आसां नहीं डगर कर्नाटक की

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह एक रैली में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या को सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री बताने के चक्कर में गलती से अपने ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार येदियुरप्पा का नाम ले बैठे। हालांकि बगल वालों ने उन्हें उनकी गलती का अहसास करवा दिया। इस पर अपनी गलती को सुधारने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इतने समय से येदियुरप्पा जी उनके साथ हैं। कर्नाटक में 12 मई को चुनाव होने को हैं। प्रदेश में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में है लेकिन चुनाव मैदान में जेडी(एस) और दूसरी पार्टियां भी हैं।
कर्नाटक क/े मुख्यमंत्री सिद्धारामैया ज़मीनी स्तर पर मतदाताओं को कांग्रेस के साथ जोडऩे में सिद्धहस्त हैं लेकिन उनका मुकाबला उस पार्टी से है जो कम सीटें पाकर भी अपनी सरकार बनाने में सक्षम है। यह पार्टी बूथ स्तर से ही अपने कार्यकर्ताओं को संगठित करने और हार को जीत की हवा में तब्दील करने में माहिर है लेकिन मुख्यमंत्री ने राज्य के 17 फीसद लिंगायत समुदाय को साथ लेने के लिए हिंदुओं से अलग धर्म और अलग झंडा (19 मार्च) को देने की घोषणा की है वह केंद्र के पाले में है। अल्पसंख्यक की जो घोषणा है उसका अच्छा लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। हालांकि खुद येदियुरप्पा भी लिंगायत हैं लेकिन कई मुद्दों पर लिंगायत आज उनसे असहमत भी हैं। खुद उन्होंने ही लिंगायत को अल्पसंख्यक दर्जा देने की मांग 2013 में की थी। उस समय केंद्र में यूपीए सरकार थी। अब सिद्धारमैय्या ने फैसला लेकर एनडीए में शासित केंद्र के पाले में गेंद डाल दी है।
भाजपा के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए की सरकार है। कर्नाटक में अर्से से भाजपा के केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और पीयूष गोयल ने कमान संभाल रखी है। इनका हाथ बंटाने के लिए राजीव प्रताप रूडी और स्मृति ईरानी प्रदेश की जनता में अपनी छाप छोड़ते रहे हैं। जानकारों के अनुसार येदियुरप्पा भाजपा के प्रस्तावित मुख्यमंत्री ज़रूर हैं लेकिन सरकार बनाने की स्थिति में यह जिम्मेदारी किसी युवा नेता को भाजपा आलाकमान दे सकता है।
यह अंदेशा अभी हाल हिमाचल में दिखा था। भाजपा के कद्दावर नेता प्रेम कुमार धूमल के नाम पर राज्य में चुनाव लड़ा गया। धूमल खुद चुनाव हार गए और मौका मिला एक युवा नेता जयराम ठाकुर को । यों भी येदियुरप्पा को अपने खास प्रत्याशी चुनाव में उतारने का मौका नहीं दिया गया है।
इसके ठीक विपरीत कांग्रेस ने मुख्यमंत्री सिद्धारामैया पर पूरा यकीन किया है और उन्हें ही राज्य में चुनाव रणनीति बनाने की जिम्मेदारी भी सौंपी है। अपने पूरे कार्यकाल में सिद्धारामैया ने कांग्रेस चुनाव घोषणा पत्र के 90 फीसद कार्यों को अमली जामा पहनाया है। कृषि से लेकर पोषक आहार और शहरों में साफ-सफाई और विकास में उनकी मुहर दिखती है। इसके ठीक विपरीत येदियुरप्पा की तस्वीर एक किसान की तो है लेकिन उन पर भ्रष्टाचार के ढेरों आरोप भी रहे हैं। सिद्धारामैया ने कर्नाटक के दूर-दराज गांवों में ‘अन्न-भाग्यÓ आहार सुरक्षा योजना चलाई जिसे जनता ने बहुत पसंद किया। उन इलाकों में भाजपा समर्थक भी इस योजना को बहुत पसंद करते हैं।
कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने कर्नाटक में चुनाव की घोषणा के पहले तीन बार दौरे किए। उनके दौरों में जनता की खासी भीड़ रही। भाजपा जहां प्रदेश में मतदाता को धर्म और जातियों में अलग कर वोट इक_ा करने की रणनीति में जुटी है, वहीं राहुल गांधी मंदिरों में जा रहे हैं। साथ ही वे मस्जिद , गिरजाघर वगैरह में भी जा रहे हैं। उन्होंने प्रचार अभियान में अपनी गंभीरता बनाए रखते हुए भाजपा की नीतियों की आलोचना करते हुए जनता का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के पक्ष में किया है।
कांग्रेस ने कर्नाटक में स्थानीय मुद्दों और पार्टी के अच्छे काम को जनता के सामने सबूत के तौर पर रखा हैं जबकि भाजपा का प्रचार में खासा आक्रामक रुख है। चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि जद (एस) का भाजपा के साथ अंदरूनी तालमेल है। हालांकि कर्नाटक के कई शहरों और गांवों में बिहार-बंगाल में अभी हाल में हुई हिंसा की घटनाओं से बेचैनी भी है।
भाजपा और संघ परिवार के लोग राज्य में बिगड़ती कानून-व्यवस्था को मुद्दा बना रहे हैं। वे मानते है कि धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण से जीत के आसार बढ़ेंगे। जबकि कांग्रेस का जोर सांप्रदायिक शांति और विकास पर है। काफी समय से विभिन्न पार्टियों के चुनाव प्रचार से कर्नाटक में मतदाता ने अपना मन लगभग बना लिया है। मई महीने में ही 18 तारीख को नतीजों के आने पर पता चलेगा कि कौन जीत की ओर है।