैं, जिन्होंने मिसाल पेश की हुई है। इनमें से कई एनजीओ को कई-कई बार सम्मान मिल चुका है। कोरोना-काल में मरीज़ों की मदद के लिए बना डॉक्टर्स फॉर यू नाम का एनजीओ अच्छा काम कर रहा है। इसके अलावा सन् 2002 में बना स्माइल फाउंडेशन निर्धन और साधनहीन बच्चों की शिक्षा के लिए अच्छा काम कर रहा है। इस एनजीओ ने ग़रीब तबक़े के बच्चों की शिक्षा, रोज़गार, ग़रीब परिवारों के स्वास्थ्य और ग़रीब महिलाओं के सशक्तिकरण पर काफ़ी काम किया है। कई पुरस्कार जीतने वाली डॉक्यूमेन्ट्री ‘आई एम कलाम’ भी स्माइल फाउंडेशन से सहायता पाने वाले बच्चों पर ही बनायी गयी थी।

वहीं नन्हीं कली नाम के एनजीओ की स्थापना सन् 1996 में आनंद महिंद्रा ने की थी। आज यह एनजीओ बेटियों की शिक्षा को लेकर काफ़ी बड़े स्तर पर काम कर रहा है। नन्हीं कली में 21 अन्य एनजीओ काम कर रहे हैं। नन्हीं कली का हर साल तक़रीबन 1,00,000 बच्चियों को शिक्षित करने का लक्ष्य रहता है। गिव इंडिया फाउंडेशन भी 200 से ज़्यादा भारतीय एनजीओ के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन डोनेशन प्लेटफॉर्म की तरह काम करता है। यह एनजीओ अपने दान किये पैसों की पारदर्शिता और विश्वसनीयता के लिए प्रसिद्ध है, जो ज्वॉय ऑफ गिविंग वीक नाम से नेशनल मीडिया इवेंट करके फंड इकट्ठा करके दान के रास्ते तैयार करता है। गूँज नाम का एनजीओ एक अच्छा काम करने वाला भारतीय एनजीओ है। गूँज को फोब्र्स मैगजीन में भारत के सबसे शक्तिशाली ग्रामीण उद्यमी संगठन के रूप में सूचीबद्ध किया जा चुका है। यह एनजीओ भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोज़गार को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। इसका वस्त्र सम्मान कार्यक्रम काफ़ी मशहूर है। इसके अलावा गूँज एनजीओ शहरों से कपड़े, किताबें और अन्य चीज़ें एकत्रित करके गाँव के ज़रूरतमंद लोगों तक पहुँचाता है।

वहीं साल 1978 में हेल्पएज इंडिया नाम के एनजीओ की नींव रखी गयी। आज यह एनजीओ भारत के ग़रीब, असहाय और अकेले रहने वाले बुजुर्गों के कल्याण के लिए काम करता है।

सवाल यह है कि हर साल विश्व एनजीओ दिवस मनाया जाता है; लेकिन इस समय किसी भी एनजीओ से उसके कामकाज का ब्योरा नहीं माँगा जाता, ताकि उसके चलने या न चलने को लेकर निर्णय लिया जा सके और सरकारी पैसे के दुरुपयोग को रोका जा सके। $कानून की धारा-12 की उप धारा चार के खंड (बी) के तहत एनजीओ खोलने वाले व्यक्ति को एनजीओ की मौज़ूदगी तीन साल तक कम-से-कम 15,000 रुपये ख़र्च करके उस क्षेत्र में नि:स्वार्थ काम किया हो, जिसके लिए वह रजिस्टर्ड हुआ है, तभी उसे सरकारी मदद मिल सकती है। इसके बाद एनजीओ को जो भी सरकारी या ग़ैर-सरकारी फंड प्राप्त हो, उसका साफ़ ब्योरा रखना और उस फंड को ईमानदारी से ख़र्च करना एनजीओ की पहली ज़िम्मेदारी है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है और देश के ज़्यादातर एनजीओ सरकारी तथा ग़ैर-सरकारी फंड प्राप्त करके उसे लगातार हड़प रहे हैं। अगर देश के सभी एनजीओ की पूरी निष्ठता से जाँच की जाए, तो आधे से ज़्यादा एनजीओ सिर्फ़ पैसा खाऊ निकलेंगे।