प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में 8 नवंबर को देश में जब नोटबन्दी की घोषणा की, तब उन्होंने कहा था कि नोटबन्दी से नक़ली मुद्रा (करेंसी), आतंकवाद और काले धन पर रोक लगेगी। लेकिन नोटबन्दी के बाद भी देश में नक़ली नोटों की खपत पर पूरी तरह रोक नहीं लग सकी है। इसकी पुष्टि नक़ली नोटों के सामने आने की कई ख़बरों से हो चुकी है। इसी साल 31 अगस्त को उत्तर प्रदेश के एक ज़िले बदायूँ के सैदपुर क़स्बे में स्थित एसबीआई के एटीएम से एक सफ़ार्इकर्मी ने 5,000 रुपये निकाले, जिसमें दो नक़ली नोट निक़ले। इनमें एक नोट पर मनोरंजन बैंक लिखा हुआ था। जैसे ही यह सूचना वहाँ स्थित एसबीआई बैंक की शाखा प्रबन्धक को मिली, उन्होंने एटीएम को तुरन्त बन्द कराकर जाँच के आदेश दिये। इससे आगे की घटना का ख़ुलासा नहीं हुआ।
इसी तरह इसी साल जनवरी में मध्य प्रदेश के ज़िला बालाघाट की पुलिस ने पाँच करोड़ नक़ली नोट बरामद कर आठ लोगों को गिरफ़्तार किया। पुलिस ने इस गिरोह को पकडक़र कई हैरानी वाली ख़ुलासे भी किये थे, जिनमें कहा गया था कि पकड़े गये लोग नक़ली नोट खपाने वाले गिरोह से हैं, जो कि गाँवों में नक़ली नोटों को खपाते थे। इन नोटों में 10 के काग़ज़ के नोट से लेकर 2,000 रुपये तक के नोट शामिल होते थे। जिस समय पुलिस ने नक़ली नोट खपाने वालों को पकड़ा था, वे मध्य प्रदेश के ही बैहर के ग्रामीण इलाक़ों में पकड़े गये नक़ली नोटों को खपाने की तैयारी में थे। इसके बाद इसी साल 21 मार्च को बैहर थाना क्षेत्र में पुलिस ने चार लोगों को 4.94 लाख रुपये के नक़ली नोटों के साथ गिरफ़्तार किया था।
अभी हाल ही में एक बुज़ुर्ग हमारे पड़ोस की दुकान पर कुछ लेने के लिए आये, दुकानदार ने उन्हें सामान तौल दिया और पैसे माँगे; लेकिन जैसे ही बुज़ुर्ग ने दुकानदार को 100 रुपये का नोट दिया, दुकानदार ने उन्हें वह नोट नक़ली बताते हुए वापस कर दिया। पहले बुज़ुर्ग को भरोसा नहीं हुआ; लेकिन जब दुकानदार ने एक अन्य व्यक्ति को नोट दिखाया, तो उसने भी उसे नक़ली बताया। बुज़ुर्ग हक्का-बक्का रह गये और उदास होकर बिना सामान लिये वहाँ से चले गये।
इन घटनाओं से बड़ी एक घटना हाल ही में एक दैनिक अख़बार के स्टिंग ऑप्रेशन से सामने आयी है। इस अख़बार ने दावा किया है कि देश के देश के 25 शहरों में नक़ली करेंसी का गिरोह सक्रिय है, जिसके तार विदेशों से जुड़े हैं। अख़बार ने यहाँ तक दावा किया है कि नक़ली नोटों के इस अवैध कारोबार का पर्दाफ़ाश करने वाले उसके रिपोर्टर को गिरोह के लोगों की तरफ़ से जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं।
दरअसल इसी साल नवंबर के आख़िरी सप्ताह में प्रकाशित अपनी एक ख़बर में अख़बार ने दावा किया है कि देश में नक़ली नोटों का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल पड़ा है और दिल्ली इसका सबसे बड़ा अड्डा है। अख़बार का दावा है कि नक़ली नोटों का कारोबार करने वालों में गिरोह के एक सदस्य से उसके रिपोर्टर ने बाक़ायदा व्हाट्स ऐप पर डील भी की, जिसमें नक़ली नोटों के उस सप्लायर ने कहा कि 25 लाख रुपये के बदले वह एक करोड़ रुपये देगा। अख़बार ने यह भी दावा किया है कि नक़ली नोटों के ये अवैध कारोबारी 2,000 और 500 के नक़ली नोटों की सप्लाई करते हैं। 15 दिन के क़रीब चली इस डील में अख़बार के रिपोर्टर ने भारत में नक़ली नोटों का अवैध कारोबार सँभालने वाला साउथ अफ्रीकी गुर्गा माइकल से व्हाट्स ऐप नंबर +33752583492 पर बातचीत की और काफ़ी मेहनत व जोखिम के बाद आख़िरकार उसके एक गुर्गे को पुलिस के हवाले कराया। इस गुर्गे ने पुलिस में क़ुबूल किया कि भारत के 25 शहरों में नक़ली नोटों का धन्धा चल रहा है, जो कि फ्रांस से ऑपरेट होता है। गुर्गे ने दावा किया कि दिल्ली और बेंगलूरु में नक़ली नोटों के मुफ़्त सैंपल मिल जाएँगे, जिन्हें बाज़ार में चलाकर देखा जा सकता है। भरोसा होने पर एक लाख रुपये देकर चार लाख के नक़ली नोट ले लें। बताया जाता है कि इस काम में सरगना माइकल से बातचीत के बाद उसके एक अन्य गुर्गे यातारे ने वॉट्स ऐप नंबर 7835929389 के ज़रिये रिपोर्टर से सम्पर्क किया, जिसका काम पार्टी से मिलकर उसके बारे में पूरी पड़ताल करना था, जिसका एक लाख की डील पर 10,000 रुपये यानी 10 फ़ीसदी कमीशन मिलता था। अख़बार का कहना है कि इस गुर्गे से बातचीत के बाद माइकल ने 29 नवंबर की सुबह रिपोर्टर को कॉल की और 500 व 2000 के नक़ली नोटों के बंडल दिखाये, जिसके बाद मशीन में पकड़े जाने की आशंका ज़ाहिर करने पर उसने नोटों को मशीन से भी गिनकर दिखाया। इसके बाद ग्राहक बने रिपोर्टर को यातारे ने महिपालपुर बुलाया। उसने पहले रिपोर्टर को एक होटल में आने को कहा; लेकिन बाद में अपना प्लान बदलकर बाहर बुलाया। वहाँ उसके दो साथी और एक अफ्रीकन लडक़ी मिली। वहाँ से वह दूसरी जगह रिपोर्टर को लेकर जाने लगे, जहाँ पहले से दिल्ली पुलिस ने एक को दबोच लिया, जबकि बाइक सवार दो युवक और लडक़ी फ़रार हो गये। पकड़े गये अफ्रीकी गुर्गे ने बताया कि माइकल ही भारत के 25 शहरों में नक़ली नोटों की सप्लाई को देखता है और उसके सभी एजेंट अफ्रीकी हैं। जैसे ही माइकल को इसकी सूचना मिली, उसने रिपोर्टर को धमकी दी कि दुनिया के किसी भी कोने में छिप जाना। मैं तुझे अगले 24 घंटे में ढूँढकर जान से मार दूँगा।
एनसीआरबी की रिपोर्ट
हाल ही में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में ख़ुलासा किया गया है कि नोटबन्दी से पहले 2015 में नक़ली नोटों के 1,100 मामले दर्ज हुए। 15.48 करोड़ रुपये की क़ीमत के नक़ली नोट बरामद हुए और 1,178 आरोपी गिरफ़्तार किये गये। जबकि नोटबन्दी वाले साल 2016 में नक़ली नोटों के 1,398 मामले दर्ज हुए। 1,376 लोग गिरफ़्तार हुए और 24.61 करोड़ रुपये के नक़ली नोट पकड़े गये। वहीं अगले ही साल 2017 में साढ़े तीन लाख से अधिक नक़ली नोट बरामद हुए, जिनकी क़ीमत 28 करोड़ रुपये थी। इसके बाद साल 2018 में नक़ली नोटों की सप्लाई के 884 मामले दर्ज हुए। 969 आरोपी गिरफ़्तार हुए और 17.75 करोड़ रुपये की क़ीमत के नक़ली नोट बरामद हुए।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 के पहले महीने यानी जनवरी में ही नक़ली नोटों की सप्लाई के कुल 254 मामले दर्ज हुए। जबकि 5.05 करोड़ रुपये की क़ीमत के नक़ली नोट ज़ब्त किये गये और 357 लोग गिरफ़्तार किये गये। जबकि इस पूरे साल में कुल 25.39 करोड़ रुपये की क़ीमत के कुल 2,87,404 नोट बरामद हुए। साल 2020 में केवल महाराष्ट्र में 97 लोगों को गिरफ़्तार करके पुलिस ने 83.61 करोड़ रुपये की क़ीमत के कुल 6,99,495 नक़ली नोट ज़ब्त किये। पूरे देश में इस साल 92.18 करोड़ रुपये की क़ीमत के कुल 8,34,947 नक़ली नोट पुलिस ने पकड़े। यह राशि साल 2019 की तुलना में 190.5 फ़ीसदी ज़्यादा है।
इस साल के आँकड़े फ़िलहाल एनसीआरबी ने जारी नहीं किये हैं। लेकिन नक़ली नोटों के अफ्रीकी सरगना माइकल के गुर्गे के पकड़े जाने से इस बात का ख़ुलासा हो चुका है कि देश में नोटबन्दी के बाद भी नक़ली नोटों का अवैध कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है और उस पर नोटबन्दी का कोई असर नहीं हुआ। लेकिन हैरत इस बात की है कि इतने पर भी सरकार नक़ली नोटों के इस अवैध कारोबार के ख़िलाफ़ कोई ठोस क़दम उठाती नहीं दिख रही है।
नये नोटों में असली-नक़ली की पहचान नहीं आसान
जबसे देश में नये नोटों को सरकार ने जारी किया है, लोगों को पुराने नोटों की तरह इनकी पहचान करनी नहीं आती। इसकी एक वजह इन नोटों का काग़ज़ पहले के नोटों की अपेक्षा काफ़ी हल्का होना है। जब नये नोट सरकार ने जारी किये थे, तब बहुत-से लोगों ने इन्हें चूरन वाले नोट कहा था। वास्तव में इन नोटों में पहले जैसी बात नहीं है, जिससे इन्हें पहचानना आसान नहीं है। ज़्यादातर देखा गया है कि इन नोटों को बहुत कम लोग ही ग़ौर से देखते हैं। लेकिन यह भी सच है कि नक़ली नोट गाहे-ब-गाहे मिल ही जाते हैं। ऐसे में भले ही लोग एटीएम से पैसे निकालें; लेकिन सरकार के नोटों की पहचान वाले दिशा-निर्देश के हिसाब से ठीक से उनकी जाँच कर लें, जिससे बाद में उन्हें पछताना न पड़े।
कम हो रहे 2,000 के नोट
प्रधानमंत्री ने नोटबन्दी के दौरान दावा किया था कि नोटबन्दी से कालाधन ख़त्म हो जाएगा। लेकिन स्विस बैंक में तेज़ी से बढ़े भारतीय काले धन से उनके यह दावे खोखले होते नज़र आते हैं। इसकी एक बानगी बाज़ार से 2,000 के नोटों का ग़ायब होना भी है। क्योंकि अब बाज़ार में 2,000 के नोट कम नज़र आते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि लोगों ने 1,000 की जगह 2,000 के नोटों का संग्रह शुरू कर दिया है, जो कि 1,000 के नोट की अपेक्षा कालाधन बढ़ाने में दोगुना सहयोग करते हैं।