क्या है अदालत का फैसला?
बहुचर्चित बटला हाउस मुठभेड़ मामले में दोषी ठहराए गए शहजाद अहमद को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है. दिल्ली के साकेत कोर्ट ने यह फैसला देते हुए उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है. कोर्ट ने मामले को रेयरेस्ट ऑफ रेयर न मानते हुए शहजाद को मृत्युदंड देने से इनकार कर दिया. अदालत ने 25 जुलाई को इस मामले में शहजाद अहमद को इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की हत्या का दोषी माना था. इसके साथ ही उसे दो अन्य पुलिसकर्मियों की हत्या के प्रयास का दोषी भी करार दिया गया था.
क्या था बाटला हाउस एनकाउंटर का पूरा मामला ?
19 सितंबर, 2008 को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल 13 सितंबर को दिल्ली में हुए धमाकों के सिलसिले में दक्षिणी दिल्ली के बटला हाउस इलाके में दबिश देने पहुंची थी. इन धमाकों में 26 लोगों की जान गई थी. पुलिस को खुफिया सूचना मिली थी कि इलाके की एल-18 बिल्डिंग में धमाके के आरोपित छिपे हुए हैं. दबिश के दौरान हुई मुठभेड़ में इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा शहीद हो गए थे. इस दौरान साजिद व आतिफ नाम के दो आतंकी भी मारे गए थे जबकि शहजाद और जुनैद नाम के दो आतंकी अफरातफरी का फायदा उठाकर फरार हो गए थे. बाद में शहजाद को पुलिस ने आजमगढ़ से गिरफ्तार किया, जबकि जुनैद अभी फरार चल रहा है.
मुठभेड़ पर क्यों उठा विवाद ?
इस मुठभेड़ पर शुरू से ही सियासत होने लगी थी. पहले सपा नेता अमर सिंह और मुलायम सिंह ने मुठभेेड़ की सत्यता पर सवाल खड़े किए और न्यायिक जांच की मांग की. बाद में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी आजमगढ़ जाकर बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया. हालांकि उनकी सरकार इसे नकारती रही. खुद गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि मुठभेड़ वास्तविक थी और कोई जांच नहीं होगी. 2009 में मानवाधिकार आयोग ने भी मुठभेड़ की सत्यता पर मुहर लगाई थी. इस घटना के बाद आजमगढ़, जहां से सारे आरोपित ताल्लुक रखते थे, में विरोध की लहर फैल गई. अल्पसंख्यकों के एक गुट ने वहां उलेमा काउंसिल नाम से एक राजनीतिक मंच का गठन किया, लेकिन चुनावों में यह प्रयोग असफल रहा.
– प्रदीप सती