हांलांकि लोकसभा चुनावों में शानदार नतीजों के बाद शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने सहयोगी बीजेपी को बधाई दी ,पिछली बार की तरह सत्ता के भागीदार बनें, और महाराष्ट्र में होने जा रहे हैं विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन बनाये रखने की घोषणा की। लेकिन बेरोजगारी ,महंगाई घटते उत्पादन, बंद होते उद्योग और किसानों की आत्महत्या को लेकर सहयोगी दल बीजेपी के कान उमेठने में उन्होंने कोताही नहीं बरती है।
अपने मुखपत्र ‘सामना’ में बेरोजगारी पर हमला करते हुए शिवसेना ने लिखा है – देश की आर्थिक स्थिति स्पष्ट रूप से बिगड़ी नजर आ रही है ।आसमान फटा हुआ है इसलिए सिलाई भी कहां करें ऐसी अवस्था हो गई है ।मोदी की सरकार आ रही है इस सुगबुगाहट के साथ ही सट्टा बाजार और शेयर बाजार मचल उठा लेकिन जीडीपी गिर पड़ा और बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ गया। यह कोई अच्छे संकेत नहीं हैं ।बेरोजगारी का संकट ऐसे ही बढ़ता रहा तो क्या करना होगा ।इस पर सिर्फ चर्चा करके और विज्ञापन बाजी करके कोई उपयोग नहीं होगा कृति करनी पड़ेगी ।देश में बेरोजगारी की ज्वाला भड़क रही है। नेशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों के अनुसार 2017 -18 में बेरोजगारी दर 6.1% पहुंच गयी है। पिछले 45 वर्षों का यह सर्वोच्च आंकड़ा है। केंद्रीय मंत्रालय ने भी इस पर मुहर लगा दी है।
जबकि ये आंकड़े सरकार के ही हैं, हमारे नहीं। सरकार का कहना ऐसा है कि बेरोजगारी बढ़ रही है यह हमारा पाप नहीं है। बेरोजगारी की समस्या कोई पिछले 5 वर्षों में भाजपा ने तैयार नहीं की है, ऐसा श्री नितिन गडकरी ने कहा है। हम उनके विचार से सहमत हैं ।लेकिन प्रतिवर्ष दो करोड़ रोजगार देने का आश्वासन था और उस हिसाब से पिछले 5 वर्षों में कम से कम 10 करोड़ रोजगार का लक्ष्य पार करना चाहिए था, जो होता नहीं दिख रहा है और उसकी जिम्मेदारी नेहरू-गांधी पर नहीं डाली जा सकती ।
सामना के संपादकीय के अनुसार रोजगार निर्माण की सच्चाई ऐसी है कि रोजगार निर्माण निरंतर गिर रहा है ।केंद्र सरकार की नौकरी भर्ती में 30 से 40% की गिरावट आई है ।2017 में केंद्र सरकार द्वारा 1लाख नौकरियों की भर्तियां हुई हैं। 2017- 18 में सिर्फ 70000 नौकरियों को भरा गया। इसमें यूपीएससी और स्टाफ सिलेक्शन की भर्ती भी है। रेलवे की भर्ती और बैंक की नौकरियों का आंकड़ा भी नीचे गिरा है। मध्यम ,लघु और सूक्ष्म उद्योग की अवस्था ठेला गाड़ी से भी खराब हो गई है। केंद्र सरकार के अधिकांश सार्वजनिक उपक्रम बंद है या फिर घाटे में चल रहे हैं। बी एस एन एल के हजारों कर्मचारियों पर बेरोजगारी का कहर बरपा है। नागरिक हवाई यातायात व्यवसाय का किस तरह ’12 ‘ बजा है यह जेट कर्मचारियों के रोज होने वाले आंदोलन से स्पष्ट हो गया है। नए हवाई अड्डे बने लेकिन वहां से पर्याप्त उड़ान नहीं भरी जा रही ।सड़क निर्माण का कार्य जोरों पर है। होगा अभी लेकिन वहां ठेकेदारी और असंगठित मजदूर वर्ग है ।यह स्थाई रोजगार नहीं। सवा सौ करोड़ के देश में 30 करोड़ लोगों को काम चाहिए और सरकारी स्तर पर सिर्फ एक लाख नौकरियों की भर्ती हुई है ।
सरकारी आंकड़े क्या कह रहे हैं उन्हें देखिए।
2015 -16 में सैंतीस लाख नौकरियों की जरूरत थी जबकि प्रत्यक्ष रूप से 1लाख48हजार लोगों को नौकरियां मिली। 2017-18 में 23लाख नौकरियों की जरूरत थी तब नौ लाख 21हजार लोगों को रोजगार मिला।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना पर तंज़ कसते हुए सामना लिखता है , ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना शुरू हुई है निश्चित तौर पर क्या हुआ यह शोध का विषय है।’
देश की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है ,ऐसा सरकार कहती है लेकिन विकास दर घट रही है और बेरोजगारी बढ़ रही है यह भी उतना ही सच है।
शहरी क्षेत्र के 18 से 30 वर्ष की उम्र के 19% बच्चे बेरोजगार हैं ।लड़कियों में यही औसत 27.2% है ।कृषि रोजगार देने वाला उद्योग था वहां भी अब हम मार खा रहे हैं ।पिछले 5 माह में सिर्फ मराठवाड़ा में 315 किसानों ने आत्महत्या की है ।इसके अनुसार संपूर्ण महाराष्ट् और देश की तस्वीर विदारक है। खेती जल गई है और हाथों को काम नहीं है। इस दुष्चक्र में फंसे किसानों ने नई आशा के साथ मोदी को मतदान किया है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ इस मंत्र पर विश्वास रखकर करोड़ों बेरोजगार युवकों ने भी मोदी की जीत में अपना सहयोग दिया है। इसलिए पिछले 5 वर्षों में रोजगार निर्माण में आई गिरावट को रोककर 2019 में बेरोजगारों को काम देना कि अब एकमेव ध्येय होना चाहिए।
विदेशी निवेश के आंकड़े कई बार गलत होते हैं। यह एक लाभ और एक नुकसान का व्यवहार है उसके जरिए बेरोजगारी का राक्षस कैसे खत्म होगा ? नये उद्योग , बंदरगाह, सड़क, हवाई अड्डे, यातायात जैसे क्षेत्रों में निवेश से ही रोजगार का निर्माण होगा और जीडीपी बढ़ेगी। देश में बुलेट ट्रेन आ रही है, उसमें एक व्यक्ति को भी रोजगार नहीं मिलेगा। राफेल उद्योग में भी रोजगार का बड़ा मौका नहीं है। चीन में काम करने वाली 300 अमरीकी कंपनियां वहां से बोरिया बिस्तर लपेट कर हिंदुस्तान आ रही है, ऐसी तस्वीर चुनाव पूर्व दिखाई गई थी। मगर अब अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष ट्रंप ने हिंदुस्तान पर व्यापारिक प्रतिबंध लाद दिया है। यह दृश्य संभ्रम पैदा करने वाले हैं ।महंगाई, बेरोजगारी, घटते उत्पादन और बंद होते उद्योग जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा । शब्द भ्रम का खेल खेलने से बेरोजगारी नहीं आएगी अर्थव्यवस्था संकट में है ।नए अर्थ मंत्री को चाहिए कि वह राह निकालें!
भले ही शिवसेना सत्ता में हिस्सेदार बनी हुई है और जिन मुद्दों को विपक्षी दलों को उठाना चाहिए उन मुद्दों को संजीदगी से उठा रही है तो इसे एक ईमानदार कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए।
लेकिन इसे उद्धव ठाकरे की नाराज़गी के तौर पर भी देखा जा सकता है । हाल ही में हुए नये मंत्रिमंडल गठन में शिवसेना को मिली हिस्सेदारी और कैबिनेट में मिले विभागीय जिम्मेदारी से शिवसेना खासी नाराज़ है।