गुप्तेश्वर पांडे फिर टापते रह गए। मुख्यमंत्री और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड में विवादित रहीं पूर्व मंत्री मंजू वर्मा को तो विधानसभा का टिकट दे दिया, बेचारे पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय टिकट का इंतजार करते रह गए। उधर इस बार जिस तरह रामविलास पासवान की एलजेपी ने एनडीए से अलग जाकर अपने बूते चुनाव लड़ने की तैयारी की है, उससे भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को झटका लगा है और उसकी चुनावी संभावनाओं पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने पिछले कल अपनी सभी 115 सीटों के उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी, लेकिन इसमें कहीं भी गुप्तेश्वर पांडेय का नाम नहीं है। पांडेय डीजीपी का पद छोड़कर हाल में जेडीयू में शामिल हुए थे। सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले में बिहार पुलिस की जांच के दौरान उनकी सक्रियता और रिया चक्रवर्ती पर उनका ‘औकात’ वाला कमेंट काफी चर्चा में रहे थे।
अब रिया जमानत के बाद रिहा हो गयी हैं और सुशांत मामले में भी कोई ऐसी ठोस चीज सामने नहीं आई है जिसमें बिहार पुलिस वाली थ्यूरी को ताकत मिली। ऐसे में पांडे को टिकट न मिलने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है। वैसे पांडेय ने एक मौके पर यह भी कहा था कि उन्हें कई जगह से टिकट देने की मांग कुछ हलकों से है। अब पांडे टापते रह गए हैं और नीतीश कुमार ने लगता है उन्हें भुला दिया है।
उधर नीतीश ने 115 उम्मीदवारों की लिस्ट में पूर्व मंत्री मंजू वर्मा को चेरिया बरियारपुर विधानसभा सीट से टिकट देकर सबको चौंका दिया है। मंजू वही नेता हैं जो पिछले साल पूरे देश को हिला देने वाले मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड के वक्त नीतीश सरकार में समाज कल्याण विभाग मंत्री थीं। आरोप है कि उन्हीं की नाक के नीचे बालिका गृह कांड होता रहा और वह आंखें मूंदे रहीं। इस कांड के सामने आने के बाद नीतीश कुमार की काफी किरकिरी हुई जिसके बाद मंजू वर्मा पर इस्तीफे का दबाव बना। हालांकि दबाव के बावजूद कई दिनों के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया था। उन्हें पार्टी से भी निलंबित किया गया था।
गुप्तेश्वर पांडेय बक्सर से टिकट की उम्मीद कर रहे थे। पांडेय को बक्सर के अलावा वाल्मीकि नगर लोकसभा उप चुनाव से आस थी लेकिन वहां भी नीतीश कुमार की जेडीयू ने दिवंगत सांसद बैद्यनाथ महतो के बेटे सुनील कुमार को उम्मीदवार बनाने का ऐलान कर दिया है। एनडीए में बक्सर सीट बीजेपी को मिली और बीजेपी ने इस सीट से बुधवार की शाम परशुराम चतुर्वेदी को टिकट देने का ऐलान कर दिया है।
पांडेय के साथ ऐसा दूसरी बार हुआ क्योंकि 2009 के लोकसभा चुनाव में भी पांडेय ने भाजपा टिकट पर बक्सर लोकसभा सीट लड़ने के लिए वीआरएस लिया था लेकिन टिकट नहीं मिला। बाद में नीतीश कुमार की सरकार ने उनकी वीआरएस वापसी की अर्जी स्वीकार कर ली जिसके वो नौकरी में लौट गए।
देखा जाए तो सुशांत मामले में बिहार पुलिस की सक्रियता का चेहरा गुप्तेश्वर पांडेय थे और इसी दौरान उन्होंने एक बार रिया चक्रवर्ती की ‘औकात’ तक पूछ ली थी। शिवसेना तो नपछले से ही पांडेय को निशाना बना रही है और कह रही है कि चु नावी लाभ के लिए पांडेय ने ये सब किया। लेकिन अब पांडये का मामला यह है कि ‘न खुदा ही मिला, न बिसाल-ए-सनम’।
उधर गठबंधन के मामले में जैसी राजनीति हुई है और जिस तरह भाजपा का नाम इसके पीछे माना जा रहा है उससे खुद भाजपा की जबरदस्त किरकिरी हुई है। लोगों में उसके गठबंधन को लेकर शंकाएं खड़ी हुई हैं जिसका उसे चुनाव में बड़ा नुक्सान पड़ सकता है। बीच में यह भी चर्चा रही कि एलजेपी भाजपा में विलय कर सकती है। अब जैसी आशंकाएं बनी हैं उसमें एक यह है कि जेडीयू भाजपा के उम्मीदवारों को पूरी ताकत से चुनाव में समर्थन न करे। ऐसा ही भाजपा भी कर सकती है। इससे एनडीए के जीतने की संभावनाएं क्षीण होंगी।
इस तरह इस चुनाव में महाराष्ट्र वाला दोहराव हो सकता है जब 2019 में भाजपा और शिव सेना ने सहयोगी होते हुए भी गुपचुप तरीके से चुनाव में एक दूसरे को धोखा दिया था। नतीजों के बाद शिव सेना ने भाजपा से किनारा कर लिया था और एनसीपी और कांग्रेस के सहयोग से सरकार बनाई थी। फिलहाल भाजपा के लिए बिहार में संकट की घड़ी है और यह चुनाव उसके लिए बड़ी चुनौती बन गया है।