आंदोलनकारी किसानों के साथ बैठक बेनतीजा होती लग रही है। सरकार के तीन मंत्रियों ने एक समिति बनाने का सुझाव रखा जिसमें कृषि विशेषज्ञों, किसानों के अलावा सरकार के भी प्रतिनिधि होंगे। लेकिन जानकारी के मुताबिक किसानों ने इस समिति के सुझाव पर कहा है कि उन्हें समिति में कोई दिलचस्पी नहीं और उन्होंने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। अलवत्ता उन्होंने मोदी सरकार के कृषि कानूनों को ‘डेथ वारंट’ बताते हुए साफ़ कर दिया है कि आंदोलन जारी रहेगा। साथ ही उन्होंने तीनों कृषि क़ानून वापस लेने और एमएसपी को कानूनी मान्यता देने की मांग पर जोर दिया है। बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा तीन दौर की बातचीत हुयी है और चौथे की 3 दिसंबर को होगी।
‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक मंत्रियों ने किसान प्रतिनिधियों से समिति में शामिल करने के लिए 4-5 नाम मांगे लेकिन किसानों ने समिति के प्रस्ताव को बहुत उत्साह के साथ स्वीकार नहीं किया और इसे खारिज कर दिया है। सरकार ने यह तक कहा कि समिति हर रोज बैठक करके बात कर सकती है। लेकिन किसानों ने मोदी सरकार के कृषि कानूनों को ‘डेथ वारंट’ जैसा बताया है। किसान नेताओं ने बैठक में साफ़ कर दिया है कि उनकी मांगों के हिसाब से नतीजे आने तक आंदोलन रोका नहीं जाएगा।
सरकार की तरफ से पहले इस बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बात करने वाले थे लेकिन इस मसले पर अध्यक्ष जेपी नड्डा के घर हुई भाजपा नेताओं की बैठक में कृषि मंत्री के नेतृत्व में बात करने का फैसला हुआ।
भाजपा नेताओं की राय थी कि वरिष्ठ नेताओं को बैठक में भेजने से कहीं यह संदेश न जाए कि सरकार दबाव में हैं, लिहाजा कृषि मंत्री तोमर के साथ दो और मंत्रियों पियूष गोयल और राज्य मंत्री सोमप्रकाश की टीम बनाई गयी। इसका एक और कारण भविष्य में किसी संभावित बैठक के लिए वरिष्ठ मंत्रियों की ऑप्शन बनाये रखना था। सुबह नड्डा के घर हुई इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह और राजनाथ सिंह दोनों शामिल हुए थे।
अभी तक की जानकारी के मुताबिक सरकार के मंत्रियों ने मामले को खींचने की कोशिश की और समिति बनाने पर जोर दिया लेकिन किसान नेता इसपर बिलकुल सहमत नहीं हुए और उन्होंने कहा कि समिति बनाने का समय तो कब का गुजर चुका है। अब तो फैसला करने का समय है। क़ानून वापस करने और एमएसपी को कानूनी दर्जा देने का समय है।