हाल में देश की दिल्ली के वेलकम में 16 साल के नाबालिग़ ने 50 से ज़्यादा बार चाक़ू से ताबड़तोड़ हमले करके बेहद निर्मम तरीक़े से 17 साल के एक नाबालिग़ को मार डाला। मृतक के पास 350 रुपये थे, जिन्हें आरोपी ने लूटने के लिए यह हत्या कर दी। आरोपी ने इस दौरान शव को घसीटा, शव के पास डांस किया। यह सब वहाँ लगे सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया। कुछ मीडिया रिपोट्र्स के अनुसार, आरोपी के रिश्ते कुछ शातिर अपराधियों से हैं और वह कुछ दिन पहले ही बाल सुधार गृह से अपने घर लौटा था। लेकिन उसने इस दिल दहला देने वाली घटना को अंजाम दे डाला।
सवाल यह है कि हाल ही की यह घटना कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि नाबालिग़ों के द्वारा किये जाने वाले ऐसे अपराधों की वारदात अब समाज में सामान्य प्रवृत्ति का रूप ले चुकी हैं। यह किसी भी परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व के हित में नहीं है। इससे समाज में एक दहशत फैलती है। नाबालिग़ पीढ़ी, जो कि किसी भी परिवार, समाज व राष्ट्र के लिए अमूल्य है; उसका अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाने की अपेक्षा अपराध में संलग्न होना हम सबके लिए अति चिन्ता की बात है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट-2021 के अनुसार, देश में हर दिन नाबालिग़ों के ख़िलाफ़ 85 आपराधिक मामले दर्ज किये गये, जबकि 100 से अधिक नाबालिग़ आरोपियों / अपराधियों को गिर$फ्तार किया गया। यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि दिल्ली में अन्य शहरों की तुलना में अधिक नाबालिग़ अपराध और क़ानून के उल्लंघन में लिप्त हैं। इसी रिपोर्ट में यह भी पता चलता है कि देश भर में सन् 2021 में नाबालिग़ों के ख़िलाफ़ कुल 31,170 आपराधिक मामले दर्ज किये गये, जबकि सन् 2020 में 29,768 नाबालिग़ों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले दर्ज हुए। यानी एक साल में ऐसे अपराधों में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। अब अहम सवाल यह है कि आख़िर बच्चे और किशोरवय के नाबालिग़ अपराधी क्यों बन रहे हैं? इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं; लेकिन मुख्य कारणों में ग़रीबी, सामाजिक-आर्थिक विषमता तो है ही, पर इसके अलावा इस पीढ़ी में नशे की बढ़ती लत, ऑनलाइन हिंसक गेम देखना व हिंसक बेवसीरीज और ऐसी ही फ़िल्मों को मोबाइल पर देखकर ज़िन्दगी में ऐसा कुछ करने की तमन्ना पालना, जिससे समाज उन्हें जाने। अब तो सोशल मीडिया पर अपनी हिंसक करतूतों के वीडियो अपलोड करने की मनोवृत्ति भी कई अपराधियों में पनप रही है। शातिर अपराधी भी नाबालिग़ों का इस्तेमाल करते हैं। देश में किये गये एक अध्ययन से सामने आया था कि हत्या और बलात्कार जैसे गम्भीर अपराध करने वाले नाबालिग़ों में से ज़्यादातर साइकोट्रोपिक दवाइयों का सेवन करते मिले।
सन् 2019 में अमेरिका के मेडिकल जर्नल जामा नेटवर्क ओपन ने 220 बच्चों पर एक अध्ययन किया था, जिससे यह सामने आया था कि जो बच्चे गन हिंसा वाले वीडियो गेम खेलते हैं, उनमें गन को पकडऩे व उसका ट्रिगर दबाने की इच्छा अधिक होती है।
बच्चे, किशोर अपराध की राह क्यों पकड़ते है? यह एक ऐसा सवाल है, जिसके कई पहलू हैं और उन सब पर गम्भीरता से काम करने की ज़रूरत है। देश में बाल सुधार गृहों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव आम बात है। वहाँ का माहौल भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता।
बाल संरक्षण अधिकारियों में संवेदनशीलता का स्तर भी कम पाया जाता है। बाल मनोचिकित्सकों की कमी भी ऐसे अपराधियों को सुधारने की राह में एक बाधा है। देश में नाबालिग़ न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम-2015 जघन्य अपराध करने वाले 16 से 18 साल के नाबालिग़ों पर वयस्कों की तरह मुक़दमा चलाने और सज़ा देने की अनुमति देता है; लेकिन संशोधन के इस बिन्दु पर सभी सहमत नहीं हैं।
गौरतलब है कि यह संशोधन-2012 में निर्भया मामले में सामने आये गुस्से के मद्देनज़र किया गया था, क्योंकि इस मामले में छ: आरोपियों में से एक नाबालिग़ था और इसलिए फाँसी से बच गया था। विशेषज्ञों की एक लॉबी का मानना है कि नाबालिग़ों के मस्तिष्क में महत्त्वपूर्ण बदलाव होते हैं; $खासतौर से उन क्षेत्रों में जो आवेग नियंत्रण, प्रतिक्रिया, अवरोध और निर्णय लेने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। यहाँ पर सरकारी मशीनरी, क़ानून व समाज और परिवार की अपनी-अपनी भूमिका है। इस भूमिका को दिल से पूरा करने के साथ-साथ सरकारों को बच्चों, नाबालिग़ों को अपराधों से दूर रखने वाले माहौल को बनाने व बाल सुधार गृहों आदि में निवेश करने की दिशा में ठोस क़दम उठाने की दरकार है।