क्या मुख्यमंत्री के काफिले में मात्र एक सुरक्षा वाहन होता है, जिसमें चार पाँच सुरक्षाकर्मी सवार हों? क्या मुख्यमंत्री के काफिले में एंबुलैंस और फायर ब्रिग्रेड वाहन नहीं होगा? क्या मुख्यमंत्री का रूट नहीं लगेगा? क्या मुख्यमंत्री की रैली में तैनात सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी सहायक सब इंस्पेक्टर हो सकता है? क्या रैली स्थल पर लोगों और स्टेज के बीच सुरक्षा ‘डी’ नहीं होगी? क्या रैली स्थल पर आने वाले लोगों की गहन तलाशी नहीं होगी? क्या रैली स्थल के आस पास मुख्यमंत्री के पहुँचने के बाद भी यातायात नहीं रोका जाएगा? क्या मंत्री बिना किसी सुरक्षा वाहन के चलते हैं?
उत्तर भारत के राज्यों में कम से कम ऐसा असंभव सा लगता हैं, परन्तु हमारे देश में ही अभी भी कुछ राज्य हैं, जहाँ मुख्यमंत्री और सहयोगी मंत्रियों की सुरक्षा के नाम पर लोगों के अरबों रुपए खर्च नहीं किए जाते। जिनमें केरल भी शामिल हैं। केरल की 140 सदस्यीय विधानसभा में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार है। यहाँ मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन हैं, जोकि केरल के 12वें मुख्यमंत्री हैं। गत 23 फरवरी को पलक्कड में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने मजदूरों के लिए ‘अपना घर’ प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। इस अवसर पर इस प्रोजेक्ट के पास ही मुख्यमंत्री ने एक रैली को संबोधित किया, जिसमें लगभग तीन हजार लोगों ने भाग लिया। मुझे यह रैली कवर करने का अवसर मिला। इस दौरान मैंने नोट किया कि रैली में आने वाले लोगों से न तो पूछताछ की जा रही है और न ही उनकी गहन जाँच की जा रही हैं। दोपहर बाद रखी गई इस रैली में बहुत से लोग अपने साथ लंच बाक्स और बैग लेकर आए थे, परन्तु उनकी भी जाँच नहीं की गई। ऐसा नहीं है कि वहाँ पुलिस कर्मी तैनात नहीं थे, परन्तु उनकी संख्या भी मात्र 50 के आस पास होगी, जिसमें से कुछ बिना वर्दी के थे। इस रैली में सुरक्षा हेतु कोई ‘डी’ नहीं बनाई गई थी। लोगों और स्टेज के बीच की दूरी लगभग 10 से 15 फुट के बीच होगी। रैली स्थल पर वर्दीधारी सबसे ऊँचा रैंक सहायक सब इंस्पेक्टर का था। जिनकी गिनती 5-6 होगी। रैली स्थल पर पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी जरुर तैनात थी। केरल के श्रम और कौशल मंत्री टी पी रामाकृष्णन ने मुझे तिरुवनंतपुरम स्थित अपनी सरकारी कोठी पर चाय पर बुलाया तो मैंने वहाँ नोट किया कि एक भी सुरक्षा कर्मचारी मंत्री की कोठी पर तैनात नहीं था। इसी प्रकार तिरुवनंतपुरम में स्थित सिविल सचिवालय में भी सुरक्षा के नाम पर नाम मात्र सुरक्षा कर्मचारी तैनात थे।
केरल की जनसंख्या 3.34 करोड़ है, जोकि पंजाब के मुकाबले लगभग 60 लाख, जबकि हरियाणा के मुकाबले लगभग 80 लाख अधिक हैं, परन्तु फिर भी केरल में पुलिस कर्मचारियों की संख्या पंजाब के मुकाबले लगभग 25 हजार और हरियाणा के मुकाबले लगभग दस हजार कम है। पंजाब पुलिस में इस समय 75 से अधिक पुलिस कर्मी तैनात हैं। दूसरी ओर हरियाणा राज्य की जनसंख्या लगभग 2.53 करोड़ है, परन्तु पुलिस कर्मचारियों की संख्या लगभग 60 हजार है। पंजाब में वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात 1392 पुलिस कर्मचारी की संख्या को कम करके 1016 कर्मचारी किया गया था, परन्तु फरवरी 2019 के पुलवामा अटैक के बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा में एक बार फिर वृद्धि कर दी गई। गौरतलब है कि एक जिले के सभी पुलिस थानों में लगभग इतने ही पुलिस कर्मी तैनात होते हैं। ऐसा भी नहीं है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद भी इतने ही पुलिस कर्मी तैनात रहेंगे। मुख्यमंत्री की कुर्सी से हट जाने के बाद पुलिस कर्मचारियों की संख्या कम करके दस बारह पर पहुँच जाती है। यहाँ प्रश्न यह है कि तब खतरा इतना कम हो जाता है कि सुरक्षा कर्मचारियों की संख्या एक प्रतिशत से भी कम कर दी जाती है। पंजाब के स्थानीय निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को ‘जैड प्लस’ सुरक्षा दी गई है। उन्हें बुलेटप्रूफ टोयोटा लैंड कू्रजर के साथ साथ एनएसजी कमांडो द्वारा सुरक्षा प्रदान की जा रही है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की सुरक्षा में भी पाँच सौ से ज़्यादा पुलिस कर्मचारी तैनात हैं। कैप्टन अमरेन्द्र की सुरक्षा इंचार्ज के तौर पर महानिरीक्षक राकेश अग्रवाल को तैनात किया गया है, वहीं मनोहर लाल की सुरक्षा में भी महानिरीक्षक स्तर का अधिकारी तैनात है।
पंजाब हरियाणा के मुख्यमंत्री के साथ कम से कम 10 गाडिय़ों का काफिला चलता है, जिसमें एंबुलैंस और फायर ब्रिग्रेड भी शामिल होती हंै। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री के काफिले को निकालने के लिए रूट लगता है। जिसमें जगह जगह पर बड़ी संख्या में अन्य पुलिस कर्मी डयूटी पर तैनात रहते हैं। रास्ते में आने वाली सभी ट्रैफिक लाईटस को बंद कर दिया जाता है और वहाँ तैनात यातायात कर्मी यातायात व्यवस्था अपने हाथ में ले लेते हैं। अन्य वाहन चालकों के लिए रास्ता रोक दिया जाता है। यहाँ यहाँ से मुख्यमंत्री का काफिला निकलता है, वहाँ के संबंधित पुलिस थाने के एसएचओ की यह डयूटी है, कि वह अपनी गाड़ी मुख्यमंत्री के काफिले के आगे लगा कर अपना थाना क्षेत्र पार करवाएगा। अपने राज्य में अगर कंही पर मुख्यमंत्री ने हेलीकाप्टर से जाना है, तो भी मुख्यमंत्री का काफिला संबंधित गंतव्य स्थान के लिए पहले ही रवाना कर दिया जाता है। मज़ेदार बात यह है कि मुख्यमंत्री के बिना जाने वाले काफिले के दौरान भी रास्ते में सुरक्षा संबंधी वहीं प्रक्रिया अपनाई जाती है, जोकि मुख्यमंत्री के साथ होने पर। पंजाब हरियाणा में मुख्यमंत्री की सुरक्षा में महानिरीक्षक स्तर के अधिकारी तैनात हैं। इतना ही नहीं दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की चंडीगढ के सेक्टर दो और तीन स्थित सरकारी कोठियाँ किसी अभेद किले से कम नहीं हैं। इसी प्रकार मुख्यमंत्री की रैली को भी अभेद किले में तब्दील कर दिया जाता है।