प्रवर्तन निदेशालय ने 4 मई को अदालत के समक्ष 204 पन्नों की पूरक अभियोजन शिकायत दायर की, जिसमें सीमा सुरक्षा बल और एक सिंडिकेट की संलिप्तता का चौंकाने वाला ख़ुलासा हुआ; जो बांग्लादेश में खुली सीमा के माध्यम से गायों की तस्करी में संचालित होता था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पाया कि बांग्लादेश सीमा पर गाय तस्करी ज़्यादातर रात 11:00 बजे से तडक़े 3:00 बजे के बीच बीएसएफ अधिकारियों की मिलीभगत से पूर्व नियोजित तरीक़े से होती थी और इसे धन-शोधन का एक सिंडिकेट संचालित करता था। केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने भी बांग्लादेश में मवेशियों की तस्करी में कथित भूमिका के लिए एक बीएसएफ कमांडेंट और कुछ व्यापारियों को गिरफ़्तार किया था।
अब ‘तहलका’ के लिए इस घोटाले से पर्दा उठाने का समय था और इसका परिणाम इस बार की हमारी कवर स्टोरी ‘गौ-तस्करी के राज़!’ है, जिसमें बांग्लादेश सीमा पर मवेशी तस्करी के फलते-फूलते कारोबार की अंदरूनी कहानी का ख़ुलासा किया गया है। यह अवैध व्यवसाय एक दुधारू गाय जैसा है, जिसे कोई भी रोकना नहीं चाहता। सेना के जवान भी ऐसा करने से डरते हैं; क्योंकि पशु तस्करी के सरगनाओं के पीछे राजनीतिक लोगों और अपराधियों का ताकतवर गठजोड़ है।
ऐसा नहीं है कि रिश्वतख़ोरी के आरोपों से घिरी बीएसएफ ने वर्षों से चल रही सीमा पार तस्करी को रोकने का प्रयास नहीं किया। लेकिन इसका पैमाना बहुत बड़ा है। सच यह भी है कि ट्रकों और पिकअप वैन को रोकने की कोशिश में बीएसएफ के कुछ जवानों ने अपनी जान गँवायी है। अवरोध से बचने के लिए तस्करों द्वारा पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखण्ड समेत देश के विभिन्न हिस्सों से गायों को ले जाया जाता है। भारत और बांग्लादेश 4,095 किलोमीटर लम्बी सीमा साझा करते हैं, जो नदियों और तालाबों से होकर गुज़रती है। तस्कर जानवरों को बचाये रखने के लिए उनके गले में लकडिय़ों के बंडल बाँध देते हैं। ऐसे मामले भी सामने आये हैं, जिनमें पता चला है कि तस्कर गायों की गर्दनों पर सॉकेट बम बाँध देते हैं, ताकि उनके पकड़े जाने पर विस्फोट हो सके।
गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट, जिसका शीर्षक ‘सीमा सुरक्षा : क्षमता निर्माण और संस्थान’ है; में स्वीकार किया गया है कि सभी राज्यों से मवेशियों की बड़े पैमाने पर आवाजाही होती है। ये जब एक बार सीमावर्ती क्षेत्रों में पहुँच जाते हैं, तो सीमा पार उनकी आवाजाही रोकना बेहद मुश्किल हो जाता है। इसमें आगे कहा गया है- ‘समिति को लगता है कि विभिन्न राज्यों के पुलिस बल सीमावर्ती राज्यों में मवेशियों की इस सामूहिक आवाजाही को रोकने में विफल रहे हैं।’
ऐसे परिदृश्य में गौरक्षक कोई समाधान नहीं हैं; क्योंकि राजनीतिक संरक्षण और पुलिस की ढिलाई के कारण गौरक्षकों ने ख़ुद ही कानूनी चोला ओढ़ लिया है। यहाँ तक कि अल्पसंख्यक समुदाय के निर्दोष लोगों को वे पीट-पीटकर जान से मार देने से भी परहेज़ नहीं करते। लेकिन इस पर भी हरियाणा पुलिस की तरफ़ से पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में दिये गये एक हलफ़नामे में दावा किया गया कि ‘पशु तस्करी के आरोपी व्यक्तियों के सामाजिक बहिष्कार का प्रयोग इस ख़तरे से निपटने में महत्त्वपूर्ण साबित हुआ है। यह अन्य राज्यों पर निर्भर है कि वो इस ख़तरे को रोकने के लिए सामुदायिक समर्थन प्राप्त करें।’