भाजपा-कांग्रेस से दूर वैकल्पिक मोर्चो बन रहा है पर क्षेत्रीय पार्टियों में महत्वपूर्ण माकपा इसमें फिलहाल नहीं है। हालांकि इसकी तुलना में कम अनुभवी दक्षिण भारत के राजनीतिक दल इस बार वैकल्पिक मोर्चा बना रहे हैं लेकिन इसमें अभी माकपा की कहीं कोई चर्चा भी नहीं है। जबकि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस वैकल्पिक मोर्चे का स्वागत किया है।
अभी पिछले दिनों कोलकाता में भारतीय संघ में शामिल सबसे नए प्रदेश (29वें) तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने 19 मार्च को बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी से मुलाकात की। दोनों ही नेताओं ने भाजपा और कांग्रेस विरोधी दलों को एकजुट करने और देश में तालमेल और गठजोड़ की नई दिशा तलाशने की संभावनाओं पर राय-मश्विरा किया। दोनों नेताओं ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए वैकल्पिक मोर्चे पर बातचीत हुई।
इस वैकल्पिक मोर्चे की केंद्रबिंदु ममता बनर्जी इसलिए हैं क्योंकि वे 10 साल से भी ज्य़ादा समय राष्ट्रीय राजनीति में और केद्र सरकार की विभिन्न सरकारों में बतौर केंद्रमंत्री काम कर चुकी हंै। उनके अनुभवों का लाभ वैकल्पिक मोर्चे में शामिल होने वाले दल उठाएंगे। इस महीने के अंत में एक बैठक चंद्रबाबू नायडू के साथ भी होगी। यह चकित करने वाली स्थिति है कि माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की बंगाल सरकार में शामिल रहीं वाम पार्टियां राजनीतिक तौर पर माकपा को और मजबूत करने के लिए उसके साथ टिके रहने को हाल-फिलहाल महत्व नहीं दे रही हैं। उधर यूपीए के साथ बेहद महत्वपूर्ण गठबंधन बनाए रखने वाली वामपार्टियों ने 2008 में यूपीए से अपना नाता तोड़ा। उसके बाद वे लगातार कमज़ोर होती गई।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री जहां इस बात को लेकर बहुत साफ थे कि वैकल्पिक मोर्चाे गैर भाजपा-गैर कांगेस दलों का मोर्चा होगा वहीं ममता बनर्जी ने सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया और मोर्च में कांगे्रस को शामिल करने या ने करने पर कोई साफ बात कहने से भी बचीं। देश में एक वैकल्पिक कार्यसूची और वैकल्पिक राजनीतिक ताकत की ज़रूरत पर दोनों ही मुख्यमंत्रियों ने ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि हम देश के लिए एक वास्तविक संघीय मोर्चा बना रहे है जिसमें वे नेता शामिल होंगे जो वैसा ही सोचते हैं। जब सभी नेता एकजुट होंगे तभी बातें और साफ होंगी। ममता ने कहा कि यह एक अच्छी शुरूआत है। यदि राज्य मजबूत होंगे तो देश मजबूत होगा।
हमने अभी संवाद शुरू किया है। हमें कोई जल्दबाजी नहीं है। जो राजनीतिक पार्टी देश पर राज करती है उन्हें यह नहीं मानना चाहिए कि वे जैसा चाहेंगे, राज करेंगे। सभी दलों को अपना नज़रिया रखने का अधिकार है। राव जो कुछ कह रहे हैंं। उससे मैं सहमत हूं। उन्होंने अपनी राय दी। इसमें नुकसान क्या है? राहुल ने कल अपनी राय दी थी उन्होंने हमसे कुछ पूछा थोड़े ही था।
यह पूछने पर कि प्रस्तावित मोर्चे का कौन नेतृत्व करेगा। राव ने कहा कि संगठित और संघीय नेतृत्व होगा। हालात से नेता सीधे बनते हैं। देश को बदलना ही होगा इसे लंबी कूद लेनी होगी।