भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) भारत की वित्तीय वर्ष 2019 की विकास दर को कम दिखाने के मामले में एडीबी, विश्व बैंक, ओईसीडी, आरबीआई, आईएमएफ और अन्य वैश्विक एजेंसियों में शामिल हो गया है। एसबीआई की 12 नवंबर, 2019 को जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे समग्र अग्रणी संकेतक बताते हैं कि वित्त वर्ष 20 की पहली तिमाही में जीडीपी की वृद्धि 5.0 प्रतिशत से भी कमज़ोर होकर 4.2 प्रतिशत रह सकती है और इसका आधार कमज़ोर ऑटोमोबाइल बिक्री, एयर ट्रैफिक मूवमेंट में कमी, कोर सेक्टर की ग्रोथ का सपाट रहना और कंस्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश में गिरावट है।
एसबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि इन सब कारणों के चलते 4.2 प्रतिशत तक गिर सकती है, जबकि वित्त वर्ष 20 के लिए विकास दर का अनुमान अब 6.1 से घटकर 5 प्रतिशत हो गया है। पहली तिमाही में भारत की जीडीपी पहले ही छ: साल के न्यूनतम 5 प्रतिशत पर थी। एसबीआई ने कहा कि मौसम विभाग के अनुसार, मध्य भारत और दक्षिणी प्रायद्वीप में क्रमश: 129 प्रतिशत और 116 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई। मानसून की अधिक वर्षा और इसके कारण आयी बाढ़ ने कई राज्यों में खरीफ की फसलों को प्रभावित किया था, जिनमें मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और पंजाब शामिल हैं। मध्य प्रदेश में 40 से 50 प्रतिशत सोयाबीन की फसल भी प्रभावित हुई है, जो कि तिलहन का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। गुजरात में भी मूंगफली का 30 से 40 प्रतिशत और कपास की 30 फसलें प्रभावित हुई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है- ‘चूँकि ये राज्य प्रमुख कृषि प्रधान राज्य हैं, इसलिए इससे कृषि विकास पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। वैश्विक मंदी के साथ-साथ इन सभी घरेलू मापदण्डों को ध्यान में रखते हुए चालू वित्त वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर 5 प्रतिशत पर आधारित है। हमें लगता है कि क्वार्टर-2 में वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत रहेगी। अक्टूबर 2018 में 33 प्रमुख संकेतकों के लिए हमारी 85 प्रतिशत की त्वरण दर सितंबर, 2019 में घटकर सिर्फ 17 प्रतिशत रह गई है। यह गिरावट मार्च 2019 से आ रही है।’
यहाँ तक कि सरकार भी यह कह रही है कि आर्थिक मंदी प्रकृति के चक्र के चलते है और जल्द ही इसमें सुधार दिखाई देगा। हालाँकि उच्च आवृत्ति डाटा कुछ और ही कहानी कहता है। दिलचस्प बात यह है कि एसबीआई रिपोर्ट जारी होने के कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थाईलैंड में आदित्य बिड़ला समूह की स्वर्ण जयंती के दौरान कहा था कि वह पूरे विश्वास के साथ कह सकते हैं कि यह भारत में होने का सबसे अच्छा समय है।
उन्होंने दावा किया था कि आज के भारत में, कई चीज़े बढ़ रही हैं और कई गिर रही हैं। ‘ईज़ऑफ डूइंग बिजनेस’ बढ़ रहा है और इसलिए ‘ईज़ऑफ लिविंग’ भी। एफडीआई बढ़ रहा है। हमारा फॉरेस्ट कवर बढ़ रहा है। पेटेंट और ट्रेडमार्क की संख्या बढ़ रही है। उत्पादकता और दक्षता बढ़ रही है। आधारभूत संरचना निर्माण की गति बढ़ रही है। शीर्ष गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने वालों की संख्या बढ़ रही है। इसी समय में करों की दरें गिर रही हैं। लालफीताशाही कमज़ोर हो रही है। पक्षपात खत्म हो रहा है। भ्रष्टाचार खत्म हो रहा है। भ्रष्टाचारी बचाव के लिए भाग रहे हैं। सत्ता के गलियारों में बिचौलिये अब इतिहास की बात हो गये हैं।
भारत को पिछले पाँच वर्षों में 286 बिलियन डॉलर का एफडीआई प्राप्त हुआ। यह पिछले 20 वर्षों में भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का लगभग आधा है। इसका 90 प्रतिशत स्वत: अनुमोदन के माध्यम से आया और इसमें से 40 प्रतिशत ग्रीन फील्ड इन्वेस्टमेंट है। इससे पता चलता है कि निवेशक भारत में एक दीर्घकालिक निवेश की सोच के साथ आ रहे हैं। यूएनसीटीएडी के अनुसार, ‘भारत एफडीआई के मामले में शीर्ष 10 गंतव्यों में एक है।’ मैं दो चीजों के बारे में विशेष रूप से बात करना चाहता हूँ। भारत ने पाँच वर्षों में विश्व बैंक की ‘ईज़ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में 79 स्थानों की छलाँग लगायी है। 2014 में हम 142 पार्थज, जबकि 2019 में 63 पर आ पहुँचे हैं। यह एक बड़ी उपलब्धि है। लगातार तीसरे वर्ष में, हम शीर्ष दस सुधारकों में एक हैं।
दूसरा विश्व आर्थिक मंच की यात्रा और पर्यटन प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक में भारत की बेहतर रैंकिंग है। 2013 में 65 से हम 2019 में 34वें स्थान पर हैं। यह सबसे बड़ी छलाँग है। विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत अब पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनने का सपना देख रहा है। जब मेरी सरकार ने 2014 में कार्यभार सँभाला था, तब भारत की जीडीपी लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर थी। 65 वर्षों में 2 ट्रिलियन। लेकिन केवल 5 वर्षों में, हमने इसे लगभग 3 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ा दिया। प्रधानमंत्री ने कहा- ’इससे मुझे विश्वास है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थ-व्यवस्था का सपना जल्द ही सच हो जाएगा। हम अगली पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे के लिए 1.5 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने जा रहे हैं।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने पिछले पाँच वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के कई पड़ाव देखे हैं। इसका कारण केवल सरकारें ही नहीं हैं। भारत ने एक नियमित नौकरशाही तरीके से काम करना बंद कर दिया है। महत्त्वाकांक्षी मिशनों के कारण क्रांतिकारी परिवर्तन हो रहे हैं। जब ये महत्त्वाकांक्षी मिशन लोगों की साझेदारी से सक्रिय होते हैं, तो वे जीवंत जन-आंदोलन बन जाते हैं। और, ये जन आंदोलन चमत्कार प्राप्त करते हैं। जिन चीज़ो को पहले असम्भव माना जाता था, वे अब सम्भव हो गयी हैं। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के लिए कवरेज लगभग सौ प्रतिशत तक पहुँच गया है। इसके अच्छे उदाहरण हैं- ’जन धन योजना, जो कुल वित्तीय समावेशन के पास सुनिश्चित की गयी है और स्वच्छ भारत मिशन, जहाँ स्वच्छता कवरेज लगभग सभी घरों तक पहुँच गया है।’
उन्होंने कहा कि भारत में हमें एक बड़ी समस्या का सामना सेवा वितरण में कमज़ोरियों की वजह से है। इसके कारण गरीबों को सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा। आपको जानकर हैरानी होगी कि वर्षों से गरीबों पर पैसा खर्च किया जाता था, जो वास्तव में गरीबों तक नहीं पहुँचता था। हमारी सरकार ने डीबीटी (सीधा लाभ ट्रांसफर) के ज़रिये इस संस्कृति को खत्म कर दिया। डीबीटी ने बिचौलियों और अक्षमता की संस्कृति को खत्म कर दिया है। इसमें त्रुटि की बहुत कम गुंजाइश बची है।
प्रधानमंत्री ने बताया कि डीबीटी ने अब तक 20 अरब डॉलर से अधिक की बचत की है। आपने घरों में एलईडी लाइट देखी होगी। आप जानते हैं कि यह अधिक कुशल हैं और ऊर्जा संरक्षण कर रहे हैं। लेकिन क्या आप भारत में इसके प्रभाव को जानते हैं? हमने पिछले कुछ वर्षों में 360 मिलियन से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किये हैं। हमने 10 मिलियन स्ट्रीट लाइट्स को एलईडी लाइट्स में बदल दिया है। इसके माध्यम से हमने लगभग 3.5 बिलियन डॉलर की बचत की है। कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आयी है। मेरा दृढ़ विश्वास है- बचा हुआ धन अर्जित किया धन होता है। इस पैसे का उपयोग अब लाखों लोगों को समान रूप से प्रभावी कार्यक्रमों के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए किया जा रहा है।
निश्चित ही एक विरोधाभास है कि धरातल की कठिन सच्चाई क्या संकेत देती है और सरकार क्या दावा करती है। भारत के लिए एकमात्र तात्कालिक समाधान लोगों को सीधे दिये गये प्रोत्साहन के माध्यम से खपत को बढ़ावा देना प्रतीत होता है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, अर्थ-व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए
प्रभावित क्षेत्रों में नीतिगत हस्तक्षेप की तुरन्ंत आवश्यकता है।